बिहार : शिक्षा का शिखर अब अशिक्षा के भंवर में

बिहार की शिक्षा व्यवस्था को लगा दीमक, युवाओं के सामने पढ़ने-लिखने और रोजगार हासिल करने के लिए पलायन के सिवा कोई रास्ता नहीं

बिहार : शिक्षा का शिखर अब अशिक्षा के भंवर में

विद्वता और जीवटता में देश में अग्रणी माना जाने वाला बिहार अब निरंतर गर्त में जा रहा है. कभी शिक्षा में शिखर पर रहा यह प्रदेश अब अशिक्षा के स्तर में सबसे ऊपर है. राज्य की शिक्षा व्यवस्था को दीमक लग गया है. चाहे शिक्षा हो या रोजगार, कुछ भी हासिल  करने के लिए पलायन ही एक मात्र विकल्प है.     

बिहार की आबादी है 10 करोड़ से ज्यादा.  2011 के आंकड़ों को देखें तो देश को सबसे ज़्यादा आईएएस देने वाले इस राज्य की साक्षरता दर महज़ 64 फ़ीसदी है जे कि देश में सबसे कम है. इससे आगे 28 राज्य और 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं. यानी राज्य में सिर्फ 5.25 करोड़ लोग ही साक्षर हैं. यहां 3.16 करोड़ मतलब 71 फीसदी पुरुष साक्षर हैं तो वहीं महज़ 51 फ़ीसदी यानी 2 करोड़ से कुछ ज़्यादा महिलाएं साक्षर हैं. 2001 की तुलना में लिंग अनुपात और शिशु लिंग अनुपात में 2011 में भी गिरावट आई है.

साक्षरता से ऊपर उठकर अगर बात करें तो शिक्षित लोगों की तो उच्च शिक्षा के स्तर पर हालत और खराब हैं. सिर्फ 21 लाख लोग ग्रेजुएट हैं और उसमें महिलाएं हैं 3.71 लाख. टेक्निकल डिप्लोमा महज़ 25 हजार लोगों के पास है.

22 शिक्षा मंत्री देख चुका यह राज्य मिड-डे मील और छात्राओं को साइकिल देने के बावजूद कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाया है. क़रीब 28 यूनिवर्सिटी और 30 इंजीनियरिंग कॉलेज समेत 600 से ज़्यादा सरकारी और प्राइवेट महाविद्यालय और इतने ही प्राइवेट स्कूल होने के बावजूद ज़्यादा कुछ नहीं बदला है. लोग बाहर जा रहे हैं रोजगार के लिए और छात्र पढ़ाई और रोज़गार दोनों के लिए.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 50 फीसदी के करीब स्कूल टीचर तो बस 12वीं पास हैं. 2017 की 12वीं की परीक्षा में 60 फ़ीसदी से  ज़्यादा बच्चे फेल हो गए थे. यह परिणाम परीक्षा प्रणाली को भी कठघरे में खड़ा करता है. एक शोध की मानें तो औचक निरीक्षण में औसतन 38 फ़ीसदी शिक्षक स्कूल से ग़ायब रहे.

राज्य के नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविघालय देने वाला यह राज्य दोराहे पर दिख रहा है. राइट टू एजुकेशन, नेशनल लिटरेसी मिशन, सर्व शिक्षा अभियान और एनजीओ के प्रयास भी बहुत ज़्यादा कारगर सिद्ध नहीं हुए हैं. ये राज्य बन गया है बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा से लड़ते, उठते-बैठते, गरियाते समाज वाला.  यहां है अशिक्षा, तकलीफ और समझौता.

लेकिन सच और भी बहुत कुछ है. बहुत आगे है ये बिहार. जरूरत थोड़ा संभलने की है..

"जब नाव जल में छोड़ दी, मंझधार में ही मोड़ दी!
दे दी चुनौती सिंधु को तो धार क्या मंझधार क्या !!"(दिनकर)


उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के स्तर पर माइग्रेशन काफी है. प्रोफेसर डॉ शैलेश्वर प्रसाद बताते हैं कि अगर आप बिहार के किसी और जिले से हो तो आप पढ़ने के लिए पटना का रुख करते हो. अगर पटना से हो तो दिल्ली या दूसरी मेट्रो सिटी का और अगर दिल्ली में हो तो इंडिया के बाहर. ठीक वैसे ही जैसे लेबर माइग्रेशन होता है.

कॉलेजों में हालात बुरे हैं. छात्र कॉलेज आते नहीं. शिक्षक भी प्राइवेट ट्यूशन देने में लग जाते हैं. छात्र बस परीक्षा देने आते हैं. और यहां उन्हें नक़ल की आज़ादी चाहिए. कई चैनलों और अख़बारों में नक़ल के विहंगम दृश्य दिख ही जाते हैं. जो शिक्षा जगत में बिहार की छवि को धूमिल करने के लिए काफ़ी हैं.

कॉलेज, विश्वविघालय, राज्य सरकार, यूजीसी काम कर रहे हैं, पर धीमा. लेकिन छात्रों का सहयोग अपेक्षित है. शिक्षकों की भी मांगे हैं. प्रमोशन से लेकर सातवें वेतन आयोग के मुताबिक़ सैलरी की. संविदा पर काम कर रहे शिक्षकों की हालत किसी से छुपी नहीं है. दिल्ली के इन शिक्षकों की हालत पर रवीश कुमार का शो देखा ही होगा. नहीं देखा तो देखिए और सोचिएगा जरूर. हमारा माद्दा और जज़्बा दोनों होना चाहिए  दिनकर की इस पंक्ति की तरह की-  

'जिस और बढ़ते हैं पग मेरे भूगोल उधर दब जाता है.'

समय की मांग है कि जागरूक होकर अपने संस्थानों के संसाधनों का अधिकतम उपयोग करके बिहार को आगे बढ़ाया जाए. क्योंकि ग़रीबी, बेरोज़गारी को ख़त्म करने का औज़ार शिक्षा से बेहतर कोई नहीं हो सकता. इतिहास गवाह रहा है कि बिहार ने दुनिया को विद्वता, महानता के प्रतिरूप आर्यभट्ट, पाणिनी, महावीर, अशोक, चंद्रगुप्त, दिनकर, गुरू गोविंद जैसे सैकड़ों इतिहास पुरुष दिए हैं. नालंदा, विक्रमशिला जैसे विश्वविघालय देने वाले इस प्रदेश को जल्द ही अपनी शिक्षा व्यवस्था, परीक्षा प्रणाली की समीक्षा करना और इसे सुधारना होगा.


उत्कर्ष कुमार NDTV इंडिया में असिस्टेंट आउटपुट एडिटर हैं.

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