दिल्ली की हिंसा पर लोकसभा में कितनी संवेदनशील चर्चा?

बीजेपी के दो सांसदों ने अपने भाषण में न्यायपालिका पर गंभीर सवाल उठाए. मीनाक्षी लेखी ने बगैर जज का नाम लिए कहा कि इनके बारे में खुफिया विभाग की रिपोर्ट है उसे सार्वजनिक कर देना चाहिए.

जिस दिल्ली दंगे में 50 से अधिक लोग मारे गए और 500 से अधिक घायल हो गए, क्या आप नहीं जानना चाहेंगे कि जब इस पर लोकसभा में चर्चा हुई तो सदन में क्या बात हुई, विपक्ष के नेताओं ने क्या तैयारी की थी और सरकार की तरफ से गृहमंत्री और बीजेपी के सांसदों ने क्या कहा. आप भी लोकसभा की वेबसाइट पर सभी के भाषणों को पूरा पढ़ सकते हैं क्योंकि वहां शब्दश: होता है. बीजेपी के दो सांसदों ने अपने भाषण में न्यायपालिका पर गंभीर सवाल उठाए. मीनाक्षी लेखी ने बगैर जज का नाम लिए कहा कि इनके बारे में खुफिया विभाग की रिपोर्ट है उसे सार्वजनिक कर देना चाहिए. पहले आप मीनाक्षी लेखी को सुने और यह कार्यवाही का हिस्सा है. और इसी की वजह से पुलिस डिफेंसिव मोड में थी और कुछ जजेस मैं उनके नाम नहीं लूंगी लेकिन जजेस कुछ का मानना है जब तक धरना हिंसात्मक ना हो तब तक पुलिस कार्रवाई नहीं करेगी. अब धरना कब हिंसात्मक होगा यह बैठकर कौन तय करेगा? यह कौन तय करेगा और जिन जजेस के इन्होंने नाम लिए इनको बहुत एक्सपीरियंस है जजस की अपॉइंटमेंट से लेकर बाकी चीजों को लेकर. इसीलिए यह जानते हैं क्या-क्या होता है. इनको यह नहीं पता कि बिना रिकमेंडेशन के सरकारें ट्रांसफर नहीं करतीं. और ट्रांसफर ही किया था, ट्रांसफर तो पहले हो चुका था, मैं तो कहूंगी, एक दिन, कि आईबी की जो रिपोर्ट्स हैं कुछ लोगों के बारे में उनको पब्लिक कर देना चाहिए. उसी से इन सब को समझ में आ जाएगा कि इनका ट्रांसफर क्यों करके हुआ है.

आपने बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी को सुना. मैं एक बार उनके इस हिस्से को शब्दश: भी पढ़ना चाहता हूं. मीनाक्षी लेखी ने कहा कि 'इनको यह नहीं पता कि बिना रेकमेंडेशन के सरकारें ट्रांसफर नहीं करती हैं. और ट्रांसफर ही किया था, ट्रांसफर तो पहले हो चुका था, मैं तो कहूंगी कि एक दिन आईबी की जो रिपोर्ट्स हैं, कुछ लोगों के बारे में, उनको पब्लिक कर देना चाहिए. उसी से इन सबको समझ में आ जाएगा कि इनका ट्रांसफर क्यों करके हुआ है?'

बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने अपने भाषण में किसी भी जज का नाम नहीं लिया. लेकिन वे किस जज की बात कर रही हैं जिनका तबादला आईबी की रिपोर्ट के बाद हुआ. मीनाक्षी लेखी के पास जज के बारे में आईबी रिपोर्ट की जानकारी कैसे पहुंची? यही नहीं मीनाक्षी लेखी ने उस आईबी रिपोर्ट को पब्लिक करने की मांग की, यह जानते हुए भी कि सरकार ने कभी ऐसा नहीं किया. लेखी जिस जज के तबादले की बात कर रही हैं क्या उसका संदर्भ या संयोग 26 फरवरी की मध्यरात्रि को हुए तीन जजों के तबादले से मिलता है? इन तीन जजों में से एक नाम दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस एस मुरलीधर का भी था. जस्टिस मुरलीधर ने ही अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा और कपिल मिश्रा के कथित रूप से हिंसा भड़काने वाले बयानों को कोर्ट में सुनाने के लिए कहा था. कड़ा स्टैंड लिया था. यही नहीं बीजेपी के एक और सासंद संजय जायसवाल ने सुप्रीम कोर्ट पर भी निशाना साधा यह कहते हुए कि शाहीन बाग़ के लिए जो वार्ताकार नियुक्त किए गए उनमें से एक आतंकवादियों को खाना खिलाते रहे हैं. संजय जयसवाल दंगों का एक दूसरा दोषी बता रहे हैं न्याय व्यवस्था को कठघरे में खड़े कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट की आलोचना के साथ-साथ संजय जायसवाल ने यह भी कहा कि मिडिएटर यानि वार्ताकार ने आतंकियों को पकवान खिलाने का काम किया. आलोचना ठीक है की जा सकती है लेकिन जिस वार्ताकारण पर आतंकियों को भोजन कराने की बात की थी उसका नाम क्यों नहीं लिया? संजय जायसवाल को सरकार से पूछना चाहिए कि क्या सरकारी वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट ने उनकी यह जानकारी पेश की थी? सत्ता पक्ष पर शाहीन बाग को दंगों का कारण बताने पर ज़ोर रहा कहा गया कि 14 तारीख को पहले सोनिया गांधी का भाषण हुआ उसके बाद शाहीन बाग का प्रदर्शन शुरू हुआ. सत्ता पक्ष के सांसद अपने भाषण में शाहीन बाग पर गोली चलाने की घटना को गायब कर गए. फिर भी शाहीन बाग के धरने में हिंसा नहीं हुई. उस मॉडल पर देश में कई जगह पर धरना प्रदर्शन हुए, वहां तो हिंसा नहीं हुई. शिवसेना के सांसद ने कहा भी कि महाराष्ट्र में भी कई जगह प्रदर्शन हुए मगर हिंसा नहीं हुई. सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग से बातचीत के लिए तीन वार्ताकार नियुक्त किए हैं. वकील संजय हेगड़े, साधना रामचंदन और वजाहरत हबीबुल्ला.

मीनाक्षी लेखी ने कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा के भाषणों का बचाव किया. वो यह भूल गईं कि दिल्ली चुनावों के दौरान इन तीनों तो चुनाव आयोग ने भड़काऊ भाषण देने के आरोप में प्रचार से रोका था. चुनाव आयोग ने प्रवेश वर्मा को दो बार रोका. वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर पर भी चुनाव आयोग ने 72 घंटे तक प्रचार न करने की रोक लगाई थी. चुनाव के बाद कपिल मिश्रा के दिए बयान को लेखी ही नहीं, बीजेपी के कई सांसदों ने बचाव किया. लेखी ने कहा कि अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा का बयान 20 जनवरी का था. प्रवेश वर्मा एक बयान 28 जनवरी का था. जबकि घटना 23 फरवरी की थी. लेकिन उन्होंने यह ज़रूर माना कि 14 दिसंबर का सोनिया गांधी का बयान शाहीन बाग की पृष्ठभूमि रचता है. अन्य सासंदों ने भी सोनिया गांधी के भाषण को जिम्मेदार ठहराया.

14 तारीख के इन सब बयानों के बाद 15 दिसंबर को शाहीन बाग में लोग बैठना शुरू कर देते हैं और शाहीन बाग 3 महीने तक दिल्ली की सड़कों पर रोक रोक कर यह लोग बैठते हैं और उसके बाद 17 तारीख को उमर खालिद का बयान है कि डोनाल्ड ट्रंप देश में आएंगे और हमें सड़कों पर उतरना है उनको बताना है कि हिंदुस्तान के हुक्मरान जनता के खिलाफ हैं. 19 तारीख को वारिस पठान का बयान है कि हम 15% भले ही हो 85 परसेंट पर भारी पड़ेंगे, अब आप मुझे बताइए कि इन सब चीजों के लिए क्या आप कपिल मिश्रा को जिम्मेदार ठहराएंगे.

सभी पक्षों के बोलने के बाद जबाव देने के लिए गृहमंत्री अमित शाह उठे. मृतकों और घायलों के प्रति संवेदना व्यक्त की. फिर दिल्ली पुलिस की तारीफ की. कहा कि 36 घंटे में दंगे रोक दिए. दिल्ली के बाकी हिस्से में फैलने से रोक दिया पुलिस ने. सवाल हो रहा था कि राजधानी दिल्ली में 36 घंटे दंगे होते रहे, जवाब मिला कि 36 घंटे के भीतर रोक दिए गए. यही लाइन बीजेपी सांसदों की थी, यही लाइन गृहमंत्री की रही. उन्होंने अपनी जवाबदेही के बारे में कहा कि वे ट्रंप दौरे के कार्यक्रमों से अलग होकर दंगों के नियंत्रण में लगे थे. सवाल उठा कि दिल्ली पुलिस कुछ वीडियो में दंगाइयों को पत्थर चलाने दे रही है, पत्थर चला रही है और सीसीटीवी तोड़ रही है, अमित शाह ने कहा पुलिस अपने बचाव में कर रही थी.

जवाबदेही के कई सवालों से घिरी दिल्ली पुलिस को आज गृहमंत्री का साथ मिला. अमित शाह ने कहा कि उनकी विनती पर ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को मौके पर भेजा ताकि वे दिल्ली पुलिस का मनोबल बढ़ाएं. शाह ने कहा, 'जब दंगे होते हैं तब किसकी क्या जिम्मेदारी होती है वो नहीं देखते. मैंने ही डोभाल को विनती की थी कि आप जाइये और पुलिस का मनोबल बढ़ाइए. मेरी ही विनती पर वो वहां गए. मान्यवार मैं क्यों नहीं गया, इसलिए नहीं गया क्योंकि मेरे जाने से पुलिस मेरे पीछे लगती. पुलिस का काम उस वक्त दंगों को शांत करना था. तुरंत ही स्पेशल सीपी नियुक्त हुए. 25 तारीक की रात से कंट्रोल आना शुरू हुई.'

अमित शाह ने कहा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में दंगों का इतिहास रहा है. इतिहास के बारे में कुछ नहीं कहा. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1995 के बाद यहां दंगे नहीं हुए थे. आशुतोष वार्ष्णेय ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि इस इलाके में 1995 से लेकर 2020 तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई जिसमें किसी दंगे में किसी की जान गई हो. गृहमंत्री ने बताया कि 22 फरवरी से ही वहां पर्याप्त कंपनियां तैनात थीं और अगले कुछ दिनों में 80 कंपनियां हो गईं. लेकिन तब इसका जवाब नहीं मिला कि 23, 24 और 25 फरवरी को 13200 से अधिक फोन काल्स लोगों ने दिल्ली पुलिस को किए थे. तब वो कंपनियां कहां थीं, उन फोन काल्स के बाद वहां कौन सी कंपनी पहुंची, यह न तो सवाल पूछा गया होगा न जवाब में ज़िक्र था. गृहमंत्री ने कहा कि 'दिल्ली दंगों के संदर्भ में 700 से अधिक प्राथमिकी दर्ज की गई है. 2647 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. 49 आर्म्ड एक्ट के केस दर्ज हुए हैं. 152 हथियार बरामद किए जा चुके हैं. 650 से अधिक शांति कमेटी की बैठक हो चुकी है. ये बैठकें 25 फरवरी से ही शुरू हो चुकी है. सीसीटीवी और वीडियो फुटेज का एनालिसिस 25 से अधिक कंप्‍यूटर पर विश्लेषण हो रहा है. फेस रिकॉगनिशन से पकड़े जा रहे हैं. 1100 से अधिक वोटर आईडी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस का डेटा डाला है. 1100 से ज्यादा लोगों की पहचान हो चुकी है. 300 से अधिक लोग यूपी से आए थे. यूपी से डेटा मंगाया है. यूपी से मंगाया है जो बताता है कि गहरी साज़िश है. 24 की रात को यूपी का बॉर्डर सील किया था. 40 टीमें बनाई गईं हैं गिरफ्तारी के लिए. किसी भी व्यक्ति को नही बख्शेंगे. साइंटिफिक एविडेंस के आधार पर कार्रवाई करेंगे. किसी निर्दोष को तकलीफ न हो.'

अमित शाह ने यह भी कहा कि 300 से अधिक लोग दिल्ली से बाहर से आए थे. दिल्ली पुलिस ने 3 ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया है जिन के पास बाहर से पैसा आया था. जब अमित शाह अपना पक्ष रख रहे थे तब कांग्रेस के सदस्य सदन से बाहर चले गए. स्पीकर ने कहा भी कि चर्चा की मांग की थी तो गृहमंत्री का जवाब सुनना चाहिए. अमित शाह ने भी कांग्रेस का नाम लिए बग़ैर कहा कि सोनिया गांधी के भाषण को बड़ा कारण बनाया. अमित शाह ने कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर का भी नाम नहीं लिया और बचाव नहीं किया जिस तरह से मीनाक्षी लेखी ने किया. मगर एक बात साफ थी. हेट स्पीच को लेकर विपक्ष के पास कपिल मिश्रा, प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर के नाम थे तो सत्ता पक्ष के पास सोनिया गांधी, शर्जिल इमार, उमर खालिद और वारिस पठान के नाम. राजनीति आप समझते हैं. अमित शाह ने अपने भाषण में गोली मारने के नारे लगाने वाले अनुराग ठाकुर का नाम क्यों नहीं लिया या उसे गंभीर बताना क्यों नहीं ज़रूरी समझा, वही बेहतर बता सकते हैं.

अमित शाह ने वारिस पठान के 15 करोड़ बनाम 100 करोड़ वाले बयान का ज़िक्र किया तो विपक्ष की तरफ से आवाज़ आई कि वारिस पठान ने बयान वापिस ले लिया था. तब अमित शाह ने कहा कि बयान वापस लेने से नहीं होता है. सोशल मीडिया के ज़माने में वायरल होने से असर दिखाती है. अगर यह दलील है तो फिर कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा के बयान का भी असर होना चाहिए, सोशल मीडिया के ज़माने में ये भी वायरल हो रहे थे. उस दौरान भी हो रहे थे जब वारिस पठान का बयान आया था. यही नहीं नागिरकता कानून के समर्थन में कई जगहों पर गोली मारने के नारे लगे हैं. अगर गृहमंत्री यह कह रहे हैं कि वारिस पठान के उत्तेजक भाषणों के बाद दंगे शुरू होते हैं तो फिर उन्हें यह जानकारी देनी चाहिए थी कि वारिस पठान को गिरफ्तार क्यों नहीं किया है और दिल्ली पुलिस ने क्यों नहीं वारिस पठान के खिलाफ अभी तक एफआईआर दर्ज की है. वारिस पठान के खिलाफ कर्नाटक के कलबुरगी में केस दर्ज हुआ है. 15 फरवरी को दिया था. दिल्ली में दंगा 23 और 24 और 25 फरवरी को हुआ.

अमित शाह ने मारे गए लोगों को भारतीय कहा. यह भी कहा कि गिरफ्तारी सारे दोषियों की होगी. धर्म और जाति नहीं देखी जाएगी. अमित शाह ने बताया कि दिल्ली हाइकोर्ट को क्लेम कमीशन के लिए लिखा गया है. वीडियोग्राफी के ज़रिए हिंसा और आगजनी करने वालों की पहचान की जाएगी और उनसे हर्जाना वसूला जाएगा.

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गृहमंत्री के जवाब से पहले विपक्ष के ज्यादातर भाषणों में न्यायिक जांच की मांग की गई. दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहराया गया तो तृणमूल सांसद ने गृहमंत्री से इस्तीफा मांगा गया.