सरकार की नमामि गंगे मुहिम कितनी कारगर?

गंगा उन सभी को बुला रही है जिन्हें वो साल में कई बार बुलाती रहती है. वो चाहती है कि वे सारे लोग उसका हाल देखें और बताएं कि उसका पानी साफ क्यों नहीं हुआ ?

सरकार की नमामि गंगे मुहिम कितनी कारगर?

गंगा उन सभी को बुला रही है जिन्हें वो साल में कई बार बुलाती रहती है. वो चाहती है कि वे सारे लोग उसका हाल देखें और बताएं कि उसका पानी साफ क्यों नहीं हुआ ? पानी कम क्यों होता जा रहा है और गाद से भरी गंगा कब साफ होगी. अगर आपको मां गंगा ने कभी बुलाया है तो प्लीज इस वक्त बनारस जाइये, क्योंकि वहां गंगा से जुड़ी दो योजनाएं आपसे कुछ पूछना चाहती हैं. नमामि गंगे के तहत साफ पानी नहीं दिख रहा है बल्कि पानी ही नहीं दिख रहा है और जलमार्ग बनाने के बड़े एलान का हाल ये है कि गंगा की गोदी में जब बालू और मिट्टी की गाद देखेंगे तो आपको सिर्फ गिल्ली डंडा खेलने का ख्याल आएगा, जहाज़ चलाने का नहीं. तीसरा सवाल है कि बनारस में जो पानी का अलर्ट जारी हुआ है उसकी नौबत क्यों आई. इन तीन सवालों के लिए गंगा सबको खोज रही है, बल्कि फिर से बुला रही है.

रविवार को पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कहा है कि गंगा में जमे गाद को हटाए बिना जलमार्ग का विकास नहीं हो सकता है. जब तक नदी अविरल नहीं होगी वो निर्मल भी नहीं होगी. नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि बक्सर के पास काई जम गई है इसका मतलब यह हुआ कि पानी कम है और प्रदूषित है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो कहा है, हो सकता है कि केंदीय जहाज़रानी मंत्री नितिन गडकरी को सुनने में अच्छा नहीं लगे, मगर यही तो दिखाने और बताने के लिए गंगा सबको बुला रही है. हमने सोचा कि इसी बहाने हम गंगा का हाल बताते हैं.

हमने अपने सहयोगी पुष्पेंद्र को बक्सर में उस जगह पर भेजा जहां वो मालवाहक जहाज़ गंगा की गाद में फंसा हुआ है. बक्सर के पास रविंद्र नाथ टैगोर नाम का यह मालवाहक जहाज़ आलू बालू लादने वाला लगता है मगर कोलकाता से चला था, चौसा ताकि सीमेंट लादकर लाया जा सके, मगर चौसा पहुंचने से पहले ही बक्सर के पास फंस गया. यह जहाज Inland Waterways Authority of India का है. जहां पर यह जहाज़ फंसा है वहां गहराई मात्र सवा मीटर है. इसे निकालने के लिए भेजा गया दूसरा जहाज़ भी दस किलोमीटर पहले गंगा में जमी गाद में फंस गया है. सुनसान में खड़ा यह जहाज़ कब निकलेगा इसमें फंसे आठ लोगों को कुछ पता नहीं है. गंगा नदी का बाढ़ ही दोनों जहाज़ों को निकाल सकता है.

जब मध्यम श्रेणी का जहाज़ नहीं चल सकता है तब फिर गंगा में मालवाहक जहाज़ चलाने का सपना ही बेचा जा सकता है. हालत ये है कि इस गाद को लेकर बिहार सरकार ने 25 से 27 दिसंबर के बीच एक हवाई सर्वेक्षण कराया. दिसंबर से जून आ गया मगर कई कारणों से रिपोर्ट को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है. क्या केंद्र सरकार बता सकती है कि उसके पास गाद हटाने के लिए क्या नीति है और क्या तकनीक है.

हम फिर से इस तस्वीर को दिखा रहे हैं ताकि हम बता सकें कि भारत सरकार अपनी इस योजना को लेकर काफी गंभीर थी. भारत में नदियों में जलमार्ग बनाने के लिए 1986 से Inland Waterways Authority of India (IWAI) काम कर रहा है मगर 2014 के बाद इसमें तेज़ी आई है. इसके उपाध्यक्ष प्रवीर पांडे ने 'इंडियन एक्सप्रेस' को बताया था कि 2014 में भारत सरकार ने नेशनल वाटरवेज़ वन प्रोजेक्ट का एलान किया कि 5369 करोड़ की लागत से इलाहाबाद से हल्दिया के बीच गंगा नदी को नौ परिवहन के लिए तैयार किया जाना था. अब बताइये जब ये दो जहाज़ नहीं चल सकते तो क्या इस रूट में बिना गाद निकाले यह योजना कभी सफल हो सकेगी.

सरकार ने अपनी गंभीरता दिखाते हुए National Waterways Act 2016 भी पास किया. वाराणसी, साहेबगंज और बंगाल के हल्दिया में टर्मिनल बनना है. 1500 टन क्षमता वाले मालवाहक जहाज के लिए पानी की गहराई कम से तीन मीटर की होनी चाहिए. ख़ासतौर पर अक्टूबर से अप्रैल के बीच जब नदियों में पानी कम हो जाता है तब ये गहराई कई जगह मिलनी मुश्किल हो जाती है, क्योंकि नदियों में काफ़ी गाद भर चुकी है... 

5000 करोड़ से अधिक की योजना बन गई, मगर बुनियादी समस्या का हल निकालने की सुध किसी को नहीं आई. कोसी नदी पर आजीवन काम करते रहने वाले प्रो दिनेश मिश्रा ने बताया कि एक फरक्का बराज ने गंगा की बर्बादी तय कर दी और अब इलाहाबाद से पटना के बीच जहाज़ों के आवागमन के लिए 100 किमी पर बराज बनाने का प्रस्ताव है जो गंगा को और अधिक बर्बाद कर देगा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2014 में गंगा मंथन बैठक में नितिन गडकरी ने ही सुझाव हर सौ किमी पर बराज बनाया जाना चाहिए. जो गंगा को नहीं जानते हैं उन्हीं के पास ऐसा आइडिया होता है. ये एक्सपर्ट पूछ रहे हैं कि बराज बनने से गंगा की हालत फरक्का के पहले वाली गंगा की जैसी हालत है, वैसी हालत हर बराज के पास नहीं होगी, इसकी गारंटी कौन देगा.

हमारे सहयोगी अजय सिंह गंगा पर दिसंबर से ही रिपोर्ट कर रहे हैं कि नदी सूख रही है. दिसंबर के महीने में ही गंगा सिकुड़ने लगी जो आगे के महीनों में भी सिकुड़ती रही. बालू के टीले दिखने लगे. गंगा घाट छोड़ने लगी. गंगा को जानने वाले तभी समझ गए कि गर्मियों में गंगा सूख जाएगी. धारा की जगह गंगा की पेटी में फैला गाद गंगा प्रेमियों को रुला गया. लोग हैरान थे कि कभी गंगा को सर्दियों में सूखते नहीं देखा है. ऐसा क्यों हो रहा है. 

गंगा को लेकर गंभीरता की बात करेंगे तो रोने धोने से लेकर क्रोधित रूप धारण कर न जाने कितने नेता आ जाएंगे मगर जो गंगा का अध्ययन करते हैं वो जानते हैं कि स्लोगन में स्वर्ग नहीं होता है. गंगा को लेकर इतना बजट बना, इतनी बैठकें हुईं, यह कैसे हुआ कि गाद हटाने को लेकर अभी तक कोई काम शुरू नही हुआ है. ये आज की गंगा की तस्वीर है. चार साल से गंगा गंगा सुनने के बाद भी गंगा इस हालत में दिख रही है. अजय सिंह के कैमरे से आप तक गंगा की जो तस्वीर पहुंच रही है उसे देखकर आपका दिल तो दहल ही रहा होगा कि ये गंगा को क्या होता जा रहा है. साफ करने की नीतियां और नारे नतीजा क्यों नहीं दिखा पा रहे हैं. क्या जो होना चाहिए था वो न होकर कुछ और हो रहा है. हमने प्रोफेसर दिनेश मिश्र और हिमांशु ठक्कर दोनों से बात की. दोनों को पता है कि गाद कैसे हटेगी किसी को पता नहीं है. 

हिमांशु ठक्कर ने कहा कि गंगा से गाद हटाएंगे भी तो कहां ले जाएंगे. नदी के एक और जानकार कल्याण  रूद्रा ने एक अनुमान लगाया था कि गंगा में हर साल 20 से 30 करोड़ टन गाद जमा होता है. इसे हटाने के लिए एक ट्रक के पीछे आप दूसरा ट्रक खड़ा करेंगे तो धरती के कई चक्कर लग जाएंगे. 43 साल से ये गाद जमा हो रहा है, इसे निकालना असंभव है. गंगा ठोस कार्रवाई मांगती है. वो कहां हो रही है.

बनारस को पूरा भरोसा था और आज भी है कि गंगा उसके पास रहेगी ही मगर उसी बनारस को गंगा पीने का पानी नहीं दे पा रही है. हालत यह है कि 21 जून को बनारस में वाटर एडवाइज़री जारी हुआ है. इसमें लिखा है कि गंगा नदी में जलस्तर अत्यधिक कम होने के कारण रॉ वॉटर की पम्पिंग कम कर दी गई है. शहर से अपील की जाती है कि ज़रूरत के हिसाब से पीने का पानी जमा कर रखें. शहर को जानने वाले कहते हैं कि पहले कभी ऐसा नही सुना मगर जलनिगम ने साफ साफ चेतावनी दे दी है कि पानी का इस्तमाल कम करें, आने वाले दिनों में आपूर्ति कम होगी और ठप्प भी हो सकती है.

बनारस में जलकल विभाग 311 एमएलडी पानी साफ करता है जिसमें 100 एमएलडी गंगा का होता है. 211 एमएलडी नलकूप के ज़रिए होता है. गंगा में पानी नहीं होने के कारण एक पम्प बंद करना पड़ा है और दूसरा पंप भी बंद हो सकता है. हमारे सहयोगी अजय सिंह ने बताया कि भदैनी में यह वाटर पंप है जहां से पानी की सप्लाई होती है. जिसके लिए गंगा से होते हुए पंप स्टेशन की पाइप लाइन भदैनी स्टेशन पर मौजूद कुओं में लाई गई है. उस पाइप लाइन का गंगा में कम से कम 15 फीट डूबा होना ज़रूरी है. मगर इस वक्त यह पाइल महज़ एक फीट गंगा में डूबा हुआ है, जिसके कारण पंप पानी खींच नहीं पा रहा है. एक पंप बंद हो गया है और दूसरा जो चालू है वो मात्र एक फुट ऊपर है जिसके कारण जब पानी खींच रहा है तो बड़ा सा भंवर बन रहा है जो खतरे की चेतावनी है. यह बता रहा है कि गंगा में पानी की कमी के कारण पंप काम नहीं कर रहा है. यहां पांच पंप है और तीन ही चल रहे हैं. 

ये उस जगह का हाल है जहां देश के चोटी के नीति निर्माताओं की हर वक्त नज़र रहती है. बनारस में जवाहरलाल नेहरू अर्बन मिशन के तहत 201 करोड़ की लागत से 42 ओवरहेड टैंक बने हैं. लेकिन 42 में से 10 ही काम कर रहे हैं. पांच साल से ओवरहेड टैंक बनकर खड़े हैं और कई तो अभी तक चालू नहीं हुए हैं. बनारस में लोगों को जितना को पानी चाहिए उससे करीब 40 फीसदी कम मिल रहा है फिर भी बनारस के लोग किस्मत वाले हैं कि इतना पानी मिल जा रहा है. हां लोगों को पानी की गुणवत्ता को लेकर कुछ शिकायते भी हैं.

गंगा संकट में है, बनारस संकट में है. योजनाएं आसमान की तरफ देखकर बनाई जा रही हैं और ज़मीन चुपचाप खिसकते जा रही है. आखिर हम नदियों को बचा क्यों नहीं पा रहे हैं. क्या हमारा रास्ता सही नहीं है, सही रास्ता क्या है जो जानते हैं वो भी परेशान हैं. हरिद्वार की संस्था मातृसदन के संत और पर्यावरणविद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल आमरन अनशन पर बैठ गए हैं. उनका कहना है कि गंगा में हो रहा खनन और जगह जगह पर मनोरंजन के लिए हो रही रिवर राफ़्टिंग जैसी गतिविधियां गंगा के लिए अपमानजनक है और इस सबपर पाबंदी होनी चाहिए. वो गंगा पर बनाए जा रहे बांधों के भी विरोध में हैं जो उसकी अविरल धारा को रोक रहे हैं. प्रो अग्रवाल की बात ही हिमांशु ठक्कर कह रहे हैं, दिनेश मिश्र कह रहे हैं और नीतीश कुमार कह रहे हैं.

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर रह चुके स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद वो पहले भी गंगा को लेकर 38 दिन के अनशन पर बैठ चुके हैं. अगस्त 2010 में उनके अनशन के बाद केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों के ग्रुप ने भागीरथी नदी पर बन रहे लोहारी नागपाला प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था लेकिन गंगा पर बनने वाले कई और बांध हैं जो अब भी उसकी अविरलता में बाधा बन रहे हैं. प्राइम टाइम देखने के बाद सरकार ही तस्वीर खींच कर ट्वीट कर सकती है कि गंगा में कहां कहां नाले बंद हुए है, कहां कहां ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर पहले गंदा पानी साफ होता है और फिर गंगा में गिरता है. ये सब काम मंत्री जी पांच मिनट में ट्वीट कर बता सकते हैं. सीवेज से जुड़े बुनियादी ढांचे को बनाने में 2814 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं तो इसे जानना भी चाहिए और इसके नतीजे पर बात भी होनी चाहिए. अगर आप सही सवाल पूछेंगे तो सरकार अवश्य बताएगी, क्योंकि वो भी गंगा से बहुत प्यार करती है.

गंगोत्री से गंगासागर तक गंगा में क़रीब 12000 एमएलडी गंदा पानी यानी सीवेज गिरता है, लेकिन अभी तक सिर्फ़ 4000 एमएलडी सीवेज को ही ट्रीट करने की सुविधा स्थापित हो पाई है जिसमें से सिर्फ़ 1000 एमएलडी सीवेज ही अभी ट्रीट यानी साफ़ किया जा रहा है. चार साल बाद 12000 एमएलडी गंदा पानी में से सिर्फ 1000 एमएलडी गंदा पानी साफ होकर गिर रहा है. नमामी गंगे के तहत पांच साल में 20,000 करोड़ खर्च होना है. इस प्रोजेक्ट के तहत आठ राज्यों में 193 परियोजनाओं के लिए 20,601 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दी गई, लेकिन द हिंदू के जैकब कोशी की 9 मई 2018 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2018 तक इस फंड का सिर्फ़ पांचवां हिस्सा यानी 4,254 करोड़ रुपए ही खर्च हो पाये थे..बरसात से गंगा भर जाएगी, उसका संकट नहीं दिखेगा मगर बनारस वाले अपनी गंगा को दिसबंर से ही देख रहे हैं. बस उन्हें दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि वो कुछ और देख रहे हैं.


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