बिहार की बगहा सीट से बीजेपी के राम शरण पांडे जीते, जिन्हें 74,476 वोट मिले, वहीं जेडीयू को 66,293, जबकि बीएसपी को 8,292। वहीं बख्तियारपुर में बीजेपी को 61,496, आरजेडी को 53,594 तो बीएसपी को 12,070 वोट मिले। ऐसा ही कुछ हाल बांका सीट पर रहा, जहां बीजेपी को 52,379 वोट, आरजेडी को 48,649 और बीएसपी को 16,548 वोट हासिल हुए। इसके अलावा चैनपुर की सीट बीएसपी केवल 700 वोटों से हारी है, यहां बीजेपी को 58,913 वोट मिले तो बीएसपी को 58,242। कुछ ऐसा ही हाल मोहनिया, रामगढ़, गोपालगंज, मधुबन, मोतिहारी और परिहार सीट का रहा, जहां बीएपी के वोट अगर महागठबंधन में जोड़ दिया जाए, तो उनकी जीत पक्की थी।
इसके अलावा समाजवादी पार्टी, जिसे लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने पांच सीटें दी थी और वह नाराज होकर गठबंधन से अलग होकर लड़ी। उसने महाबंधन को चिरैया, हिसुआ, जाले और कल्याणपुर सीटों पर महागठबंधन को हरा दिया। जबकि शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने प्राणपुर और कटिहार सीटों पर महागठबंधन को हरवा दिया। प्राणपुर में तो बीजेपी को 47,924 वोट मिले, जबकि एनसीपी को 39,823 और कांग्रेस को 39,653 वोट।
इस बार में बिहार में वामदल एक होकर लड़े यानि सीपीएम, सीपीआई और माले एक साथ थे। इससे महागठबंधन चनपटिया और गोह सीट हार गई। चनपटिया में बीजेपी को 61,304 वोट मिले, तो जेडीयू को 60,840 जबकि सीपीआई को 10,136 वोट मिले... यानि सच में महागठबंधन एकजुट रहता तो उसकी संख्या कुछ और होती।
यह एक सीख हो सकती है इन सभी दलों के लिए, जो उत्तर प्रदेश में भी महागठबंधन बनाने की कोशिश में लगे हैं। उनको समझना पड़ेगा कि चुनाव में एक-एक वोट कीमती होता है और वोटों का बिखराव को रोकना ही सबसे बड़ी समझदारी है।