दिल्ली में बदले की राजनीति या दिल्ली के जनादेश का बदला

दिलीप पांडेय आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और दिल्ली प्रदेश के संयोजक हैं...

राजनीति में आरोप कोई नई बात नही। हर पार्टी आरोप लगाती है, शिकायत दर्ज़ कराती है, कोर्ट में केस लड़ती है, लेकिन अगर सत्ताधारी दल अपनी पहुंच और ताकत का इस्तेमाल करके खाकी को सफ़ेद रंग में रंगने लगे, तो फिर भरोसा टूटता है।

जितेंद्र तोमर पर लगे फर्जी डिग्री के आरोप का मामला कोर्ट में चल रहा है और उसी प्रक्रिया के तहत दिल्ली सरकार और कानून मंत्री भी संवैधानिक तरीके से अपना पक्ष रख रहे थे। कोर्ट की तारिख का इंतज़ार था, जिसमें बचाव के लिए तमाम सबूत पेश किए जाते और फिर कानून अपना काम करता, लेकिन इसी बीच दिल्ली पुलिस ने बड़ी तेज़ी दिखाते हुए, केंद्र के इशारे पर जितेंद्र तोमर को किसी खूंखार अपराधी की तरह फ़ोर्स भेजकर उठवा लिया।

तोमर कोई भागे हुए अपराधी नहीं, उन पर लगे आरोप साबित नहीं हुए थे और वो क़ानून का पालन करते हुए जांच प्रक्रिया में पूरा सहयोग दे रहे थे। दिल्ली पुलिस जानती है कि वो एक जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि हैं, और एक मंत्री हैं, वो अपनी इस ज़िम्मेदारी का निर्वाहन भी कर रहे थे।

मैं दिल्ली पुलिस के गिरफ्तार करने के अधिकार पर सवाल नहीं उठा रहा, लेकिन मैं इस गिरफ़्तारी की आवश्यकता, गिरफ्तार करने की प्रक्रिया और पुलिस की नीयत पर सवाल उठा रहा हूं।

ग़ौरतलब है कि तोमर ने कभी पुलिस की जांच प्रक्रिया में रोड़ा नही अटकाया। वे तथ्यों और साक्ष्यों से कोई छेड़छाड़ नही कर रहे, पुलिस ने उन्हें कभी कोई नोटिस नहीं भेजा, फिर भी आखिर दिल्ली पुलिस ने उन्हें क्यों गिरफ्तार किया? वो भी इतनी हड़बड़ी में?

फ़िल्मी सीन की तरह 30 पुलिसवाले बिना किसी वारंट के उनके दफ्तर में घुसे, जहां तोमर जनता दरबार चला रहे थे। वहां से बाहर लेकर धोखे से उन्हें गिरफ्तार किया गया। ऐसा कितनी बार हुआ है देश में कि आधी रात में FIR दर्ज़, और सुबह 9:30 बजे एक मंत्री की गिरफ्तारी हो जाए, वो भी धोखे से?

अगर दिल्ली पुलिस के पास पुख्ता सबूत हैं तो वो चार्जशीट फ़ाइल करके पेश करे और कोर्ट को तय करने दे, इसकी बजाय ये गैर कानूनी गिरफ़्तारी क्यों? कानूनी प्रक्रिया में गिरफ्तारी अंतिम उपाय है। हैरान करने वाली बात ये कि जरनैल सिंह के वक़्त भी पुलिस कमिश्नर ने वारंट जारी किया और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसकी जानकारी दी, अब एक मंत्री को गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस कमिश्नर कहते हैं कि उन्हें जानकारी ही नहीं, कैसे? क्या ये संभव है?

पुलिस कमिश्नर कहते हैं कि उन्हें गिरफ़्तारी की जानकारी नहीं, गृह मंत्री कहते हैं कि उन्होंने पुलिस को आदेश नहीं दिया, तो क्या दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर और हवलदार खुद मंत्री को गिरफ्तार कर ले गए?

न्यायाधीन मामले पर मैं कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता लेकिन कॉलेज के प्रिंसिपल ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र दिया है, जो कहता है कि तोमर लॉ के छात्र थे। ये मामला अदालत में लंबित है। अब ऐसे में जहां सच के अलग-अलग चेहरे हैं, किस चेहरे पर यकीन करें ये बड़ा प्रश्न है और न्यायालय से ज़्यादा विश्वसनीय कुछ और हो ही नहीं सकती।

वो लोग जिन पर हज़ारों लोगों की हत्या का दोष है, जिन पर फेक एनकाउंटर्स का आरोप है, वो सब लोग आज़ाद घूम रहे हैं। केंद्र में बैठी वो बीजेपी जो आज जितेंद्र तोमर के मामले पर नैतिकता का पाठ पढ़ा रही है, उसी की केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पर EC को स्नातक की गलत डिग्री की जानकारी देने का आरोप है, वो खुद कभी साफ़ नहीं कर पाईं कि वो B.A की छात्रा थी या बी.कॉम, उनका मामला भी अदालत में लंबित है, क्या उन्हें गिरफ्तार किया गया? क्या इससे पहले भी हमारी सरकारें, पुलिस इसी तरह से किसी मंत्री या पार्टी पर लगे आरोपों को सुलझाती आई हैं?

मोदी जी की कैबिनेट के 30% मंत्रियों के ऊपर संगीन अपराधों के मामले दर्ज़ हैं, उन्हें गिरफ्तार किया गया? उनकी कैबिनेट के निहालचंद, जिसे राजस्थान पुलिस ने कई बार पेशी के नोटिस जारी किये, क्या उन्हें गिरफ्तार किया गया?

अब तो यकीन हो चला है कि ये सब किसी अहम् मुद्दे से देश का ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है। कोई बड़ी मछली जाल में न फंसे इसलिए निर्दोष को ही शिकार बनाया जा रहा है।

इतिहास के कुछ पन्ने पलटेंगे तो पता चलेगा कि मामला कुछ और ही है। जैसे ही हमें CNG फिटनेस घोटाले के बारे में पता चला, जहां कई लोगों की जांच हो सकती है, कई सलाखों के पीछे जा सकते हैं, जिस मामले में LG भी संदिग्ध भूमिका में हैं, पूरे राजनीतिक महकमे में हड़कंप मच गया।

LG और उनके राजनीतिक आकाओं ने ACB को कंट्रोल करने के मकसद से अपने लोगों को उसमें भर्ती करने की योजना बनाई, ताकि ACB स्वछन्द कार्य न कर सके। ये नियुक्ति गैर-संवैधानिक, गैर-कानूनी, और कोर्ट की अवमानना भी है। पर एक कहावत है जल्दी का काम... और इसी जल्दबाज़ी में LG और दिल्ली पुलिस ने ये सेल्फ गोल कर लिया है।

क्या इससे पहले दिल्ली में LG नहीं थे? क्या इससे पहले LG दिल्ली के विकास और भ्रष्टाचार की लड़ाई के रास्ते का इतना बड़ा पत्थर बने थे? क्या एक मुख्यमंत्री ईमानदारी के चलते देश की सर्वोच्च सत्ता की हिचकी बन गया है?

ऐसे तमाम गंभीर सवालों के जवाब भविष्य की गोद में हैं। कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि, और केंद्र सरकार 3 सीटों के बाद भी दिल्ली के मानस को नहीं पढ़ पायी। दिल्ली छल-कपट और द्वेष को नकार चुकी है, दिल्ली चाहती है कि केंद्र अपने और दिल्ली के जनादेश, दोनों का सम्मान करे।

मेरा यकीन है कि राजनैतिक शुचिता महज़ चर्चा का नहीं, व्यवहार का विषय है। हमने परिभाषाएं बदली हैं, खेल के नियम भी बदले हैं। नैतिक आधार पर जितेंद्र तोमर ने इस्तीफ़ा दे दिया। सही गलत का फैसला टीवी स्टूडियो में नहीं, न्यायालय में होना है। पर इन सबके बीच एक बात सच है कि केजरीवाल की ईमानदार राजनीति और कल्याणकारी सुशाशन ने केंद्र सरकार के पेट में बल ज़रूर डाल दिए हैं। दिल्ली सरकार की गवर्नेंस तो जनता को पसंद आ ही रही है, दिल्ली के राजनीति में देखिये आगे-आगे होता है क्या।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।