क्या सच में नया वोटर कांग्रेस से जुड़ना नहीं चाहता?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने अपनी प्रतिष्ठा बचा ली है.

क्या सच में नया वोटर कांग्रेस से जुड़ना नहीं चाहता?

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने अपनी प्रतिष्ठा बचा ली है....

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने अपनी प्रतिष्ठा बचा ली है. दिनभर चले सियासी ड्रामे के बाद कल देर रात ढाई बजे चुनाव जीतने के बाद उन्होंने राहत की सांस ली. लेकिन इस दौरान कांग्रेस को भारी मशक्क्त करनी पड़ी. पी चिदंबरम जैसे कांग्रेस के बड़े नेताओं को मोर्चा संभालना पड़ा था. यह ऐसा चुनाव था जिसमें गुजरात कांग्रेस का बिखराव खुलकर नजर आया. इससे अहमद पटेल मुश्किल में पड़ गए.  

उधर, पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं लेकिन उन्होंने जो सवाल उठाया वह सौ फीसदी सच है. कांग्रेस निश्चित रूप से 'अस्तित्व के संकट' से गुजर रही है. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा भाजपा प्रमुख अमित शाह की ओर से मिल रही चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं है. पार्टी में मजबूत नेतृव का अभाव है. परिवारवाद अब जीत की गारंटी नहीं रहा.

रमेश ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा, "हां, कांग्रेस पार्टी बहुत गंभीर संकट का सामना कर रही है." उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 1996 से 2004 तक 'चुनावी संकट' का सामना किया, जब वह सत्ता से बाहर थी . पार्टी ने 1977 में भी चुनावी संकट का सामना किया था जब वह आपातकाल के ठीक बाद चुनाव हार गई थी.

उन्होंने कहा, "लेकिन आज, मैं कहूंगा कि कांग्रेस अस्तित्व के संकट का सामना कर रही है. यह चुनावी संकट नहीं है . सचमुच में , पार्टी गंभीर संकट में है." उनसे पूछा गया कि क्या राज्यसभा चुनावों में पार्टी नेता अहमद पटेल की जीत सुनिश्चित करने के लिए गुजरात में भाजपा द्वारा विधायकों को पाला बदलवाने के खतरे के कारण पार्टी ने अपने विधायकों को कर्नाटक भेजा .

सच यह है कि आज कोई भी नया वोटर कांग्रेस से जुड़ना नहीं चाहता. दूसरे शब्दों मे कहें तो कांग्रेस नए वोटरों को रिझाने में फेल साबित हो रही है. राहुल गांधी अभी भी उतने मुखर नहीं हैं, जितनी आज की आवश्यकता है. वह मोदी-शाह की जोड़ी का मुकाबला करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं दिखाई देते. पार्टी यह स्वीकारें या न स्वीकारे गांधी ही पार्टी की विफलता का चेहरा हैं. उनके पार्टी के लिए क्या नीति हैं, यह आज भी किसी को पता नहीं चल पाया है.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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