यह ख़बर 04 नवंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

दिल्ली फतह के लिए बीजेपी की तैयारी, पिछली गलतियों से बचने पर जोर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह

नई दिल्ली:

दिल्ली में चुनाव का बिगुल बज चुका है। विधानसभा भंग होने के साथ ही राज्य में एक बार फिर चुनाव का रास्ता खुल गया है। महाराष्ट्र और हरियाणा की जीत से उत्साहित बीजेपी नरेंद्र मोदी के नाम के सहारे मैदान में उतरने को तैयार है। वहीं, आम आदमी पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। इन दो पार्टियों की लड़ाई में कांग्रेस फिर तीसरे नंबर पर नजर आ रही है।

वैसे तो दिल्ली से पहले झारखंड और जम्मू−कश्मीर के चुनाव होने हैं। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पूरी ऊर्जा इन्हीं दो चुनावों में लगा रही है। दिल्ली के चुनावों में अभी करीब तीन महीनों का वक्त है, मगर मीडिया में खासतौर से दिल्ली को लेकर ही ज्यादा उत्सुकता नजर आ रही है।

बीजेपी ने दिल्ली को लेकर पिछले कई साल में कभी सही फैसले नहीं किए। वो चाहे मदनलाल खुराना को हटा कर साहिब सिंह वर्मा को और बाद में उन्हें भी हटा कर सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाना हो या फिर विजय कुमार मल्होत्रा को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बना कर चुनाव लड़ना हो या फिर डॉक्टर हर्षवर्धन को सीएम उम्मीदवार बनाने के फैसले में देरी करना हो, बीजेपी एक के बाद एक गलतियां करती गई।

सरकार को लेकर पिछले कई महीनों से बीजेपी की दुविधा लगातार बनी रही। जुलाई में पार्टी ने सरकार बनाने की अपनी ओर से गंभीर पहल की थी। कांग्रेस के कुछ विधायक टूटने के लिए भी तैयार थे। मगर टूट के लिए जरूरी छह विधायकों की संख्या पूरी न होने से बीजेपी सरकार नहीं बना पाई।

बीजेपी की दुविधा का ये आलम रहा कि लोकसभा चुनाव में बड़े अंतर से सातों सीटें जीतने के बावजूद वो महाराष्ट्र और हरियाणा के साथ दिल्ली के चुनाव कराने का साहस नहीं जुटा पाई। पार्टी में इस बात पर भी एक राय नहीं बन पाई कि अगर सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा।

जिन हर्षवर्धन को आगे रख चुनाव लड़ा था, उन्हें लोकसभा का चुनाव ये भरोसा देकर लड़वाया गया कि सरकार बनने पर वापस दिल्ली भेज दिया जाएगा। मगर उन्हें केंद्र में मंत्री बना दिया गया और दिल्ली के सीएम के लिए जगदीश मुखी का नाम आगे बढ़ाने की कोशिश हुई।

पार्टी नेताओं के मुताबिक दिल्ली को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और केंद्रीय नेताओं के बीच एक राय नहीं बन सकी। जहां कुछ केंद्रीय नेता किसी भी तरह से सरकार बनाने के पक्ष थे, वहीं आरएसएस जोड़−तोड़ के खिलाफ था और नए सिरे से चुनाव के पक्ष में था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अंत में साफ कर दिया कि बीजेपी जोड़−तोड़ से सरकार नहीं बनाएगी।

बीजेपी इस बार बिना किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए चुनाव लड़ेगी। महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू−कश्मीर की ही तरह नरेंद्र मोदी पार्टी का चेहरा होंगे। मोदी अगर दिल्ली में सात से भी ज्यादा जनसभाएं करें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। ऐसा शायद पहली बार होगा जब कोई प्रधानमंत्री किसी ऐसे राज्य के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकेगा जिसे पूर्ण राज्य का दर्जा भी हासिल नहीं है।

पार्टी को इसलिए भी उम्मीद है कि दिल्ली की जनता अमूमन उसी पार्टी को समर्थन देती है जिसकी केंद्र में सरकार हो। लोकसभा चुनाव में मिला भारी जनसमर्थन भी बीजेपी का हौंसला बढ़ा रहा है। विधानसभा में 33 फीसदी वोटों के साथ 31 सीटें जीतने वाली बीजेपी के लोकसभा में वोट बढ़ कर 46 फीसदी हो गए। पार्टी का मानना है कि ऐसा मोदी के चेहरे की बदौलत ही हो सका और अगर दिल्ली की जनता लोकसभा के हिसाब से ही वोट करे तो बीजेपी 55 से भी ज्यादा सीट जीत सकती है।

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मगर दिल्ली को लेकर बीजेपी के गलत फैसलों का इतिहास रहा है। और ऐसे में बीजेपी यहां पर कोई गलती नहीं दोहराना चाहेगी। चाहे छोटा ही सही मगर दिल्ली देश का दिल है। यहां की जीत या हार प्रतिष्ठा से भी जुड़ी है। बीजेपी के पक्ष में ये बात भी जा रही है कि दिल्ली का चुनाव अकेले होगा और ऐसे में पार्टी अपनी पूरी ताकत लगा कर चुनाव प्रबंधन बेहतर ढंग से कर पाएगी।