सिस्टम के शिकार लोगों को न्याय कैसे? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

जब सिस्टम फेल होता है तब एक नागरिक कमज़ोर हो जाता है. वह अपने इंसाफ़ की लड़ाई के लिए दर दर भटकने लगता है.

सिस्टम के शिकार लोगों को न्याय कैसे? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

नाम के लिए दलों की संख्या भले हज़ार हो मगर उन सभी की राजनीति एक जैसी हो गई है, सिर्फ नेता ही अलग अलग हैं. इसी का परिणाम हैं कि अब हम इस बात पर बहस नहीं करते कि इस नीति या राजनीति से हमें क्या फायदा है, समाज को क्या फायदा, दो नेताओं के बीच के अंतर पर ही अपना सर दर्द बढ़ाते रहते हैं. मंदिर मस्जिद मुद्दे पर तर्कों के तीर चलने लगे हैं क्योंकि यही वो मुद्दा है जिसके चलते नेता नौकरी और व्यवस्था के सवालों से बच सकते हैं.

यह अकेला मुद्दा नहीं है यह हिन्दू मुस्लिम मुद्दे का नया पैकेज है. अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर दो तरह के मामले हैं. एक तो ज़मीन पर मालिकाना हक़ किस-किस का है और दूसरा कि बाबरी मस्जिद को ढहाने वाले अपराधी कौन-कौन हैं. मंदिर बनाने की मांग के शोर में अपराधियों को जल्दी सज़ा दिलाने की मांग को दबाया जा रहा है. वो आपसे मंदिर पर स्टैंड तय करने के लिए कहते हैं, लेकिन उन्हें और आपको इस पर भी अपना स्टैंड तय करना है कि संविधान और सुप्रीम कोर्ट को दिए गए भरोसे को तोड़ने और बाबरी मस्जिद गिराने की सज़ा से क्या कोई इसलिए बच जाएगा कि वो ज़ोर-ज़ोर से मंदिर-मंदिर कर रहा है. इस विवाद का कोई भी फैसला संविधान के साथ हुई वादाख़िलाफ़ी की सज़ा के बग़ैर पूरा हो ही नहीं सकता है. संविधान की सर्वोच्चता के बग़ैर कोई भी राष्ट्रीयता मुकम्मल नहीं हो सकती है.

6 दिसंबर के दिन एक दूसरी दुनिया भी है जहां मंदिर मस्जिद विवाद नहीं है, जहां डाक्टर अंबेडकर हैं. उन्हें याद करने वाले इस दिन उनसे भी ज़्यादा संविधान को याद करते हैं, उस किताब में अंबेडकर दिखाई देते हैं इसलिए उन्हें अपने जीवन की बेहतरी और सम्मान के लिए धन्यवाद देते हैं, पुण्यतिथि पर फिर से स्मरण करते हैं. 14 अप्रैल की अंबेडकर जयंती और 6 दिसंबर की उनकी पुण्यतिथि में बाबरी मस्जिद ध्वंस की घटना के कारण बहुत फर्क आ जाता है. आज के दिन सियासत के उस तबके में अंबेडकर गौण हो जाते हैं जिन्हें मंदिर मुद्दे को लेकर टीवी शो में जाना होता है और उसका संकल्प दोहराने के लिए अख़बारों में लेख लिखना पड़ता है. हम इस मसले को यहीं छोड़ते हैं और आपको एक मीठी सी चेतावनी दे रहे हैं कि भावनात्मक बहसों की दुनिया आपको और आपकी आने वाली पीढ़ी को एक बार फिर से किसी गहरे भंवर में ले जा रही है. इससे निकलना इतना आसान नहीं होगा.

आईआईटी की परीक्षा की तैयारी से भी ज़्यादा मेहनत करनी होगी वरना सब फेल. इस पूरी प्रक्रिया में आप फिर से कमज़ोर होंगे बल्कि लगातार कमज़ोर होते जा रहे हैं. बाबरी मस्जिद की घटना हमारे सिस्टम के बड़े स्तर पर फेल होने और आज तक फेल होते रहने का सबसे शर्मनाक और अचूक उदाहरण है. जब सिस्टम फेल होता है तब क्या होता है, तब यही होता है कि एक नागरिक कमज़ोर हो जाता है. वो अपने इंसाफ़ की लड़ाई के लिए दर दर भटकने लगता है. आपने कितने दिनों से नहीं पूछा कि थाने अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं या नहीं, पुलिस और अदालतों की प्रक्रिया इंसाफ हासिल करने वालों के लिए आसानी से उपलब्ध है या नहीं. सिस्टम के सितम में आज दूसरी कहानी सुनाने जा रहा हूं. 

23 साल का राहुल सिंह सिस्टम में ईमानदारी की चाह रखने वाला एक इंजीनियर. 24 अगस्त 2017 को चंबल एक्सप्रेस से बिहार के भभुआ जा रहा था, अपनी पत्नी ज्योति से मिलने जो उस वक्त आठ महीने की गर्भवती थीं. ट्रेन नंबर 12176, बोगी नंबर एस-2. झांसी से ट्रेन में सवार होते ही बोगी में टीटी अपने साथ रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के जवानों को लिए प्रवेश करता है और यात्रियों से वसूली करने लगता है. उनके साथ मारपीट भी करता है. रोहित ने पूरी घटना का वीडियो बना लिया. जब आरपीएफ और टीटी को पता चलता है कि किसी ने वीडियो बनाया है तो वे रोहित से वीडियो डिलीट करने को कहते हैं. राहुल ने यह कहते हुए मना कर दिया कि मैं तुम लोगों को एक्सपोज़ करूंगा.

इसके बाद आरपीएफ के लोग राहुल को मारने लगते हैं. धमकी देते हैं कि छेड़खानी के आरोप में अंदर कर देंगे. राहुल गिड़गिड़ाने लगता है, छोड़ देने की बात कहता है, राहुल से थूक तक चटवाया गया. ट्रेन में सवार अन्य लोगों ने बचाने का प्रयास भी किया मगर झांसी के आगे मऊंरानीपुर में ट्रेन से राहुल को फेक देते हैं. राहुल मर जाता है. इस घटना का पता नहीं चलता अगर एक वकील कुलदीप शर्मा अगले स्टेशन पर उतरकर जीआरपी में सूचना नहीं देते. लेकिन जीआरपी वाले केस लेने से मना कर देते हैं.

इसके बाद कुलदीप शर्मा तब के रेल मंत्री सुरेश प्रभु को ट्वीट भी करते हैं. सुरेश प्रभु के ट्वीट से महाबो थाने में मामला दर्ज होता है. एक आवाज़ जो सिस्टम में ग़लत होने के ख़िलाफ़ उठी थी, ख़ामोश कर दी जाती है. घर पर इंजीनियर और गर्भवती ज्योति पति का इंतज़ार कर रही होती है. पहुंचती है लाश. 


राहुल के पिता संजय सिंह बिहार के कैमूर ज़िले में ज़िलास्तर के भाजपा नेता थे. जिनकी 2007 में हत्या हो गई थी. राहुल की हत्या की ख़बर मिलते ही मोहनिया में उनके घर पर बड़े बड़े नेताओं का आना शुरू होता है. हम यह आपको इसलिए बता रहे हैं कि संपर्क होने या राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण होने पर भी यह सिस्टम आपका साथ देगा, आप दावा नहीं कर सकते हैं. राहुल के घर पर मातमपुरसी के लिए जदयु के एमएलसी अवधेश नारायण सिंह, भाजपा विधायक निरंजन राम, मधेपुरा सांसद पप्पू यादव, सासाराम से भाजपा सांसद छेदी पासवान, आस-पास के ज़िलों के कई नेताओं का राहुल के घर पर आना जाना होता है.

इसके बाद भी आज तक इस घटना में एक भी गिरफ्तारी नहीं हुई है. 1 दिसंबर को माननीय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की बेंच ने आदेश दिया कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार, रेलवे और सीबीआई से दस हफ्ते के भीतर रिपोर्ट जमा करें और बतायें कि क्या क्या हुआ है. वकील राजीव दत्ता ने रेलवे यात्रियों की सुरक्षा के संदर्भ में इस मामले का ज़िक्र किया तो अदालत ने संवेदनशीलता दिखाते हुए आदेश कर दिया. यह अच्छी बात है लेकिन क्या हर मामले का इंसाफ सुप्रीम कोर्ट में ही मिलेगा, फिर रेलवे पुलिस और यूपी पुलिस किस लिए हैं. ज्योति अब अपने दूधमुंहे बच्चे को लेकर मंत्री मंत्री दिल्ली पटना घूमते रहती है कुछ जांच हो जाए, कुछ न्याय मिल जाए. इस दरबदर के अनुभव में उसे टीवी पर तीन साल से चल रहे हिन्दू मुस्लिम डिबेट से कुछ लाभ नहीं हुआ. बीजेपी के नेताओं के घर आने और आश्वासन से भी कुछ लाभ नहीं हुआ.

ऐसा नहीं है कि इस मीडिया ने इस ख़बर को नहीं छापा. टीवी ने नहीं दिखाया. सबने दिखाया और छापा मगर कुछ नहीं हुआ. राहुल के दोस्तों ने फ्रेंड्स ऑफ राहुल बना लिया. राहुल का बड़ा भाई प्रिंस सिंह भी ज्योति को लेकर मंत्रियों और मीडिया से मिलने लगा. फोन पर हुई बातचीत में जब मैंने उसे किस संदर्भ में कहा कि तुम्हें ऐसा करना चाहिए तो जवाब आया कि सर मैं छोटा सा बच्चा हूं. मेरी उम्र 28 साल है. हम इतना सब नहीं जानते हैं. बस भैया को मारने वाला पकड़ा नहीं गया. पत्नी ज्योति टाटा कंसलटेंसी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. ज्योति भी डेढ़ महीने के बेटे को लेकर दिल्ली आई थी. सच कहता हूं, मेरी इनसे मिलने की हिम्मत नहीं हुई. फ्रैंड्स ऑफ राहुल ने अगस्त में हत्या के बाद धरना प्रदर्शन किया, कैंडल मार्च किया, रेल चक्का जाम किया मगर इन्हें इंसाफ नहीं मिला है. दोस्तों का दावा है कि ये सब मिलाकर 50 प्रदर्शन किए हैं मगर इंसाफ नहीं मिला. इसलिए आप यह नहीं कह सकते कि इनके दोस्तों ने या ज्योति ने कोशिश नहीं की. पचास प्रदर्शन. इतने में तो प्रधानमंत्री को मोहनिया पहुंच जाना चाहिए था. पर ख़ैर 27 अगस्त को मोहनिया में कैंडल मार्च, 30 अगस्त को बनारस, 2 सितंबर को रोहतास, 6 सितंबर को सहरसा, 10 सितंबर को दिल्ली जंतर मंतर, 18 सितंबर को पटना, 12 अक्टूबर को झांसी, 22 अक्तूबर को वाराणसी, 6 नवंबर को बक्सर में रेल चक्का जाम, 9 नवंबर को भभुआ रोड स्टेशन पर रेल चक्का जाम, हाईवे जाम, सितंबर में आरा में कैंडल मार्च किया. कुछ शहरों में कई बार धरना प्रदर्शन और कैंडल मार्च किया गया है.

तो आपने देखा कि मीडिया में भी छपा, धरना प्रदर्शन भी किया, नेता घर पर भी आए और मंत्रियों और सांसदों ने जांच और गिरफ्तारी को लेकर पत्र भी लिखे हैं. केंद्रीय मंत्री राम कृपाल यादव ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है, सांसद छेदी पासवान ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखा है. ज्योति, प्रिंस और राहुल के दोस्तों का कहना है कि करीब 20 मंत्रियों के यहां मुलाकात के लिए गए. दो-दो घंटे इंतज़ार किया, मिले भी मगर एक ग्लास पानी और आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला. मैं चाहता हूं कि आप बहस से देश को मत समझिए, सिस्टम से समझिए, क्या इस सिस्टम में किसी राहुल के कोई गुंज़ाइश है. क्या उसे पेशेवर तरीके से इंसाफ मिल सकता है. 

  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से दो बार मुलाकात की.
  • रेल मंत्री पीयूष गोयल से 16 अक्बूतर को मुलाकात की.
  • गृहमंत्री राजनाथ सिंह से तीन बार मुलाकात की.
  • विदेश राज्य मंत्री वी के सिंह से एक बार मुलाकात की.
  • संचार मंत्री मनोज सिन्हा से दो तीन बार बार मुलाकात की.
  • स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे से एक बार मुलाकात की.
  • मंत्री बनने के पहले सांसद आर के सिन्हा से एक बार मुलाकात की.
  • केदीय मंत्री रामकृपाल यादव से दो बार मुलाकात की.
  • मानव संसाधन राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा से दो बार मुलाकात की.
  • केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से एक बार मुलाकात की है.
  • कृषि मंत्री राधामोहन सिंह से एक बार मुलाकात की है.
  • सांसद छेटी पासवान से कई बार मुलाकात की है.
  • भाजपा सांसद मनोज तिवारी से दो बार मुलाकात हुई.
  • बक्सर के कांग्रेस नेता मुन्ना तिवारी से एक बार मिले हैं.
  • नीतीश कुमार से मुलाकात का प्रयास किया मगर वक्त नहीं मिला.
इतनी लंबी लिस्ट इसलिए आपके सामने पढ़ी ताकि आप समझ सकें कि सिस्टम किसका है. भाजपा नेता के बेटे की हत्या होती है, उसके लिए इंसाफ़ मांगने की लड़ाई कितनी लंबी और मुश्किल है जबकि हर जगह भाजपा की ही सरकार है. तो आप क्या समझे, सरकार अपनी होने से जल्दी इंसाफ नहीं मिल जाता है. इसलिए सरकार नहीं सिस्टम की बात कीजिए, क्योंकि सिस्टम संविधान से नहीं चलेगा, सबके लिए बराबरी से नहीं चलेगा तो आप भाजपा नेता के रिश्तेदार होकर भी सुरक्षित नहीं हैं. 

ज्योति सिंह की क्या ही उम्र होगी, डेढ़ महीने के बच्चे को लेकर दरबदर भटकर रही इस नौजवान महिला को सिस्टम ने क्या अनुभव दिया है. यह सवाल पूछ दूंगा तो टीवी पर आने वाले बकवास प्रवक्ताओं की बोलती बंद हो जाएगी. इन बकवास प्रवक्ताओं से पीछा छुड़ा लीजिए वरना दस साल बाद आप मुझे बहुत याद करेंगे कि किसी ने समय रहते बताया था. भाजपा नेता का परिवार होने से राहुल की पत्नी ज्योति को इतना ही लाभ हुआ कि उसकी मुलाकात मुख्यमंत्री से लेकर कई मंत्रियों से हो गई, मगर कोई गिरफ्तार नहीं हुआ. उस वक्त चंबल एक्सप्रेस की बोगी नंबर एस टू में कौन टीटी गया था, आरपीएफ के कौन जवान गए थे, क्यों गिरफ्तार नहीं हुए, क्या पूछताछ नहीं हुई, हमारे पास आरपीएफ का पक्ष नहीं है. यह जनसुनवाई है. पहले लोग बोलेंगे फिर सिस्टम बोलेगा तो हम दिखा देंगे. यहां से वहां तक भटकना इतना आसान नहीं होता है. वक्त लगता है, जीवन की पूंजी लग जाती है, पैसा लगता है. आप ज्योति के अनुभवों से खुद को जोड़ कर देखिए फिर प्राइम टाइम बदल कर किसी और चैनल पर हिन्दू मुस्लिम बहस देखने जा सकते हैं.

राहुल का परिवार ठीक-ठाक है तो पैसा झेल गया मगर कब तक झेलेगा. बात पैसे की भी होती है, लेकिन सोचिए इस लड़के के दोस्तों को, पत्नी को, उसके भाई को हमारे मुल्क का अंधेरा कितना गहरा लगा होगा. इन्होंने फोन पर बातचीत में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है यहां नहीं कर सकता मगर उन शब्दों में एक आम आदमी के टूटन की आवाज़ सुनाई देती है. इस परिवार के करीबी और मुहंबोले मामा हैं राजें सिंह. इतने करीबी की राहुल की शादी के कार्ड पर निमंत्रक की जगह उनका भी नाम छपा है. आरएसएस के बड़े लोकप्रिय कार्यकर्ता हैं. बड़ी पैठ है, इस वक्त बिहार भाजपा में महामंत्री भी हैं. राजें सिंह ने भी कई लोगों से बात की, कई लोगों के पास इन्हें लेकर गए मगर वो भी अपने जैसे कार्यकर्ताओं की मेहनत से सींची गई सरकार से इंसाफ नहीं दिला सके.

राहुल इन्हें मामा कहता था, मामा अपनी ममियाउत बहु यानी भांजे की पत्नी ज्योति से कैसे नज़र मिलाता होगा. बिहार विधान सभा चुनाव के समय मैं ख़ुद राजें सिंह का चुनाव कवर करने गया था. राजेंद सिंह दिनारा से लड़ रहे थे. उनके प्रचार के लिए झारखंड से अनगिनत विधायक मंत्री आए थे, कहा जा रहा था कि भाजपा की सरकार बनी तो राजेंद सिंह मुख्यमंत्री तक हो सकते हैं. एक से एक नेताओं को राजें सिंह के लिए प्रचार करते देखा था. लगता था कि सारी भाजपा दिनारा में ही है. हमने ये तस्वीर आपको इसलिए दिखाई कि पता चले कि राजनीति सिर्फ चुनाव जीतना जानती है, वह अपने लिए चुनाव जीतती है. आपके लिए नहीं वरना इस देश में लोग झूठे मुकदमे के लिए दर दर नहीं भटक रहे होते. कोई इंसाफ के लिए सारे सबूत लेकर भटक नहीं रहा होता. राजें सिंह चुनाव हार गए, मगर बच्चों ने यही बताया कि मामा ने अपनी जानिब बहुत मेहनत की, हर वक्त साथ दिया मगर हम क्या करें, हमें तो इंसाफ नहीं मिला, कोई अरेस्ट नहीं हुआ.

एक इंजीनियर ट्रेन में लोगों से की जा रही अवैध वसूली का वीडिया बनाता है, शायद उसका भरोसा इस वजह से भी रहा होगा कि बीजेपी के कई लोगों तक इस वीडियो को पहुंचा सकता है. मगर मारा जाता है. राहुल अपने पेज पर प्रधानमंत्री की तस्वीरें शेयर करता था, उज्जवला योजना की तस्वीरें शेयर करता था, डिजिटल इंडिया की तस्वीरें शेयर करता था. क्या किसी को इंसाफ तभी मिलेगा जब वह कई मंत्रियों के यहां भटकेगा, टीवी वालों से मिलेगा, सुप्रीम कोर्ट जाएगा. सिस्टम ने आपको निहत्था कर दिया है, आपको पता नहीं चल रहा है, सिस्टम के नहीं होने से ही नेता वोटर को डराता है कि मैं नहीं रहूंगा तो वो आ जाएंगे, वो आ जाएंगे तो फिर से वही सब होगा. आखिर हम ऐसा सिस्टम क्यों नहीं बना पाए कि लोग किसी को थाना मुकदमा में पैरवी के लिए अपना सांसद या अपना मुख्यमंत्री न चुनें. ज्योति ने रेल पर चलना बंद कर दिया है. रोहित और प्रिंस ने जब बताया कि कार से पटना से दिल्ली आए हैं तो यकीन नहीं हुआ.

राहुल एक ईमानदार इंजीनियर और नागरिक था. सिस्टम ने उसके साथ बेईमानी कर दी, आपने यह सवाल कबसे नहीं किया है कि सिस्टम में आम आदमी को बिना किसी भेदभाव के न्याय मिल रहा है या नहीं. राहुल की ज़िंदगी अब नहीं लौट सकेगी, ज्योति का भरोसा क्या हम लौटा सकते हैं, क्या हम उसे फिर से उस रेल में बिठा सकते हैं, जिससे उसके ईमानदार पति को उठाकर फेंक दिया गया. सिस्टम को बचा लीजिए और हो सके तो इस टीवी को जिसका काम सांप्रदायिकता फैलाना रह गया है.

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