धर्म संस्थापना के लिए सब करना पड़ता है?

धर्म संस्थापना के लिए सब करना पड़ता है?

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि अब गिरिराज सिंह, शाहनवाज़ हुसैन, योगी आदित्यनाथ और मुख़्तार अब्बास नक़वी के हाथों कई लोग पाकिस्तान जाने से वंचित हो जाएंगे। इन लोगों की ट्रैवल एजेंसी तो नहीं थी, मगर इन्होंने समय समय पर विरोधियों को चुनौती देते वक्त ये ज़रूर कहा कि पाकिस्तान भेज देंगे या चले जाएंगे। इनके द्वारा पाकिस्तान भेजे जाने की कामना करने वाले लोगों को अब अपने पैसे से जाना पड़ेगा।

प्राइम टाइम में आने वाले इन नेताओं से मुझे बहुत उम्मीद थी कि कभी न कभी गुस्सा होकर शाहनवाज़ भाई या गिरिराज जी मुझे पाकिस्तान ज़रूर भेज देंगे। बिहार से होने के बाद भी इन्होंने मेरा ख़्याल नहीं रखा। अब तो पाकिस्तान और हिन्दुस्तान भाई-भाई होने जा रहे हैं तो इनकी शायद ज़रूरत भी न रहे। संघ के बयान के बाद भारतीय राजनीति के इन पाकिस्तान भेजक नेताओं को पाकिस्तान भेजने की ट्रैवल एजेंसी बंद कर बिहार चुनाव में जी जान से जुट जाना चाहिए।

भारतीय राजनीति में जैसे को तैसा यानी सठे साठ्यम समाचरेत पाठ्यक्रम का सबसे बड़ा चैप्टर है पाकिस्तान। पाकिस्तान को सबक सीखाना है, इसे हमारे नेताओं और उनके कुछ अज्ञानी समर्थक रटते रहते हैं। चुनाव आते ही ज़ोर ज़ोर से रटने लगते हैं। पाकिस्तान का नाम लेकर कई नेताओं में विदेश मंत्री की सी क्षमता का विकास होने लगता है। भारतीय राजनीति में पाकिस्तान एक ऐसी समस्या है जिसे बयानों से दो मिनट में सुलझा दिया जाता है। इन दिनों गद्दार लफ्ज़ से बोर हो चुके नेताओं ने पाकिस्तान भेजने का प्रयोग शुरू कर दिया है।

वहां भेजने के इतने बयान आने लगे कि पाकिस्तान भी घबरा गया होगा। इस घबराहट में वो भी सीमा से इस पार लोगों को धड़ाधड़ भेजने लगा। इन नेताओं ने सिर्फ अपने विरोधियों को पाकिस्तान जाने का पात्र समझा। संघ के बयान से अब बीजेपी के समर्थकों को भी पाकिस्तान जाने में कोई नैतिक संकट नहीं होगा। गंभीरता से देखें तो यही सोच सरकार को कुछ नया करने से रोक भी रही थी। प्रधानमंत्री जब भी कदम बढ़ाते हैं सब पाकिस्तान को सबक सीखाने वाला चैप्टर खोलकर रटना चालू कर देते हैं।

दुश्मनी का घरेलु उद्योग पाकिस्तान के अच्छे दिन जाने वाले हैं। पाकिस्तान को लेकर सारे कंफ्यूज़न दूर हुए। कभी पड़ोसी, कभी दुश्मन तो कभी कभी सुबह सवेरे किसी निश्चित गंतव्य तक जाने की क्रिया को भी पाकिस्तान जाना कहने लगते हैं लोग। अब ऐसे लोग कान खोलकर सुन लें। पाकिस्तान को सबके सीखाने के सबसे बड़े स्कूल से आदेश आया है कि हम सब भाई बंधु हैं।

संघ और सरकार के बीच चली तीन दिनों की सफल समन्वय बैठक के बाद आरएसएस के सह सर कार्यवाह दत्तात्रेय हसबोले ने कहा है कि भारत के पड़ोसी देशों के साथ पारिवारिक और सांस्कृतिक संबंध भी हैं। नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान या बांग्लादेश हो। बल्कि अपने शरीर से ही टूटकर वो बने हुए हैं दो देश तो..पाकिस्तान और बांग्लादेश। तो स्वाभाविक है यहां रहने वाले लोग अपने ही परिवार के हैं।

कभी-कभी संबंधों में..जैसे भाई भाईयों में भी हो जाता है। ऐसा कुछ दशकों में हुए होंगे। लेकिन इन सब को भूलकर हम पड़ोसी देशओं के साथ सांस्कृतिक संबंध..अपने इतिहास के साथ..भूगोल के साथ जो जुड़े हुए हैं..वो और अच्छे कैसे हो सकते हैं, इस दृष्टि से भी थोड़ा पड़ोसी देश के बारे में विचार किया। पत्रकार स्मिता मिश्रा ने पूछा भी कि पाकिस्तान की तरफ से पिछले कुछ समय में तेज़ी से घटनाएं बढी हैं, क्या आपको लगता है कि भारत के लिए मुमकिन है भाई-भाई जैसे संबंध स्थापित कर पाना। तो दत्तात्रेय हसबोले ने कहा कि भारत में कौरव और पांडव भी भाई भाई थे। धर्म संस्थापना के लिए सब करना पड़ता है।

धर्म स्थापना के लिए सब करना पड़ता है। लेकिन धर्म संस्थापना के लिए ही तो कौरव पांडव के बीच युद्ध हुआ था। क्या हसबोले जी ने यह कह दिया कि धर्म को लेकर जो कौरव पांडवों के बीच हुआ वैसा कुछ होने वाला है या वे ये कह रहे हैं कि धर्म युद्ध से पहले की तरह 105 भाई एक हो सकते हैं। इस बयान को सुनते ही मुझे हुर्रियन नेता गिलानी जी थोड़ी चिन्ता तो हुई। अगर उन पर इस बयान का सकारात्मक असर हो गया तो क्या पता वे फिर से सूटकेस लेकर दिल्ली के चाणक्यापुरी स्थित पाकिस्तान दूतावास आ जाये, उधर से सरताज अज़ीज़ साहब भी आ जाएं। क्या अब ये मुलाकातें भाई भाई के सिद्धांत के तहत हो सकती हैं। इन्हीं मुलाकातों के चलते तो वो बात न हो सकी जिसका वादा उफा में प्रधानमंत्री कर आए थे। क्या अब उफा की उल्फ़त रंग लाएगी। क्या कुछ नया और पहले से बड़ा करने के लिए कुछ नया अलग माहौल बनाया जा रहा है।

आखिर आरएसएस को क्यों लग रहा है कि भाई भाई का झगड़ा था, सिविल कोर्ट वाला, आतंकवाद को लेकर झगड़ा नहीं था, टाडा कोर्ट वाला। क्या संघ अब आतंकवाद की शर्त से निकल कर संस्कृति और संबंधों के दूसरों रास्ते को मौका देना चाहता है। सबक सीखाने वाले चैप्टर का क्या होगा। क्या उसकी तिलांजली दे दी गई है।

वैसे संघ के भाई भाई वाले बयान से जो भी बातचीत के समर्थक हैं उन्हें खुश होना चाहिए कि उनके साथ संघ भी आ गया है। जो सबक सीखाने वाले चैप्टर लिये बैठे हैं वो लोनली फील कर सकते हैं। भाई भाई का झगड़ा बताकर दत्तात्रेय जी ने डिफेंस बीट के फुफाओं को निराश किया होगा तो घरेलु झगड़ा कवर करने वाले लोकल बीट के पत्रकारों को उत्साहित। वैसे इसी साल जून में मथुरा में संघ प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान आया था कि

पूरा उपमहाद्वीप ही हिन्दू राष्ट्र है। किसी को शक नहीं होना चाहिए कि भारत बांग्लादेश या पाकिस्तान मे जो भी रह रहे हैं वो हिन्दू राष्ट्र का हिस्सा हैं। अखबारों की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश को भी हिन्दू राष्ट्र कह दिया। उन्होंने कहा कि उनकी नागरिकता अलग हो सकती है मगर राष्ट्रीयता हिन्दू है। क्या आज का बयान संघ प्रमुख के बयान का विस्तार था या कोई नया मोड़ आया है। क्या संघ ने प्रधानमंत्री की किसी लाइन को स्वीकार किया है। एक और महत्वपूर्ण बात हुई।

...और ये बात ठीक प्रधानमंत्री की काली गाड़ियों के इस काफिले के आने से पहले कही गई। दत्तात्रेय हसबोले ने कहा कि अर्थव्यवस्था का माडल पश्चिमी न होकर भारतीय मूल्यों पर बनें। सरकार गांव वालों की कमाई पढ़ाई और दवाई पर ध्यान दे ताकि उनका शहरों की तरफ पलायन रूके। अगर संघ वाकई ऐसा चाहता है तो उसे सरकार को शाबाशी देने से पहले बताना चाहिए था कि अर्थव्यवस्था का कौन सा फैसला पश्चिमी माडल को नकार कर भारतीय मूल्यों के आधार पर किया गया है।

स्मार्ट सिटी के दौर में क्या किसी के पास सचमुच ऐसा फार्मूला है या संघ के पास है तो क्या सरकार वाकई उस पर चलकर पलायन रोक देगी। पलायन बढ़ाने के लिए ही तो स्मार्ट सिटी तैयार किया जा रहा है ताकि भारत और अधिक शहरी हो सके। क्या ये सब कहने सुनने के लिए अच्छी बातें हैं या मेक इन इंडिया को इस माडल में फिट कर बहला फुसला दिया जाएगा।

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समन्वय बैठक से दोनों का समन्वय कहीं पूरे संघ परिवार को संदेश तो नहीं था कि बिहार चुनाव में चलकर जुट जाइये। सरकार संघ सब एक हैं। पाकिस्तान हिन्दुस्तान भाई भाई हैं। वो कौन हैं जो इन भाइयों के बीच झगड़ा करा रहे थे। वो अब कहां जाएंगे। उन्हें प्राइम टाइम देखना चाहिए।