हिंदी दिवस 2017: अंग्रेजी की तालीम लेकिन हिंदी को पहुंचाया बुलंदी पर

हिंदी दिवस के मौके पर कवि और आलोचक डॉ. ओम निश्चल बता रहे हैं हिंदी के उन लेखकों के बारे में जिन्होंने अंग्रेजी में पढ़ाई की थी

हिंदी दिवस 2017: अंग्रेजी की तालीम लेकिन हिंदी को पहुंचाया बुलंदी पर

खास बातें

  • हिंदी के लेखक जिन्होंने अंग्रेजी में पढ़ाई की
  • मोहन राकेश ने किया इंग्लिश में एम.ए.
  • अशोक वाजपेयी ने भी पढ़ाई की है इंग्लिश में
नई दिल्ली:

हिंदी की रोजी रोटी से जुड़े लोगों का तो दायित्व बनता ही है कि वे हिंदी भाषा के प्रयोग और संवर्धन का बीड़ा उठाएं लेकिन सबसे ज्यादा चिंता इसी बात की है कि हिंदी से जुड़े लोग ही प्राय: हिंदी की टांग खींचने में लगे रहते हैं. हिंदी साहित्य के इतिहास पर नजर डालें तो अनेक लोकप्रिय और दिग्गज लेखकों में ऐसे अनेक लेखक मिलेंगे जिन्होंने अंग्रेजी में पढाई की, अंग्रेजी की नौकरी की; किन्तु लिखने के लिए कलम उठाई तो उन्हें जन जन में बोली व समझी जाने वाली हिंदी ही याद आई. ऐसे कुछ लेखकों में जाने माने कवि बच्चन, दिग्गज आलोचक रामविलास शर्मा, जाने माने कथाकार मोहन राकेश, विश्वप्रसिद्ध हिंदी कवि कुंवर नारायण, कवि आलोचक अशोक वाजपेयी, कथाकार राजी सेठ, सुपरिचित कवि अरुण कमल एवं जानी मानी कवयित्री अनामिका शामिल हैं. हिंदी दिवस के मौके पर आइये जानते हैं इनके बारे में.

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हरिवंश राय बच्चन, कवि
हिंदी में हालावाद के प्रवर्तक कहे जाने वाले हरिवंश राय बच्चन उत्तर प्रदेश में 27 नवंबर, 1907 (निधन, 18 जनवरी 2003) को प्रतापगढ़ जनपद के गांव बाबूपट्टी में जन्मे तथा बचपन में बच्चन नाम से पुकारे जाने के साथ साथ वे समूचे हिंदी साहित्य के बच्चन बन गए. बच्चन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की. उन्होंने कुछ समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढाया. फिर बाद में नेहरू जी की पहल पर विदेश मंत्रालय भारत सरकार में हिंदी सलाहकार पद पर रह कर विदेश मंत्रालय में हिंदी के प्रयोग और संवर्धन का कार्य किया. पढ़ाई करते हुए ही उनकी काव्यकृति ‘मधुशाला’ कवि सम्मेलनों के जरिए व्यापक लोकप्रियता हासिल कर चुकी थी तथा विदेश में भी लोग उनसे ‘मधुशाला’ सुनाने का आग्रह करते थे तथा उसके संगीत में खो जाते थे. बच्चन ने उत्तर छायावादी काव्य को अपनी सर्जना से मालामाल किया तथा सबसे उम्दा आत्मकथा की चार खंडों की सीरीज लिख कर हिंदी में आत्मकथा की सुदृढ नींव डाली. ‘मधुशाला’ ने हिंदी के प्रचार में परोक्ष रूप से बड़ा योगदान किया है. वे साहित्य अकादेमी एवं बिडला फाउंडेशन के सरस्वती सम्मान सहित अनेक पुरस्कारों से नवाजे गए तथा ‘महुआ के नीचे मोती झरे, महुआ के’ जैसी लोकधुनों की लीक पर गीत रच कर हिंदी संसार के लाड़ले कवियों में शुमार किए जाते रहे. हिंदी फिल्मों के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन उनके सुपुत्र हैं जिन्होंने ‘मधुशाला’ को पब्लिक प्लेटफार्म पर गाकर अमर कर दिया है.
 

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रामविलास शर्मा, आलोचक
उन्नाव उत्तर प्रदेश में 10 अक्तूबर, 1912 को जन्मे (निधन, 30 मई 2000) रामविलास शर्मा का नाम हिंदी के दिग्गज आलोचकों में लिया जाता है जिन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एमए पीएचडी की उपाधि हासिल की और 'बलवंत राजपूत कालेज', आगरा में अंग्रेज़ी विभाग में अध्यापन किया. अंग्रेजी के कुशल अध्यापक होते हुए भी उन्होंने प्रेमचंद पर अपनी किताब से लेखन की शुरुआत की तथा लगभग सौ कृतियां लिखकर हिंदी को समृद्ध किया. हिंदी के उन्नायकों में प्रेमचंद के साथ भारतेन्दु, निराला और रामचंद्र शुक्ल पर उन्होंने मानक पुस्तकें लिखीं और निराला पर तीन खंडों में निराला की साहित्य साधना लिखकर निराला को आधुनिक हिंदी कविता में प्रतिष्ठित किया. वे अज्ञेय द्वारा संपादित तारसप्तक के कवि भी थे पर हिंदी भाषा व साहित्य की विशद व्याख्या के लिए गद्य व आलोचना की ओर मुड़े तो पीछे मुड़ कर नहीं देखा. मार्क्सवादी चिंतकों में एक रामविलास जी को हिंदी के लगभग सभी उल्लेखनीय सम्मान मिले पर उन्होंने शाल पुष्प और ताम्रपत्र इत्यादि को छोड़कर कोई राशि अपने लिए स्वीकार नहीं की. उनकी इस स्थापना पर खासा विवाद भी हुआ कि आर्य भारत के मूल निवासी थे. भाषा और समाज, भारत की भाषा समस्या व भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी के साथ इतिहास विचारधारा संस्कृति व दर्शन पर पुस्तकें लिख कर उन्होंने अपनी व्यापक व बहुवस्तुस्पर्शी दृष्टि का परिचय लेखन में दिया. अपने अवदान के लिए वे भारत भारती, साहित्य अकादेमी, व्यास सम्मान इत्यादि पुरस्कारों से सम्मानित किए गए.
 
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मोहन राकेश, कथाकार
हिंदी नाटकों की दुनिया को समृद्ध करने वाले मोहन राकेश 8 जनवरी,1925 (निधन, 3 जनवरी, 1972 )को अमृतसर में जन्मे तथा पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए की डिग्री अर्जित की. मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेंद्र यादव की बृहत्त्रयी के एक महत्वपूर्ण लेखक मोहन राकेश ने नई कहानी को एक नया मोड़ दिया. सारिका के संपादक होकर कथा साहित्य को नए तेवर और नए कथ्य से संवारने में उन्होंने एक मार्गदर्शक और सर्जक होने की भूमिका निभाई. ‘अंधेरे बंद कमरे’ सहित कई उपन्यास लिखने वाले मोहन राकेश ने ‘आधे अधूरे’, ‘आषाढ का एक दिन’ व ‘लहरों के राजहंस’ लिख कर नाटक में एक जबर्दस्त हस्तक्षेप किया. उनके कई नाटक सैकड़ों बार खेले गए. भारतेन्दु हरिश्चंद्र एवं प्रसाद के नाटकों के बाद मोहन राकेश ने नाटक को एक बार फिर अलग चेहरा दिया. उनकी कहानियों के ट्रीटमेंट में चेखव की कहानियों की खुशूब दीखती है तो सारिका के यशस्वी संपादक के रुप में उन्होंने एक बडी लकीर खींची. जीवन जितना कम उन्हें मिला, उससे कहीं ज्यादा उन्होंने हिंदी भाषा व समाज को प्रतिदान किया है.
 
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कुंवर नारायण, कवि
उत्तरप्रदेश के फैजाबाद जिले में 19 सितंबर, 1927 को जन्मे कुंवर नारायण ने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया तथा कुछ दिनों अपने पारिवारिक व्यवसाय से जुड़े. पर भीतर की अंत:प्रेरणा से उन्होंने लिखने की शुरुआत की तो हिंदी को अपनी अभिव्यक्ति का संसाधन बनाया. ‘चक्रव्यूह’ से अपनी कविता का शुभारंभ करने वाले कुंवर नारायण का काव्य हिंदी में उत्कृष्टता का मानक माना जाता है. भारत के विश्वप्रसिद्ध कवियों की सूची बनाई जाए तो वे अज्ञेय के बाद हिंदी कविता में सबसे चर्चित कवि होंगे. परिवेश: हम तुम, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनो, हाशिये का गवाह जैसे कविता संग्रहों के साथ आत्मजयी, वाजश्रवा के बहाने व कुमारजीव जैसे प्रबंध काव्यों ने उनकी ख्याति में चार चांद लगाया. उन्होंने कहानियां भी लिखीं तथा फिल्मों पर विवेकी टिप्पणियां भी जो हिंदी में सिनेमा समीक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल की तरह हैं. विदेशी कविताओं के अनुवाद की पुस्तक न सीमाएं न दूरियां अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है तथा सिनेमा समीक्षा पर उनकी पुस्तक लेखक का सिनेमा की भी खासी चर्चा है. विदेशी साहित्य के अनवरत अध्येता कुंवर नारायण की काव्यकृतियां विदेशी भाषाओं में सर्वाधिक अनूदित हुई हैं व अनेक विश्वविद्यालयों में उनकी कविताएं पाठ्यक्रमों में शामिल हैं. भारत भारती, भारतीय ज्ञानपीठ एवं साहित्य अकादेमी सहित अनेक सम्मानों से विभूषित कुंवर नारायण इन दिनों बीमार चल रहे हैं पर हिंदी उनके अवदान को विस्मृत नहीं कर सकतीं.

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राजी सेठ, कथाकार
1935 में नौशेरा छावनी (अविभाजित पाकिस्तान) में जन्मी और एमए अंग्रेजी की उपाधि अर्जित करने वाली हिंदी की सुपरिचित कथाकार उपन्यासकार राजी सेठ ने हिंदी कथा साहित्य को दर्शन और संवेदना की एक अनूठी गंध से सींचा है. दर्जनों कहानी संग्रहों और कई उपन्यासों की रचयिता राजी सेठ ने भाषा के स्तर पर हिंदी की किस्सागोई को इस तरह साधा और बुना है कि भाषा की चूढ़िया कसी नज़र आती हैं. ‘तत्सम’ और ‘निष्कवच’ जैसे क्लासिक उपन्यास अपने कथ्य व शिल्प में अनूठे हैं. रिल्के के पत्रों व आक्तेवियो पाज की कविताओं का अनुवाद कर उन्होंने रिल्के व पॉज को हिंदी की दुनिया से परिचित कराया तथा कई यूरोपीय लेखकों के अलावा भारतीय भाषाओं के रचनाकारों को हिंदी में अनूदित किया. उनकी कहानियों की भाषा उनके समकालीनों से अलग है. उनकी कई कहानियों के अनुवाद भारतीय व विदेशी भाषाओं में हुए हैं तथा वे हिंदी की उन एकान्त साधिकाओं में हैं जिन्होंने अंग्रेजी को तालीम का माध्यम जरूर चुना पर जब लिखने की बारी आई तो हिंदी को ही चुना. कई पुरस्कारों से सम्मानित राजी सेठ के योगदान को हिंदी में विस्मृत नही किया जा सकता.
 
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अशोक वाजपेयी, कवि
दुर्ग मध्यप्रदेश में 16 जनवरी, 1941 में जन्मे अशोक वाजपेयी ने स्टेफेन्स् कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए अंग्रेजी की उपाधि पाई तथा कुछ दिनों अध्यापन के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा में चुन लिए जाने के बावजूद उन्होंने बजिद जो भी लिखा, हिंदी में लिखा. बेहतरीन अंग्रेजी जानने के बावजूद हिंदी में लिखने में उन्हें कभी आत्महीनता नहीं महसूस हुई बल्कि उनके कहे को हिंदी में महत्व के साथ अंगीकार किया गया. वे जितनी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलते हैं उतनी ही धाराप्रवाह हिंदी. ‘शहर अब भी संभावना है’ से अपने कवि जीवन का शुभारंभ करने वाले वाजपेयी ने मध्यप्रदेश में भारतभवन जैसे सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना कर न केवल हिंदी की खड़ी बोली के लेखन को केंद्रीयता दी बल्कि कला संगीत व साहित्य संस्कृति को भारत के सांस्कृतिक मानचित्र पर एक गौरव की तरह उकेरा. लगभग एक दर्जन काव्यकृतियों के रचयिता अशोक वाजपेयी ने हिंदी आलोचना व कला समीक्षा को भी खूबसूरती से समृद्ध किया है, कई नायाब कृतियां इस क्षेत्र में उन्होंने दी हैं तथा अपनी स्पष्ट मुखरता से वे धार्मिक संकीर्णतओं के विरुद्ध लोहा लेने वाले लेखकों में शुमार किए जाते हैं. रज़ा फाउंडेशन के प्रबंधन्यासी के रूप में सतत कला संस्कृति साहित्य संगीत पर कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं पर हिंदी के हितचिंतकों में उनका नाम अग्रणी है. कुछ कुछ अज्ञेय की राह पर चलने वाले और पूर्वग्रह, बहुवचन, समास  के संपादक रहे अशोक वाजपेयी हिंदी का सुरुचिसंपन्न भाषिक स्थापत्य रचने में मशगूल हैं. साहित्य अकादेमी सहित अनेक सम्मानों से विभूषित अशोक वाजपेयी ने हिंदी की दुनिया को अनुभव के नए क्षितिजों से जोड़ा है.

अरुण कमल, कवि
हिंदी के अनन्य कवि अरुण कमल ने भी अंग्रेजी की पढाई की है. वे पटना विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक रहे हैं तथा हिंदी में कविताएं लिखते हैं. 15 फरवरी, 1954 में बिहार के रोहतास जिले में जन्मे अरुण कमल के अब तक सबूत, नए इलाके में, पुतली में संसार, मैं वो शंख महाशंख –कविता संग्रह आ चुके हैं तथा कविता समय व गोलमेज दो निबंध संग्रह भी. वे साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित कवियों में हैं. हिंदी की बारीक संवेदना के कवियों में वे अग्रगण्य स्थान रखते हैं तथा हिंदी को आगे बढाने में वे एक अहम भूमिका निभाने वाले कवियों में हैं.
 
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अनामिका, कवयित्री
हिंदी के समकालीन बड़े लेखकों के बीच अपनी कविता और किस्सागोई से हिंदी को एक अलग चेहरा और भाव भंगिमा प्रदान करने वाली अनामिका ने अंग्रेजी साहित्य में एमए , पीएचडी और डीलिट की उपाधि हासिल की है तथा इस वक्त हिंदी में जानी मानी लेखिकाओं में एक हैं. 17 अगस्त, 1963 में मुजफ्फरपुर में जन्मी अनामिका दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कालेज में अंग्रेजी की प्राध्यापिका हैं तथा हिंदी में जीवन व समाज की सूक्ष्म से सूक्ष्म गतिविधियों को उकेरने वाली कवयित्रियों में एक हैं. एक खास ढर्रे में चले आते स्त्री विमर्श को उन्होंने पौरुषेय शक्तियों के सम्मुख न खड़ा कर उसे पुरुष और स्त्री के बीच समरसता और लेवलप्लेइंग के भावबोध के साथ स्थापित किया है. गलत पते की चिट्ठी, बीजाक्षर, अनुष्टुप, समय के शहर में, खुरदुरी हथेलियां, दूब धान जैसे कविता संग्रहों व अवांतरकथा, पर कौन सुनेगा, दस द्वारे का पिंजरा, तिनका तिनके पास जैसे उपन्यासों की लेखिका अनामिका की रचनाओं में जीवन की धड़कन है. वहां एक खास तरह की बोल बतकही व वाचिक हिंदी का अनूठा सौंदर्य है तथा स्त्रियों का ऐसा वैविध्यपूर्ण समवाय है जिससे अनामिका की स्त्री जीवन व समाज की प्रवृत्तियों पर पकड़ नजर आती है. हिंदी में अपने सुघर और संवेदी वक्तव्यों के लिए जानी जाने वाली अनामिका अंग्रेजी के छात्रों के लिए भले एक अध्यापिका भर हों पर हिंदी की जमीन को उर्वर बनाने वाली कुछ चुनिंदा कवियित्रियों में एक हैं.

हिंदी दिवस पर तमाम कर्मकांडों व अनुष्ठानों के बीच जब राजभाषा हिंदी को याद किया जा रहा है तो हिंदी की धरा को उर्वर बनाने वाले इन लेखकों के योगदान को भी मददेनजर रखा जाना चाहिए. इन्हें याद करते हुए हम भूल न जाएं कि अंग्रेजी पढे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि ज्ञानेन्द्रपति कहते हैं कि हिंदी की गाय को दुहने वाले ज्यादा है, खिलाने वाले कम.

(डॉ. ओम निश्चल हिंदी के सुधी कवि, गीतकार एवं आलोचक हैं तथा राजभाषा प्रबंधन से जुडे अधिकारी हैं.)

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