जामिया नगर में रविवार की हिंसा कैसे भड़क गई?

अगर जामिया के छात्रों ने रविवार को सभी से मदद नहीं मांगी होती तो किसी को पता भी नहीं चलता कि उन पर ऐसी बर्बरता हो रही है. खुद वाइस चांसलर बर्बरता शब्द का इस्तमाल करती हैं.

लोगों को तय करना है कि आईटी सेल के तर्कों के हिसाब से सोचना है या अपने हिसाब से सोचना है. अभी कहा जा रहा है कि जामिया के छात्रों को बहकाया गया है, छात्रों का काम पढ़ना है, प्रदर्शन करना नहीं है. क्या आप वाकई यह मानते हैं कि छात्र सिर्फ बहकावे और उकसावे पर प्रदर्शन कर रहे हैं? पढ़ाई को लेकर जब दिल्ली यूनिवर्सिटी के एडहॉक शिक्षक प्रदर्शन करते हैं तब तो कोई नहीं बोलता. देश भर के करोड़ों नौजवान सरकारी नौकरी की परीक्षा और यूनिवर्सिटी की परीक्षा को लेकर भी आंदोलन करते हैं, लाठियां खाते हैं. कोई ध्यान नहीं देता है. पिछले ही दिनों गुजरात में 11 लाख छात्रों ने एक परीक्षा दी. परीक्षा मे धांधली की खबरों को लेकर गांधीनगर में बड़ा प्रदर्शन किया जिन्हें लाठी से दौड़ाया गया. आज परीक्षा रद्द हो गई. क्या साथ व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और आईटी सेल ने उनका साथ दिया? यूपी के ही 69000 शिक्षक भर्ती को लेकर कई दिनों से संघर्ष हो रहा है, किसी ने परवाह की है? तो फिर अकेले जामिया और जेएनयू के छात्रों को यह लेक्चर क्यों? व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी ने अपनी ताकत और प्रसार के दम पर यही किया है. उसका हर कहा हम सही मान लेते हैं. जामिया मिल्लिया में रविवार की पुलिस की बर्बरता के पहले शुक्रवार को भी लाठी चार्ज हुआ. कैंपस में घुसकर आंसू गैस के गोले छोड़े गए. रविवार को अगर बाहरी लोग भड़का रहे थे तो फिर कैंपस के भीतर आंसू गैस के गोले दागते हुए पुलिस को यह ख्याल नहीं आया कि छात्रों को नुकसान हो सकता है. वह भीतर जाती है और लाइब्रेरी तक घेरती है. कल रात खुद डीसीपी ने माना था कि छात्रों के साथ कोई इश्यू नहीं है. आप इन वीडियो को देखिए. ध्यान रखिए कि ये वीडियो भी पूरी कहानी नहीं कहते हैं.

अगर जामिया के छात्रों ने रविवार को सभी से मदद नहीं मांगी होती तो किसी को पता भी नहीं चलता कि उन पर ऐसी बर्बरता हो रही है. खुद वाइस चांसलर बर्बरता शब्द का इस्तमाल करती हैं. तीस हज़ारी कोर्ट के भीतर जब पुलिस की डीसीपी मोनिका भारद्वाज और जवानों पर हमला हुआ था तब कई सारे वीडियो सामने आए. ज़ाहिर है दिल्ली पुलिस ने ही मीडिया को दिया होगा, सूत्रों के हवाले से. अभी तक पुलिस की तरफ से ऐसे वीडियो सामने नहीं आए हैं जिससे पता चले कि रविवार को जामिया के छात्र हिंसा कर रहे हैं.

क्या किसी को भी शर्म नहीं आई कि यूनिवर्सिटी के छात्रों को अपराधियों की तरह हाथ उठाकर बाहर निकाला गया? अगर यही तस्वीर किसी भाजपा शासित राज्य की होती तो आईटी सेल और गोदी मीडिया इस तस्वीर का स्वागत करता? क्या एक लोकतांत्रिक देश में ये होना चाहिए? क्या ये देखकर आपको अच्छा लग रहा है? दिल्ली पुलिस ने इस पर कोई सफाई दी है? या आराम से इस सवाल को किनारे लगा दिया गया? क्या किसी खास वजह से जामिया को टारगेट किया गया? वजह बताने की ज़रूरत नहीं है. जानने की ज़रूरत है कि जामिया भी दिल्ली यूनिवर्सिटी की तरह है जहां सभी मज़हबों और इलाकों के छात्र पढ़ते हैं. 50 प्रतिशत के करीब छात्र छात्राएं यहां गैर मुस्लिम हैं. 13 साल से यहां छात्र संघ नहीं है. जब छात्र संघ था तो पांच गैर मुस्लिम अध्यक्ष रहे हैं.

अब हम आते हैं एक बड़ी खबर पर जिस पर पुलिस से लेकर वाइस चांसलर तक की नज़र नहीं पड़ी. वाइस चांसलर नज़मा अख्तर को क्या यह पता नहीं था कि उनके छात्र का, सफदरजंग अस्पताल में इलाज चल रहा है? अस्पताल का कहना है कि गोली लगी है, लेकिन पुलिस के सूत्र कहते हैं कि पता करना होगा, रबर बुलेट हो सकता है. लेकिन परिमल को मेडिकल सुप्रीटेंडेंट ने कहा है कि गोली लगी है. ज़ाहिर है इतना तो पता होगा ही. फिर भी तीन लोग गोली से घायल हैं. रबर बुलेट हो या बुलेट से. तीनों सुरक्षित हैं. एनडीटीवी के परिमल कुमार और सुकीर्ति ने न सिर्फ इन्हें खोज निकाला बल्कि बात भी की.

क्या वाइस चांसलर नजमा अख़्तर को अपने इस छात्र के पास नहीं होना था? पुलिस और वीसी ने यह बात क्यों छिपाई कि जामिया के छात्र को बुलेट लगी है? एक छात्र है एजाज़ और एक तमीन है. एजाज़ जामिया का छात्र है. उसकी छाती में गोली लगी है मगर खतरे से बाहर है. तमीन को पांव में गोली लगी है जिसे अब छुट्टी दे दी गई है. वह छात्र नहीं है. पुलिस ने कहा कि कोई फायरिंग नहीं हुई है फिर गोली कहां से आई. यह साफ नहीं कि रबर बुलेट लगी है या बुलेट लगी है या आंसू गैस के छर्रे लगे हैं. सुकीर्ति ने जिससे बात की उसने कहा है कि वह गुज़र रहा था. जामिया का छात्र नहीं है.

जब कैंपस में पुलिस थी तब नजमा अख्तर ने हिंसा रुकवाने के लिए किसे संदेश भेजे? किससे बात की? कह रही हैं कि पुलिस ने उनसे इजाज़त नहीं ली. यानी पुलिस से उनकी बात नहीं हुई होगी फिर रविवार को वीसी कैसे कह रही थीं कि पुलिस बाहरी लोगों को दौड़ाते हुए कैंपस में आ गई? आज वो पुलिस की कार्रवाई को बर्बर बता रही थीं लेकिन क्या रात में घायल छात्रों को देखने गईं? हिरासत में लिए गए छात्रों से मिलने गईं?

पुलिस के अनुसार 39 छात्रों की मेडिकल लीगल सर्टिफिकेट बना है यानी इतने घायल हुए होंगे जिनका इलाज हुआ है. हमारे सहयोगी शरद शर्मा ने बताया कि होली फैमिली में 45 छात्र आए थे जिन्हें प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई. अभी तीन छात्र एडमिट हैं. ओखला इलाके के अल शिफा अस्पताल में 70 से अधिक छात्र घायल अवस्था में लाए गए. प्राथमिक उपचार के बाद ज़्यादातर को छोड़ दिया. शरद ने एक छात्र से बात की.

पुलिस के मुताबिक 20 मिनट में 4 बसें जला दी गईं. पुलिस ने अफवाह बताया है कि जवान बस जला रहे थे. पुलिस के अनुसार 30 पुलिसवालों को चोट आई है. दो एसएचओ को फ्रैक्चर हुआ है. मामले की जांच हो रही है.

जामिया के जिस छात्र को गोली लगी थी उसके वीडियो घूम रहे थे. फिर भी पुलिस ने कंफर्म करने की तकलीफ नहीं उठाई. जामिया की वीसी ने पता करने का प्रयास नहीं किया. गनीमत है कि जामिया के छात्रों ने खुद पहल की और रविवार शाम को त्राहीमाम संदेश भेजना शुरू कर दिया.

अगर हिंसा से पहले इंटरनेट और फोन बंद होता तो आप कल्पना नहीं कर सकते कि रविवार की शाम वहां क्या हुआ होता. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ और शिक्षकों ने आईटीओ चलने का आह्वान किया. दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र और शिक्षक भी पहुंच गए. इसी का दबाव था कि रात में हिरासत में लिए गए छात्रों को छोड़ा गया. हर्षमंदर और वकील चौधरी अली ज़िया कबीर थाने गए. जामिया के शिक्षक भी पहुंच गए. काफी बातचीत के बाद इन्हें छात्रों से मिलने दिया गया. करीब 28 छात्रों से मिले. छात्रों ने इन्हें बताया कि वह लाइब्रेरी में पढ़ाई कर रहा था. उन्हें मारा गया है. आप सीसीटीवी कैमरा देख लें तो दिखेगा कि कैसे छात्रों को मारा गया जब वे पढ़ रहे थे. छात्रों ने बताया कि बत्तियां बुझा कर शौचालय तक में लड़कियों का पीछा किया गया. उनके साथ कथित रूप से छेड़खानी हुई जिसकी जांच होनी चाहिए.

दिन के वक्त का जामिया ऐसा दिखा. मानव ऋंखला बनाकर खड़े हो गए. बैनर भी था. कुछ छात्रों ने मुंह पर हाथ रख लिया. वैसे आज भी नारे लगे. छात्रों ने पूरा ख्याल रखा कि हिंसा न हो. न ही पुलिस ने आज ऐसा कुछ किया. दस छात्रों ने इतनी ठंड में शर्ट उतार कर प्रोटेस्ट करना शुरू कर दिया. इनमें से एक शिव भगवान भी थे. इनका कहना था कि वे इस तरह से सत्याग्रह कर रहे हैं. मामला अदालत पहुंचा तो चीफ जस्टिस ने कहा कि पहले हिंसा रुके फिर सुनवाई होगी.

जामिया की अभी खबर पूरी तरह से आई भी नहीं थी कि अलीगढ़ से तस्वीरें आने लगीं. जामिया की घटना की खबर पहुंचते ही अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में जामिया के समर्थन में छात्र बाहर निकल कर नारे लगाने लगे. डीजीपी ओ पी सिंह ने कहा कि एएमयू के वाइस चांसलर ने ही लिखित रूप से कैंपस में आने की इजाज़त दी थी कि अगर ज़रूरत पड़े तो कैंपस के अंदर उचित बल का इस्तमाल कर सकते हैं. क्या भीतर के हालात इतने बिगड़ गए थे? एएमयू के सर सैय्यद गेट के एक तरफ से छात्र रोक रहे थे दूसरी तरफ से पुलिस धक्का दे रही थी. इंटरनेट बंद होने से पहले यह वीडियो आ गया वरना आप नहीं देख पाते कि वीसी की इजाज़त से पुलिस ऐसे भीतर आती है. कुछ तस्वीरें ऐसी भी आईं जिसमें पुलिस का जवान गर्ल्स कालेज का गेट फांद रहा है. छात्रों का आरोप है कि पुलिस ने हास्टल में घुसकर मारा है. लाठी चार्ज हुआ. आंसू गैस के गोले छोड़े गए. हॉस्टल खाली करने के लिए छात्रों को दो दिनों का समय दिया गया है. टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार एक छात्र का दाहिना हाथ आंसू गैस के गोले के कारण फट गया है. अब उसका हाथ वापस नहीं हो सकेगा क्योंकि स्थिति बहुत खराब है. छात्र केमिस्ट्री का रिसर्च स्कॉलर है. वह बात करने की स्थिति में नहीं है. ज़िला अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि 20 छात्रों को लाया गया था. जिनमें से ज्यादातर को छोड़ दिया गया है. पुलिस को भी चोटें आईं हैं. कई छात्रों के खिलाफ एफआईआर हुई है. एएमयू 5 जनवरी तक के लिए बंद है. आप इस वीडियो को देखकर क्या कहेंगे, देख तो रहे ही होंगे कि पुलिस लाठियों से बाइक तोड़ रही है. बाद में यही टूटी हुई बाइक पुलिस की कहानियों के किरदार बन जाती है कि कोई किसी ज्ञात या अज्ञात ने दंगा किया.

किसी को अंदाज़ा नहीं था कि जामिया की खबर सुनते ही देश की पचीसों यूनिवर्सिटी में छात्र और शिक्षक मार्च करने लगेंगे. पोस्टर बैनर लेकर खड़े हो जाएंगे. जेएनयू के छात्रों की तत्परता से ही जामिया को तेज़ी से समर्थन मिलना शुरू हो गया. वो रात को ही सड़क पर आ गए. एक तरह से सोचिए क्या ये छात्र अच्छे नहीं हैं कि पढ़ाई में अव्वल आने के साथ लोकतात्रिक अधिकारों के लिए तुरंत बाहर भी आ जाते हैं क्या आपको वाकई आपके अधिकारों के लिए कोई लड़ने वाला नहीं चाहिए? आपको किसने बताया कि आपके अधिकारों की लड़ाई सिर्फ नेता लड़ेंगे और पुलिस, कब तय किया आपने ये. दिल्ली विश्वविद्लाय में भी छात्रों ने जामिया के समर्थन में आवाज़ उठाई है. मैथ्स डिपार्टमेट के पास जामिया के समर्थकों और एबीवीपी के बीच झड़पें भी हुई हैं.

लखनऊ के दारुल उलूम नदवातुल उलेमा के छात्र भी जामिया में हुई पुलिस हिंसा के समर्थन में रविवार रात को ही बाहर निकल कर प्रदर्शन करने लगे. इनके उग्र हो जाने के कारण यूनिवर्सिटी 5 जनवरी तक बंद कर दी गई है. मुंबई के टाटा इंस्टिस्टूयूट ऑफ सोशल साइंस के छात्र रातों रात ही बाहर आ गए और नारे लगाने लगे. कैंडल मार्च करने लगे. टिस्स के छात्रों ने सोमवार को क्लास का बहिष्कार किया. टिस्स मेन गेट से चेंबूर के अंबेडकर पार्क तक मार्च किया. पूरे दिन में भी टिस्स के छात्रों और शिक्षकों ने जामिया के समर्थन में प्रदर्शन किया. टिस्स के छात्रों ने सोमवार को पूरे दिन प्रदर्शन किया. मुंबई यूनिवर्सिटी में भी प्रोटेस्ट हुआ है. बनारस यूनिवर्सटी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस-बंगलुरू के संगठनों और छात्रों ने समर्थन जताया. आईआईटी मद्रास, आईआईटी बांबे, आलियाह यूनिवर्सिटी, जाधवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता यूनिवर्सिटी और प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी, हैदराबाद में भी मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के छात्र छात्राओं ने भी बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया है. पटना यूनिवर्सिटी मे भी विरोध हुआ और वहां हिंसक घटना भी हुई. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में 16 दिसंबर की सारी परीक्षाएं रद्द कर दीं, जो 10 जनवरी को होगा. एक दिन के लिए यूनिवर्सिटी बंद हो गई. आईआईएम अहमदाबाद के छात्रों ने भी जामिया और अलीगढ़ में हुई पुलिस हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन किया है. पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़, सेंट्रल यूनिवर्सिटी आफ केरल, सेंट्रल यूनिवर्सिटी आफ पांडीचेरी पुणे के सावित्री बाई फुले यूनिवर्सिटी में भी जामिया में हुई पुलिस बर्बरता के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं.

क्या आपको वाकई लगता है कि इतने सारे छात्र किसी अलगाववादी के बहकावे में आए हैं? क्या इतना आसान है प्रदर्शन करने वाले छात्रों के आंदोलन को जिहादी और अलगाववादी कह देना? वित्त मंत्री निर्मला सीतरमण का बयान सुनिए और ये बयान प्रधानमंत्री को सुनना चाहिए. पीटीआई के अनुसार वित्त मंत्री ने कहा है कि हमें उन जिहादी, माओवादी और अलगाववादियों से सावधान रहना चाहिए जो छात्रों के प्रदर्श को हाईजैक कर सकते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने छात्रों से धीरज रखने की अपील की है. क्या दोनों को निर्मला सीतारमण और राकेश सिन्हा से अपील नहीं करनी चाहिए कि ऐसी बात न करें. राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने जामिया की घटना के बाद ट्वीट किया कि यह 1947 का भारत नहीं 2019 का है. डायरेक्ट एक्शन नहीं चलेगा. उनके ट्वीट की भाषा आलोचना की नहीं सीधे-सीधे धमकी की थी. एक राज्यसभा के सांसद की यह भाषा होनी चाहिए? क्या प्रधानमंत्री राकेश सिन्हा को कुछ कह पाएंगे कि डायरेक्ट एक्शन से तुलना कर आप उस जामिया के छात्रों को मुस्लि‍म लीगी न बताएं जिसकी बुनियाद महात्मा गांधी ने रखी थी? ऑल्ट न्यूज़ ने बीजेपी सोशल मीडिया के प्रमुख अमित मालवीय के ट्वीट किए गए वीडियो की जांच की है.

यह कह कर इस वीडियो को घुमाया गया कि एएमयू के छात्र हिन्दुओं के खिलाफ नारे लगा रहे हैं. लेकिन जब ऑल्ट न्यूज़ ने उसी वीडियो की बेहतर क्वालिटी वाले क्लिप को खोजा तो पता चला कि उसमें छात्र हिन्दुत्व की कब्र खुदेगी नारे लगा रहे हैं. हिन्दुओं के खिलाफ नहीं. हिन्दुत्व का संदर्भ बीजेपी की राजनीति से है. लेकिन हिन्दू धर्म का बता कर भड़काऊ बनाने के इस प्रयास के खिलाफ दिल्ली पुलिस एक्शन ले सकेगी? वो अगर अफवाहों वाली वीडियो खोज रही है तो क्या यह वीडियो उसे दिखाई देगा?

हिंसा से छात्रों को भी बचना चाहिए. यह उनकी भी ज़िम्मेदारी है. प्रदर्शन की उग्रता इस मकाम पर पहुंचने न दें कि हिंसा की संभावना दिखने लगे और नारों की भाषा में संयम रखना ही होगा.

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यूपी के मऊ में जो प्रदर्शन हुआ है उसके उग्र होने की खबर है. यह उग्रता पूरे विरोध को सनक में बदल देगी और फिर विरोध करने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.