#युद्धकेविरुद्ध : क्यों हो रही है युद्ध की बात, आखिर क्यों...?

#युद्धकेविरुद्ध : क्यों हो रही है युद्ध की बात, आखिर क्यों...?

अपने गांव चनका से शहर पूर्णिया लौटते वक्त एक छोटा-सा बाज़ार आता है - जगैली. पिछले तीन दिन से इस बाज़ार के रामनरेश चाचा की चाय की दुकान पर अंतरराष्ट्रीय मसलों पर बातचीत होने लगी है, जिसमें बार-बार 'मार गिराने', 'तबाह कर देने' जैसे शब्दों का प्रयोग होता है. दरअसल उरी में आतंकी हमले के बाद जनमानस में जो उबाल आया है, उस वजह से लोगों की ज़ुबान से 'युद्ध' नामक भयावह शब्द अनायास ही निकलने लगा है, लेकिन बातचीत के दौरान रामनरेश चाचा बड़े सहज भाव से कहते हैं, "आप लोग यहां चाय पीते हुए जो लड़ने-मारने की बात करते हैं, क्या आपको पता है कि इसका परिणाम क्या होगा...? बातचीत में इतनी बड़ी बात कह देना आसान है, लेकिन दो देशों की लड़ाई में क्या-क्या भोगना पड़ता है, इस मसले पर भी तो बात करिए..."

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रामनरेश चाचा की बात सुनकर मैं सोचने लगा कि 'लड़ाई' और 'युद्ध' शब्द के बीच कितना बड़ा फासला है, कितनी गुत्थियां हैं, कितना अंतर है, इसे लेकर अभी भी लोग अनजान हैं. युद्ध की बातें करते हुए क्या हम उसके परिणाम के बारे में सोचते हैं...?

आप सोच रहे होंगे कि यह सब लिखने वाला एक डरपोक इंसान होगा, जिसे ख़ूनख़राबे से, जंग से डर लगता होगा. लेकिन मेरा बस इतना ही कहना है कि जंग केवल और केवल अंतिम उपाय है और यह भी जान लीजिए 'अंतिम' कुछ भी नहीं होता. गंभीर बातचीत से हर मसला हल हो सकता है, बस बीच में 'पॉलिटिक्स' न आए.

वैसे यहां यह बात लिख देना ज़रूरी है कि युद्ध जैसे गंभीर मसले पर अपनी बात रखने वाला यह इंसान अंतरराष्ट्रीय मामलों का जानकार नहीं है और न ही रक्षा मामलों का विशेषज्ञ. इन दिनों एक आम नागरिक जो कुछ अनुभव कर रहा है, मैं वही बात करना चाहता हूं. मेरा मानना है कि युद्ध के लिए उतावले लोगों को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बने शरणार्थी शिविरों में रहने वाले लोगों की बातें सुननी चाहिए. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया यह काम कर सकता है. आप किसी शरणार्थी से पूछिए, युद्ध क्या होता है...? वैसे यह सत्य है कि बड़े स्तर पर शरणार्थी संकट के पीछे का अहम कारण आतंकवाद है. इन दिनों जो लोग पाकिस्तान से आर-पार की लड़ाई की बात कर रहे हैं, वे इस भ्रम में हैं कि युद्ध से पाकिस्तान बरबाद हो जाएगा, लेकिन अफ़सोस, वे लोग यह नहीं समझते कि युद्ध किसी भी मसले का हल है ही नहीं.

उरी हमले की वजह से बातचीत में कुछ लोग 'लिमिटेड वॉर' की भी बात कर रहे हैं, लेकिन जान लीजिए, पाकिस्तान जिस तरह छद्म तरीक़े से वार करता है, उसमें इस बात की संभावना बहुत कम है कि पाकिस्तानी सेना युद्ध पर उतर आए. दरअसल पाक सेना का स्वरूप जेहादियों जैसा है. हम-आप जिस आसानी से युद्ध की बात करने लगे हैं, ऐसे में यह जानना ज़रूरी है कि युद्ध के परिणाम क्या होंगे. युद्ध की पीड़ा भोगने वालों के बारे में भी ज़रा सोचिए.

ग़ौरतलब है कि जब दो मुल्कों के बीच जंग शुरू होती है, तो तीसरा मुल्क हमेशा चाहेगा कि लड़ाई लंबी चले. याद करिए, अमेरिका ने ईरान-इराक युद्ध में क्या किया था. अमेरिका कभी ईरान को, कभी इराक को हथियार भेजता रहा और दोनों मुल्क आपस में आठ साल तक लड़ते रहे. युद्ध हमें पीछे धकेल देता है और युद्ध का वातावरण हमें डराता है. ऐसे में मुल्क के हुक्मरान को युद्ध से इतर अलग-अलग मुद्दों पर विचार करना चाहिए. युद्ध के ज़रिये या शक्तिप्रदर्शन से न अमेरिका जैसा देश इराक, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया आदि पर पूरा नियंत्रण कर सका है, न इस्राइल कभी फिलस्तीन को पूरी तरह नेस्तोनाबूद कर सका है. यह सब हम लोग देखते आए हैं, ऐसे में आम लोगों को भी युद्ध की बातें करने से पहले गंभीरता से विचार करना चाहिए.

आज युद्ध जैसे गंभीर मसले पर बेहद सतही तरीक़े से यह सब लिखते हुए कबीर की एक वाणी याद आ रही है - "कहां से आए हो, कहां जाओगे, मोल करो अपने तन की..." दरअसल हम जिस तेज़ी से ख़ुद का विस्तार कर रहे हैं, ऐसे में हम यह भूलने लगे हैं कि भीड़ में हम जा कहां रहे है. सब कुछ जीत लेने की ख़्वाहिश कभी-कभी तबाही की राह पर भी ले जाती है, यह जान लीजिए. जहां तक अपने देश की बात है, हमने पिछले 70 साल में हर चुनौती का सफलता से मुक़ाबला किया है. इन 70 सालों में हम बिखरे नहीं, एकजुटता से आगे ही बढ़े हैं.

दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जंग की बात जब भी होती है, मन विचलित हो जाता है. कहां हम 'ग्लोबल' हो जाने की बात कर रहे हैं, बाज़ार का विस्तार कर रहे हैं, एक देश के होनहार बच्चे दूसरे मुल्क की नामचीन यूनिवर्सिटी में तालीम ले रहे हैं, कलाकार अपनी कला का वैश्विक स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं... ऐसे में सच पूछिए, युद्ध जैसे शब्द से चिढ़ होती है. मत करिए युद्ध की बात, मिलकर-बैठकर बात करिए. बातचीत से हर मसले का हल निकल सकता है, बशर्ते बातचीत गंभीर हो.

गिरींद्रनाथ झा किसान हैं और खुद को कलम-स्याही का प्रेमी बताते हैं...

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