प्रणब के दांव से चित्त हुई कांग्रेस

एक बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है कि प्रणब मुखर्जी आखिर संघ मुख्यालय क्यों गए? क्या ऐसा कर उन्होंने कट्टर माने जाने वाले संगठन आरएसएस को मान्यता देने का काम तो नहीं किया?

प्रणब के दांव से चित्त हुई कांग्रेस

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संघ मुख्यालय पर कल के भाषण के बाद अब नई बहस शुरू हो गई है. क्या कांग्रेस ने तीखा विरोध कर जल्दबाजी तो नहीं की. कम से कम प्रणब दा के भाषण के बाद आई कांग्रेस और अन्य वरिष्ठ नेताओं की प्रतिक्रिया तो यही बता रही है. हालांकि एक बड़ा सवाल अब भी बना हुआ है कि प्रणब मुखर्जी आखिर संघ मुख्यालय क्यों गए. क्या ऐसा कर उन्होंने कट्टर माने जाने वाले संगठन आरएसएस को मान्यता देने का काम तो नहीं किया. क्या प्रणब मुखर्जी जैसे कद्दावर नेता के संघ मुख्यालय जाने से चुनावी वर्ष में कांग्रेस के हाथ से एक बड़ा मुद्दा नहीं निकल गया है? यह सवाल इसलिए कि भगवा आतंकवाद और गांधी हत्या को लेकर कांग्रेस के कई बड़े नेता आरएसएस पर निशाना साधते रहे हैं. हाल के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के निशाने पर बीजेपी कम और संघ ज़्यादा रहा है.

जाहिर है बीजेपी और संघ प्रणब मुखर्जी की इस यात्रा से बेहद खुश हैं. संघ के नेता कहते नहीं थक रहे कि संघ मुख्यालय पर प्रणब दा ने भारत की सांस्कृतिक धरोहर और इतिहास का उसी अंदाज में ज़िक्र किया जैसा संघ करता आया है. वे कहते हैं कि राष्ट्र की यूरोपीय और प्राचीन भारतीय अवधारणा में साफ अंतर बताकर भी प्रणब मुखर्जी ने एक तरह से संघ की ही बात को आगे बढ़ाया है. वे कहते हैं कि प्रणब दा ने भारतीय राष्ट्रवाद को वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवंतु सुखिन के रूप में परिभाषित किया और यही बात कहते हुए संघ के नेता कहते आए हैं. प्रणब दा ने अपने भाषण में भारतीय राष्ट्र के स्वरूप को ईसा से छह शताब्दी पूर्व उत्तर भारत में सोलह जनपदों के तौर पर अस्तित्व में आने की बात कही. यह भी कहा कि कैसे चंद्रगुप्त मौर्य ने ग्रीक साम्राज्य को हराकर उत्तर-पश्चिम और उत्तर भारत में साम्राज्य स्थापित किया. संघ नेता इस बात का खासतौर से जिक्र करते हैं कि जहां प्रणब मुखर्जी ने पांच हजार साल के गौरवशाली इतिहास और ढाई हजार साल की राजनीतिक विरासत का जिक्र किया वहीं मुस्लिम हमलावरों की बात भी की. वे यह भी कहते हैं कि संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेगडेवार को भारत माता का महान सपूत बताकर मुखर्जी ने पिछले 90 साल से भी ज्यादा समय से संघ पर लगाए जा रहे लांछनों को एक झटके में धो दिया.

उधर, कांग्रेस को लगता है कि मुखर्जी ने इस भाषण से संघ को आइना दिखा दिया है. कांग्रेस मानती है कि मुखर्जी ने मोदी सरकार को भी राजधर्म बता दिया है. मुखर्जी की संघ मुख्यालय की यात्रा का विरोध कर रही कांग्रेस ने उनके भाषण के तुरंत बाद प्रेस कान्फ्रेंस कर यू-टर्न लिया और इस विवाद को अपने पक्ष में करने की कोशिश की. कांग्रेस ने कहा कि मुखर्जी ने बहुलतावाद, सहिष्णुता और बहुसंस्कृति की बात की लेकिन क्या संघ उसे सुनने को तैयार है. कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने पहले कहा था कि प्रणब दा के संघ मुख्यालय जाने से लाखों कांग्रेस कार्यकर्ता बेचैन हैं. लेकिन अब शर्मा का कहना है कि प्रणब मुखर्जी के साहस, विचारों की स्पष्टता और भारत के विचार के प्रति उनके समर्पण को लेकर कांग्रेस में किसी को भी शक नहीं रहा. मुखर्जी की बेटी और कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी पहले नाराज थीं और कहा था कि वहां वे क्या भाषण देते हैं यह कोई याद नहीं रखेगा बल्कि उनकी तस्वीरें हमेशा याद रहेंगी. उन्होंने आज भाषण पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन प्रणब मुखर्जी की एक फर्जी तस्वीर ट्वीट कर इसकी जिम्मेदारी संघ परिवार पर डाल दी. हालांकि बाद में आरएसएस की ओर से बयान जारी कर इस फर्जी तस्वीर को संघ को बदनाम करने की विभाजनकारी ताकतों की साजिश बताया गया.

जाहिर है प्रणब मुखर्जी के संघ मुख्यालय जाने का विवाद इतनी जल्दी खत्म होने वाला नहीं है. चाहे कांग्रेस ने यू-टर्न ले लिया हो लेकिन देश में अब भी ऐसे कई उदारवादी तथा धर्मनिरपेक्ष लोग हैं जिन्हें न तो उनका वहां जाना पसंद आया और न ही उनके भाषण ने उनको लुभाया. उनका मानना है कि हेडगेवार को भारत माता का महान सपूत बताकर मुखर्जी ने संघ के अस्तित्व और उसकी विचारधारा को मान्यता देने का काम किया है. ऐसे में यह बहस दिलचस्प हो जाती है कि क्या संघ इस विवाद का इस्तेमाल कहीं अपने फायदे के लिए तो नहीं कर रहा है. कल करीब-करीब सभी टीवी चैनलों पर नागपुर कार्यक्रम का प्राइम टाइम पर घंटों सीधा प्रसारण होता रहा. जो लोग संघ के बारे में ज़्यादा नहीं जानते, उन तक पहुंचने में भी संघ को मदद मिली होगी. तो ऐसे में इस विवाद का मकसद क्या था और इससे आखिर हासिल क्या हुआ. इस पर बहस चलती रहेगी.


(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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