इससे पहले कि जनधन का मतलब कालाधन हो जाए...

इससे पहले कि जनधन का मतलब कालाधन हो जाए...

प्रतीकात्मक फोटो.

कालेधन के अभियान में जनधन दागदार हो गया है. जनधन योजना के तहत खुले 25 करोड़ 58 लाख खातों के बारे में ऐसे चर्चा हो रही है जैसे काले धन का बड़ा हिस्सा इन्हीं खातों में खपा दिया गया हो. लाइव मिंट ने लिखा है कि तीस नवंबर तक जनधन खातों में जमाराशि 74,321.55 करोड़ हो चुकी थी. 8 नवंबर की नोटबंदी के बाद करीब 28,685 करोड़ की बढ़ोत्तरी हुई है. 23 नवंबर से 30 नवंबर के बीच 1,487 करोड़ की राशि जमा हुई. उससे पहले के सप्ताह में यह राशि 8,283 करोड़ थी. 8 नवंबर को जनधन खातों में 45,636 करोड़ की राशि जमा थी. यानी 8 नवंबर से 30 नवंबर के बीच 28,685 करोड़ की राशि जमा होती है. इतने कम दिनों में यह राशि सामान्य तो नहीं है लेकिन अगर आप खातों की संख्या से मिलान करेंगे तो बहुत बड़ी राशि भी नहीं है. ध्यान रहे कि 8 नवंबर से पहले जनधन खातों में कुछ कम राशि जमा नहीं थी. क्यों सरकार और पत्रकार जनधन खातों पर नज़र गड़ाए हैं? क्या यह मान लिया गया है कि जनधन काला धन को सफेद धन में बदलने का चोर दरवाज़ा है.  जनधन के बारे में पढ़कर लगता है कि यह हवाला का कोई चैनल है.  क्या 8 नवंबर से पहले जनधन खातों में जमा 45 हज़ार करोड़ भी काला धन है?

अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 8 नवंबर के बाद हर प्रकार के खातों में दस लाख करोड़ की राशि जमा हुई है. कहीं-कहीं तो लोगों ने ग्यारह लाख करोड़ भी लिखा है. अब नोटबंदी के दौरान इस दस या ग्यारह लाख करोड़ की तुलना में जनधन खातों में जमा राशि तो 28, 685 करोड़ ही है. इस हिसाब से तो यह कोई बड़ी राशि तो नहीं हुई. मीडिया जनधन खातों में जमाराशि को कालाधन की निगाह से देखने लगा है. अब तो प्रधानमंत्री भी संदेह जाहिर कर रहे हैं कि इन खातों में सफेद करवाने के लिए अमीर गरीब के घर लाइन लगाकर खड़े हैं. गरीब तो बैंकों की लाइनों में लगा था. वो इन लाइनों में खड़ा-खड़ा पूछ रहा था कि अमीर तो हैं नहीं यहां, केवल गरीब ही क्यों हैं. अमीर कहां हैं, तो प्रधानमंत्री ने कह दिया कि अमीर तो तुम्हारे यहां हैं. तुम गरीबों के यहां लाइन लगाकर खड़ा है. क्या वाकई ऐसा हुआ होगा? क्या 25 करोड़ जनधन खाताधारकों के यहां बेईमान लाइन लगाए खड़े होंगे और किसी सरकार समर्थक या विरोधी मीडिया को नज़र भी नहीं आया? आखिर किसकी मदद से अमीर लोग इन करोड़ों खाता धारकों के यहां कोई पहुंच गए होंगे?  

अब सवाल आता है कि 25 करोड़ जनधन खाताधारकों का पता काले धन वाले अमीरों को कैसे चला? क्या बैंकों ने अपने जनधन खाता धारकों की सूची सार्वजनिक कर दी थी? बिना इस सूची के अमीर क्या यूं ही किसी बस्ती में जनधन खाताधारक को खोज रहा था.  क्या बैंकों के मैनेजरों ने जनधन खाता धारकों की सूची की नीलामी कर पैसे कमाए होंगे? क्या कोई भी जनधन खाता धारक कितनी भी राशि जमा कर सकता है. 2014 में जनधन लांच करते वक्त यही बताया गया था कि साल में एक खाते में एक लाख से ज्यादा की राशि क्रेडिट यानी जमा नहीं होगी. महीने में दस हजार तक ही राशि निकाली जा सकेगी. किसी भी समय औसत 50,000 से अधिक की राशि जमा नहीं होनी चाहिए.  इन पैमानों से पूछा जा सकता है कि आखिर एक खाते में कितना पैसा जमा हुआ होगा. यह सवाल पूछे बिना आप सभी जनधन खातों को संदिग्ध नहीं कर सकते और न ही आप समझ सकते हैं कि एक खाते में कितना पैसा आया. नोटबंदी के कारण एक खातेदार की कितनी किस्मत बदलने वाली है. हम पत्रकार बैंकिंग प्रणाली में दक्ष नहीं हैं, इसलिए अपने लिखे में गिनती और नियमावली की त्रुटियों की गुजाइश लेकर चलते हैं. नेताओं को भी पता है कि बैंकिंग प्रणाली की जटिलता को समझने के लिए आम पत्रकार दक्ष नहीं है. इसलिए कुछ भी बोल दो और बचकर निकल जाओ. यह बात सही भी है. कम से कम अपने बारे में तो यह बात कह सकता हूं कि मुझे नहीं मालूम कि इन दावों को कैसे सत्यापित किया जाए. इसलिए तरह-तरह के सवालों से दावों को आज़मा रहा हूं.

मान लीजिए, किसी कोठी वाले के यहां दो से लेकर दस लोग काम करते होंगे. यह सुनने में आया कि मालिकों ने इन्हें साल दो साल की राशि एडवांस में दे दी. कई कंपनियों ने भी ऐसा किया. सैलरी एडवांस में दिया तो पैसा जनधन खाता धारकों का ही हुआ. जरूर यह अपनी अनैतिकता में किसी निर्दोष को साझीदार बनाने का भी रास्ता है. कस्बा पर ही इस बारे में लिखा था कि अगर ऐसा हुआ है तो जांच होनी चाहिए और दो साल की सैलरी एडवांस देने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए. वित्त मंत्री को ऐलान करना चाहिए कि जिस किसी ने दो साल की सैलरी एडवांस दी है, आठ नवंबर से 30 दिसंबर के बीच अपने कर्मचारियों से दस्तखत कराकर किसी प्रकार का लोन दिया है तो उसकी जांच होगी. यह खेल तो सभी खाताधारकों के साथ और खाताधारकों ने खेला होगा तो फिर अकेले जनधन वालों को ही जांच से पहले चोर क्यों घोषित किया जा रहा है.

जनधन खातों के बारे में तथ्यों से इन्हें स्थापित करना अभी बाकी है. लेकिन राजनीतिक रैली में प्रधानमंत्री ने सबको समेट दिया. एक लाइन के आगे एक ऐसी लाइन खींच दी जिसे किसी ने अपनी आंखों से देखा नहीं है. नोटबंदी से पहले जनधन खातों में जमा 45,000 करोड़ को तो किसी ने काला धन नहीं कहा. अगर जनधन काले को सफेद करने का माध्यम है तो यह काम पहले भी हो रहा होगा. इन दिनों सबको जनधन खाते वाला चोर नज़र आने लगा है. किसी डाकू के गिरोह का छोटा चोर. क्या यह जनधन खाताधारकों के साथ नाइंसाफी नहीं है? बीच में यह भी ख़बर आई कि मैनेजरों को बाध्य किया गया है कि तमाम मदों से चंद रुपये शून्य खातों में डाल दिए जाएं. खैर वित्त राज्यमंत्री ने संसद में इस खबर का खंडन किया है. किसी मैनेजर की अंतरात्मा ही जानती होगी कि क्या सच है, क्या नहीं. 25 करोड़ खातों की जांच कर लेना और चोरी पकड़ लेना आसान नहीं है. महीनों लग जाएंगे. तब तक राजनीति अपने नारों से काम चलाती रहेगी.

यह भी देखना होगा कि नोटबंदी के दौरान जनधन खातों में जो पैसा जमा हुआ है, उसका कितना हिस्सा जीरो बैलेंस खातों में जमा हुआ है. जीरो बैलेंस खातों में जमा पैसे का औसत कितना है. हो सकता है कि खाता खोलने के बाद भी गरीब तबका कैश पास ही रखता हो. इनमें से ज्यादातर को सैलरी कैश में ही मिलती है. किसी को पंद्रह सौ तो किसी को ढाई हजार या किसी को सात हजार. अलग-अलग सैलरी के बैंड में लाखों करोड़ों लोग हो सकते हैं. अगर ये सब एक महीने की सैलरी बैंकों में जमा करें तो वह राशि कितनी होगी? क्या करोड़ों लोगों की पसीने की कमाई 28,000 करोड़ नहीं हो सकती है? जरूर कुछ लोगों ने काले धन को सफेद करने में जनधन खातों का सहारा लिया होगा लेकिन ऐसे कितने खातों का इस्तेमाल हुआ होगा, इसकी तथ्यात्मक जांच जरूरी है. वैसे भी आजकल धारणा का जमाना है. धारणा बना दो, लोग चौराहों पर चर्चा करने लग जाते हैं. कोई तथ्यों की पड़ताल नहीं करता है. आप तथ्यों की पर्ची लेकर गांव-गांव घूमते रहिए, किसी को फर्क नहीं पड़ता है. कोई नहीं पूछ रहा है कि जनधन खातों में पूरे साल में जमा करने और निकालने की सीमा है तो फिर इतनी राशि कैसे जमा हो गई. क्या जो राशि जमा हुई है, वो तय सीमा के औसत से अधिक है?

अब हम प्रति खाते में औसतन जमा राशि का हिसाब लगाकर देखते हैं. इस वक्त 25 करोड़ 58 लाख जनधन खाते बताये जा रहे हैं. इनमें 8 नवंबर के रोज़ 45, 636 करोड़ की राशि जमा थी. एक खाते में औसतन 1,784 रुपये जमा होते हैं. 8 नवंबर के बाद 28,685 करोड़ की राशि जमा होती है. यानि एक खाते में औसतन 1,121 रुपये जमा होते हैं. अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2014 में जनधन खाता अभियान से लेकर 30 नवंबर 2016 तक 74,321 करोड़ रुपये जमा हुए हैं. इस हिसाब से प्रत्येक खाते में औसतन 2,905 रुपये जमा होते हैं. सरकार बताए कि नोटबंदी के बाद जमा 28,000 करोड़ का कितना हिस्सा दो लाख या डेढ़ लाख से ऊपर की राशि में जनधन खातों में जमा हुआ है? जनधन के प्रत्येक खाते में दो साल में औसतन जमा राशि तीन हजर भी नहीं है. क्या यह जनधन खाताधारकों के साथ मजाक नहीं है. जरूर अखबारों में खबरें छप रही हैं कि कुछ जनधन खातों में लाखों की राशि पकड़ी गई है. तो इसके लिए बैंक मैनेजर क्यों नहीं दोषी है. कैसे किसी जनधन में दस लाख या पांच लाख जमा हो गया जबकि वो कर ही नहीं सकता था. बहरहाल इन बातों को समझने के लिए जरूरी है हम बैंकिंग नियमों और प्रणाली को भी जानें समझें.

जनधन खातों में जमा औसत राशि से कुछ और सच्चाई सामने आ सकती है. जिसके बारे में प्रधानमंत्री को अध्ययन करना चाहिए और बोलना चाहिए. हरेक खाते में जमा औसत राशि बताती है कि देश का गरीब तबका कितना कम कमाता है. अगर वह जनधन के खाते में औसतन 1784 रुपये जमा करता है तो इसका मतलब है कि वह साठ रुपये रोज से भी कम कमाता है. अगर वह औसतन 2905 रुपये जमा करता है तो इसका मतलब है कि वह करीब 97 रुपया रोज से भी कम कमा पाता है. यह आंकड़ा बताता है कि अगर जनधन खाते में किसी चोर का पैसा नहीं गया है तो हमारे 25 करोड़ खाता धारक रोज़ 97 रुपये ही कमा पाते हैं. जो इस वक्त का सबसे बड़ा घोटाला है. इसके लिए अमीरों से न्यूनतम वसूली अभियान चलना चाहिए. यह आंकड़े साबित करते हैं कि किसी भी सरकार के किसी भी राज्य में गरीब औरत या आदमी को न्यूनतम मजदूरी नहीं मिली रही है. जनधन के खातों में जमा राशि यह नहीं बताती कि किस अमीर का पैसा सफेद हुआ है बल्कि यह बताती है कि अमीरों ने गरीबों को कितना लूटा है. गरीबों को भी अपने सवाल ठीक से समझने होंगे.

बहरहाल प्रधानमंत्री ने कह दिया है कि जनधन वाले अपना पैसा बैंक में रखें. अभी निकालें नहीं. वे दिमाग लगा रहे हैं कि कैसे उनके खाते में जमा पैसा उनका हो जाए. कानूनन तो उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था. अब अगर कह दिया है तो जरूर उनके पास कोई सूचना होगी. इसलिए प्रधानमंत्री ही बता सकते हैं कि कितने खातों में कितने की राशि काले रंग से सफेद की गई है. वो अमीर कौन है. कहां के अमीर हैं. उनका चेहरा कैसा है. क्या जनधन खाताधारक यह सवाल खुद से पूछेंगे कि उनके खाते में पैसा उनका है या किसी अमीर का है. भले गरीबों को सजा न मिले लेकिन राजनीति करने से पहले दोषियों का पता तो चले. प्रधानमंत्री की बात से गरीबों को और भी नुकसान होगा. जनधन खाता धारक किसी शहर या गांव के किनारे की बस्ती में रहते हैं. अब पूरा गांव और शहर उन्हें चोर समझेगा कि इनके खाते में बहुत पैसा आ गया है. इन्हें बहुत मिल गया है. जबकि हो सकता है कि 90 फीसदी मामलों में पैसा इनकी अपनी ही कमाई का हो. यही नहीं,  बैंक मैनेजर और बैंकों के बाहर के दलाल भी इनका दोहन करेंगे. सौ-पचास की वसूली शुरू कर देंगे. ऐसा न हो लोग जनधन खाताधारकों को चोर समझने लगें.

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