यह ख़बर 11 अक्टूबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

हृदयेश जोशी की कलम से : 'हुदहुद' तूफान से पहले की कशमकश

विशाखापट्टनम:

विशाखापट्टनम में सुबह की सैर करने वालों को जैसे पता ही नहीं कि यहां कोई तूफान आने वाला है। यहां की 'बीच रोड' पर सुबह की सैर करने के लिए सैकड़ों लोग आते हैं। तेज हवा चल रही है। समंदर में लहरें भी सामान्य से ऊंची उठ रही हैं, आसमान में बादल छाए हैं, हल्की-फुल्की बूंदाबांदी शुरू हो चुकी है। मैं अपने कैमरामैन मदनलाल के साथ लोगों से बात करने निकलता हूं। 'बीच रोड' पर खड़े होकर कुछ पलों तक हम बंगाल की खाड़ी के भव्य नज़ारे को देखते हैं। लोग तेज़ वॉक करने, दौड़ने, साइकिलिंग करने में व्यस्त हैं।

आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम पर दुनिया की नज़र है। इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन से अमेरिकी अंतरिक्षयात्री ग्रेगोरी रीड वाइड़मैन ने पूर्वी तट की ओर बढ़ते बवंडर की तस्वीर भेजी है। कई वैज्ञानिक और मौसम के जानकार इस पर नज़र रखे हुए हैं। टीवी, रेडियो, अखबारों और वेबसाइट्स के साथ-साथ सोशल मीडिया पर 'हुदहुद' नाम के तूफान को करीब से फॉलो किया जा रहा है।

'बीच रोड' पर सैर कर रहे लोग कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि तूफान से कोई बड़ा नुकसान होगा। पूर्वी तट पर पहले भी बवंडर आते रहे हैं, लेकिन विशाखापट्टनम को कभी कुछ नहीं हुआ। शायद लोग इसीलिए बेफिक्र हैं। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि वे बरसात का लंबे समय से इंतज़ार कर रहे हैं। शायद हुदहुद के बहाने ही थोड़ा बरसात हो जाए। यहां 'बीच रोड' पर भले ही मॉर्निंग वॉकर्स मस्त हों और आपस में चुहलबाज़ी कर रहे हों, लेकिन प्रशासन इस पूरे मामले को इस तरह नहीं ले सकता। उसे संजीदा रहने की ज़रूरत है।

आंध्र प्रदेश के तटीय इलाकों से कई गांव खाली करा लिए गए हैं। पूरे राज्य में तो चार लाख से अधिक लोगों को खतरे वाले इलाकों से बाहर निकाला जाना है, विशाखापट्टनम में ही करीब पांच दर्जन गांव खाली कराए जा रहे हैं। मौसम विभाग इसे सीवियर साइक्लोन कह रहा है। कहा जा रहा है कि आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम के अलावा विजयनगरम, ईस्ट गोदावरी, वेस्ट गोदावरी और श्रीकाकुलम पर तूफान का असर दिखेगा।

ऐसी ही ख़बर ओडिशा से भी आ रही है। इन दो राज्यों के समुद्री तट पर ही ये तूफान टकराने वाला है। आंध्र प्रदेश के तटीय विशाखापट्टनम भारतीय नौसेना की पूर्वी कमान का हेडक्वार्टर है।

नेवी तो अलर्ट पर है ही, कोस्ट गार्ड और एनडीआऱएफ की टीमें भी तैनात की गई हैं। लेकिन लोगों का परंपरागत ज्ञान और उनकी जानकारी कई बार वैज्ञानिकों और आपदा प्रबंधन के जानकारों को भी हैरान कर देती है। मेरे साथी नेहाल किदवई विशाखापट्टनम के मंगामारपेटा से लौटते हैं, जहां मुनादी कराके लोगों को बताया जा रहा है कि वे सुरक्षित जगहों पर जाएं। नेहाल बताते हैं कि 80 साल का का एक बूढ़ा अधिकारियों को समझाता है, ये कहते हुए, "मैं समंदर को तुमसे अधिक जानता हूं... जितनी तुम्हारी उम्र है, उससे अधिक वक्त मैंने इस समंदर में गुजारा है, जाओ कुछ नहीं होगा..." उम्मीद करनी चाहिए कि कि परंपरागत जानकारी साइंसदानों पर भारी पड़े।


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