अखिलेश शर्मा : सत्ता की स्वाभाविक पार्टी बनने के रास्ते पर बीजेपी

नई दिल्‍ली:

सत्ता में आने के दांव-पेंच, सत्ता में बने रहने के हथकंडों से अलग होते हैं। सत्ता में आने से ज्यादा बड़ी चुनौती सत्ता में बने रहना होती है। अगर उम्मीदों की लहरों पर सवार हो कर सत्ता में आएं तो ये चुनौती ज़्यादा बड़ी हो जाती है। एक ऐसी चुनौती जहां हर पल इम्तिहान देना होता है और हर कसौटी पर खरा उतरना होता है। एक चूक आसमान से जमीन पर पटक सकती है। जैसे दिल्ली में बीजेपी के साथ हुआ।

पर बेंगलुरु से बीजेपी एक अलग अंदाज में वापस जा रही है। वो सत्ता की स्वाभाविक पार्टी बनने के रास्ते पर है। सत्ता की स्वाभाविक पार्टी होती है जहां एक सर्वमान्य, शक्तिशाली नेता होता है। सरकार और पार्टी उसके हाथों में होती है। जहां विरोध, असहमति या असंतोष के सुर जयकारे में दब कर रह जाते हैं। पार्टी का संगठन विशाल होता जाता है। पार्टी चुनाव जीतने की एक ऐसी मशीन बन जाती है जो दिन-रात इसी काम में जुटी रहती है। उसकी गतिशीलता इस विशालकाय संगठन को एक ही दिशा में खींचती जाती है। मकसद होता है सत्ता में बने रहना और ज़्यादा से ज़्यादा सत्ता हासिल करना।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पार्टी सर्वोच्च है। सरकार तो उद्देश्य पूरा करने का साधन मात्र है। बीजेपी आज दस करोड़ सदस्यों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है। अपने बूते पर बहुमत हासिल कर चुकी मोदी सरकार दस महीने पूरे कर चुकी है। पार्टी और सरकार के बीच कहीं टकराव नहीं है। भूमि अधिग्रहण और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन के मुद्दों पर पार्टी और संघ परिवार से आवाज़ें उठीं। लेकिन बेंगलुरु के बाद कह दिया गया है कि पार्टी सरकार के तमाम फैसलों का पूरा समर्थन करती है। भूमि अधिग्रहण पर शुरुआत में एतराज़ करने के बाद अब पार्टी पूरे देश में इसके पक्ष में मुहिम चलाने के लिए तैयार है।
 
बेंगलुरु का संदेश साफ है- मोदी सरकार के दस महीने के कामकाज से बीजेपी बेहद खुश है। मोदी सरकार के हर फैसले का बीजेपी समर्थन करती है। सरकार और बीजेपी पर नरेंद्र मोदी का पूरा नियंत्रण है। ऊलजूलल बयानों और हरकतों से मीडिया में सुर्खियां बटोर कर सरकार की उपलब्धियों से ध्यान हटाने वाले पार्टी नेताओं पर सख्ती की तैयारी है। मोदी अब पार्टी और सरकार के सर्वोच्च नेता हैं। अटल-आडवाणी युग तो कभी का खत्म हो गया था मगर अब उस पर पूरी तरह से पर्दा गिर गया है।

सरकार अपने एजेंडे पर आगे चलेगी तो पार्टी संगठन को मजबूत करने के काम में जुटी रहेगी। जिन राज्यों में कमजोर है सारी ताकत वहां लगाई जाएगी। बिहार के चुनाव काफी कुछ तय कर देंगे। वहां मनमाफिक नतीजे आने पर बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल के चुनावों में उत्साह के साथ जमीन मजबूत करने का काम होगा। मगर बिहार का झटका पार्टी के साथ-साथ सरकार के लिए भी दिक्कतें पैदा कर देगा।

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एक मजबूत नेता को अपनी पार्टी से जैसे समर्थन की दरकार होती है, बेंगलुरु में मोदी को वैसा ही समर्थन मिला है। बैठक के समापन भाषण में उन्होंने कहा कि 'हम बदलाव लाने में कामयाब हुए हैं। ये बदलाव हमारी टीम से ही संभव हुआ है। बदलाव सिर्फ मैं नहीं पूरी टीम लेकर आई है।' ये बयान 'मैं नहीं हम' की भावना से दिया गया है। पर इसे जमीन पर उतारने और दिखाने में अभी पार्टी और सरकार को एक लंबा रास्ता तय करना है।