फिल्म 'एमएसजी' को हरी झंड़ी दिखा बीजेपी ने एक तीर से साधे दो निशाने

चंडीगढ़:

सिरसा के डेरा सच्चा सौदा की फिल्म एमएसजी (मैसेंजर ऑफ़ गॉड) को ट्रिब्यूनल की हरी झंडी एक ही दिन में मिल गई, तो लोगों को ताज्जुब हुआ। अमूमन मंजूरी मिलने में हफ्ता-दस दिन का वक़्त लगता है, लेकिन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आधीन काम करने वाली फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण यानी एफसीएटी ने जो तेजी दिखाई उससे विवाद तो खड़ा होना ही था।

एफसीएटी का यह फैसला सरकारी कम और सियासी ज्यादा लग रहा है। वजह जानने के लिए थोड़ा फ्लैश बैक में जाना पड़ेगा। पिछले साल अक्टूबर में हरियाणा विधानसभा चुनाव के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिरसा की रैली डेरा सच्चा सौदा की जमकर तारीफ की थी। मोदी की नज़र डेरा के लाखों भक्तों पर थी, जिनके वोट से उनकी पार्टी की नैया पार लग सकती थी।

डेरा प्रमुख गुरमीत सिंह राम रहीम ने भी हवा का रुख भांपते हुए अपने भक्तों को बीजेपी के पक्ष में वोट डालने का हुक्म दे दिया और बीजेपी हरियाणा के इतिहास में पहली बार सत्ता पर काबिज हो गई। सरकार बनने के बाद चुनाव के प्रभारी रहे कैलाश विजयवर्गीय मंत्रियों के साथ डेरा पर मत्था टेकने भी गए थे।  

अब इस फिल्म के जरिये बीजेपी ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं। पार्टी पंजाब की सियासत में दखल बढ़ाने में जुटी है। राज्य में सहयोगी अकाली दल से रिश्ते कुछ ठीक नहीं चल रहे। साल 2017 में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव तक दोनों में  तलाक की चर्चा अभी से गर्म है।

बीजेपी ने बेहद सधे अंदाज में मिशन 2017 पर काम भी शुरू कर दिया है। उसकी नज़र पंजाब के 30 फ़ीसदी दलित वोटरों पर है, जो परंपरागत तौर पर कांग्रेस का वोट बैंक रहा है। इसी रणनीति के तहत होशियारपुर से सांसद विजय संपला को केंद्र में मंत्री बनाया गया है। मालवा इलाके में डेरा सच्चा सौदा के भक्तों की तादात लाखों में है।

बीजेपी हरियाणा का प्रयोग पंजाब में भी आजमाना चाहती है। इसलिए डेरा प्रमुख की फिल्म को हरी झंडी से डेरा का क़र्ज़ तो उतरा ही, लेकिन अब पंजाब में भी डेरा समर्थकों का साथ पार्टी को हासिल हो जाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं।

वहीं बीजेपी ने अपनी सहयोगी अकाली दल के लिए मुश्किल भी खड़ी कर दी है। सिखों का डेरा से बैर जग जाहिर है। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल अब तक यह कहते रहे कि फिल्म पर फैसला सेंसर बोर्ड करेगा, लेकिन फिल्म की रिलीज़ को लेकर कानूनी अड़चन ख़त्म होने के बाद अब फैसला उनकी सरकार को करना है।

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इससे पहले साल 2013 में बादल सरकार को हिन्दू सगठनों और बीजेपी के विरोध के बाद आतंकवाद पर बनी फिल्म साड्डा हक़ पर प्रतिबंध लगाना पड़ा था। इस दफा दबाव सिख सगठनों का है, लेकिन सवाल यह है कि क्या बादल सरकार सिरसा डेरा को नाराज़ करने का जोखिम उठाएगी?