जज़्बे को सलाम : जब ग़मों के पहाड़ को मिली शिकस्त

नई दिल्‍ली : वह चाहतीं तो सामान्य महिलाओं की तरह सेना में ‘वीर नारी’ की सूची में अपना जुड़वाकर सरकार से मिले पैसे और पेंशन के सहारे आराम से ज़िन्दगी काट सकती थी। परन्तु उन्होंने दूसरा रास्ता चुना, एक ऐसा रास्ता जो न केवल पति के अधूरे सपनों को पूरा करने का जरिया बन सकता था बल्कि देश की तमाम महिलाओं के लिए एक दमदार उदाहरण भी।

जब बेटी ने अपने सारे ग़मों को ‘दृढ़ इच्छशक्ति’ में बदलकर जीवन में सतत संघर्ष करने का हौंसला दिखाया तो फिर माता-पिता कैसे पीछे रहते। उन्होंने भी मजबूती से बेटी का हाथ थाम लिया और उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर बरेली की वह विधवा युवती आज देश में लेफ्टिनेंट रुचि वर्मा की नई और प्रेरणास्पद पहचान के साथ कई महिलाओं के लिए उम्मीद की किरण बन गई है।

जब नाम के आगे ‘रैंक’ लगी तो सब कुछ बदल गया- पहले कपड़े, फिर बाल और बाद में सबसे जरूरी एक नई पहचान मिली। अब वो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना का हिस्सा है। साड़ी की जगह हरी फौजी वर्दी ने ली है। रुचि खुद कहती हैं अब उसके कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी है। पहले बस अपने छोटे बच्चे की जिम्मेदारी थी। अब उसे देश के लोगों के भरोसे पर खरा उतरना है।

30 अप्रैल 2013 तक उसकी बस इतनी ही पहचान थी कि वो सेना में मेजर विनीत वर्मा की पत्नी है। उस वक्त काम के नाम पर बच्चे संभालना, खाना बनाना, पार्टी अटैंड करना और जब पति छुट्टियों में घर आते तो सालभर के सारे त्योहार उनके साथ मनाना। कुछ ऐसी ही दिनचर्या थी रुचि की।

लेकिन 30 अप्रैल 2013 को अचानक जिंदगी में ऐसा झटका लगा कि जीवन की रफ़्तार के साथ-साथ सब-कुछ थम सा गया। जब ये पता चला कि असम में एक उग्रवाद विरोधी अभियान में लड़ते हुए मेजर विनीत शहीद हो गए। ऐसा लगा कि सारी दुनिया ही उजड़ गई। रुचि के लिए तो जिंदगी का एक-एक पल काटना मुश्किल हो गया। कैसे वे अपने नन्हे से बेटे अक्षत को पालेगी? क्या अब बेटे को सैन्य आन-बान-शान के बीच वो परवरिश मिल पाएगी जो उसके पति के रहते मिलती? अक्षत को लेकर पति ने सपने देखे थे अब वो सब तार तार हो गए थे।

इसी बीच, घनघोर अंधेरे में एक उम्मीद की किरण नजर आई कि अगर वो खुद फौज में चली जाए तो न केवल अपने पति के अधूरे सपने को पूरा कर सकती है बल्कि अपने बेटे की परवरिश भी सेना के माहौल में कर सकेगी। मेजर विनीत की यूनिट के लोग और उसके माता-पिता मदद के लिये आगे आए।

समझा जा सकता है कैसे रुचि के पिता ने अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए अपने डर पर काबू पाय़ा होगा। रुचि के पिता सुधीर सक्सेना कहते हैं कि उस वक्त तो मैं बस इतना ही चाहता था कि इसे जो सदमा लगा है उससे उबर जाए। मैंने और और मेरी पत्नी ने बस रुचि की हिम्मत बढ़ाई। यहां ये बताना जरूरी है कि सक्सेना साहब ने खुद मिलेट्री साइंस में ग्रेजुएशन किया है। मौका मिलने पर सेना से जुड़ी हर बात पढ़ते हैं। बेटे को फौज में भेजना चाहा पर वो सफल नहीं हो पाए। फिर जब रुचि की शादी के लिए मेजर विनीत का प्रस्ताव आया तो जैसे उन्हें लगा मानो मन की मुराद पूरी हो गई। दोनों परिवार की मर्जी से रुचि और मेजर विनीत की दो अप्रैल 2006 में शादी हो गई। रुचि को तो दुनिया की सारी खुशियां ही मिल गई।

पति की जहां जहां पोस्टिंग रही वहां वहां गई। सेना को बखूबी जाना लेकिन जब ‘लाइन ऑफ कंट्रोल’ पर पति की पोस्टिंग हुई तो वो दिल्ली में रहने लगी। इसी दौरान जब 2009 में दोनों की जिंदगी में बेटा अक्षत आया तो खुशियों में और चार चांद लग गए। बेटे को लेकर दोनों मियां बीवी सोचते इसे शेरवुड जैसे नामी स्कूल में भेंजेगे। पर किसे पता था कि एक दिन ऐसा आएगा कि सारी खुशियों पर ग्रहण लग जाएगा।

खैर, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। मेजर विनीत के शहीद होने के बाद पांच महीने बाद रुचि ने फौज में अफसर बनने के लिये फार्म भर दिया और पिछले साल जनवरी में अफसर बनने के लिये जरूरी एसएसबी परीक्षा भी पास कर ली। लेकिन ये सब इतना आसान नहीं था क्योंकि अब तक आराम की ज़िन्दगी जीने वाली रुचि के लिए सैन्य प्रशिक्षण किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था और सबसे बड़ा सवाल तो यह था कि नन्हा अक्षत किसके साथ रहेगा। ऐसे में रुचि के मम्मी-पापा ने अक्षत की पूरी जिम्मेवारी संभाली।

11 महीने की कड़ी ट्रेनिंग लेने के लिए रुचि सेना की चेन्नई स्थित अफसर ट्रेनिंग अकादमी गई। रुचि बताती है, 'मैं वहां पर एक शहीद अफसर की बीवी बनकर नहीं गई थी बल्कि एक ट्रेनी कैडेट के तौर पर गई थी इसलिए गलती करने पर डांट और दंड भी मिला तो अच्छा करने पर शाबासी। बहुत कुछ सीखा वहां पर। पहले विनीत के बारे में बात करके रोने लगती थी अब विश्वास के साथ पति के बारे बात कर पाती हूं। इतना हौसला आ गया है कि अकेले अपने दम पर बेटे को पाल लूंगी।'

ट्रेनिंग के बाद, पहले की तुलना में रुचि अब सेना को कही ज्यादा बेहतर ढंग से समझने लगी है। आज उसे अपने पति पर कहीं ज्यादा फ़ख्र है। वे कहती है, 'आम लोगों का कैसे जरा सी ऊंचाई पर चढ़ने में ही दम फूल जाता है और वहीं मेजर विनीत जैसे सेना के जाबांज हजारों फीट की ऊंचाई पर अपनी डयूटी निभाते हैं।' अपनी शादी के सात साल में से पति के साथ महज दो साल गुजारने वाली रुचि को इस बात की कसक तो है कि उसे अपने पति के साथ बहुत कम वक्त गुजरने का मौका मिला क्योंकि ज्यादातर समय उसके पति की फील्ड पोस्टिंग रही लेकिन सेना में शामिल होकर वह मेजर विनीत की मज़बूरी भी समझ गयी है जिनके लिए परिवार से पहले देश था।

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लेफ्टिनेंट रुचि कहती है, 'पहले मैं बेशक अपने पति के सपने को पूरा करने के लिए फौज में आई थी लेकिन जब कंधे पर सितारा लगा तो अब महसूस होता है कि जिम्मेदारी और बढ़़ गई है। उसके बाद, जब शपथ ली तो लगा पहले मैंने बेटे और विनीत के लिए फौज में आने को सोचा था पर अब देश की जिम्मेदारी आन पड़ी है, लाखों लोगों की उम्मीदें हम से जुड़ गयी है और उस पर खरा उतरना हर फौजी की तरह मेरा भी लक्ष्य बन गया है। अगर हम जैसे युवा देश के बारे में ऐसा नहीं सोचेंगे तो कौन सोचेगा?' बेटी के हौसले और बहादुरी को देखकर पिता सुधीर को काफी गर्व है।

रुचि कहती है, उसका बेटा अक्षत बड़ा होकर क्या बनेगा ये खुद वो तय करेगा लेकिन अगर वो फौज में जाएगा उससे ज्यादा खुश कोई और नहीं होगा। रुचि कहती है कि जिंदगी में अप्स एंड डाउन(उतार-चढ़ाव) तो आते ही रहते हैं, लेकिन जिंदगी वहीं खत्म नहीं होती। ये आपको तय करना होता है कि आपको विनर बनकर जिंदगी गुजारनी है या लूजर बनकर। मुझे तो ‘बेचारी’ बनकर नहीं जीना था इसलिए मैंने ये रास्ता चुना।