बाबा की कलम से : इस्लामिक - कहां से कहां तक

बाबा की कलम से :  इस्लामिक - कहां से कहां तक

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली:

साल 2003, जब अमेरिकी फौज़ सद्दाम के शासन को उखाड़ फेंकने के बाद उसकी एक-एक निशानियां तबाह कर रही थी, ठीक उसी वक़्त अबू अल ज़रक़ावी की अगुवाई में इस्लामिक स्टेट की नींव पड़ चुकी थी। ज़रकावी ने न सिर्फ बगदाद के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर बम फेंके बल्कि इराकी शहर फजुल्लाह समेत उसके दूसरे हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए। मौत का सौदागर जरकावी अपनी करतूतों का वीडियो भी बनाता था।

जरकावी की तस्वीर जारी करना बड़ी भूल
अगले साल 2004 में जब इराक में अंतरिम सरकार बनी तो उधर लादेन को अपना नेता मान चुना ज़रकावी भी अलकायदा इराक के नाम से अपना संगठन खड़ा कर चुका था। उसके निशाने पर आमतौर पर शिया मुस्लिम होते। पूरे इराक में कार बम हमले और मारकाट का दौर जारी रहा। 2006 में कुर्द नेता जलाल तालिबानी राष्ट्रपति बने जबकि शिया नेता मलिकी प्रधानमंत्री। इसी दौरान अमेरिका ने अपने हवाई हमले से जरकावी को मार गिराया और उसकी तस्वीर जारी कर दी, जो आनेवाले दिनों में एक भारी भूल साबित हुई। इंटरनेट पर वायरल हुई तस्वीर ने रातोंरात जरकावी समर्थकों की फौज खड़ी दी। शायद इसी से सबक ले चुके अमेरिका ने लादेन की एक भी तस्वीर जारी नहीं की।

जरकावी की मौत के बाद बन गया इस्लामिक स्टेट
जरकावी की मौत के चार महीने बाद इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक पैदा हुआ और इसका नेता बना अबू उमर अल बगदादी। इधर दिसंबर,2006 में सद्दाम हुसैन को फांसी हुई, फिर अमेरिका ने सुन्नियों के साथ मिलकर इस्लामिक स्टेट और अल कायदा को खासा नुकसान पहुंचाया लेकिन इराकी प्रधानमंत्री मलिकी के इरादे जरा हट के थे। 2009 तक उल्टे सुन्नी नेता ही निशाने पर आ गए। इससे इस्लामिक स्टेट पर दबाव कम हुआ और उसने इराक के विदेश और वित्त मंत्रालय पर बमबारी कर दी।

सीरिया में इमरजेंसी हटते ही हालात बदले
बगदादी 2010 में अमेरिकी हमले में मारा गया जिसकी जगह मौजूदा मुखिया अबू बकर अल बगदादी ने ली। 2011 सीरियाई गृहयुद्ध का साल रहा। वहां के राष्ट्रपति बशर अल असद ने पचास सालों से जारी इमरजेंसी इस उम्मीद में हटाई की हालात शायद सुधर जाएं, पर हुआ उल्टा। मौके का फायदा उठाते हुए इस्लामिक स्टेट ने असद विरोधियों से हाथ मिलाया और अपने पांव पसारने लगा। अब तक इस संगठन का नाम आईसीस यानी इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया हो चुका था। इसने अपने वीडियो इंटरनेट पर डालने शुरू किए, जो खासे वायरल हुए।

अमेरिकी हमले का बदला लिया
2013 तक इनका उत्तर पश्चिमी शहर रक्का पर कब्जा हो चुका था। 2014 में एक बड़ी कामयाबी और मिली जब मोसुल भी फतह हुआ। मोसुल के बैंक लूटकर आईसीस ने खासा पैसा जमा किया। जून 2014 में पहली बार दुनिया के सामने आए अबू बकर बगदादी ने मोसुल की एक मस्जिद से खुद को खलीफ़ा इब्राहिम घोषित किया। आईएस ने अपना मुखपत्र दाबिक भी जारी किया और इन बातों से नाराज अमेरिका ने जब अपनी बमबारी तेज की तो आईसीस ने इसका बदला अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोले, स्टीफेन सोटलॉफ और ब्रिटिश नागरिक डेविड हैंस को कैमरे के सामने क्रूरता से मारकर लिया।

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धीरे-धीरे आईसीस ने मिस्र, यमन, सऊदी अरब, यमन, लीबिया और अल्जीरिया में अपनी शाखाएं खोलीं और बड़ी संख्या में विदेशी लड़ाके भर्ती किए। इनमें लड़कियां भी शामिल थीं। मोसूल पर कब्जा कर चुके आईसीस ने तेल के कुएं हथियाने शुरू किए और तेल बेचकर अरबों डॉलर बनाए।