अध्‍यक्ष पद के लिए कांग्रेस के पास सिर्फ एक नाम 'प्रियंका गांधी'

पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह ने भी अब प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी अध्‍यक्ष बनाए जाने की शशि थरूर की मांग का समर्थन कर दिया है.

अध्‍यक्ष पद के लिए कांग्रेस के पास सिर्फ एक नाम 'प्रियंका गांधी'

कांग्रेस के पास सिर्फ एक नाम प्रियंका गांधी

आपकी नजर में राहुल गांधी जैसे अध्‍यक्ष का विकल्‍प कौन होगा? अगर आप किसी ऐसी पार्टी के सदस्‍य हैं जिसपर वंशवाद हावी रहा है या जिसे कांग्रेस के नाम से जाना जाता है, तो एक मात्र विकल्‍प होंगी उनकी बहन, प्रियंका गांधी. कांग्रेस में पंजाब के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह जैसे कामयाब जननेता इन दिनों विरले ही देखने को मिलते हैं. अब उन्‍होंने भी प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी अध्‍यक्ष बनाए जाने की शशि थरूर की मांग का समर्थन कर दिया है. अमरिंदर सिंह ने कहा कि प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में एक सही विकल्प होंगी. साथ ही उन्‍होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी को इस पर फैसला लेने की जरूरत होगी लेकिन अगर वह कांग्रेस अध्यक्ष चुनी जाती हैं तो हर तरफ से उन्हें समर्थन मिलेगा.

थरूर ने पीटीआई को रविवार को दिए एक इंटरव्‍यू में कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि प्रियंका गांधी पार्टी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ेंगी. उन्‍होंने साथ ही यह भी कहा कि यह निर्णय गांधी परिवार को लेना है कि वह इस पद के लिए मैदान में रहेंगी या नहीं. साथ ही थरूर ने स्‍पष्‍ट रूप से कहा कि राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद नेतृत्व को लेकर 'स्पष्टता की कमी' पार्टी को नुकसान पहुंचा रही है.

थरूर कांग्रेस कार्यसमिति के सभी महत्‍वपूर्ण पदों के लिए चुनाव चाहते हैं ताकि आने वाले नए नेताओं के लिए मार्ग प्रशस्‍त हो.' NDTV को दिए एक इंटरव्‍यू में थरूर ने कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति अगले अध्‍यक्ष पर फैसला नहीं कर सकती क्‍योंकि इसके अपने सदस्‍य ही चुनकर नहीं आए हैं.

प्रियंका गांधी को अध्‍यक्ष बनाए जाने की नई मांग तब उठी है जब कांग्रेस कर्नाटक में अपनी गठबंधन सरकार बचाने में नाकाम रही है. हालांकि राहुल गांधी के 70 दिन पहले पार्टी अध्‍यक्ष का पद छोड़ने के बाद शायद यह कांग्रेस के कोमा में होने का सबसे बड़ा संकेत था, लेकिन पार्टी ने सुधार के कुछ संकेत तब दिए जब प्रियंका गांधी को अध्‍यक्ष बनाने को लेकर अमरिंदर सिंह की बात सार्वजनिक हुई.

लेकिन इस मांग के साथ समस्‍या यह है कि उनके भाई राहुल गांधी विशेष रूप से कह चुके हैं कि जब वो पद छोड़ रहे हैं तो उनके परिवार से कोई उनकी जगह न ले. हालांकि इससे ऐसा लगता है कि प्रियंका गांधी के लिए विकल्‍प नहीं बचते, लेकिन इस कॉलम को लिखने से पहले जिन वरिष्‍ठ कांग्रेसी नेताओं से मैंने बात की उन्‍होंने कहा कि केवल प्रियंका ही वो हैं जो पार्टी के विभाजन को रोक सकती हैं क्‍योंकि टीम सोनिया और टीम राहुल आमने-सामने हैं.

अपनी मां सोनिया गांधी की तुलना में राहुल गांधी का पार्टी अध्यक्ष के रूप में 18 महीने का कार्यकाल अशांति से भरा था. सोनिया ने 19 सालों तक पार्टी प्रमुख की जिम्मेदारी निभाई जो कांग्रेस में सबसे लंबे समय तक का कार्यकाल रहा है. 

एक सीनियर नेता ने तर्क दिया, 'राहुल गांधी ने अपने फैसले पर नहीं सोचा. वह कैसे अपनी बहन को अध्यक्ष बनने से रोक सकते हैं. खास तौर पर जब पार्टी ऐसा चाहती है. वो कौन सा गैर गांधी पार्टी अध्यक्ष होगा जो सक्रिय राजनीति में गांधी परिवार के सभी सदस्यों के साथ काम करने में सक्षम होगा.'

साफ तौर पर कांग्रेस ऑफिस में गांधी परिवार एक विनम्र हाथी है और कोई भी सीनियर नेता उनके खिलाफ नहीं जाएगा. प्रियंका गांधी पहले इस पद के लिए अनिच्छुक थीं लेकिन मौजूदा संकट जिसने पार्टी को जकड़ लिया है, उसके बाद पार्टी भी चाहती है कि वो आ जाएं. गौरतलब है कि कांग्रेस के पास हालही में हुआ एक घटनाक्रम है जिसमें प्रियंका गांधी ने यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से सीधी टक्कर ली थी. प्रियंका ने सोनभद्र हिंसा में मारे गए 10 लोगों के परिजनों से मुलाकात की कोशिश की थी. प्रियंका को हिरासत में लिया गया था और उन्होंने पूरी रात गेस्ट हाउस में बिताई थी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि उन्हें राहुल गांधी ने वहां भेजा था. 

उस समय राहुल गांधी संयुक्त राज्य अमेरिका में थे. लेकिन यह इंगित करता है कि प्रियंका कितनी युद्धरत हैं. अन्यथा वह इससे पहले केवल इसलिए ट्रेंड कर रही थीं क्योंकि वह अपने भाई की पद पर बने ना रहने की इच्छा का साथ दे रही थीं. 

मैंने पहले भी लिखा था कि सोनभद्र बेलची पल नहीं था. दादी इंदिरा की तरह प्रियंका एक तेज राजनेता के तौर पर उभरीं. और कांग्रेस खुद को आक्रमक करने में कामयाब रही क्योंकि कुछ नेताओं ने उसके समर्थन में गेस्ट हाउस पहुंचने की कोशिश की. 

लेकिन कांग्रेस के लिए, कोई गांधी गलत नहीं कर सकता. प्रियंका को अभी भी मतदाताओं के साथ एक बड़े नेता के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है और यह सुनिश्चित करना है कि सोनभद्र, राहुल गांधी का भट्टा पारसौल वाला मामला नहीं है. मायावती सरकार के भूमि अधिग्रहण का विरोध करने के लिए मई 2011 में राहुल गांधी यूपी के गांव में प्रदर्शन करने बाइक से गए थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. आखिरकार राहुल गांधी की राजनीति के शूट एंड स्कूट स्कूल में यह सिर्फ एक और क्षण बन गया, जब वह इस मुद्दे पर किसी भी निरंतरता को बनाए रखने में विफल रहे. 

थरूर और सिंह ने बताया था कि कांग्रेस क्या सोच रही है. और यह संभव नहीं है कि उन्होंने ऐसा प्रियंका गांधी की सतही जानकारी के बिना किया हो. सोनिया गांधी पहले ही सीनियर नेताओं की अपील को ठुकरा चुकी हैं कि वह अंतरिम अध्यक्ष बनें. 

शायद  शक्ति की कमी से जूझ रही कांग्रेस जहां सारे फैसले राहुल गांधी के नाम पर जारी होते थे, में अब उनके पद त्यागने के बाद कुछ अलग ही कहानी है. शायद कर्नाटक सरकार का पतन और तमिलनाडु के सहयोगी और डीएमके प्रमुख स्टालिन द्वारा दिए गया विशाल संकेत उन्हें राजनीतिक सत्ता से दूर कर रहा है. द्रमुक प्रमुख ने 7 अगस्त को चेन्नई में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को अपने पिता करुणानिधि की राजनीतिक मूर्ति का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया. जबकि बनर्जी औपचारिक सहयोगी नहीं हैं. पिछले साल दिसंबर में सोनिया गांधी को भी इसी तरह के सम्मान के लिए आमंत्रित किया गया था. 

इसलिए जब गांधी ने बहुत ज्यादा धरना प्रदर्शन किया तो इस बात के संकेत हैं कि पार्टी में कोई गिरावट नहीं है लेकिन उनमें है. गांधी तनाव कारक और तनाव प्रतिक्रिया दोनों हैं.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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