कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के अमरावती से एक खबर आई थी कि सूखे के कारण फसल का नुकसान होने पर एक किसान ऋण का भुगतान नहीं कर पाया और इस वजह से उसने आत्महत्या कर ली। कुछ घंटों के बाद उसकी मां ने भी आत्महत्या कर ली। यह एक घटना नहीं, अलग-अलग राज्यों से इस तरह की कई खबरें आती रहती हैं। कल अगर आप जंतर मंतर पर मौजूद होते तो आपको पता चलता कि पानी की समस्या के कारण लोगों की जिंदगी कैसे नरक बन गई है। 13 राज्यों से जमा हुए इस किसानों की दुःख भरी कहानी अगर आप सुनते तो आप खुद पानी-पानी हो जाते।
शायद ही हम लोगों ने कभी ऐसा देखा होगा जब 60 साल से भी ज्यादा उम्र की महिला पानी के लिए कई किलोमीटर सफर करती हो, लेकिन अब यह हो रहा है। कल जंतर मंतर पर मौजूद कुछ बुजुर्ग महिलाओं ने बताया कि पीने के पानी के लिए उन्हें चार घंटा सफर करना पड़ रहा है। हाथ-पैरों में छाले हो गए हैं। एक आदमी ने तो अपना दुःख बयां करते हुए भावुक होते हुए बताया कि पानी की समस्या की वजह से वह अपना गांव छोड़ रहा है और अपने परिवार को लेकर कहीं दूसरे शहर जा रहा है। सबसे ज्यादा दुःख उसे इस बात का है कि वह अपने जानवरों को अपने साथ नहीं ले जा पा रहा है।
पानी पर भी कैसे राजनीति हो रही है, यह सब आप देख रहे हैं। सब किसान के साथ खड़े होने की तो बात कर रहे हैं लेकिन कोई किसान को खड़े होने नहीं दे रहा है। केंद्र सरकार बुंदेलखंड रेल से पानी भेजना चाहती है तो राज्य सरकार यह कहकर मना कर देती है कि वहां पानी की कोई समस्या नहीं है। जबकि सच यही है कि बुंदेलखण्ड के कई इलाकों में सूखा पड़ा हुआ है और लोगों को काफी दिक्कत हो रही है। केंद्र और राज्य के बीच इस लड़ाई में कहीं न कहीं राजनैतिक फायदा छिपा हुआ है। अगर केंद्र पानी भेज रहा है तो राज्य सरकार को पानी लेने में क्या दिक्कत है? अगर इस पानी से कुछ परिवारों की भलाई हो जाए तो बेहतर ही होगा न।
लेकिन सच यह है कि राज्य सरकार अपना विफलता को छुपाने की कोशिश कर रही है, तो केंद्र सरकार पानी भेजकर चुनाव से पहले लोगों का दिल जीतने की कोशिश कर रही है। बड़ी बात यह भी है कि क्या पानी की समस्या सिर्फ एक ही राज्य में है? मध्य प्रदेश के कई इलाकों में पानी की समस्या है जिसमें टीकमगढ़ जैसे कई जिले शामिल हैं। कर्नाटक सहित कई अन्य राज्यों में भी पानी की समस्या है, तो फिर केंद्र सरकार इन राज्यों को रेल से पानी क्यों नहीं भेजती?
देश में 30 करोड़ से भी ज्यादा लोग, यानि करीब 40 प्रतिशत लोग सूखे की वजह से प्रभावित हैं लेकिन संसद में इस मुद्दे को लेकर कोई खास गंभीरता नहीं दिखी है। राज्य सभा में करीब दो घंटे इस मुद्दे को पर चर्चा हुई। कल लोकसभा में इस मुद्दे को लेकर चर्चा तो हुई लेकिन यह कहा जा रहा है कि चर्चा के दौरान सिर्फ 80 सांसद मौजूद थे। अगुस्ता वेस्टलैंड सौदा को लेकर रोज संसद में सरकार और विपक्ष एक-दूसरे को घेरते हुए नजर आ रहे हैं, बहस पर बहस चल रही है। आज कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर जंतर मंतर से संसद तक मार्च किया तो बीजेपी ने संसद के अंदर गांधी मूर्ति के सामने प्रोटेस्ट किया। लेकिन जिस समस्या से देश के करीब 40 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं उस मुद्दे पर कोई खास चर्चा नहीं हो रही है। राजनेता सिर्फ पानी की बात कर रहे हैं, लेकिन इस समस्या को सुलझाने के लिए आवश्यक कदम उठाने की कोई चर्चा नहीं कर रहे। यह सब देखकर ऐसा लगने लगा है कि हमारी राजनीति पानी-पानी हो गई है।