2जी का झूठ घोटाला कितना बड़ा...

इसे भ्रष्टाचार का मामला बताकर इसका नामकरण घोटाला किया गया था. इस झूठे आरोप में भ्रष्टाचार का आकार ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ा बनाया गया था यानी एक लाख 76 हजार करोड़. उसके पहले देश की जनता ने सिर्फ चार छह हजार करोड़ के ही आरोप सुने थे.

2जी का झूठ घोटाला कितना बड़ा...

कनिमोई और ए राजा दोनों को अदालत ने बरी कर दिया (फाइल फोटो)

पांच साल तक 2जी घोटाले का प्रचार करके राजनीति होती रही. तो क्या उस झूठ के उजागर होने के बाद टूजी के झूठ घोटाले पर ही हमें वैसा ही असर देखने को मिलेगा? यह सवाल भी खड़ा होगा कि झूठे आरोप लगाने वालों ने इस झूठे आरोप से क्या क्या कमाया. यह सवाल भी कि झूठ के जरिए हासिल वह बेजा कमाई क्या उनसे वसूली जाएगी? जिन पर ये झूठे आरोप लगे थे उन्हें उस झूठ के कारण कितना नुकसान हुआ? क्या उस बेजा नुकसान की भरपाई संभव है? और आखिरी सवाल यह कि भविष्य में झूठे आरोपों से बचाव की क्या व्यवस्था बन सकती है?

टूजी मामले के नामकरण का सवाल
इसे भ्रष्टाचार का मामला बताकर इसका नामकरण घोटाला किया गया था. इस झूठे आरोप में भ्रष्टाचार का आकार ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ा बनाया गया था यानी एक लाख 76 हजार करोड़. उसके पहले देश की जनता ने सिर्फ चार छह हजार करोड़ के ही आरोप सुने थे. आमतौर पर उन घोटालों के आरोप भी सिर्फ बड़े कारोबारियों पर ही लगते थे. लेकिन पिछली यूपीए सरकार को तबाह करने के लिए एक लाख 76 हजार करोड़ के घपले घोटाले के आरोप बनाए गए थे. और वाकई आरोपबाजों को तबकी सरकार की छवि को घोर भ्रष्टाचारी बनाने में कामयाबी भी मिल गई थी. मीडिया में जिस तरह से इन आरोपों को जांच पड़ताल के पहले ही सबसे बड़ा भ्रष्टाचार साबित करके दिखाया गया था उसका असर हुए बग़ैर रह भी नहीं सकता था. आखिर 2014 के चुनाव में यूपीए सरकार को जनता ने बेदखल कर दिया था. यह साबित करने के लिए किसी बहस की जरूरत नहीं कि पिछले चुनाव में यूपीए सरकार की हार के कारणों में इस 2जी आवंटन में गड़बड़ी के झूठे आरोपों की कितनी बड़ी भूमिका थी. मामला यह कहते शुरू किया गया था कि सरकार की नीतियों से सरकार के खजाने को एक लाख 76 करोड़ का नुकसान हुआ और जल्दी ही इसे घूसखोरी और महाघोटाले के नाम से प्रचारित कर दिया गया था.

तबका टूजी घोटाला अब क्या बन गया
अदालत से सब के सब आरोपी बरी हो गए. घूस के लेन देन का कोई सबूत पैदा नहीं किया जा सका. यह आरोप भी नहीं लग सकता कि सरकार ने खुद को बचाने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल कर लिया. क्योंकि जांच पड़ताल का काम होते समय सरकार उस राजनीतिक दल की बन गई थी जिसने विपक्ष में रहते हुए आरोप लगाए थे. इसमें क्या कोई शक हो सकता है कि मौजूदा सरकार ने एड़ी से चोटी का दम लगाया होगा कि किसी तरह यह घोटाला साबित हो जाए. उसे यह भी आभास होगा कि यह मामला अगर घोटाला साबित न हुआ तो उसे लेने के देने पड़ जाएंगे. और वही लेने के देने पड़ गए. मौजूदा सरकार पर यह गैरअदालती मुकदमा शुरू हो गया है कि उसने झूठे आरोप लगाकर पिछली सरकार को हटाकर सत्ता हथियाई थी. यानी एक तरह से अब मौजूदा सरकार पर झूठे आरोप का महाघोटाला करने का गैरअदालती मुकदमा शुरू हो गया है.

VIDEO: 2G घोटाले में राजा, कनिमोई समेत सभी आरोपी बरी

आरोपों का आधार पहले से ही खिसका हुआ था
सब जानते हैं कि 2जी का मामला तबके कॉम्‍पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल विनोद राय के जरिए बनवाया गया था. उन्होंने ही एक लाख करोड़ की भारी भरकम रकम की अविश्वसनीय फिगर निकालकार रिपोर्ट में दर्ज की थी. बाद में यह 2जी आबंटन रद्द करके दुबारा आबंटन करके भी देख लिया गया था कि सरकार के खजाने में इतनी बड़ी रकम आ ही नहीं सकती थी. सो आरोपों का आधार पहले ही खिसक गया था. लेकिन राजनीतिक नफे नुकसान के चक्कर में मामला चलता रहा और उम्मीद लगाई जाती रही कि जब तक ये आरोप अदालत में चलते रहेंगे तब तक पुरानी सरकार की गर्दन पकड़े रहने में आसानी बनी रहेगी. लेकिन मौजूदा सरकार के चार साल होने को आ रहे थे. अदालत में इसे और लंबा टिकाए रखने की सारी हद पार हो चुकी थी. सो अदालती फैसला करना ही पड़ा और उसमें सब बरी हो गए.

किस किस ने भुगता झूठे आरोपों का नुकसान
सबसे ज्यादा ए राजा ने, उससे थोड़ा कम कनिमोई ने, उससे थोड़ार कम पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने. राजा और कनिमोई तो जेल में बंद तक रहीं. ये सब जनप्रतिनिधि थे. सो उस जनता ने भी दुख और जलालत उठाई जिसने उन्हें चुनकर सरकार में भेजा था. खैर शर्मिंदगी से गुस्साई जनता ने अपनी जलालत कम करने के लिए बाद में अपने प्रिय नेताओं से बदला ले लिया. जनता ने यूपीए को बेदखल कर दिया. वैसे एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि आरोप लगाने वालों ने जनता के जरिए यूपीए को बेदखल करवा दिया. लेकिन आज देखें तो जनता को ही सबसे ज्यादा नुकसान भुगतना पड़ा. कम से यह नुकसान तो जनता को हुआ ही कि वह अपराधबोध में आ गई है.

आरोप लगाने वालों की हालत
आरोप लगाने वाले लोग अभी भी घाटे में नहीं हैं. वे ज्यादातर लोग सत्ता में हैं. इन आरोपों का अधिकतम लाभ वे पिछले चुनाव में ले चुके हैं. हालांकि  इस मामले में सभी आरोपियों के बरी होने के बाद भी झूठे आरोप लगाने वाले लोग चुप नहीं बैठेंगे. वे जरूर चाहेंगे कि एक के बाद एक ऊंची अदालतों में यह मामला किसी न किसी तरह चलता रहे. इस बात के कहने का आधार यह है कि मौजूदा सरकार की तरफ से उसके वित्तमंत्री ने कहा है कि कांग्रेस इस मामले में सभी आरोपियों के बरी होने को बेकसूर होने का प्रमाणपत्र न माने. हालांकि वे खुद एक बड़े वकील हैं और वे ही कह रहे हों कि अदालत से बरी होना प्रमाणपत्र नहीं है तो यह बात इस बात का संकेत है कि सरकार मामले को ऊंची अदालत में चलवाती रहेगी. इस तरह से वह लंबे समय तक अपने ऊपर लगने वाले इस आरोप से बचती रहेगी कि उसने झूठ बोलने का महाघोटाला किया है. अदालत से आरोपियों के बरी होने के बाद भी वह यह कहती रहेगी कि मामला ऊंची अदालत में विचाराधीन है. यह बात कानूनी मामले में तो कारगर हो सकती है लेकिन जनता के बीच झूठ का जो संदेश चला गया है, उसे मिटाने की कोई जुगाड़ आसान नहीं है. इधर 2019 का चुनाव सिर पर हैं.

2जी का झूठ क्या कोई सबक बनेगा
लगता है बिल्कुल नहीं बन पाएगा. राजनीति तो टिकी ही प्रचार प्रसार पर है. सरकार कोई भी हो, वह तो अपनी झूठी उपलब्धियों को भी प्रचार के रथ पर सवार कर देती है. कितनी बार आश्वासनों के झूठ का पर्दाफाश होते जनता ने अपनी आखों से देखा है. लेकिन वायदों पर यकीन करने के अलावा उसके पास दूसरा चारा क्या है. हालांकि गौर से देखें तो झूठ और सच के बीच फर्क के लिए उसे अजमाकर देखना उतना जरूरी भी नहीं है. एक विकल्प यह भी है कि उसका निपटारा अक्ल लगाकर, सोच समझकर, विचार विमर्श के जरिए, परामर्श के जरिए हाल के हाल भी किया जा सकता है. मसलन 2जी मामले में जितनी अविश्वसनीय आकार की रकम के घोटाले का आरोप लगाया जा रहा था उसके झूठ को क्या पहली नज़र में ही साफ साफ नहीं देखा जा सकता था. जो जानकार और अनुभवी लोग सच्चाई देखकर बता रहे थे उनपर भ्रष्टाचारियों के साझेदार का आरोप लगाकर चुप कराया जा रहा था. यानी जब हम चैतरफा झूठ से घिरे हों तो 2जी के झूठ के पर्दाफाश का आखिरी ऐलान होने में भी अड़चन ही है.

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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