नोटबंदी का साथ देने के 10 कारण...

नोटबंदी का साथ देने के 10 कारण...

राजनीति के विद्वानों का मानना है कि लोकतंत्र में जीते चाहे कोई भी पार्टी, 'राज' तो व्यापारी ही करते हैं, लेकिन यदि कोई पार्टी 'राज करने वाले' इन लोगों के खिलाफ ही खड़ी होकर खुद के वजूद को चुनौती दे दे, तो आप इसे क्या कहेंगे - पागलपन, साहस, रिस्क, क्रांति या कुछ और...?

यह तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि आगे चलकर नोटबंदी के परिणाम चाहे जो भी हों, लेकिन है यह एक ऐसा साहसिक कदम, जिसे शायद विश्व इतिहास की अब तक की पहली इतनी बड़ी आर्थिक क्रांति के रूप में पढ़ा जाएगा. वैसे तो आर्थिक क्रांतियों की कोशिशें कई राजनैतिक क्रांतियों के ज़रिये हुई हैं, लेकिन यह इसके ठीक उलट आर्थिक क्रांति के ज़रिये राजनैतिक क्रांति की कोशिश है. और जैसा कि देखा गया है, जब आर्थिक बदलाव होते हैं, तो वह बदलाव शेष सब कुछ बदल देता है, क्योंकि इस बदलाव से राज करने वालों के संसाधन का चरित्र बदल जाता है.

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अभी दिक्कतें हैं. होनी ही थीं. सरकार ने जोखिम से भरा हुआ बहुत बड़ा कदम उठाया है. फिलहाल वह बहुतों के निशाने पर है और ये निशाने अप्रत्याशित भी नहीं हैं, लेकिन इसकी सफलता केवल सरकार पर निर्भर नहीं करती. गोवर्द्धन पर्वत को उठाए रखने के लिए हम ग्वालों को भी अपनी लकुटिया लगाए रखनी पड़ेगी. ऐसा करने के एक-दो नहीं, बल्कि बहुत-से कारण हैं. उनमें से मैं यहां उन 10 मुख्य कारणों को रख रहा हूं, जिनकी वजहों से मुझे लगता है कि हम लोगों को नोटबंदी के इस 'तथाकथित अरुचिकर' निर्णय का समर्थन करना चाहिए और मदद भी करनी चाहिए.
 

  1. राजनीति किसी भी राष्ट्र की धुरी होती है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह धुरी धन के शिकंजे से आज़ाद होकर लोगों की, और लोगों के लिए हो सकेगी.
  2. भ्रष्टाचार आज शिष्टाचार बन चुका है. रिश्वत को कमीशन और रिवॉर्ड कहा जाने लगा है. इस प्रदूषण से लोग घुट रहे हैं. इस पर लगाम लग सकेगी.
  3. अपहरण, डाका, चोरी तथा हत्या के प्रमुख कारणों में से एक कारण है धन की लालसा; जो दूसरों की देखा-देखी पैदा होती है. निश्चित रूप से इन अपराधों की संख्या पर नियंत्रण लगेगा.
  4. काला धन उपभोक्तावाद को अश्लीलता की सीमा तक पहुंचा देता है. बाद में यह उपभोक्तावाद न जाने कितनी सामाजिक बुराइयों को जन्म देता है. अब यह आपके ऊपर है कि आप इन बुराइयों को बुराई मानते हैं या नहीं. पांच सौ करोड़ रुपये की शादी इसी की संतान है.
  5. काले धन ने अर्थव्यवस्था पर सरकार की पकड़ को कमज़ोर कर दिया है, इसीलिए आर्थिक अनुमान गलत हो जाते हैं. अर्थव्यवस्था डोरकटी पतंग की तरह हो गई है, और इससे यह डोर सरकार, यानी आपके हाथ में आ जाएगी.
  6. गरीबी से कम खतरनाक नहीं होती आर्थिक असमानता, जिससे आज पूरी दुनिया चिंतित है. नोटबंदी इस असमानता की खाई को पाटने में सहायक होगी.
  7. काला धन महंगाई का एक बहुत बड़ा कारण होता है, क्योंकि इसे खर्च करने वाले के लिए कीमत कोई मायने नहीं रखती. यदि यह कम होगा, तो महंगाई की सिरसा का मुंह भी कम ही खुलेगा.
  8. ईमानदारी को प्रतिष्ठा मिलेगी. इसके फलस्वरूप आज जो धन 'खुदा नहीं, तो खुदा से कम भी नहीं' बना हुआ है, उसके स्थान पर मानवीय जीवन-मूल्य को बढ़ावा मिलेगा.
  9. निःसंदेह यह विश्व में भारत की छवि को बेहतर बनाएगा.
  10. हम सही रूप में 'एक सम्पूर्ण स्वतंत्रता' का एहसास कर शांतिपूर्ण एवं संतोषपूर्ण जीवन जी सकेंगे.

अब अंतिम दो प्रश्न. पहला, यदि आप सचमुच काले धन को खत्म करना चाहते हैं, तो बताएं कि जो अभी किया गया है, उसका विकल्प क्या है...? और दूसरा, यदि इससे बेहतर विकल्प थे तो वे अब तक किए क्यों नहीं गए...? इसलिए अब यदि किसी ने किया है, तो यह हमारा नागरिक दायित्व है कि हम उसका साथ दें. इसका नतीजा क्या निकलेगा, भविष्य पर छोड़ दें.

डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

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