पर्यावरण संरक्षण में पूरी दुनिया को सबक देता छोटा-सा देश भूटान

पर्यावरण संरक्षण में पूरी दुनिया को सबक देता छोटा-सा देश भूटान

38,000 वर्ग किलोमीटर में फैले मात्र पौने आठ लाख की आबादी वाले हिमालय की शृंखला में बसे इस नन्हे-से देश ने पूरी दुनिया के सामने एक बार फिर नई मिसाल पेश की, दुनिया का नेतृत्व किया। 700 करोड़ की जनसंख्या वाली दुनिया में आठ लाख से भी कम आबादी वाला यह देश है - भूटान।

इस साल भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक (Jigme Khesar Namgyel Wangchuck) के यहां भविष्य के राजा ने जन्म लिया, जो राजा वांगचुक और जेटसन पेमा (Jetsun Pema) की पहली संतान है। पूरे भूटान ने अपने प्यारे राजकुमार का स्वागत किया, अपनी धरती पर एक लाख से भी अधिक पौधों का रोपण कर... वह भी तब, जब इस ईको-फ्रेंडली देश की कुल ज़मीन का 60 फीसदी हिस्सा पहले ही पेड़ों से ढका हुआ है।

भूटान ने अनजाने ही दुनिया की विकास संबंधी सोच को एक नया नेतृत्व देने के लिए एक छोटा-सा कदम तब भी उठाया था, जब वहां के चौथे राजा जिग्मे सिग्मे वांगचुक ने वर्ष 1972 में 'ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस' की बात कही थी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि विकास का मेरा यह इंडेक्स पश्चिम के भौतिक विकास पर आधारित कुल राष्ट्रीय उत्पाद (जीडीपी) के विरोध में तथा गौतम बुद्ध के आध्यात्मिक मूल्यों के समानान्तर है। उल्लेखनीय है कि भूटान एक बुद्धिस्ट राष्ट्र है।

उस समय लोगों ने उन्हें अनसुना कर दिया था, लेकिन वे अधिक समय तक ऐसा नहीं करते रह पाए। अंततः वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने प्रस्ताव पारित कर इसे दुनियाभर के एजेंडे में शामिल किया।

आज भले ही न लग रहा हो, लेकिन निश्चित रूप से भूटान का यह इंडेक्स भविष्य में विकास को परिभाषित करने के लिए 'गेम चेंजर' सिद्ध होगा। अपने समय से बुरी तरह त्रस्त आज दुनिया इसकी शुरुआत कर चुकी है। इसी माह के शुरुआत में संयुक्त अरब अमीरात ने इसके लिए अपने यहां एक नया मंत्रालय ही बना दिया है। अब 20 मार्च को 'इंटरनेषनल डे ऑफ हैप्पीनेस' के रूप में मनाया जा रहा है।

भूटान में मूलतः राजतंत्र था, और वहां के राजा शायद अब तक के ज्ञात इतिहास के पहले ऐसे शासक थे, जिन्होंने वर्ष 2007 में अपने देश की सत्ता स्वेच्छा से लोकतंत्र के हाथों सौंपी, जबकि उनके देश में इसके लिए कोई मांग नहीं थी।

क्या यही वे तत्व हैं, जिनके कारण प्राकृतिक संसाधनों से रहित, प्राकृतिक संकटों के बीच रहने वाला प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से सामान्य स्तर का यह छोटा-सा देश खुशी के मामले में शुरू के 10 देशों में शामिल है...? निश्चित रूप से ऐसा ही है...

हमने अपनी बात की शुरुआत की थी, राजकुमार के जन्म पर एक लाख वृक्ष लगाए जाने से। सोचिए, यदि वह राजकुमार भारत में जन्म लेता, तो क्या-क्या होता। बच्चे की बात भी छोड़ते हैं... हाल ही में संपन्न हुए श्री-श्री के विश्व सांस्कृतिक समारोह को लेते है। संस्कृति की रक्षा और उसके विकास के नाम पर यमुना के उस तट तक को नहीं बख्शा गया, जिसके किनारे संस्कृति ने जन्म लिया था, और वहीं पली-बढ़ी थी। नियम-कानूनों तथा आम लोगों की सुविधा-असुविधा को धता बताकर पचासों करोड़ रुपये फूंकने वाला यह सांस्कृतिक समारोह वस्तुतः शक्ति प्रदर्शन तथा धार्मिक अहम्-वाद की तृप्ति का माध्यम-मात्र बनकर रह गया। यदि आध्यात्मिक गुरुओं की सोच यह है, तो फिर सत्तासीन लोगों की सोच के बारे में कहा ही क्या जा सकता है। क्या इसी तरह के ही कुछ ऐसे तत्व हैं, जिनके कारण दुनिया का वह देश, जिसे हम भारत कहते हैं, और जहां ब्रह्म को आनन्दस्वरूप कहा गया है, हैप्पी इंडेक्स के मामले में 120वें स्थान के आसपास कहीं नज़र आता है। जीडीपी के आधार पर तो यह इसमें भी पीछे है। यानी, फिलहाल न तो हमें माया मिल पाई है, न राम।

तो अंत में यही... भूटान को भविष्य की मानवता की ओर से सलाम...

डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं...

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