अर्थव्यवस्था का बुरा हाल, गिरती विकास दर बढ़ती मुश्किलें

2016 में नोटबंदी के समय कहा गया था कि इसके दूरगामी परिणाम अच्छे होंगे. तीन साल बाद जीडीपी के गिरते नंबर को क्या नोटबंदी का दूरगामी परिणाम कहा जा सकता है? 6 साल में भारत की जीडीपी इतनी कम कभी नहीं हुई थी.

इस साल जीडीपी की दूसरी तिमाही के आंकड़े आ गए हैं. जीडीपी दर पिछली तिमाही से भी घट गई है. 5 प्रतिशत से घट कर 4.5 प्रतिशत पर आ गई है. पिछली 26 तिमाही में यह सबसे खराब प्रदर्शन है. इसके पहले 2012-13 की मार्च तिमाही में जीडीपी 4.3 प्रतिशत हो गई थी. उस वक्त यानी 2012-13 में जीडीपी एक दशक में सबसे कम थी. 2016 में नोटबंदी के समय कहा गया था कि इसके दूरगामी परिणाम अच्छे होंगे. तीन साल बाद जीडीपी के गिरते नंबर को क्या नोटबंदी का दूरगामी परिणाम कहा जा सकता है? 6 साल में भारत की जीडीपी इतनी कम कभी नहीं हुई थी. लेकिन एक बात और विचित्र हुई. जीडीपी के इस नंबर को पेश करने के लिए सांख्यिकी सचिव ने प्रेस कांफ्रेंस ही नहीं की.

स्कूल कॉलेजों में फेल कल्चर का यह विचित्र उदाहरण हैं. फेल करने वाला या तो घर नहीं जाता है या घर जाता है तो बाबूजी के डर से पिछले दरवाज़े से जाता है. यह विजुअल बताता है कि यही मनोविज्ञान शायद सरकार में भी पहुंच गया है. जीडीपी के नंबर खराब आए तो सांख्यिकी सचिव ने प्रेस कांफ्रेंस ही नहीं की. जबकि इन्हीं सचिव साहब ने जून के महीने जब जीडीपी की दर 5 प्रतिशत हुई थी तब प्रेस कांफ्रेस में सशरीर हाज़िर थे. लेकिन इस बार जीडीपी 5 प्रतिशत से कम हुई तो सचिव साहब ने प्रेस कांफ्रेंस नहीं की. जबकि हर तिमाही में प्रेस कांफ्रेंस होती है. एक तरह से परंपरा सी बनी हुई थी लेकिन इस बार यह परंपरा टूट गई है. ट्वि‍टर और वेबसाइट पर प्रेस रीलीज़ जारी कर दी गई है.

आप इस वक्त वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के ट्वीट ही देखिए कि वो क्या बता रहे हैं. वैसे मोदी सरकार द्वितीय के गठन के दौरान ही कहा गया था कि बुनियादी ढांचे पर 100 लाख करोड़ का निवेश होगा. अगले चार साल में. लेकिन पहले छह महीने का रिकार्ड बता रहा है कि शुरूआत अच्छी नहीं है. अक्तूबर महीने में आठ कोर इंडस्ट्री के आंकड़े बता रहे हैं कि एक भी पोज़िटिव न्यूज़ नहीं है. आठ में से छह कोर इंडस्ट्री में विकास दर गिर गई है. अगर सबको मिलाकर देखिए तो 5.8 प्रतिशत की गिरावट है. नेशनल स्टेस्टिकल आफिस के आंकड़ों के अनुसार रोज़गार देने वाले सेक्टर मैन्यूफैक्चरिंग में विकास दर निगेटिव हो गई है. मैन्यूफैक्चरिंग में ग्रोथ रेट -1 दर्ज की गई है, शून्य से नीचे. खनन सेक्टर में विकास दर 1 प्रतिशत है. बिजली, गैस, पानी और अन्य सुविधाओं में विकास दर 3.6 प्रतिशत है. निर्माण क्षेत्र में विकास दर 3.3 प्रतिशत ही रहा है. कृषि, वन उपज, मछली पालन में विकास दर 2 प्रतिशत है.

ये वो सेक्टर हैं जिनमें विकास दर 4.3 प्रतिशत के औसत से नीचे है. मैन्यूफैक्चरिंग में विकास दर ज़ीरो के नीचे हो गई है. पिछले साल इसी तिमाही में यह 6.9 प्रतिशत थी. अब आप सोचिए इस सेक्टर में किस लेवल की तबाही आई होगी कि एक साल के भीतर 6.9 प्रतिशत से घट कर ज़ीरो के नीचे विकास दर आ गई है. क्या फैक्ट्रियां बंद हैं? यह इस बात से भी पता चलता है कि बिजली और गैस क्षेत्र का विकास दर भी 3.6 प्रतिशत ही है. इसका असर दिख भी रहा है कि तमिलनाडु के कोयंबटूर नगरपालिका में 549 सफाईकर्मियों की वैकेंसी आई तो 7000 इंजीनियर, डिप्लोमा होल्‍डर और स्नातक ने अप्लाई किया. इसी साल फरवरी में तमिलनाडु विधानसभा में सफाईकर्मी के 14 पोस्ट निकले थे तो 4600 इंजीनियर और एमबीए ने अप्लाई किया था. तमिलनाडु मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का गढ़ माना जाता है. इसमें से कई उम्मीदवार ऐसे थे जो प्राइवेट सेक्टर में काम करते थे मगर वहां सैलरी बहुत कम थी. इसलिए 15000 की नौकरी के लिए चले आए. इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था और रोज़गार का संकट भले मीडिया में न दिखाई दे, सड़कों पर कहीं ज़्यादा गंभीर है.

2018-19 में कृषि, वन उपज और मछली पालन में विकास दर 4.9 प्रतिशत थी. 2019 में  इसी सेक्टर में विकास दर आधी से भी कम हो गई है. 2.1 प्रतिशत.

अगर मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में विकास दर करीब 7 प्रतिशत से घट कर शून्य के नीचे चला जाए और खेती मछली पालन के सेक्टर में 4.9 प्रतिशत से घट कर 2.1 हो जाए अब आप इन्हीं दो आंकड़ों से हिन्दुस्तान के शहर और गांवों में फैली बेरोज़गारी को समझ लीजिए. इस वक्त जो जानने वाली बात है वह यह कि पिछले एक साल मे देश भर में कितनी फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. क्योंकि बिजली के उपभोग में भी कमी आई है. मीडिया अब इस बेरोज़गारी को पहले की तरह कवर नहीं करता है इसलिए आप इन आंकड़ों से बहुत ज़्यादा संवेदनशील नहीं हो पाते हैं लेकिन हर दिन हम तक पहुंचने वाले मेसेज बता रहे हैं कि नौकरी ने नौजवानों का मनोबल तोड़ना शुरू कर दिया है. 6 तिमाही से अगर पतन ही पतन है तो फिर इसका असर कितना होगा.

नोटबंदी के दूरगामी परिणाम कहां हैं? तीन साल हो गए मगर न परिणाम का पता चल रहा है और न दूरगामी का. सितंबर में जीएसटी का संग्रह 19 महीने में सबसे कम रहा था. 1 लाख करोड़ से कम हो गया. संसद के इसी सत्र में वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने बयान दिया है कि पर्सनल इंकम टैक्स और कारपोरेशन टैक्स अक्तूबर में 17 प्रतिशत गिर गया. पिछले साल की तुलना में 61,000 करोड़ से घट कर 50,000 करोड़ पर आ गया. जब जीडीपी की दर 5 प्रतिशत हुई थी तब कारपोरेट टैक्स में भारी कमी की गई थी. उसका इस तिमाही पर तो कोई असर नहीं पड़ा. शायद इसका भी दूरगामी परिणाम आएगा. आप देखिए कि पिछली छह तिमाही से जीडीपी घटते घटते कहां तक आ गई है. वित्त वर्ष 18 की चौथी तिमाही में जीडीपी 8.1 प्रतिशत थी जो इस तिमाही में घट कर 4.5 प्रतिशत हो गई है.

मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की विकास दर अगर शून्य से नीचे जाएगी तो ज़ाहिर है निर्यात पर असर पड़ेगा ही. अक्तूबर में निर्यात में 1 प्रतिशत की कमी आई है. पेट्रोलियम और चमड़ा उद्योग ठंडा पड़ गया है. सितंबर में निर्यात में तो और भी भारी कमी आई थी. भारत की अर्थव्यवस्था आईसीयू में चली गई है. अर्थव्यवस्था के साथ-साथ भारत की मर्दव्यवस्था बहुत खराब हो चुकी है. सड़ गई है. सख़्त कानून और फांसी की मांग को लेकर न जाने कितने प्रदर्शन हुए मगर बहुत कुछ ऐसा ज़रूर है जो इसके बस की बात नहीं है. या तो भारत का पुरुष समाज भीतर से सड़ गया है. उसके मानस और मनोविज्ञान का जिन चीज़ों से निर्माण हो रहा है, उसे हम समझ नहीं पा रहे हैं. इस प्रश्न को लेकर गंभीर होने का समय आ गया है. बलात्कार मामलों में कानूनी सख्ती के अलावा इन पहलुओं पर ध्यान देना ही होगा. देर से सज़ा हो या जल्दी सज़ा हो, दोनों का बलात्कार के मामलों पर खास असर नहीं पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट में बलात्कार को लेकर बहस चल रही है. मीडिया में बलात्कार की खबरों को देखकर तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने स्वत संज्ञान लिया था. कोर्ट ने राज्यों के हाईकोर्ट में दर्ज बलात्कार के मामलों के आंकड़े मंगा लिए.

1 जनवरी 2019 से लेकर 30 जून 2019 तक 24, 212 बलात्कार के मामले दर्ज हुए थे. ये केस सिर्फ नाबालिग बच्चों और बच्चियों से संबंधित थे. इसी रिकार्ड को देखें तो 12,231 केस में पुलिस आरोप पत्र दायर कर चुकी थी और 11,981 केस में जांच कर रही थी. यानी कुछ सिस्टम बना है. 6,449 केस में ट्रायल चल रहा था. 911 केस का फैसला आया था. फैसले के हिसाब से यह प्रतिशत दुखद है. मात्र 4 प्रतिशत है. यह भी इतना इसलिए है कि पोक्सो के कानून के तहत जांच से चार्जशीट के लिए समय सीमा तय है. इसके भी बलात्कार की घटनाओं पर कोई खास असर नहीं पड़ा है.

सिर्फ नाबालिग बच्चों के साथ बलात्कार और यौन हिंसा के 24,212 मामले दर्ज हुए हैं. विश्व गुरु भारत में हर दिन बलात्कार के 132 मामले दर्ज होते हैं. 2017 में पूरे साल में 17,780 मामले दर्ज हुए थे, 2019 में सिर्फ 6 महीने में 24,212 मामले दर्ज हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक आदेश दिया था कि जिन ज़िलों में 100 से ज़्यादा केस हैं वहां पर स्पेशल कोर्ट सेट अप किए जाएंगे. कोर्ट ने इस आदेश पर अमल की जानकारी के लिए केंद्र सरकार से 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट मांगी थी. कोर्ट ने आदेश दिया था कि हर ज़िले में फोरेंसिक लैब बनाए जाएं. सिस्टम के हिसाब से भी बलात्कार के मामलों में जांच और इंसाफ का ये हाल है. समाज के लिहाज़ से देखिए तो रूह कांप जाती है. झारखंड की राजधानी रांची और तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से बलात्कार की जो खबरें आई हैं वो बता रही हैं कि हमारा समाज मे चाहे वो किसी भी जाति और धार्मिक समाज से ताल्लुक रखता है, वहशी और बीमार लोगों की संख्या काफी हो गई है. बलात्कार मामले में रिपोर्टिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश के अनुसार हम पहचान संबंधित जानकारी तो नहीं दे सकते लेकिन इस आदेश का अमल भी बेमानी हो चुका है क्योंकि सोशल मीडिया में हैदराबाद की महिला का नाम और तस्वीर सब चल ही रहा है.

जब 27 साल की महिला को अगवा किया गया वहां से थोड़ी ही दूर पर पुलिस की पेट्रोल वैन खड़ी थी. महिला ने खतरे को भांप कर अपनी बहन को फोन किया था. साइबराबाद की पुलिस कहती है कि अगर 100 नंबर पर फोन करती तो ये नौबत नहीं आती. उस महिला का अब कुछ भी साक्षात नहीं है. हिंसा और कथित बलात्कार के बाद उसे जला दिया जा चुका है. पुलिस की बात ठीक हो सकती है लेकिन वहशी पुरुषों के बीच घिरी महिला आख़िरी वक्त में किसे फोन करेगी यह तय नहीं किया जा सकता है. अपनी बहन को फोन किया था. उसके बाद फोन बंद हो गया. महिला के परिवारवालों ने टोंडुपल्ली टोल गेट पर पता किया जो वहां से मात्र 200 मीटर दूर था. घटना रात पौने दस बजे की है. 9 बज कर 20 मिनट के पास उसकी बाइक का टायर पंचर हो गया. दो पुरुष आए और मदद की बात की लेकिन चले गए. कुछ मिनट बाद एक और पुरुष आया और बाइक लेकर चला गया. वापस नहीं आया. महिला ने अपनी बहन को फोन किया और कहा कि बात करती रहे. लेकिन तब तक उसे अगवा कर लिया गया. और अब उसकी हत्या हो चुकी है. जला दिया जा चुका है. 70 फीसदी शरीर जल चुका था जब उनका शव बरामद हुआ. पुलिस भले कुछ कहे, लेकिन रात में सफर करने वाली महिलाओं की सुरक्षा व्यवस्था की हालत का पता चलता है. पुलिस ने दस टीमें गठित की हैं.

सोशल मीडिया में जिस तरह पूरे मामले को सांप्रदायिक रूप दिया जा रहा है. वह कोर्ट और पुलिस की नज़र और दायरे से बाहर हो चुका है. पूरी मशीनरी लग गई है इसे घर घर पहुंचाने की. काश यही मशीनरी बच्चों के साथ बलात्कार की 24000 घटनाओं के मामले में भी सक्रिय होती. ज़ाहिर है अपराधी किसी भी मज़हब या जाति का हो सकता है बल्कि होता ही है लेकिन इस पैमाने पर देखना बलात्कार के मामलों के साथ और नाइंसाफी है. शायद मशीनरी या आईटी सेल को पता है कि इन मामलों में इंसाफ कम ही मिलता है इसलिए इनका राजनीतिक इस्तमाल किया जाए. बिहार के मोहनिया में भी गैंग रेप के वीडियो वायर होने के बाद वहां धारा 144 लगी है. दुकानें जला दी गई हैं. इस मामले में चार लोगों की गिरफ्तारी हुई है. ऐसे मामले यही बता रहे हैं कि हर धर्म और जाति समाज के पुरुषों का कुछ इलाज करने की ज़रूरत है. इलाज का मतलब उनके मनोवैज्ञानिक इलाज से है. झारखंड की राजधानी रांची से एक तस्वीर आई है.

पुलिस के पीछे नकाब पहना कर खड़े किए गए इन बारह नौजवानों के बारे में क्या कहेंगे. झारखंड के मुख्यमंत्री के बंगले से 8 किमी दूर घटना हुई है. इस एरिया में झारखंड के पुलिस महानिदेशक का घर है. चीफ जस्टिस का घर है. विधानसभा में विपक्ष के नेता का घर है. ऐसे इलाके में शाम साढ़े पांच बजे बस स्टैंड पर खड़ी एक लड़की के साथ 11 लोगों ने गैंग रेप किया है. इन सभी के पास हथियार थे. बाइक पर आए और लड़की को उठा ले गए. पुलिस ने इन 12 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है. घटना का डिटेल बता रहा है कि इन आरोपियों को किसी बात से फर्क नहीं पड़ा. न पुलिस का डर था और न समाज का. 18 से 30 साल के बीच इनकी उम्र है. घटना मंगलवार रात की है. बुधवार की सुबह लड़की किसी तरह कांके पुलिस थाना पहुंची और एफआईआर कराई. पुलिस के दावे के अनुसार सारे आरोपियों ने अपराध कबूल कर लिया है. ये सभी 12 आरोपी एक ही गांव के हैं. इन पर एससी/एसटी प्रिवेंशन एक्ट के तहत और आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है.

महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और बलात्कार के मामले में भारत के नक्शे पर पुरुष समाज को रखकर देखिए. हैदराबाद और झारखंड में न तो शहर का फर्क नज़र आएगा और न मज़हब का और न जाति का. यह बीमारी भयावह हो चुकी है. जो कुछ भी किया जाना है लगता है वो नहीं किया जा रहा है. बातें हो रही हैं मगर खानापूर्ति की तरह, सिस्टम काम कर रहा है मगर दिखावे के लिए आधा अधूरा. राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2017 के साल में भारत में बलात्कार की 33,658 मामले दर्ज हुए थे. इसमें से 10,221 लड़कियां 18 साल से कम की हैं.

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एक लीटर दूध कितने बच्चे पी सकते हैं. यूपी के एक स्कूल में कमाल का प्रयोग हुआ है. एक लीटर दूघ में एक बाल्टी पानी मिलाकर 85 बच्चों को दूध पिलाया गया है. हम लोग आंखों में धूल झोंकने में एक्सपर्ट तो हो गए हैं लेकिन दूध में पानी मिलाकर पानी झोंकने की यह घटना पहली है. एक जगह तो पकड़ में आई है लेकिन सोचिए कि कहां कहां होती होगी और बच्चों के साथ किस तरह का धोखा होता होगा.