न्याय के पक्ष में खड़े होने से डर कैसा? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम 

बिहार के भागलपुर जिले में महादलित टोले में रहने वाले गायत्री राम, उनकी पत्नी मीना देवी, 10 साल का बेटा छोटू को कुल्हाड़ी से काट कर मार दिया गया. 14 साल की बेटी बिंदी को भी नंगा कर दिया गया और हमला हुआ. बिंदी पटना मेडिकल कालेज में भर्ती है.

न्याय के पक्ष में खड़े होने से डर कैसा? रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम 

हमने सिस्टम के सितम में राहुल सिंह की कहानी दिखाई थी कि कैसे उनकी हत्या के एक साल बाद भी कोई गिरफ्तारी नहीं होती है जबकि राहुल की पत्नी ज्योति और राहुल के भाई और उनके दोस्तों ने हर नेता मंत्री का दरवाज़ा खटखटाया. राहुल सिंह की हत्या के मामले में यूपी के महोबा में रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के आरोपी सात जवान गिफ्तार हो गए हैं. प्राइम टाइम में ख़बर चलने के बाद सात आरोपी जवानों के खिलाफ गैर ज़मानती वारंट निकला था, जब ये लोग ज़मानत के लिए गए तो अर्जी खारिज हो गई. इस मामले में आरोपी टीटी अभी तक फरार है. उम्मीद है पुलिस पेशेवर तरीके से जांच करेगी और जल्दी इस मामले में रोहित की पत्नी ज्योति को इंसाफ दिलाएगी.

अब आप यह सोचिए कि उस दिन किसी बड़े नेता के फालतू बयान पर प्राइम टाइम कर देता और उनके झूठ को सही गलत साबित करने के लिए दो बकवास प्रवक्ता ले आता तो क्या राहुल सिंह के मामले में इतनी भी कार्रवाई होती. एक साल से आरपीएफ के जवाब गिरफ्तार क्यों नहीं हो रहे थे. कौन इस देश की मां है कौन इस देश का बाप है आखिर हम कहां तक जाएंगे. जो असल में माई बाप है उस जनता की कहानी का स्पेस कहां बचा है. सिस्टम के सितम की चौथी कड़ी आप देखने जा रहे हैं. 

तस्वीर इतनी विभत्स है कि हम इसका सारा हिस्सा नहीं दिखा सकते हैं. झंडापुर गांव, बिहपुर प्रखंड, नौगछिया, भागलपुर बिहार. तीन परिवार को कुल्हाड़ी से काट कर मार दिया गया. महादलित टोले में रहने वाले गायत्री राम, उनकी पत्नी मीना देवी, 10 साल का बेटा छोटू को कुल्हाड़ी से काट कर मार दिया गया. 14 साल की बेटी बिंदी को भी नंगा कर दिया गया और हमला हुआ. बिंदी पटना मेडिकल कालेज में भर्ती है. अपराधियों ने गायत्री राम को कुल्हाड़ी से काटा ही नहीं बल्कि उनकी दोनों आंखें निकाल लीं. बाप-बेटे के गुप्तांगों को काट दिया गया. मीना देवी के शरीर पर जगह-जगह कुल्हाड़ी के निशान हैं. यह घटना 25 नवंबर की है.

कैलिफोर्निया के किसी कॉलेज के बाहर गोली चल जाती है तो आज कल हमारे अंग्रेज़ी चैनल सीधा लाइव करने लगते हैं. इस घटना की डिटेल सुनते हुए आपको कितना बुरा लग रहा होगा, मैं समझ सकता हूं पर बताना ज़रूरी भी तो है कि हमारे समाज में क्रूरता की कितनी परतें हैं. 

बिहार के अखबारों में इस घटना की रिपोर्टिंग देख रहा था. यही लिखा है कि घटना के कारणों का पता नहीं चल सका है. टेलिग्राफ, दि वायर हिन्दी, वायर अंग्रेज़ी, प्रभात ख़बर के अलावा कई अखबारों में यह ख़बर छपी है. पुलिस अधिकारी एके त्रिवेदी ने जांच शुरू हो चुकी है तो कारणों को लेकर पुलिस के बयान का इंतज़ार किया जा सकता है. दि वायर में जावेद इक़बाल ने लिखा है कि भागलपुर में एक हफ्ते के भीतर दो विभत्स हत्याकांड होता है. दोनों को लेकर राजनीतिक प्रतिक्रिया में अंतर बिहार में जाति की राजनीति के बारे में बहुत कुछ कहता है. 

बिहार के बाहर मुख्यधारा की मीडिया में एक दलित परिवार को काट दिए जाने की घटना की नाम मात्र भी रिपोर्टिंग नहीं होती है. पड़ोसी के लिए भी असंभव रहा होगा कि उन्हें हमले की जानकारी न हुई हो, फिर भी कोई कुछ बात नहीं कर रहा है. जावेद इक़बाल ने जिससे भी बात की सबने यही कि वो वहां अब नहीं रहते हैं. झंडापुर से दो किलोमीटर दूर 17 साल की एक लड़की की बलात्कार के बाद हत्या कर दी जाती है. सवर्ण जाति के दो लड़के गिरफ्तार किए जा चुके हैं. आप इस घटना का डिटेल पढ़कर वाकई परेशान हो जाएंगे. जावेद इक़बाल ने लिखा है जब गायत्री राम के बड़े बेटे संतोष ने बताया कि पैर पकड़ा, हाथ जोड़ा, सब पड़ोसन को पूछा, कोई कुछ नहीं बोला. मैं दो दिनों से कुछ खाया नहीं हूं. सबसे पूछा कि क्या हुआ मगर किसी ने कुछ नहीं कहा. 

कनिक राम जिस बस्ती में रहते हैं वहां 70 दलित घर हैं, मगर उस समाज से भी कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है कि आकर गवाही दे या कुछ कहे. क्या दूसरे समाज के लोग भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. क्या जाति के साथ सब खड़े रहना चाहते हैं या फिर उन्हें पुलिस पर भरोसा नहीं है. कनिक राम के तीन बेटे हैं और एक बेटी. दो बेटे बच गए हैं. एक बेटा बाहर मज़दूरी करता है और एक घटना की रात तालाब पर सोया था. क्या हत्यारों को अपने सामाजिक, राजनीतिक या धार्मिक आधार पर इतना भरोसा होता है कि वे सिस्टम को मैनेज कर लेंगे. एक बार जांच पांच साल दस साल तक टलती चली जाए फिर तो सब मैनेज हो ही जाता है. 

इस घर में रहने वाला कनिक राम उर्फ गायत्री ने आखिर किसका क्या बिगाड़ लिया होगा. इंदिरा आवास योजना के तहत 20,000 मिले थे, आधा अधूरा घर बना है. खिड़की नहीं है, दरवाज़ा तक नहीं है. ये तो अपनी ही ग़रीबी से मर रहे होंगे इन्हें मारने वालों ने आखिर इतनी क्रूरता क्यों की. हत्या के पांच दिनों बात तक फर्श पर ख़ून बिखरा रहा. खून से सना तकिया कोने में बिखरा रहा. चूल्हे पर खाना पका भी नहीं था, पक रहा था जब हत्यारों ने हमला किया. 

अलग अलग तर्क दिए जा रहे हैं. मछली माफिया का काम बताया जाता है. कनिक राम तालाब ठेके पर लेकर काम करता था. हाल ही में उसने कई लोगों के साथ मिलकर किसानों से एक तालाब यानी जलकर खरीदा था. कोई कहता है छेड़छाड़ या प्रेम प्रसंग भी कारण है. मगर ध्यान भटकाने या किसी और मसले में लपेट देने की कोशिश हो रही है. कोई सांप्रदायिक रंग दे रहा है तो कोई जातिवादी. इसी तरह के अनेक बातें करते करते सारा मामला ही गोल हो जाता है. दलितों के पास इतनी ही सत्ता है कि राजनीतिक दल उन्हें वोट बैंक समझ लेते हैं वरना कोई उनसे मिलने तक नहीं जाता. 

अस्पताल में बेटी को देखने नीतीश सरकार के मंत्री संतोष निराला गए थे. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मिलने गए थे. भाजपा नेता और पूर्व सांसद पूर्व सांसद शाहनवाज़ हुसैन गए थे. मधेपुरा के सांसद पप्पू यादव गए थे. बसपा के बिहार प्रभारी (चंदरा) अहरिवाल, जदयू नेता उदय नारायण चौधरी गए थे. राजद दलित सेल के अध्यक्ष संजय रजक गए थे. सीपीएम के मनोहर मंडल, अनवर आलम भी गए थे. 21 लोगों ने मिलकर एक एक्शन कमिटी बनाई है जिनसे पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजवस्वी से मुलकात की है. यह सब मैं इसलिए बता रहा हूं ताकि याद रहें कि घटना के वक्त तो सब मिलने जाते हैं मगर आने-जाने से घटना की जांच और सज़ा पर क्या असर पड़ता है, हम आगे जाकर देख सकेंगे.

हिन्दू कालेज के प्रोफेसर और दलित अधिकार कार्यकर्ता रतन लाल ने भी अस्पताल में जाकर बिंदू को देखा था. इस घटना को लेकर सामाजिक स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया है जिन्हें आम तौर पर हम लोग भी महत्व नहीं देते हैं, आप लोग भी नहीं देते मगर यही लोग ऐसे वक्त में आगे आते हैं. बेआवाज़ के लिए आवाज़ उठाते हैं. 6 दिसंबर को भागलपुर में एसडीएम के ऑफिस के बाहर हजार लोगों ने प्रदर्शन भी किया. मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया गया है. 50 लाख की मदद राशि मांगी गई है. एक सदस्य को नौकरी देने की मांग उठी है. 27 वनंबर को भागलपुर के स्टेशन चौक पर अंबेडकर मूर्ति के सामने प्रतिरोध मार्च हुआ था. 3 दिसंबर को बिहपुर ब्लॉक के रेलवे स्टेशन पर एक दिन की भूख हड़ताल हुई. लोगों ने लोकतंत्र में अपनी आवाज़ उठाने का फर्ज़ तो निभा दिया, लेकिन क्या इस भीड़ में कनिक राम के ही समाज के लोग थे या उस समाज के लोग भी थे जिनके बारे में कहा जा रहा है कि हत्यारों का संबंध उनसे हो सकता है. पटना में भी रविदास समाज ने कैंडल मार्च किया होगा. 

उम्मीद है पुलिस जिस भी कहानी को सामने लाए, उसके पक्ष में ठोस सबूत भी लाएगी. पुलिस ने कनिक राम के दोनों बेटे को सुरक्षा तो दी है. न धर्म को लेकर न जाति को लेकर हमारे समाज के भीतर से नफरत ख़त्म हो रही है, राजनीति इसे समझती है इसीलिए इस आग में घी डालती रहती है. एक तरफ दलित बस्ती में तीन लोगों की बर्बर हत्या होती है मगर उनके मोहल्ले के 70 घरों में से कोई बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है, गांव के सवर्ण उस दलित के पक्ष में नहीं आ पाते हैं, लेकिन तमिलनाडु में एक दलित की हत्या हुई तो उसके विरोध में हत्या कराने वाले मां बाप की बेटी ही खड़ी हो गई. कौशल्या ने अपने माता पिता को माफ नहीं किया. हमारी सहयोगी उमा सुधीर ने इस मामले को रिपोर्ट किया है. 

एस कौशल्या ने वी शंकर से प्यार किया और शादी की. कौशल्या भी इंजीनियर हैं और 23 साल का वी शंकर भी इंजीनियर थे. जुलाई 2015 में दोनों ने अपनी पसंद से शादी कर ली. वी शंकर दलित जाति से थे. शादी के आठ महीने बाद कौशल्या के पिता ने भाड़े के गुंडों से वी शंकर को मरवा दिया. कौशल्या के मां बाप पैसे वाले हैं, राजनीतिक रूप से शक्तिशाली थेवर समाज के हैं, उन्होंने दलित लड़के से शादी का पुरज़ोर विरोध किया. त्रिपुर की इस घटना पर देश भर में चर्चा हुई थी. घटना के बाद कौशल्या ने अपने मां बाप का घर छोड़ दिया. कोयंबटूर में पति के मां बाप के साथ ही रहने लगी. घटना के बाद कौशल्या को सरकारी नौकरी दी गई थी. पुलिस सुरक्षा भी दी गई. इस घटना का सीसीटीवी फुटेज नहीं होता तो हत्यारे शायद छूट भी जाते.

पिछले साल मार्च में कौशल्या और शंकर तिरुपुर के एक मार्केट में गए थे. हत्यारों ने शंकर और कौशल्या पर हमला कर दिया. शंकर को तब तक मारा जब तक मर नहीं गया. कौशल्या भी बुरी तरह घायल हो गई. उसे कई हफ्ते लग गए ठीक होने में. ठीक होने के बाद वह इतनी टूट गई कि खुदकुशी का प्रयास कर बैठी. बच गई मगर उसके बाद लड़ने का जो इरादा किया वह अपने आप में एक मिसाल है. कौशल्या की दाद देनी पड़ेगी. एक साल से कुछ ज्यादा वक्त तो लगा मगर फैसला आ गया. तिरूपुर ज़िला अदालत ने इस मामले में छह लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है. तीन लोग बरी हुए हैं जिनमें कौशल्या की मां भी है मगर कौशल्या अपनी मां के खिलाफ अपील करने वाली है. कौशल्या के इस साहस के बारे में सबको बताया जाना चाहिए. शंकर की मौत हमारे समाज का चेहरा है तो कौशल्या का अपने पिता को आजीवन जेल भिजवा देना भी एक मिसाल है. कौशल्या ने कहा है कि 12 दिसंबर का दिन ऑनर किलिंग मामलों में ऐतिहासिक दिन है. 

जाति की हिंसा के खिलाफ न हम सख्त हो सके न धर्म की हिंसा के खिलाफ. मगर हिंसा को लेकर राजनीति करने से कोई नहीं चूकता है. कर्नाटक में एक ऐसी ही घटना सामने आई है. उत्तर कर्नाटक के हनोवर में एक युवक परेश मैस्ता की मौत को लेकर राजनीति हो रही है. राजनीति अलग है लेकिन क्या पुलिस पेशेवर रूप से जांच से साबित करेगी कि हत्या कैसे हुई और दोषी कौन था. नेता तो राजनीति करेंगे ही उन्हें स्कूल अस्पताल ये सब तो राजनीति के लिए दिखता नहीं है मगर पुलिस अपना काम कैसे कर रही है. परेश मैस्ता की मौत किस वजह से हुई है पुलिस की तरफ से अभी साफ नहीं है. उसकी लाश हनोवर में एक तालाब में मिली वो भी 2 दिनों के बाद. बीजेपी के नेता कहते हैं कि परेश मैस्ता उनका कार्यकर्ता था और उसकी मौत के पीछे किसी मुस्लिम संगठन का हाथ.

परेश मैस्ता के पिता कहते हैं कि उनका बेटा किसी संगठन से नहीं जुड़ा था. परेश के पिता कमलाकर ने कन्नड में कहा है कि हमारा किसी पार्टी या संगठन से कोई लेना-देना नहीं है. ये सही है कि हम हिन्दू हैं लेकिन परेश किसी भी संगठन से नहीं जुड़ा था. बीजेपी की सांसद ने परेश को आरएसएस और बीजेपी का कार्यकर्ता बताया था. भाजपा सांसद का कहना है कि पुलिस मामले को दबा रही है. परेश को कोई दलित बताता है तो कोई कुछ. तथ्य है कि परेश की मौत हुई है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि परेश न तो दलित है न ओबीसी.

हमारे सहयोगी निहाल किदवई ने इस घटना पर दो रिपोर्ट फाइल की है. कांग्रेस सरकार के गृहमंत्री बीजेपी पर आरोप लगाते हैं औ बीजेपी के नेता कांग्रेस सरकार पर. आरोप लगता रहेगा मगर जांच के आधार पर अंजाम तक पहुंचने में सालों निकल जाएंगे. राजनीति अपना काम कर चुकी होगी. परेश 6 दिसंबर से गायब हो गया. उस दिन सिरसी में हिंसा की खबरें आ रही थीं. पुलिस और प्रदर्शनकारियों तो कभी दो गुटों के बीच टकराव की खबरें थीं. कई गाड़ियों को जला दिया गया था. आईजी पुलिस हेमंत निंबालकर की जीप जला दी गई. पुलिस ने लाठी चार्ज की थी. परेश का शव मिलने के बाद माहौल और तनावपूर्ण हो गया.

निहाल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 2 गुटों में झगड़ा हुआ. परेश का शव मिलते ही सोशल मीडिया पर अफवाहों का दौर शुरू हो गया. उसकी तस्वीर पर दूसरी तस्वीर लगाकर बताया गया कि मुंह पर रसायन डाला गया है और उसके शरीर पर बने धार्मिक टैटू मिटा दिए गए हैं ताकि भावनाओं को भड़काया जा सके. पुलिस का कहना है यह सब गलत है. परेश के चेहरे पर किसी रसायन के निशान नहीं हैं. कोई भी टैटू मिटाया नहीं गया है. परेश के चेहरे में धारदार हथियार के निशान भी नहीं हैं. 

पुलिस ने सोशल मीडिया पर भ्रामक पोस्ट डाले वाले एक टीचर को गिरफ्तार किया है. बेंगलुरु में बीजेपी का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला है. उनकी मांग है कि परेश की मौत एनआईए या सीबीआई से हो. बीजेपी सांसद शोभा कार्नालजे कहती हैं कि उन्हें स्थानीय पुलिस पर भरोसा नहीं है. कर्नाटक का तटीय इलाका है हनोवर. ढाई दशकों से यह इलाका सांप्रदायिक तनाव में जी रहा है. यहां के लोगों से भी पूछना चाहिए कि आखिर उन्हें इस सांप्रदायिक राजनीति से मिलता क्या, नफरत और हत्या के अलावा. निहाल ने एक गैर सरकारी आंकड़ों के हवाले से बताया है कि यहां 300 छोटे बड़े धार्मिक झगड़े हो चुके हैं दंगे भी शामिल है इसमें. 


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