ब्लॉग : मीडिया ने अनुचित तरीके से मुझे 'एक टांग तोड़ दो' वाले विवाद में घसीटा- बाबुल सुप्रियो

सबसे ज्यादा खौफनाक और मायूस करने वाली बात यह है कि किसी ने भी इस बात को जानने की कोशिश नहीं की कि मैंने किस तरह से 'सख्ती' दिखाकर दिव्यांगों के लिये आयोजित कार्यक्रम को असफल होने से बचाया था

पिछले कुछ दिनों में मेरे 'टांग तोड़ दो' वाले बयान के बारे में बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है. मेरे बेडरूम में टंगे एक बोर्ड में लिखा है, 'जितना अजीब आरोप हो, उतना ही शांत रहना चाहिए.' लेकिन अब नियमों को तोड़ना ही पड़ेगा क्योंकि इस मामले में मैं यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकता कि 'कुछ तो लोग कहेंगे'.

सबसे पहले मैं इस अपनी गलती को स्वीकार करता हूं. क्या मैं उन सभी आलोचनाओं के जवाब में कह सकता हूं कि मुझे कोई परवाह नहीं है? जवाब है 'नहीं'. क्योंकि जो लोग मुझे पसंद करते हैं (और उनमें केवल परिवार के लोग या नजदीकी दोस्त ही नहीं बल्कि मेरे जीवन के हर क्षेत्र से जुड़े लोग भी हैं) बहुत ही परेशान और दुखी थे.

और हां, मैंने अपने बयान में जो कुछ भी कहा उसका बचाव भी नहीं कर सकता क्योंकि मैंने यही कहा. लेकिन जिस तरह से मेरे एक छोटे से मजाक को तूल दिया गया, उससे मैं टूट गया हूं. हम सब इस दुनिया में पैसे और सत्ता के लिए एक अंधी दौड़ में शामिल हैं, जहां कोई किसी को भी नुकसान पहुंचा सकता है. मैं फिर भी अपनी गलती को मानता हूं लेकिन निर्दयता से चरित्र की हत्या? नहीं, मैं इससे हार नहीं मानूंगा.

सबसे ज्यादा खौफनाक और मायूस करने वाली बात यह है कि किसी ने भी इस बात को जानने की कोशिश नहीं की कि मैंने किस तरह से 'सख्ती' दिखाकर दिव्यांगों के लिये आयोजित कार्यक्रम को असफल होने से बचाया था. वहां मौजूद लोगों के अलावा किसी ने भी इस बात की तारीफ की कि मैंने दृढ़ता के साथ कार्यक्रम को फिर से दोबारा शुरू करवाया एक छोटी सी मुस्कान साथ वहां पर फिर से चीजों को फिर से ठीक कर दिया.

क्या आप लोग मुझे यह बताना चाहते हैं कि कि अपने कभी अपने बच्चों के साथ सख्ती नहीं दिखाई है? आज के दौर में बच्चों पर 'छड़ी उठाना' निश्चित तौर पर पुराना रवैया और यह स्कूल या घर कहीं नहीं होना चाहिये. लेकिन दूसरी ओर क्या हम यह चाहते हैं कि बच्चों को उनके माता-पिता या क्लास में ध्यान न देने पर टीचर थप्पड़ मारे तो वे तुरंत पुलिस को बुला लें? हमारे संत न बनने तक जवाब हम सबको पता है.

सवाल यह है कि क्या मैं किसी ऐसे शख्स को धमकी दे रहा था जो तथाकथित विपक्ष या किसी समुदाय से था? नहीं. क्‍या यह कोई धमकी थी भी? नहीं! यह एक मजाक कि तरह था ताकि कार्यक्रम में फिर से गंभीरता लाई जा सके जहां पर 500 आधुनिक उपकरण और मदद दिव्यांगों को वितरित किए जाने थे. मुझे कोई जरूरत नहीं है कि मैं बयान जारी करूं जिसमें घोषणा करूं कि अगर मैंने अपनी टिप्‍पणी से अनजाने में किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाई हो तो मैं माफी चाहता हूं, क्योंकि कोई भी आहत नहीं हुआ था, इसके पीछे किसी को आहत करने का मकसद नहीं था. यह अलग बात है कि तृणमूल कांग्रेस ने अपनी निम्‍मस्‍तरीय राजनीति के तहत किसी को पकड़कर मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी, और फिर कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी संविधान के मुताबिक राज्य सरकार की होती है और हम सभी जानते हैं कि पश्चिम बंगाल में सत्ता पर काबिज टीएमसी के खिलाफ लड़ने वाला निशाने पर रहता है.

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जिसने मेरे सीने में खंजर भोंका है (हां ऐसा ही) वे पत्रकार हैं जो हमेशा मुझे प्राइम टाइम डिबेट में आने के लिए फोन करते हैं. (कई बार ऐसे मुद्दे पर भी जो मेरे मंत्रालय से संबंधित नहीं होता है, जिसके बारे में मैं बोलना चाहता हूं, इसलिए मुझे डिबेट में जाने से पहले ध्यान से पढ़ना पड़ता है) एक वीडियो क्लिप को काट-छांट कर सोशल मीडिया में फैला दिया जिसने पूरे हालात को गलत तरीके से पेश कर दिया और कैसे मुझे गलत ठहराया.

वे पत्रकार जो अगर दोस्त नहीं, तो जानने वाले तो जरूर हैं, ने मेरा पक्ष जानने के लिये मुझसे संपर्क तक नहीं किया. लेकिन वह तुरंत 'चरित्र हनन' में लग गए. जब मैंने उनमें से एक से पूछा कि जब वह वीडियो क्लिप दिखा रहे थे मुझसे संपर्क नहीं क्यों नहीं किया तो उनका जवाब था, 'समझा करो यार, समय नहीं था. स्टोरी को ऑनएयर करना था क्योंकि दूसरे चैनल पहले ही इसको चला रहे थे. तुम जानते हो न बाबुल कैसे होता ये सब'. हां, मुझे पता है कि कैसे होता है कि लेकिन कितना दुखदायी है ये सब. मैं चुनौती देता हूं कि अगर कोई पूरे कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग देखे तो उसे गर्व और खुशी होगी कि किस तरह मैं मंत्री होने का रुतबा लिए एक कोने में बैठा नहीं रहा. मैंने कार्यक्रम जिसके लिये हमने काफी मेहनत की थी, उसे बर्बाद नहीं होने दिया. और क्योंकि वहां कोई और जिम्मेदारी लेने वाला नहीं था, मेरे खुद आगे आने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं था. जिसका लक्ष्य किसी कार्यक्रम को नुकसान से बचाना होता है उसके अंदर कई बार विभिन्न तरह की भावनाएं और भाव बाहर आ ही जाते हैं.

बहुत विनम्रता से, मैं कई सालों से देश-दुनिया में स्टेज शो करता रहा हूं और कई बार मैंने भीड़ का सामना किया है. मुझे पता है कि भीड़ को कैसे नियंत्रित करना है. क्या मीडिया को दोष दे सकता हूं? नहीं, क्योंकि मैंने ही उनको इस बयान के साथ मौका दिया है. (हां, क्योंकि वास्तव में मैंने ऐसा कहा है और मैं इससे मना भी नहीं करता हूं.) और हर कोई इस पर मानों ऐसे खेल रहा था जैसे वह हर बॉल पर छक्का लगाना चाहता हो.

हमें बिना किसी पाखंड के इस बात को मानना चाहिये कि लोकप्रिय लोगों और मीडिया के बीच संबंध हमेशा प्रतीकात्मक रहे हैं, कोई किसी की मदद नहीं करता है. सामान्य तौर पर कहें तो इसमें कुछ भी गलत न होगा कि वे हमें टीआरपी के लिए इस्तेमाल करते हैं और हम उन्हें अपनी टीआरपी के लिये इस्तेमाल करते हैं. मैं भी इतना भोला नहीं कि इतना भी नहीं समझता कि 'प्यार और जंग में सबकुछ जायज है' और यही आज की राजनीति में भी है, लेकिन अब प्यार से ज्यादा जंग की ओर कुछ ज्यादा ही केंद्रित कर दिया गया है क्योंकि इससे टीआरपी ज्यादा मिलती है.

सच्चाई है कि हर रिश्ते में प्यार और घृणा का भी दौर आता है. लेकिन यह कैसा महसूस होता है जब निपुण पत्रकार संवेदना और निष्पक्षता को भी खो देता है. वह आपको लेकर संदेश के आधार पर लाभ की भी परवाह नहीं करता है.

क्या यह पूरी तरह से अन्याय नहीं है कि जिस शख्स ने सालों की कड़ी मेहनत के दम पर खुद को तैयार किया हो, टीआरपी के लिये कुछ ही पलों में उसके चरित्र की इसलिये हत्या कर दी जाती है. टीआरपी एक ऐसा नंबर है जब कोई विवादित चीज दिखाई जाए और मैं इस बात से मना नहीं करता हूं कि मेरा बयान निश्चित रूप से उनमें से एक था. मैं फिर एक बात दोहरा रहा हूं कि मैं अपने बयान का बचाव नहीं कर रहा हूं जैसा कि छोटे से वीडियो में दिखाया जा रहा है जिसे बहुत अच्छे तरीके से एडिट किया गया है. मैं इस मौके पर प्रसिद्ध कवि कृष्ण बिहारी नूर साहब की कविता याद आती है जो इस हालात पर काफी मुफीद है, कुछ ऐसी ही, 'सच घटे या बढ़े तो सच न रहे, झूठ की कोई अहमियत ही नहीं है.'

अब सबसे अहम सवाल यह है, 'क्या मैं मीडिया के उस हिस्से से जीत सकता हूं जिसने एकतरफा रिपोर्टिंग करके यह स्टोरी की है और उसके बाद उसने 'विस्तार' से मेरे चरित्र का विश्लेषण किया है? नहीं. लेकिन तब मीडिया भी इसे नहीं जीत सकती है. मेरी आंतरिक शक्ति की ऐसे ही हालातों में परीक्षा की जाएगी और मुझ पर विश्वास कीजिए, मेरे लिये सांत्वना की बात यह है कि मैं पल भर के लिये हार भी जाऊं, मैं मजबूत होकर वापस आऊंगा. यह मेरे लिये फायदे की बात होगी जब मीडिया किसी और ब्रेकिंग न्यूज की ओर चली जाएगी, इसमें कोई गलत बात भी नहीं है.

यहां इस बात का भी उल्लेख करना ठीक होगा कि 40 जरूरतमंद लोगों को उपकरण देने के बाद जब मैं वहां से चला गया तो भी कार्यक्रम तीन घंटे तक ठीक से जारी रहा और सभी दिव्यांग दोस्तों को उनके उपकरण दिए गए.

और आखिरी में एक बात में अपने मीडिया के उन मित्रों से भी कहूंगा जिनके बुलावे पर जल्द ही किसी डिबेट या शो मिलूंगा, 'मनमानी करें तो जम के करें, पर इतनी गुंजाइश छोड़ दें कि कभी आंख मिले तो शर्मिंदा न होना पड़े.'

इस तरह की तमाम रिपोर्टों के कारण शर्मिंदगी और प्रताड़ना से गुजरना पड़ा लेकिन मैंने इन सारी बातों को हल्के में लिया (जो पिछले कुछ दिनों से मेरे ऊपर बोझ की तरह से था). मैंने खुद से पूछा कि क्या मैं कह सकता हूं 'अब गुस्सा नहीं. जीवन में हर किसी को निराशा के साथ जीना सीखना पड़ता है. यह घटना मेरे लिये जीवन में सबसे ऊपर रहेगी.

(बॉलीवुड सिंगर से नेता बने बाबुल सुप्रियो केंद्रीय राज्य मंत्री हैं)

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