कितना अच्छा है कि हम सब बेखबर हैं, किसान का मरना भी कब खबर है?

कितना अच्छा है कि हम सब बेखबर हैं, किसान का मरना भी कब खबर है?

हम कैसे देखें इस तस्वीर को
कैसे न देखें
न देखना कैसे देखें
नातिन की शादी से चंद रोज़ पहले की बात है
एक नाना झूल गए पेड़ पर
नाना जो कि भारत के किसान हैं
उस भारत का कर्ज़ा था इन पर
कुल पचास हज़ार
गोद में लेकर कितना खेला होगा नातिन से
कंधे पर लेकर दूर तक दौड़े होंगे
न जाने कितनी बार
उन खेतों में
जिनकी पैमाइश मात्र तीन एकड़ है
जिनसे पैदा हुआ चार कुंतल गेहूँ है
ज़िला झाँसी थाना समथर
उम्र पैंसठ साल
हार गया जो जीवन का समर
मर गया जो लटक कर
घर गया जो खबर लिखकर
सो गया जो खबर पढ़कर
सबको नींद आती ही रही
वही जागता रहा दिन भर
खेत में खड़े पेड़ के नीचे
खड़ा हो गया खेत छोड़ कर
नाना
काश आप भी भाग जाते
किसी ललित की तरह
किसी विजय की तरह
आ जाते चुपके से शादी की रात
भींच कर बाहों में नातिन को
चुपके से रो तो लेते
उसे विदा तो कर देते चुपचाप
किसी कवि की संवेदना से बाहर
किसी सरकार की वेदना से दूर
बंद रास्तों में फंसी आपकी आत्मा
तड़पती रही होगी
मुक्त होने के लिए
वहां जाने के लिए
जहां या तो कोई कर्ज़दार जाता है
या कोई उम्रदराज़
किसान का मरना किसका मरना है
न किसान जानता है
न भारत महान जानता है
हम कैसे देखें इस तस्वीर को
कैसे न देखें
न देखना कैसे देखें
न भगवान जानता है
न जनता का भगवान जानता है

मित्रो ये खबर अभी आई है कि एक किसान मर गया है । यह खबर तो कब की आ चुकी है कि उससे पहले हम सब मर चुके हैं। यह कविता उस नातिन के लिए हैं जिसकी शादी में अब नाना नहीं आ सकेंगे। उस मां के लिए है जो अपनी बेटी की शादी की रस्मों के लिए अपने पिता की मौत का शोक भी नहीं मना सकेगी। यह कविता हम सबके लिए हैं जो इसे पढ़ने के बाद भूल जाएंगे कि किसानों का मरना भी कब खबर है। कितना अच्छा है कि हम सब बेखबर हैं।

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