बेरोज़गारी के मुद्दे का हल कब तक निकलेगा?

पिछले दो महीने से ऑटोमोबिल सेक्टर में उत्पादन और मांग में गिरावट से संबंधित कई खबरें छपी हैं. बिजनेस अखबारों की यह प्रमुख ख़बरों में से एक है.

बरोज़गारी का सवाल अजीब होता है. न चुनाव में होता है और न चुनाव के बाद होता है. सरकारी सेक्टर की नौकरियों की परीक्षाओं का हाल विकराल है. मध्यप्रेश, बिहार, यूपी से रोज़ किसी न किसी परीक्षा के नौजवानों के मेसेज आते रहते हैं. इनकी संख्या लाखों में है फिर भी सरकारों को फर्क नहीं पड़ता. किसी परीक्षा में इंतज़ार की अवधि सात महीने है तो किसी परीक्षा में 3 साल. ऐसा नहीं है कि ये धरना प्रदर्शन नहीं करते हैं, स्थानीय अखबारों में भी छपता रहता है, सरकारों को पता भी है लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं है. यह स्थिति सरकार और बेरोज़गार दोनों पर टिप्पणी है. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से राजनीति का ज्ञान लेते हैं और उसी व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी में अपनी व्यथा का पोस्ट घुमाते रहते हैं मगर उन पर कोई राजनीति नहीं होती. जो जहां है वहीं अनसुना हो जा रहा है. ये नौजवान सिर्फ अपनी परीक्षा की बात करते हैं, दूसरे की परीक्षा की बात नहीं करते हैं. बेरोज़गारी को व्यक्तिगत तौर पर देखते हैं, व्यापक तौर पर नहीं देखते, वहां तक नहीं जाना चाहते जहां इन्हें अपनी राजनीतिक मान्यताओं पर सवाल करना पड़ जाए. इसलिए इनका मुद्दा व्हाट्सऐप के इनबाक्स का मुद्दा है, मीडिया और राजनीति का मुद्दा नहीं है.

पिछले दो महीने से ऑटोमोबिल सेक्टर में उत्पादन और मांग में गिरावट से संबंधित कई खबरें छपी हैं. बिजनेस अखबारों की यह प्रमुख ख़बरों में से एक है. अगर इसी तरह मंदी एक तिमाही और रही और दिवाली के आस-पास मांग नहीं बढ़ी तो अनुमान है कि ऑटो सेक्टर से 10 लाख लोगों को नौकरी और काम गंवानी पड़ सकती है. झारखंड के लौह उद्योग में मंदी है. 26 जुलाई के प्रभात ख़बर में एक ख़बर छपी थी कि ऑटोसेक्टर में मंदी के कारण आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग की कमर टूट गई है. 700 के करीब छोटे उद्योगों में काम बंद हो गए हैं या बंद होने की स्थिति में हैं. इसमें 30000 से अधिक कामगार प्रभावित हुए हैं. यानी नौकरी चली गई है. झारखंड से चेन्नई आइये. अंबात्तूर में वॉल्व बनाने वाले जॉन पीटर टीवी के डिबेट में नहीं है. कभी महीने में 8 लाख का काम करते थे, अब 1 लाख का भी काम नहीं कर पा रहे हैं. 13 कामदारों को काम से हटा चुके हैं. बाकी बचे कामगारों का वेतन कम कर दिया है. चंद बोस की सैलरी 18 हज़ार से घट कर 12 हज़ार हो गई है. चेन्नई का ही एंड्रयू इलाका है जहां इस कारखाने में ब्रेक से जुड़े उपकरण बनते हैं. अब बंद हो गए हैं. एक तिहाई मशीनों पर काम नहीं है. कर्मचारियों की छंटनी कर पड़ी है. 35,000 करोड़ की कारें बिकने का इंतज़ार कर रही हैं. कारें नहीं बिक रही हैं तो ऑटो डीलर बंद हो गए हैं. जिन डीलरों के पास कर्ज़ का बोझ है, उन्हें सिर्फ कश्मीर पर बहस ही चिन्ता से दूर कर सकती है.

प्रधानमंत्री मोदी ने इकोनोमिक टाइम्स से कहा है कि जल्दी ही ऑटोसेक्टर अपने पांव पर खड़ा हो जाएगा. वित्त मंत्री ने ऑटो सेक्टर के प्रतिनिधियों से मुलाकात की है. भारत के ऑटो सेक्टर में इस तरह का संकट कभी नहीं आया. बड़ी बड़ी कंपनियां अपना उत्पादन समय-समय पर बंद कर रही हैं. इसका असर ठेके पर काम करने वालों पर तो पड़ता ही होगा. हमारे सहयोगी हरबंस झारखंड के गिरिडीह गए. यहां की कई फैक्ट्रियों में ताला लग गया है. सैकड़ों लोग बेरोज़गार हो गए हैं. इन लोगों ने ट्वि‍टर पर अपनी बेरोज़गारी ट्रेंड नहीं कराई है जैसे कि इन दिनों हर बात पर ट्रेंड हो जाता है.

जमशेदपुर के आदित्यपुर औद्योकि इलाके में कई फैक्ट्रियों में उत्पादन ठप्प हो चुका है. अप्रैल से लेकर अगस्त महीने में 700-800 फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं. ज़्यादातर फैक्ट्रियों में टाटा मोटर्स से संबंधित उत्पादन होता है. टाटा मोटर्स में भी ब्लॉक हो रहा है. यानी उत्पादन कम हो रहा है. इस कारण इन फैक्ट्रियों में उत्पादन ठप्प हैं. अप्रैल से लेकर अगस्त के बीच 700 से 800 छोटे और मझोले कारखाने बंद हैं. मोटर पार्ट्स से जुड़ी इन फैक्ट्रियों में काम नहीं है. 1 अगस्त के बाद 55 फैक्ट्रियां बंद हुई हैं. इसके कारण 25000 से 30000 अधिक मज़दूरों का काम चला गया है. एक जगह से 30,000 लोगों की नौकरी चली जाए, कहीं कोई चर्चा तक नहीं है. मानसून के समय वैसे मांग कम होती है लेकिन इस बार मांग ज़रूरत से ज्यादा कम है इस कारण उत्पादन रोका जा रहा है. कहीं दो दिन का ब्लाक है तो कहीं हफ्ते भर का तो कहीं पूरी तरह फैक्ट्री ठप्प है. मांग में कमी के अलावा कई कारण बताए जा रहे हैं. ज़रूरत से ज़्यादा टैक्स से लेकर 38 प्रतिशत बिजली की दर का बढ़ना. इस कारण उत्पादन लागत अधिक हो गई है. मेक इन इंडिया को इतना बड़ा झटका लग रहा है, इंडिया में चर्चा तक नहीं है. स्थानीय अखबारों में ताले लटकने की ख़बरें हैं. ठेकेदार मजदूरों पर ज्यादा असर पड़ा है. उनका काम छिन गया है. जो स्थायी कर्मी हैं उन्हें सिर्फ 15 दिन का ही काम मिला है. यानी आधे दिन के वेतन पर इन्हें अपना घर चलाना पड़ रहा है.

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पुणे से भी खबर है कि वहां की ऑटो फैक्ट्रियों में महीने में कुछ दिनों के लिए उत्पादन नहीं हो रहा है. इसे इंडस्ट्री की भाषा में ब्लॉक कहते हैं. अगर चार दिन या 15 दिन काम नहीं होगा तो उतने दिन की सैलरी नहीं मिलेगी, मजदूरी नहीं मिलेगी. यही हाल आपने चेन्नई में देखा और झारखंड में भी. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल एसोसिएशन, फाडा का कहना है कि ऑटो सेक्टर में 25 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं. 25 लाख लोग और किसी न किसी रूप में जुड़े हैं. 50 लाख लोगों से जुड़े इस सेक्टर की हालत खराब है. बताया जा रहा है कि ऑटो सेक्टर में 2 से 3 लाख लोगों की नौकरी गई है. जो ठेके पर काम करते हैं उनका तो हिसाब ही नहीं है. 217 शो रूम देश भर में बंद हुए हैं. ऑटोमोबाइल सेक्टर की एक संस्था है सियाम. सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफैक्चरर्स यानी जो ऑटो सेक्टर की कंपनियां हैं उनका संगठन है सियाम. सियाम का कहना है कि सिर्फ जून के महीने में 24 प्रतिशत गाड़ियां कम बिकी हैं. इसके पहले के महीनों में भी उत्पादन और बिक्री में गिरावाट की खबरें आ रही थीं. कारों के साथ दुपहिया वाहनों की बिक्री भी घट गई है.