नोटबंदी ने कैसे बिहार की राजनीति बदल दी 

बिहार में भले महागठबंधन की सरकार जुलाई महीने के अंतिम हफ़्ते में टूटी और नये एनडीए सरकार का गठन हुआ लेकिन उस समय नीतीश कुमार ने बारह घंटे के अंदर अपनी यात्रा से निकलने के पहले नोटबंदी का समर्थन का ऐलान कर दिया था .

नोटबंदी ने कैसे बिहार की राजनीति बदल दी 

नीतीश कुमार ने नोटबंदी पर रखी बात

पटना:

नोटबंदी के दो साल होने पर इस विषय पर बहस जारी हैं कि ये सफल था या विफल. शायद ये सफल होता तो भाजपा के नेता भी मानते हैं कि पूरे देश में कार्यक्रमों , विज्ञापन और कार्यकर्ताओं के ज़रिये वाह वाही का दौर चलता रहा. लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली के ब्लॉग के अलावा सरकार के तरफ़ से कुछ ख़ास देखने को नहीं मिला. जहाँ इस बात पर विवाद जारी हैं कि नोटबंदी ने देश को कितना नुक़सान और कितना फ़ायदा पहुँचाया वहीं इस बात पर कोई शक नहीं कि नोटबंदी के कारण बिहार में महागठबंधन के सरकार की विदाई की नीव पड़ी .

बिहार में भले महागठबंधन की सरकार जुलाई महीने के अंतिम हफ़्ते में टूटी और नये एनडीए सरकार का गठन हुआ लेकिन उस समय नीतीश कुमार ने बारह घंटे के अंदर अपनी यात्रा से निकलने के पहले नोटबंदी का समर्थन का ऐलान कर दिया था . जिससे उनकी पार्टी और सहयोगी जैसे राजद और कांग्रिस को पहली बार उनके स्टैंड से मुश्किल और सफ़ाई देनी पड़ी थी. भाजपा के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार के इस क़दम का स्वागत किया. ख़ुद प्रकाश पर्व के दौरान जब पटना के गांधी मैदान में मुख्य समारोह में भाग लेने ख़ुद प्रधान मंत्रीनरेंद्र मोदी जब आये तब उन्होंने बिहार में शराबबंदी के लिए नीतीश कुमार की तारीफ़ की . जिससे यह साफ़ था कि इन दोनो नेताओं के बीच तनाव ख़त्म और संवाद जारी हैं .लेकिन इससे पूर्व वो या नीतीश की सोची समझी रणनीति कहिए या संयोग कि महागठबंधन में नीतीश नोटबंदी के मुद्दे पर अलग थलग पर गये थे. उनके सहयोगी हर दिन इस मुद्दे पर कोई ना कोई सार्वजनिक कार्यक्रम में भाग लेते और नीतीश कुमार का गुणगान करते.  अपनी यात्रा के दौरान नीतीश जैसे मधुबनी पहुँचे तब उस समय केंद्रीय वित मंत्री अरुण जेटली का फ़ोन नीतीश कुमार को आया, उस समय बिहार के वित मंत्री अब्दुल बारी सिड्डीकी भी मोजूद थे .सिड्डीकी जब पटना लौटे तो उन्होंने सभी को यह बात बताई. इसी दौरान लालू यादव निजी बातचीत में मानने लगे कि नीतीश कुमार ने अपना विकल्प खुला रखा हैं. उसी दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने पटना में एक धरना का आयोजन किया . ममता लालू यादव के घर चाय पीने पहुँची लेकिन नीतीश और ममता दोनो ने एक दूसरे से दूरी बनायी रखी . साफ़ था महागठबंधन में नीतीश के स्टैंड को ले के सब असहज महसूस कर रहे थे और उनकी सामप्रदायिक शक्तियों के ख़िलाफ़ खडा रहने पर सवाल शुरू हो गया .

नीतीश पूरे देश में नोटबंदी के ख़िलाफ़ विरोध और अपने पार्टी के नेताओं के विरोध के बाबजूद इस आशा में थे कि कम से कम तीन लाख सिस्टम में वापस नहीं आयेगा और उतनी राशि एक बार फिर छापकर केंद्र विकास की योजनाओं पर ख़र्च करने के नाम पर राज्यों को विशेष सहायता देगी. लेकिन ना नौ मन तेल हुआ और ना राधा नाची. इसके बावजूद पंजाब और उतर प्रदेश विधान सभा चुनाव के परिणाम से नीतीश को इस बात का भरोसा हुआ कि भले नोटबंदी के उद्देश्यों के बारे में केंद्र सरकार ने जो भी लाभ गिनाया वो भले फैल हो चुका हैं लेकिन जनता में ख़ासकर आम जनता में इसका कोई आक्रोश और भाजपा को लेके ग़ुस्सा नहीं हैं. नीतीश का आकलन था कि ये सही क़दम हैं . इस समय तक लालू सरकार के कामकाज में दख़लअंदाजी बढ़ा चूके थे जिसका प्रमाण था कि एक बार भी नीतीश खुलकर ज़िला अधिकारियों और एसपी का तबादला नहीं कर पाये थे. उसपर लालू का बयान कि ज़्यादा सीट आने के बाद उन्होंने नीतीश को मुख्य मंत्री बनाया और तेजस्वी यादव का नीतीश के सामने सार्वजनिक मंच से कहना चाचा मुख्य मंत्री रहेंगे नीतीश का भाजपा के साथ सरकार वापसी का दरवाज़ा खोलता गया.  

लेकिन उतर प्रदेश चुनाव के बाद नोटबंदी के बारे में जब भी नीतीश कुमार से पूछा जाता तो उनका जवाब होता था कि उन्हें उम्मीद हैं कि केंद्र सरकार बेनामी  संपत्ति पर चोट करेगी. लेकिन उन्हें इस बात का शायद अंदाज़ा नहीं था कि जल्द सता में सहयोगी लालू यादव और तेजस्वी यादव के एक नहीं कई संपती का ख़ुलासा शुरू हो जायेगा . हालाँकि जो भी उजागर हुआ वो सार्वजनिक पहले से था लेकिन जहाँ मॉल के बदले होटेल मामला जो सबसे पहले 2008 में उजागर हुआ था तब केंद्र की सरकार में सहयोगी होने के कारण लालू यादव के ख़िलाफ़ कोई कारवाई नहीं हुई. लेकिन इस बार तुरंत सीबीआई जाँच शुरू हो गयी.

हालाँकि नीतीश कुमार के तरफ़ से शुरू में बीच बचाव किया गया लेकिन उन्हें लगने लगा कि ये एक ऐसा भ्रष्टाचार का मुद्दा मिल गया हैं जिसके आड़ में वो लालू और महगरबंधन की सरकार से मुक्ति पा सकते हैं . लेकिन भले ही सरकार से इस्तीफ़ा देने के बाद नीतीश सफ़ाई में कहते रहे कि सब कुछ इस्तीफ़ा के बाद हुआ लेकिन सब तैयारी पहले से थी जैसे एक ही दिन जनता दल विधायक दल और भाजपा विधायक दो की बैठक . राज्यपाल का कोलकाता से पटना में रहना . या अस्वस्थ्य रहने के बावजूद सपथ ग्रहण तक उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया. इसलिए नोटबंदी सही या ग़लत बिहार में एक सरकार के विदाई और वक नयी सरकार के गठन का कारण ज़रूर बना .


मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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