लोकतंत्र की एक खूबी यह है कि वह कोई ठोस पदार्थ नहीं है. लोकतंत्र तरल पदार्थ है, इसलिए आज की राजनीति में प्रॉपेगेंडा के द्वारा इसे ठोस पदार्थ में बदलने का प्रयास होता रहता है. मतदान करने की उम्र भले ही 18 साल हो, मगर लोकतंत्र में भागीदारी की कोई उम्र नहीं हो सकती है. किसने सोचा था कि हरियाणा के रेवाड़ी ज़िले की 9वीं और 10वीं की 80 से अधिक लड़कियां धरने पर बैठ जाएंगी और सरकार से अपनी मांग मनवा लेंगी. यह कोई साधारण कामयाबी नहीं है बल्कि लोकतंत्र में भागीदारी की हमारी समझ को बदलती भी है.
ये धरना सकारात्मक नोट पर समाप्त हो चुका है लेकिन जब शुरू हुआ तो पहले तीन चार दिनों तक किसी ने गंभीरता से नोटिस भी नहीं लिया. लेकिन जैसे जैसे दिन गुज़रते गए 9वीं और दसवीं की लड़कियों का अनशन मीडिया में उत्सुकता पैदा करने लगा. अपनी मांग को लेकर टिके रहने की प्रतिबद्धता मतदाता बनने से पहले की उम्र में हासिल हो जाए, यह ठीक वैसा ही है जैसे आदमी वयस्क होने से पहले ही वयस्क हो जाए. इनके प्रदर्शन की परिपक्वता ही थी कि सरकार को इनकी मांग माननी पड़ गई. गोथरा टप्पा दाहिना गांव का सरकारी हाई स्कूल अपग्रेड हो गया है. अब यहां दसवीं के बाद 11वीं और 12वीं की भी पढ़ाई होगी. दसवीं के बाद स्कूल न होने से इन लड़कियों को यहां से तीन किमी दूर के स्कूल में जाना पड़ता. रास्ते में छेड़छाड़ से लेकर यौन हिंसा तक का शिकार होना पड़ता था. नियम तो यह था कि 150 छात्रों के रहने पर ही किसी स्कूल को अपग्रेड किया जाता था. मगर यहां लड़कियों की संख्या 86 ही थी. ऐसे नियम का क्या फायदा जो दो चार दस पांच की संख्या कम होने पर बाकी लोगों की परेशानी को नज़रअंदाज़ कर दे. पुलिस कहती रही कि लड़कियों ने छेड़छाड़ की कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है मगर लड़कियां अपनी मांग पर अड़ी रहीं. अब सरकार ने उनकी मांग मान ली है और मुख्यमंत्री भी इनसे मिलना चाहते हैं.
देश भर के सरकारी स्कूलों की ख़राब हालत पर न राजनीति बोलती है न समाज बोलता है, मास्टर जनगणना से लेकर मतगणना के काम में लगे रह जाते हैं और जब नतीजा आता है तो पता चलता है कि आधे बच्चे फेल. इंटरनेट सर्च से हमें जो जानकारी मिली है वो भी देख लीजिए फिर से.
2016 में हरियाणा बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में 3 लाख 17 हज़ार बच्चों में से 1 लाख 62 हज़ार फेल गए. करीब 52 प्रतिशत बच्चे फेल हो गए. 2016 में बिहार बोर्ड की दसवीं परीक्षा में 54 फीसदी बच्चे फेल हो गए. 2017 में मध्य प्रदेश बोर्ड की दसवीं परीक्षा में 52 फीसदी बच्चे फेल हो गए.
अभी तो रेवाड़ी की लड़कियों ने स्कूल को अपग्रेड करने का ही प्रदर्शन किया और कामयाबी हासिल की है. उनकी इस मिसाल से पूछा जाना चाहिए कि सरकारी स्कूलों में लाखों की संख्या में फेल हो रहे बच्चों को लेकर अभी तक राजनीति क्यों नहीं गरमाई कि इन स्कूलों में आखिर ऐसा हो क्यों रहा है. क्या सरकारी स्कूल फेल होने का कारख़ाना हैं. जबकि असर जैसी संस्था हर साल रिपोर्ट निकालती है कि पांचवी में पहुंच कर बच्चा पहली या दूसरी की किताब भी ढंग से नहीं पढ़ पाता है. इस असफलता की कोई जवाबदेही तो तय होनी ही चाहिए. इस साल फरवरी में असर ने हरियाणा के स्कूली छात्रों की जो रिपोर्ट दी है उसके अनुसार उनके सीखने की क्षमता में गिरावट ही आ रही है.
हरियाणा के स्कूलों में पहली कक्षा के 19.9 फीसदी छात्र संख्या नहीं पहचान पाते हैं. 24.4 प्रतिशत छात्र अंग्रेज़ी का अल्फाबेट नहीं पहचान पाते हैं. 23.4 प्रतिशत छात्र हिन्दी वर्णमाला नहीं पढ़ पाते हैं.
एनुअल सर्वे ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट असर के अनुसार हरियाणा में कक्षा तीन में पहुंचने वाले छात्रों में से 46.2 प्रतिशत छात्र ही दूसरी कक्षा की किताबें पढ़ पाते हैं. रेवाड़ी का आंदोलन कहता है कि बच्चों को अपनी शिक्षा की ज़िम्मेदारी खुद ही उठानी होगी. उन्हें ही अपनी पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर आंदोलन करने होंगे वर्ना साल दर साल उनके साथ ये नाइंसाफी होती रहेगी. आप इंटरनेट सर्च कीजिए, इन सब समस्याओं पर लाखों रिपोर्ट मिलेंगी मगर ठोस रूप से और समान रूप से कुछ नहीं होता है. दिखाने के लिए दो चार स्कूलों को चुन लिया जाता है, उन्हीं को कामयाब कहानी बनाकर बेचा जाता है.
रेवाड़ी के आंदोलन का असर गुरुग्राम भी पहुंच गया. गुरुग्राम के कादरपुर गांव के 170 बच्चों ने राजकीय हाई स्कूल के सामने धरना दे दिया. धरना देने वालों में लड़कियों की संख्या ज़्यादा थी. इनकी भी यही मांग थी कि स्कूल को 12वीं तक किया जाए ताकि उन्हें दसवीं की पढ़ाई छोड़ने के बाद गांव से दस किलोमीटर दूर के स्कूल न जाना पड़े. छात्रों के इस प्रदर्शन से स्थानीय विधायक भी हरकत में आ गए और बच्चों को आश्वासन दिया कि गर्मी की छुट्टियों के बाद उनका स्कूल दसवीं से बारहवीं का हो जाएगा. हमारे सहयोगी सौरभ को आरती ने बताया कि उनके मां बाप दसवीं के बाद बारवहीं के लिए बादशाहपुर नहीं भेजेंगे क्योंकि रास्ते में लड़के छेड़ते हैं. इनका कहना है कि गांव में एटीएम आ गया है मगर बारहवीं के लिए दस किमी दूर जाना पड़ता है.
सरकारी स्कूलों की तरफ किसी का ध्यान नहीं जाता. ध्यान जाता भी है तो बस्ता बांटने, साइकिल बांटने जैसे मसलों को लेकर जाता है. लाखों की संख्या में यहां पढ़ने के नाम पर बच्चों को पढ़ाई से दूर रखा जाता है. वे पढ़ने के नाम पर साल दर साल बिता देते हैं मगर इनमें से आधे बच्चे फेल होने के लिए ही अभिशप्त हैं. हम रेवाड़ी की लड़कियों से बात करेंगे ताकि बच्चे इनसे सीखें और अपने मास्टर से सवाल करें कि आप क्यों नहीं मन से पढ़ाते हैं, क्यों नहीं तैयारी के साथ पढ़ाने आते हैं, अपने बड़ों से पूछो कि सरकारों की प्राथमिकता में हमारी पढ़ाई की गुणवत्ता क्यों नहीं है. दूसरा रेवाड़ी और कादरपुर के प्रदर्शन में ख़ासबात है लड़कियों का नेतृत्व करना. किसके ख़िलाफ़, रास्ते में होने वाली छेड़खानी और लड़कों की दादागीरी के ख़िलाफ.