गुना में पुलिस के डंडे बजते रहे और कई सवाल पीछे छूट गए ...

कुछ दिनों पहले रिपोर्ट आई थी कि देश में 86 लाख किसानों की संख्या कम हो गई लेकिन खेतिहर मजदूरों की संख्या बढ़ गई, यानी किसान का जमीन से मालिकाना हक़ ख़त्म हो गया और वो मजदूर बन गए.

गुना में पुलिस के डंडे बजते रहे और कई सवाल पीछे छूट गए ...

कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश में साहूकारी संशोधन विधेयक एवं अनुसूचित जनजाति ऋण मुक्ति विधेयक 2020 को कैबिनेट की स्वीकृति दे दी गई जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में निवासरत अनुसूचित जनजाति वर्ग के सभी व्यक्तियों के 15 अगस्त 2020 तक के सभी ऋण ब्याज सहित माफ किए जाने का प्रावधान किया जा रहा है. दूसरे वर्गों को भी साहूकारों के चंगुल से छुड़ाने के लिए मध्यप्रदेश साहूकार (संशोधन विधेयक 2020) लाया जा रहा है.
      
अब गुना के कुछ सवाल देखते हैं --

1. दलित हिंसा का मामला है - भू-माफिया बब्बू पारधी ऐसे ही लोगों के जरिये जमीन पर कब्जा करके रखता था ... पूर्व पार्षद था ...एक अपराधी प्रवृत्ति का शख्स जमीन कब्जे में करने के लिये राजकुमार अहिरवार जैसे लोगों का इस्तेमाल करता है. वैसे बहस इस पर भी होनी चाहिये पारधियों को 1871 से अंग्रेजों ने क्रिमिनल ट्राइब बना दिया, लोगों ने ये धारणा भी बना रखी है.

2. दो साल पहले केन्द्र की रूसा योजना के तहत राज्य के 8 जिलों में मॉडल कॉलेज खोलने का फैसला हुआ, गुना जैसे ज़िलों के लिये जरूरी भी था ... जमीन मिल गई, लेकिन काम शुरू नहीं हुआ. 8 महीने पहले कब्जा हटाया गया, फिर कब्जा हो गया. इस दौर में एक सरकार गई, दूसरी आ गई.

3. जमीन है तो सरकारी ये तथ्य है, पुलिस की बर्बरता भी तथ्य है, पुलिस अस्पताल ना ले जाती तो तबीयत बिगड़ सकती थी ये भी तथ्य है.

4. सबसे बड़ी दिक्कत भूमिहीन कृषक, खेतिहर मजदूरों की दुर्दशा इन पर कोई बात नहीं हुई.

5. पीड़ित परिवार ने फसल के लिये कर्ज लिया था जिसमें स्थानीय साहूकार भी शामिल थे.

आप जानते हैं कि कुछ दिनों पहले रिपोर्ट आई थी कि देश में 86 लाख किसानों की संख्या कम हो गई लेकिन खेतिहर मजदूरों की संख्या बढ़ गई, यानी किसान का जमीन से मालिकाना हक़ ख़त्म हो गया और वो मजदूर बन गए.

यही दिक्कत है, भयानक वाली ... कविता जब पत्रकारिता में फर्क ना कर पाए तो वाकई दिक्कत है ...
संवेदनशील होना किसी पेशे के नहीं, मानवता की शर्त है ... कलमकार हैं तो वैसे भी यही उम्मीद की जाती है ... लेकिन तथ्य अनदेखा नहीं कर सकते ... पत्रकारों ने रो रोकर कागज़ भर दिया ... वाकई ये तस्वीरें झकझोर देती हैं लेकिन कुछ तो काम की बात करें

देश में 10 ग्रामीण परिवारों के पास, खेती की 54 कुल फीसद जमीन का मालिकाना हक़ है. खेतिहर मजदूरों की आत्महत्या का आंकड़ा 2015 में 4,595 था जो 2016 में बढ़कर 5,109 हो गया ( ये एनसीआरबी की आखिरी रिपोर्ट है इस संदर्भ में)

अब आप ये आंकड़े समझ गए तो फिर तस्वीर रिवाइंड कीजिये और जेहन में उन तस्वीरों को देखिए ...

गुना के जगनपुर चक में किसान दंपत्ति अपने बच्चों के साथ प्रशासनिक- पुलिस अफसरों के सामने हाथ जोड़ते रहे, उनका कहना था कि जमीन गप्पू पारदी ने उसे बटिया पर दी है. कर्ज लेकर वो बोवनी कर चुका है. अगर फसल उजड़ी तो बर्बाद हो जाएगा, लेकिन किसान की फरियाद किसी ने नहीं सुनी, जिसके बाद दोनों ने जहर पी लिया ... आरोप ये भी है कि अधिकारी कह रहे थे ये नाटक कर रहे हैं, काफी देर तक दोनों खेत में ही पड़े रहे. उधर, राजकुमार का छोटा भाई आया उसने विरोध किया तो पुलिस ने लाठियां बरसाईं और लाते भी मारी गईं. बटियादार के परिवार की महिलाओं के साथ भी पुलिस ने खींच तान की, इससे उनके कपड़े तक फट गए.
    
वैसे इस पूरे मामले में प्रशासनिक लापरवाही भी है जो सर्वदलीय है. किसान बीजेपी राज में पिटे, सरकारी जमीन पर पूर्व पार्षद गप्पू पारदी का कब्जा था, 8 महीने पहले भी इसे हटाया गया था लेकिन ठेकेदार ने इस जमीन पर एक ईंट तक नहीं लगाई उस वक्त जब कांग्रेस की सरकार थी.
      
एसपी-कलेक्टर-आईजी का तबादला, 7 पुलिसकर्मी निलंबित, 7 लोगों के खिलाफ एफआईआर ... लेकिन पप्पू पारधी जैसे लोग हर सल्तनत में बने रहते हैं, क्यों ये है असली सवाल.

अनुराग द्वारी NDTV इंडिया में डिप्टी एडिटर (न्यूज़) हैं...

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