बारिश में बेहाल दिल्ली : इन हालात का जिम्मेदार कौन?

बारिश में बेहाल दिल्ली : इन हालात का जिम्मेदार कौन?

प्रतीकात्मक फोटो

बारिश का मौसम क्या आता है, देश की राजधानी दिल्ली बदहाल हो जाती है. आज फिर कुछ घंटों की बारिश के बाद जलभराव के ऐसे हालात बने कि लोगों को घंटों जाम की मुसीबत झेलनी पड़ी. आम लोग तो परेशान हुए ही लेकिन अमेरिका के मंत्री जॉन कैरी भी चुटकी लेने से नहीं चूके. वे आईआईटी के कार्यक्रम में एक घंटे की देरी से पंहुचे. उन्होंने वहां मौजूद छात्रों से पूछ ही लिया क्या वे नावों में बैठकर पहुंचे हैं... या एम्फिबियस कारों में, यानी पानी में तैरने वाली कारों से. क्रिकेटर गौतम गंभीर ने भी ट्वीट किया कि समय आ गया है कि अब दिल्ली में हमें नावें खरीद लेनी चाहिए.

क्यों हर साल बारिश से बेहाल हो जाती है दिल्ली? इस समय करीब 17 सरकारी ऐजेंसियां है जो किसी न किसी तौर पर दिल्ली की रोड, नालियों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार हैं. हालांकि 98%  दिल्ली की जिम्मेदारी तीन एमसीडी की है, लेकिन कुछ इलाके उसके तहत नहीं आते हैं. पांच राष्ट्रीय राजमार्ग नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के तहत आते हैं. अगर यहां जलभराव हो तो यहां सिर्फ एनएचएआई ही सफाई कर सकता है.

दिल्ली की सारी सड़कें, जो 60 फुट चौड़ी हैं, पीडब्लूडी यानी पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट के तहत आती हैं. अनधिकृत कालोनियां और झुग्गी बस्तियां दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड की जिम्मेदारी हैं. नई दिल्ली म्युनिसिपल काउंसिल (एनडीएमसी), दिल्ली कैंट और सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण विभाग भी जिम्मेदारों की फेहरिस्त में हैं. बाढ़ नियंत्रण और पीडब्लूडी दिल्ली ,सरकार के अधीन हैं.  

सड़कों के निर्माण और मरम्मत के लिए भी कई एजेंसियां लगी रहती हैं. दिल्ली मेट्रो रेल ट्रांसपोर्टेशन, दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इनफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन के अलावा केबल लाइनों का काम करने वाले भी इनमें शामिल हैं. जब नालों से गाद निकालने की बारी आती है तो एमसीडी और पीडब्लूडी एक-दूसरे पर इल्जाम थोपते हैं. दिल्ली सरकार ने पिछले माह सारी एजेंसियों की ज्वाइंट इंस्पेक्शन कमेटी बनाई जिसने एक मत से दिल्ली मेट्रो के निर्माण और अन्य एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराया.

वर्ष 2010 में केंद्र सरकार ने ट्रैफिक और यातायात की चुनौतियों को देखते हुए इसके समाधान के लिए संगठित प्रधिकरण - यूनिफाइड मेट्रोपोलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (यूएमटीए) का प्रस्ताव रखा था. इसके जरिए तमाम एजेंसियो के बीच बेहतर तालमेल बनाना भी मकसद था, लेकिन वह ठंडे बस्ते में चला गया.

एक ब्यौरा : सड़कों का रखरखाव और चुनौतियां

  • एमसीडी के पास दिल्ली की 23,931 किलोमीटर सड़कों की जिम्मेदारी
  • उनको नालों से गाद और कूड़े की सफाई करनी होती है
  • 60,000 सफाई कर्मचारी उसके तहत काम करते हैं
  • 500 करोड़ हर साल खर्च किए जाते हैं.
  • 650 पानी के पंप पानी की निकासी के लिए लगाए गए
  • 29 चुनौतीपूर्ण इलाके

पीडब्लूडी का जिम्मा
  • दिल्ली की 1200 किलोमीटर रोड पीडब्लूडी के तहत
  • काम नालों से गाद, कूड़ा हटाना और गड्ढों को भरना
  • हर साल 200 करोड़ रुपये व्यय किए जाते हैं
  • 530 पानी के पम्प लगाए गए
  • 163 स्थानों पर जलभराव होता है

साल 2014 में आई कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि जो नालियों का गाद निकालने का काम होता है वह एक धोखा है. 2010-13 में फ्लड कंट्रोल डिपार्टमेंट ने 8,30,000 क्यूबिक मीटर गाद नजफगढ और ट्रंक वन नालों से निकाली, लेकिन हटाई गई सिर्फ 1,00,000 क्यूबिक मीटर. बाकी को नाले के पास छोड़ दिया गया, यह कहते हुए कि तट इतना बड़ा था वह वापस नाले में नहीं जाएगी.

कैग की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 2001 के दिल्ली मास्टर प्लान के तहत ड्रेनेज का भी मास्टर प्लान बनाना था. वर्ष 2005 में एक कमेटी बनी लेकिन 2012 तक कुछ नहीं हुआ. इस दौरान आईआईटी को काम सौंपा गया था. दिल्ली जल बोर्ड को मैला के लिए भी एक मास्टर प्लान बनाना था. साल 2013 में पीडब्लूडी ने कहा था कि सभी नालियों से गाद निकाल ली गई, लेकिन आंतरिक रिपोर्ट में कहा कि बड़े इलाके में यह नहीं हुआ. आईआईटी की रिपोर्ट में सामने आया कि नालों से खराब निकासी और इनकी सफाई न होने से दिल्ली की नालियां जाम हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि ड्रेनेज सिस्टम ठीक नहीं है और न ही इनकी सफाई का कोई तफसीली तरीका है. 56 सड़कों में ढलान ही ठीक नहीं है जिससे पानी निकले. 60 % जो जाम होता है वह खराब नालियों के कारण जलभराव के कारण होता है.

जानकार बताते हैं कि हमने अपने नालों को बंद कर दिया है. उदाहरण  के तौर पर बारापुल्ला का पुल और दिल्ली हाट है. आज जिस तरह बहुत बारिश हुई, अगर यह नाले खुले होते तो पानी यमुना तक पहुंच जाता. दिल्ली में हर रोज 9000 टन कूड़ा निकलता है और इसमें से सिर्फ 50 प्रतिशत ही लैंडफिल तक पंहुचता है. बाकी नालों में धीरे-धीरे जमा होता है. अब समय आ गया है कि हम अपने कचरे को अलग-अलग कर सरकार पर दबाव बनाए कि वह उसका सही तरीके से निवारण करे. जानकारों के अनुसार एमसीडी को इसके लिए अलग अलग कूड़ेदान मुहैया कराने होंगे.  

चीन में 2012 में कुछ बड़े शहरों में बाढ़ के ऐसे हालात हो गए थे तो शहरों के नागरिकों और मीडिया ने मिलकर सरकार पर दबाव बनाया. राष्ट्रपति जीं जिनपिग ने 2015 में 16 शहरों को स्पाज सिटी का दर्जा दिया. इसके जरिए शहरों के रिहाइशी इलाकों में तालाब, फिल्ट्रेशन पूल में पानी जमा करने और सड़क निर्माण आदि में पानी का उपयोग करने के कदम थे. जमा पानी का प्रयोग शौचालयों, सड़कों की सफाई और आग बुझाने के कामों में किया गया.  

बहरहाल दिल्ली की राजनीति में बीजेपी और आप दोनों आमने-सामने हैं. सांसद प्रवेश वर्मा ने बड़े-बडे बोर्ड बनवा दिए हैं. इन पर लिखा है 'अब आड-ईवन से नहीं, दिल्ली चलेगी नाव से'......बेहतर होता यदि इतना खर्चा और मेहनत वे नालों को खोलने में लगा देते तो राजधानी दिल्ली में पानी निकासी की राह कुछ आसान हो जाती.

उधर केंद्र सरकार जिसने 100 स्मार्ट सिटी का सपना  दिखाया था.....देश की राजधानी दिल्ली को वह दो साल में क्या स्मार्ट सिटी बना पाई? यह सवाल दिल्ली वासियों को झकझोरता रहेगा...हालांकि हम नागरिकों की खुद जिम्मेदारी भी बनती है कि साफ स्वच्छ दिल्ली के लिए हमने क्या किया.

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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