हिन्दी प्रदेश को कचरे के ढेर में बदलने के लिए एक और तैयारी पूरी : नागरिकता संशोधन विधेयक

हिन्दी प्रदेश का युवा आईटी सेल में बदला जा रहा है. उसकी बौद्धिकता इतनी पुरातन और क्षेत्रिय हो गई है कि अब वह इससे लंबे समय तक बाहर नहीं निकल पाएगा.

हिन्दी प्रदेश को कचरे के ढेर में बदलने के लिए एक और तैयारी पूरी : नागरिकता संशोधन विधेयक

फाइल फोटो

जिस तरह से धारा 370 की राजनीति कश्मीर के लिए कम हिन्दी प्रदेशों को भटकाने के लिए ज़्यादा थी उसी तरह से नागरिकता संशोधन बिल असम या पूर्वोत्तर के लिए हिन्दी प्रदेशों के लिए ज़्यादा है. इन्हीं प्रदेशों में एक धर्म विशेष को लेकर पूर्वाग्रह इतना मज़बूत है कि उसे सुलगाए रखने के लिए ऐसे मुद्दे लाए जाते हैं ताकि वह अपने पूर्वाग्रहों को और ठोस कर सके. लगे कि जो वह सोच रहा है उसके लिए ही किया जा रहा है. इसकी भारी क़ीमत देश चुका रहा है.

इसलिए मैं हिन्दी प्रदेश को अभिशप्त प्रदेश कहता हूं. जब भी इसकी ज़रूरतों पर ध्यान देने का वक्त आता है ऐसे मुद्दों से उसकी आकांक्षाओं को लीप-पोत दिया जाता है. हिन्दी प्रदेश का युवा आईटी सेल में बदला जा रहा है. उसकी बौद्धिकता इतनी पुरातन और क्षेत्रिय हो गई है कि अब वह इससे लंबे समय तक बाहर नहीं निकल पाएगा.

आप कितना भी कहिए कि घुसपैठियों के नाम पर जो हवा बनाई गई वो हज़ारों करोड़ फूंक देने के बाद बोगस साबित हुई वह यही कहेगा कि आप चाहते हैं कि बांग्लादेशी या रोहिंग्या नागरिक हो जाएं. वह जानता है कि रोहिंग्या नागरिक नहीं हैं, शरणार्थी हैं. लेकिन तब भी वह यही कहेगा क्योंकि उसकी सोच में सूचना कम है, धारणा ज़्यादा है. इसलिए उसे ट्रिगर करने के लिए ऐसे मुद्दे लाए जाते हैं. नागरिकता संशोधन बिल संविधान की मूल आत्मा से खिलवाड़ है. अब हिन्दी प्रदेश इस बिल को लेकर खेलेंगे.

असम समझौते में यही बात हुई थी कि जो 1951 से 1971 के बीच आने वाले बांग्लादेशियों को ही स्वीकार किया जाएगा. इसमें हिन्दू या मुस्लिम के लिहाज़ से फ़र्क़ नहीं है. अखिल असम छात्र संघ (AASU) का कहना है कि बीजेपी ग़लतबयानी कर रही है. सांप्रदायिक एजेंडा चला रही है. ऐसा हुआ तो असम में फिर से पहचान का सवाल उठेगा. असम का मामला बेहद संवेदनशील है. इसी बात को लेकर 1983 में असम में भयंकर आंदोलन हुआ था. हिंसा हुई थी. 800 से अधिक लोग शहीद हो गए थे. उन्हें असम की राजनीति में शहीद कहा जाता है. असम बहुत चिन्तित है. पूरा असम सुरक्षा अलर्ट पर है. गुवाहाटी में हज़ार से अधिक सुरक्षा बल तैनात हैं.

असम के संगीतकार ज़ुबीन गर्ग ने एलान किया है कि नए नागरिकता संशोधन बिल के ख़िलाफ़ छह दिसंबर को विरोध प्रदर्शन करेंगे. उनका एक गाना ‘राजनीति मत करो बंधु' इस बिल के विरोध का प्रतिनिधि गीत बन गया है. उन्होंने सभी मूल निवासी संगठनों से अपील की है कि सब मिलकर इसका विरोध करें. कृषक मुक्ति संग्राम समिति ने भी इसका विरोध किया है.

बीजेपी इस राजनीति में खुद उलझ रही है. धारा 370 का विरोध इसलिए किया कि देश में एक क़ानून होना चाहिए. अब ख़बर आ रही है कि पूर्वोत्तर के तीन राज्यों को इसके दायरे से बाहर रखा जाएगा. मतलब वहां नागरिकता संशोधन बिल के प्रावधान लागू नहीं होंगे. ये तीन राज्य हैं अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मणिपुर. यहां पर इनर लाइन परमिट एरिया का प्रावधान लागू है. यहां पर जाने के लिए सीमित समय का परमिट मिलता है. मीडिया रिपोर्ट से पता चल रहा है कि असम के भी जनजातीय इलाक़ों को नए क़ानून के दायरे से बाहर रखा जा सकता है. इसलिए आप डिटेल पढ़ें और फिर देखें कि राजनीतिक मंच से आपको उल्लू बनाने के लिए पूरे मसले को घुसपैठिया नाम देकर क्यों पुकारा जा रहा है? ऐसा क़ानून क्यों आ रहा है जो पूरे देश में लागू नहीं होगा? पूर्वोत्तर में ही पूरी तरह लागू नहीं होगा?

हिन्दी प्रदेश जागृत होता तो इतनी आसानी से ऐसे जटिल विषयों पर बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता. पूरे देश से घुसपैठिया निकालने की बात हो रही है. और यही नहीं बताते कि किस नियम के तहत किसी को और कहां निकाल देंगे. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना आती हैं तो उनसे इस पर बात नहीं होती. कहा जाता है कि यह भारत का आंतरिक मामला है. यानी इन्हें भारत में ही किसी सेंटर में बंद कर रखा जाएगा. इस पर कोई स्पष्टता नहीं है लेकिन अमित शाह रैलियों में बोल आते हैं. सबको पता है कि इस मसले की सतह पर मुसलमान है. पूर्वाग्रह ग्रसित हिन्दी प्रदेश को बस यह दिख जाना चाहिए वह बाक़ी बिल के बारे में जानना भी नहीं चाहेगा. इसी में ख़ुश रहेगा. वह जानने का प्रयास नहीं करेगा कि असम में इस बिल को लेकर कितनी अलग अलग राय है. कभी कश्मीर तो कभी घुसपैठियों के नाम हिन्दी प्रदेश को कचरे के ढेर में बदला जा रहा है.

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