यह ख़बर 18 मार्च, 2014 को प्रकाशित हुई थी

चुनाव डायरी : कभी गरम, कभी नरम शरद पवार...

शरद पवार का फाइल चित्र

नई दिल्ली:

देश के सबसे 'खांटी' राजनेताओं में से एक हैं शरद पवार... उनके मन की थाह पाना असंभव है... हर तरफ से कांग्रेस के लिए आ रही बुरी खबरों के बावजूद शरद पवार कांग्रेस के साथ बने हुए हैं... तमाम उठापटक के बावजूद उनकी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, यानि एनसीपी ने महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव 2014 के लिए सीटों का बंटवारा कर लिया है... लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार अब भी शरद पवार के सार्वजनिक बयानों के मतलब ढूंढते रहते हैं, क्योंकि कभी वह कांग्रेस के प्रति गरम होते हैं तो कभी नरम पड़ जाते हैं...

अब एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में शरद पवार ने कहा है कि वर्ष 2002 के दंगों के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी को ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता... पवार ने कहा कि जब अदालत ने कुछ कहा है तो हमें स्वीकार करना चाहिए... इस मुद्दे को क्यों बार-बार उठाया जा रहा है...

महत्वपूर्ण बात यह है कि गुजरात दंगों पर शरद पवार का बयान कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पीटीआई को दिए इंटरव्यू के बाद आया है, जिसमें राहुल ने कहा था कि एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) की रिपोर्ट पर जानकारों द्वारा कई सवाल उठाए गए हैं और निचली अदालत के फैसले पर अभी बड़ी अदालतों की मुहर लगनी बाकी है... हालांकि पवार ने यह भी कहा है कि बतौर मुख्यमंत्री दंगों के लिए मोदी की जिम्मेदारी बनती है और उन्हें इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए...

नरेंद्र मोदी और दंगों को लेकर शरद पवार इससे मिलती-जुलती बात कुछ समय पहले भी कह चुके हैं, लेकिन बाद में पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे की बैठक में उन्होंने गुजरात दंगों को लेकर मोदी पर तीखा हमला किया था... जबकि 8 दिसंबर, 2013 को चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद पवार ने कांग्रेस आलाकमान की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे... तब पवार ने आरोप लगाया था कि गैरसरकारी संगठन हावी होते जा रहे हैं... माना गया कि वह सोनिया गांधी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद पर निशाना था...

वैसे इस सबके बावजूद पवार यह स्पष्ट करते हैं कि वह संयुक्त जनतांत्रिक गठबंधन (यूपीए) के साथ ही रहेंगे... चुनाव से पहले भी और चुनाव के बाद भी... लेकिन राजनीतिक गलियारों में मोदी के प्रति नरमी बरतने वाले पवार के बयानों को लेकर सवाल उठ रहे हैं... पूछा जा रहा है कि शरद पवार कांग्रेस और मोदी पर कभी गरम तो कभी नरम क्यों होते हैं...

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जहां तक प्रधानमंत्री बनने की शरद पवार की महत्वाकांक्षा का सवाल है, अभी तक उनकी ओर से इस पर पूर्णविराम नहीं लगाया गया है... वैसे पवार कहते हैं कि उनकी पार्टी की इतनी ताकत नहीं है, जिसके चलते वह प्रधानमंत्री बन सकें... यह ज़रूर है कि पवार इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और वह राज्यसभा के जरिये संसद में पहुंच गए हैं... महाराष्ट्र के राजनेताओं के बारे में मशहूर है कि वे चाहे किसी पार्टी में हों, मगर आपस में पक्की दोस्ती होती है... महाराष्ट्र बीजेपी के कुछ नेताओं के बारे में हल्के अंदाज में यहां तक कहा जाता है कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनके उम्मीदवार नरेंद्र मोदी नहीं, शरद पवार हैं... यह पवार की शख्सियत और राजनीतिक विरोधियों में उनकी लोकप्रियता का पैमाना भी हो सकता है... बहरहाल, पवार के कभी गरम, कभी नरम रुख का राज यही लगता है कि भविष्य के लिए अपने दरवाजे सबके लिए खुले रखो...