बच्चों की मौत पर भी नहीं संभले नेताओं के बयान

सिद्धार्थनगर के एक पिता ने मुंह से बात नहीं निकल रही थी. उसके चार साल की बेटा का इस अस्पताल में मौत हुई है.

बच्चों की मौत पर भी नहीं संभले नेताओं के बयान

गोरखपुर में इन्सेफेलाइटिस से पीड़ित बच्चों की अचानक से काफी संख्या में मौत हुई है.

नई दिल्ली:

'ठीकठाक थी, आधे घंटे में दम तोड़ दी, सही ढंग से इलाज नहीं हो रहा है जो बच्चे आ रहे हैं दम तोड़कर जा रहे हैं. पहले तो मेरे बच्ची को एडमिट नहीं कर रहे थे, लेकिन मीडिया दवाब के बाद एडमिट किए. आज उसकी मौत हो गई.' यह था कुरी नगर के रहने वाले एक पिता का बयान, जिसकी बेटी का मौत गोरखपुर के अस्पताल चार दिन पहले हुई है. ऐसे 30 से भी ज्यादा परिवार अपना बच्चे को खो चुके हैं. कई परिवार अपना दर्द बयां करते हुए नज़र आए. सिद्धार्थनगर के एक पिता ने मुंह से बात नहीं निकल रही थी. उसके चार साल की बेटा का इस अस्पताल में मौत हुई है. वो खुद अपने बेटे के डेड बॉडी को गाड़ी में लेकर अपना घर जाते हुए नज़र आया. हमारे साथी अजय सिंह और आलोक पांडेय ने कई और ऐसे परिवारों से बात किए.

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ऑक्सीजन कमी के वजह हुए कई मौत: एकला गांव की बहादुर के चार साल के बेटे की ऑक्सीजन के कमी से मौत हो गयी. वंदना नाम की एक 12 साल की लड़की की भी मौत हो गयी. ऑक्सीजन कमी के वजह से उनकी पिता ने कई घंटे तक अम्बू बैग से ऑक्सीजन देने की कोशिश करते रहे, लेकिन यह कोशिश नाकाम साबित हुई. एनडीटीवी संवाददाता अजय सिंह ने ने बताया कि गोरखपुर के से 25 किलोमीटर दूर तरकुलही गांव में ये राम किसुन के चार दिन का बेटे का भी ऑक्सीजन के कमी से मौत हो गई है. राम किसुन ने अजय से बात करते हुए बताया कि उनके के बेटे को अचानक बुखार आया फिर उसे बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एडमिट कराया गया. वहां उसे वेंटिलेटर की जरूरत थी जो नहीं मिल पाया तो हाथ से अम्बू बैग के जरिए सांस देने लगे. लगभग 5 घंटे तक ये संघर्ष चला फिर थम गया. ऐसे कई बच्चों के परिवार आए हमारे साथी आलोक पांडेय भी बात किए और अपने दर्द बयां किए.

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स्वास्थ मंत्री का यह कैसा बयान : यह सब बच्चों की मौत के बारे में जानने के बाद आप सब की आंखें जरूर नम हो गई होंगी. वहीं हमारे राजनेताओं के ऊपर इसका कोई असर नहीं हुआ है. एक तरफ विपक्ष इस मौके का फायदा उठाते हुए लोगों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ सत्ताधारी पार्टी गोल मोल जवाब देते हुए डैमेज कंट्रोल मूड में नजर आ रही है. बच्चों की मौत की कुछ घंटों के बाद उत्तर प्रदेश सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह का प्रेस कांफ्रेंस किया जिसमें ऐसी बात कही जो हर लाचार भारतीय को जख्म देने के लिए काफी है.
 
सिद्धार्थ सिंह ने कहा कि अगस्त के महीने पहले भी ऐसी मौत होती रही है. सिंह ने 2014, 2015 और 2016 के अगस्त के महीने में हुई मौत का संख्या गिनवाया. वे यह साबित करना चाहते कि सिर्फ बीजेपी सरकार नहीं समाजवादी पार्टी के सरकार के दौरान भी ऐसे मौत हुई है. शायद यह भूल गए समाजवादी पार्टी के विफलता को देखते हुए आज उत्तर प्रदेश के लोग बीजेपी को वोट दिए हैं. सिर्फ सिंह नहीं बीजेपी कई और प्रवक्ता टेलीविजन चैनल के बहस के दौरान डैमेज कन्ट्रोल मूड में नज़र आए.

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ऑक्सीजन के कमी को लेकर सरकार की किरकिरी : सिद्धार्थ नाथ सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि ऑक्सीजन की कमी सिर्फ बच्चों की मौत की कारण नहीं है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में पूरी तरह साफ कर दिया कि ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत नहीं हुई है. योगी ने यह कहा जांच जे आदेश दिए गए हैं. लेकिन मीडिया में छपी खबर के अनुसार डीएम ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी थी. 

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अगर सच मे डीएम रिपोर्ट में ऐसा बताया गया है तो फिर यह उत्तर प्रदेश के सरकार पर कई सवाल खड़े होते हैं. जांच के रिपोर्ट से पहले योगि आदित्यनाथ ने कैसे कह दिया कि ऑक्सीजन की कमी नहीं थी. अगर ऑक्सीजन की जमी थी तो उस के लिए ज़िम्मेदार कौन. कुछ दिन पहले योगी इस अस्पताल का दौरा किए थे. योगी जी को ऑक्सीजन के कमी के बारे में प्रशासन ने क्यों नहीं बताया.

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इस पत्रकार ने ऑक्सीजन के कमी को लेकर लिखा था : गोरखपुर पर आधारित एक न्यूज़ पोर्टल चलाने वाले मनोज सिंह ने 10 अगस्त को अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि बकाया 63 लाख न मिलने पर कंपनी ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की सप्लाई रोकी. सिंह ने लिखा था ‘बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन सप्लाई का संकट खड़ा हो गया है. लिक्विड आक्सीजन की सप्पलाई करने वाली कम्पनी ने बकाया 63 लाख रुपए न मिलने पर आक्सीजन की सप्लाई रोक दी है. बीआरडी मेडिकल कालेज में लिक्विड आक्सीजन का स्टाक आज रात तक का ही है. यदि आक्सीजन सप्लाई ठप हुई तो सैकड़ों मरीजों की जान पर खतरा आ जाएगा’.मनोज सिंह की बात सही साबित हुए, कंपनी ने ऑक्सीजन रोक दी थी और कई बच्चों की ऑक्सीजन कमी के वजह से मौत हो गयी.

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क्या बीआरडी अस्पताल के कर्मचारियों नहीं मिल रही थी सैलरी: मनोज सिंह ने अपने पोर्टल में यह भी लिखा है कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज के पीएमआर विभाग के चिकित्सा कर्मियों को 27 माह से, इन्सेफेलाइटिस वार्ड के चिकित्सा कर्मियों को पांच माह से और न्यू नेटल यूनिट के कर्मियों को छह माह से नहीं मिला है. मनोज ने लिखा है कि‘एक महीने में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में दो बार मुख्यमंत्री, दो बार प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा, एक बार प्रमुख सचिव स्वास्थ व अनगिनत बार डीएम, कमिश्नर आ आए फिर भी मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस के इलाज से जुड़े करीब 400 चिकित्सा कर्मियों की सैलरी नहीं आई. 

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स्थानीय पत्रकार मनोज ने लिखा है कि सीएम आए डीएम आए लेकिन नहीं आया 27 महीने का बकाया वेतन. आश्वासन पर आश्वासन मिल रहा, लेकिन तनख्वाह नहीं मिल रही है.’ अगर मनोज की यह बात सच है तो कॉलेज प्रशासन और उत्तर प्रदेश सरकार पर यह कई सवाल खड़ा करता है. अगर उत्तर प्रदेश के सरकार और प्रशासन मानती है कि यह खबर गलत है तो सरकार इन पर सार्वजनिक स्टेटमेंट देनी चाहिए.

वीडियो: गोरखपुर में बच्चों की मौत पर रवीश कुमार की विशेष रिपोर्ट


ऐसे घड़ी में राजनीति करना कितना सही?: बीआरडी अस्पताल में हुए मौत के बाद विपक्ष भी राजनीति करने में लगी हुई है. जैसे ही पता चला कि बीआरडी अस्पताल में कई बच्चों की मौत हुई है तो कांग्रेस के कई बड़े नेता अस्पताल पहुंच गए और सरकार की खामियां निकालने लगे. यह बेहतर होता अगर कांग्रेस के नेता उन मासूम बच्चों की घर पहुंचते जो जान गवाएं है. उनके परिवारों को समझाते, कुछ मदद कर देते.समाजवादी पार्टी के तरफ से भी कई बड़े नेता सरकार को घेरते हुए नज़र आए. शायद ये नेता भूल गए कि 2012 से लेकर 2016 के बीच इस अस्पताल में 3000 के करीब बच्चों की मौत हुई है. वजह चाहे जो भी हो समाजवादी पार्टी सरकार बच्चों की मौत रोकने में विफल हुई थी.

सुशील कुमार महापात्रा एनडीटीवी इंडिया के चीफ गेस्ट कॉर्डिनेटर हैं...

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