बाबा की कलम से : प्रदूषण तभी खत्म होगा, जब आम आदमी इसे अपनी लड़ाई बनाएगा

बाबा की कलम से : प्रदूषण तभी खत्म होगा, जब आम आदमी इसे अपनी लड़ाई बनाएगा

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

नई दिल्ली:

कौन से नंबर की गाड़ी कब चलेगी, इस फैसले पर विवाद तो नहीं है, मगर भ्रम की स्थिति बनी हुई है... मोटरसाइकिल पर यह नियम लागू होगा या नहीं, यह भी साफ नहीं... दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के दो मंत्री अलग-अलग बयान दे रहे हैं... दफ्तरों में और सोशल मीडिया में भी इस बात की खूब चर्चा चल रही है, जैसे - यदि कोई नाइट शिफ्ट में दफ्तर आया तो सुबह वह किस गाड़ी से घर जाएगा...

इसे लागू किए जाने को लेकर भी काफी संशय व्यक्त किया जा रहा है... दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार के बीच खटपट चलती रहती है, सो, ऐसे में कहीं दिल्ली सरकार ने पुलिस के हाथ में लोगों को तंग करने या उगाही का एक हथियार तो नहीं थमा दिया है... दूसरी तरफ दिल्ली में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान से बड़ी संख्या में लोग काम करने आते हैं, उनका क्या होगा... दिल्ली सरकार ने अपने अगल-बगल के राज्यों से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया है... तीसरा कन्फ्यूज़न है महिलाओं की सुरक्षा का... अपनी कार में एक अकेली महिला खुद को अधिक सुरक्षित महसूस करती है...

ऐसा लगता है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को इस योजना की घोषणा की जल्दबाजी थी, सो, ऐलान उन्होंने पहले कर दिया और प्लानिंग अब कर रहे हैं... केजरीवाल साहब अब कह रहे हैं कि यह ट्रायल बेसिस पर है, यदि यह काम नहीं किया तो इसे लागू नहीं किया जाएगा... वैसे भी जब इस तरह की योजना मैक्सिको में लागू की गई थी तो लोगों ने सस्ते दामों वाली दूसरी कारें खरीद ली थीं, जिनसे प्रदूषण और भी ज़्यादा होने लगा था... लेकिन सवाल यह भी है कि आखिर दिल्ली को गैस चैम्बर बनने से कैसे रोका जाए...

प्रदूषण एक बड़ी समस्या है, और इसके जानकार मानते हैं कि सबसे अधिक प्रदूषण डीजल वाले ट्रक करते हैं... प्रदूषण फैलाने वाले छोटे कण इन्हीं ट्रकों से फैलते हैं, पेट्रोल वाली कारों से नहीं... दिल्ली में प्रदूषण फैलाने के लिए बिल्डिंग बनाने, कचरा जलाने, पंजाब में खेत जलाने और राजस्थान में आने वाले धूल के तूफान जैसी चीजों का बड़ा हाथ है... ऐसे में प्रदूषण से लड़ने के लिए जरूरत है एक सम्रग और सामूहिक तरीके की, जिसमें लोगों की भागीदारी भी हो...

लोगों में जागरूकता फैलाने की भी ज़रूरत है कि उन्हीं के बच्चों के भविष्य के लिए प्रदूषण पर रोक लगाना कितना जरूरी है... दिल्ली जैसे शहर में, जहां रोड किनारे घायल व्यक्ति के लिए लोग अपनी कार नहीं रोकते, वहां कार पूल की सारी योजनाएं फेल ही साबित हुई हैं... कार यहां लग्जरी का प्रतीक है, सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट का हाल सबको मालूम है, मेट्रो भीड़ की शिकार बनती जा रही है... ऐसे में क्या किया जाना चाहिए, यह सरकार और प्रदूषण के जानकारों के लिए बड़ी चुनौती है...

बीजिंग, लंदन और सिंगापुर जैसे शहरों में भी ईवन और ऑड गाड़ियों का नियम है, और कई सड़कों पर गाड़ी चलाने के लिए अलग से सरचार्ज भी देना पडता है... बीजिंग में प्रदूषण को लेकर पहली बार रेड अलर्ट जारी किया गया है, कंस्ट्रक्शन की सभी गतिविधियों पर पूरी तरह रोक है, स्कूल बंद कर दिए गए हैं, जबकि बीजिंग में बड़ी तादाद में लोग साइकिल चलाते हैं... दिल्ली में तो यह भी संभव नहीं है... ऐसे में क्या किया जाए, यह एक बहुत बड़ा सवाल है सरकार के लिए, और इस प्रदूषण पर तभी काबू पाया जा सकता है, जब आम लोग इसे अपनी लड़ाई बनाएं, और कार को स्टेटस सिम्बल न समझते हुए अपनी जिम्मेदारी समझें... सिर्फ तभी दिल्ली रहने लायक रह पाएगी, वरना यहां की हवा में सांस लेना रोजाना 30 सिगरेट पीने के बराबर है, और यह आंकड़ा बढ़ता ही जाएगा...

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