प्राइम टाइम इंट्रो : चिकनगुनिया की चुनौती से कैसे निपटें?

प्राइम टाइम इंट्रो : चिकनगुनिया की चुनौती से कैसे निपटें?

क्या दिल्ली की तमाम एजेंसियों के पास वायरल से निपटने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, जब आप यह सवाल पूछेंगे तब आपको पता चलेगा कि ये हर साल क्यों फैल रहा है और रुक क्यों नहीं रहा है. हम दिल्ली वाले चिकनगुनिया को लेकर एमसीडी से लेकर दिल्ली सरकार तक से काफी गुस्से में है. केंद्र सरकार ने भी कहा है कि दिल्ली को 11 एडवाइज़री जारी हुई हैं. लेकिन क्या हमें पता है कि मलेरिया विभाग काम कैसे करता है, इसमें काम करने वाले लोग हैं भी या नहीं. मशीनें हैं भी या नहीं. अगर ये नहीं होगा तो एडवाइज़री को अमल में कौन लाएगा.

28 दिसंबर, 2012 को दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड डीएसएसबी को लिखा कि उसे 302 असिस्टेंट मलेरिया इंस्पेक्टर चाहिए और 108 असिस्टेंट पब्लिक हेल्थ इंस्पेक्टर चाहिए. इन पदों को भरने के लिए 2013 में चार बार, 2014 में दो बार और 2015 में दो बार पत्र भेजा गया, मगर कोई भर्ती नहीं हुई है.

आपातकालीन बैठक से ख़बरों में तेज़ी तो आ जाती है कि एजेंसिया हरकत में आ गईं हैं, लेकिन जब कर्मचारी नहीं होंगे तो आपकी गली में फॉगिंग मशीन लेकर कौन आएगा. पहले से एहतियात कौन बरतेगा. विधायक, मंत्री या सांसद दिखावे के लिए तो एक-दिन के लिए फॉगिंग कर सकते हैं, लेकिन उसके बाद मामला वहीं पहुंच जाएगा.

जैसे आप बीजेपी के विधायक ओपी शर्मा को फॉगिंग मशीन के साथ देख सकते हैं. क्या आपने राजनीति शुरू होने से पहले भी फॉगिंग मशीन के साथ इन्हें देखा था. ओपी शर्मा विधायक हैं. इनके पास और भी ज़िम्मेदारियां हैं. क्या ये अपने क्षेत्र में अकेले फॉगिंग कर लेंगे. उसी तरह दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा ने भी फॉगिंग करते हुए तस्वीर खिंचाई. क्या कपिल मिश्रा अपने मंत्रालय का काम छोड़कर रोज़-रोज़ फॉगिंग करेंगे. शाम को दिल्ली के सोनिया विहार इलाके में मच्छरों ने दो धुर विरोधी पार्टियों के नेताओं को एक कर दिया. बीजेपी सांसद मनोज तिवारी और 'आप' नेता कपिल मिश्रा एक साथ फॉगिंग करते नज़र आए. ये तस्वीरें अच्छी तो लगती हैं, मगर सही सवाल को पीछे कर देती हैं. सवाल यह होना चाहिए कि विधायक ओपी शर्मा, मंत्री कपिल मिश्रा और सांसद मनोज तिवारी को फॉगिंग करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? क्या सरकार और निगम के पास लोग नहीं हैं, बल्कि यही जवाब है कि लोग नहीं है, तभी ये लोग फोटो प्रदर्शनी कर रहे हैं?

मैंने तुर्कमान गेट वार्ड के काउंसलर आलिम मोहम्मद इक़बाल से बात की. आलिम इक़बाल अब कांग्रेस में हैं, लेकिन निर्दलीय जीते थे. वे सिटी ज़ोन एमसीडी के चेयरमैन हैं. उनकी जानकारी की किसी और ने पुष्टि नहीं की, लेकिन उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी पर बताया कि उत्तरी एम सी डी में छह ज़ोन हैं. सिटी ज़ोन उन छह में से एक ज़ोन है.
सिटी ज़ोन में सात काउंसलर आते हैं इक़बाल के वार्ड में 45,000 मतदाता हैं. 80 से 90 गलियां हैं और घरों की संख्या हज़ारों में हैं.

इक़बाल ने बताया कि उनके वार्ड के लिए चार फॉगिंग मशीनें मिली हैं. बहुत मुश्किल से दो मशीनें लेकर ही चलने लायक कर्मचारी मिल पाते हैं. एक-डेढ़ घंटे के बाद मशीन का डीज़ल और दवा खत्म हो जाती है. इन दो मशीनों के दम पर वे 80 से 90 गलियों में फॉगिंग का काम पूरा कर ही नहीं सकते हैं. मैंने इक़बाल से पूछा कि उनके ज़ोन में मलेरिया नियंत्रण का ढांचा क्या है. जो उन्होंने बताया वो इस प्रकार है-  सबसे ऊपर डिप्टी हेल्थ अफसर होता है. उसके नीचे एंटी मलेरिया अफसर होता है जो इस वक्त कोई नहीं है. उसके नीचे सीनियर मलेरिया अफसर होता है जो इस वक्त कोई नहीं है. उसके नीचे एक वार्ड के लिए 9 मलेरिया इंस्पेक्टर चाहिए मगर एक ही है. उसके नीचे एंटी मलेरिया इंस्पेक्टर चाहिए 40, मगर 12 ही हैं.

अगर आप अपना समय दिल्ली सरकार बनाम एमसीडी, आम आदमी पार्टी बनाम बीजेपी या केंद्र बनाम दिल्ली में खपा देना चाहते हैं तो वो भी ठीक है, लेकिन सवाल ये है कि जब विभागों में फैसले को लागू करने वाले कर्मचारी नहीं होंगे तो इस तू-तू मैं-मैं का क्या नतीजा निकल सकता है. उत्तरी दिल्ली नगर निगम में 129 मलेरिया इंस्पेक्टर होने चाहिए लेकिन 50 ही हैं. पूर्वी दिल्ली नगर निगम में कोई भी सीनियर इंस्पेक्टर नहीं है. पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 65 मलेरिया इंस्पेक्टर होने चाहिए लेकिन 19 हैं.

हमारे सहयोगी रवीश रंजन शुक्ला ने पता कर बताया है कि निचले स्तर पर दवा छिड़कने के लिए बेलदारों को लगाया गया है, जबकि ये उनका काम नहीं है. उनकी छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. उन्हें कहा जा रहा है कि व्हाट्सऐप से फोटो भेजें. ये सुनने में तो ठीक लगता है कि काम हो रहा है लेकिन जब काम करने वाला नहीं होगा तो पूरा काम हो ही नहीं सकता. एक-दो गलियों की तस्वीरों से खबर छप जाएगी और आप सुनकर सो जाएंगे. रवीश रंजन शुक्ला को सूत्रों ने बताया कि पूर्वी दिल्ली नगर निगम में 5 सितंबर को ही दवाइयां आईं हैं. हम किसी एक और सोर्स से इस ख़बर की पुष्टि नहीं कर सके. पुरानी दिल्ली के सिटी ज़ोन के चेयरमैन इक़बाल से यह भी पता चला कि इस साल एम सी डी ने हर वार्ड में 900 के करीब मेडिकेटेड मच्छरदानी बांटी है.

कुछ दिन पहले हमने इस विशेष मच्छरदानी के बारे में बताया था. जब दिल्ली में 45000 की आबादी पर 900 मच्छरदानी बंट रही है तो आप कल्पना कीजिए कि बाकी राज्यों और दूर दराज़ के गांव कस्बों में क्या हालत होती है. मेडिकेटेड मच्छरदानी बाज़ार में नहीं बेची जा सकती है. इसे सरकार ही बांट सकती है और सरकार के पास हो सकता है बजट ही न हो. 900 मच्छरदानी पार्षद किन किन लोगों में बांटेगा. फिर भी चिकनगुनिया कवर करने निकले तमाम संवाददाताओं को देखना चाहिए कि ये मच्छरदानी कहां बंटी है. इसका क्या हो रहा है. अगर दिल्ली का ही कवरेज हो रहा है तो ज़रा ठीक से हो जाए.

आपमें से कई लोग नगर निगमों को फोन करते होंगे कि हमारे यहां फॉगिंग कीजिए. वो नहीं आते होंगे, आप नेता से लेकर प्रधानमंत्री तक पर अपनी झुंझलाहट ज़ाहिर करते होंगे. मीडिया को कोसते होंगे, फिर देश से निराश हो जाते होंगे. कभी यह पूछिये कि वो क्यों नहीं आ रहा है. इसी सवाल का जब जवाब नहीं मिला तो पूर्वी दिल्ली के वेलकम वार्ड और नवीन शाहदरा वार्ड के रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने फैसला किया कि अपनी फॉगिग मशीन खरीदेंगे. दोनों वार्ड में करीब करीब दस से ग्यारह हज़ार मकान होंगे. इसके लिए अब लोगों ने अपने खर्चे से फॉगिंग मशीन का इंतज़ाम किया है. बुधवार शाम फॉगिंग मशीन का उद्घाटन हुआ और एक-एक रिक्शे पर लाद कर दोनों मशीनें दो दिशाओं में निकल गईं. सुदेश चौधरी ने बताया कि अब और इंतज़ार नहीं कर सकते हैं. इलाके के हर घर में कोई न कोई वायरल या चिकनगुनिया से बीमार है. एम सी डी या दिल्ली सरकार के झगड़े में हम फंसे रहे तो महामारी और फैल जाएगी.

आप फिर सरकारी एजेंसियों को ज़िम्मेदारी के सवाल से मुक्त करने के लिए सोचेंगे कि नागरिकों को पहल करनी चाहिए. ये बहुत अच्छा है. लेकिन फिर टैक्स क्यों दिया जा रहा है. फिर एम सी डी क्यों है. दिल्ली सरकार क्यों है. क्या आपको पता है कि इन मशीनों पर कितना खर्चा आता है.

वेलकम वार्ड के लोगों ने 10 लीटर डीज़ल वाली मशीन 59,000 में ख़रीदी है. एक छोटी मशीन भी ली है, जिसकी कीमत 19,500 है. एक मशीन को चलाने के लिए दो लोग चाहिए. क्या ये दो लोग मलेरिया की दवा के असर से परिचित हैं, प्रशिक्षित हैं. लेकिन लोग अपनी जान और जेब पर खेल कर फॉगिंग का इंतज़ाम कर रहे हैं. कई हाउसिंग सोसायटी में लोगों ने ऐसा किया है. इंदिरापुरम और वसुंधरा की कई हाउसिंग सोसायटियों ने अपने खर्चे पर मशीन खरीदी है, दवा खरीदी है. जब सरकार की एजेंसी अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने की स्थिति में ही नहीं है तो हम उनके प्रतिनिधियों के बयान पर अपना वक्त ज़ाया क्यों कर रहे हैं. जब लोगों को अपनी जेब से मशीनें खरीदनी पड़ रही हैं तो मलेरिया विभाग के फंड का क्या हो रहा है.

दिल्ली में धड़ाधड़ ये मशीनें बिक रही हैं. क्या सरकार को पता है कि इन मशीनों के ज़रिये कितने इलाके में फॉगिंग हुई है. क्या सरकार इनके योगदान को अपने आंकड़ों में शामिल करती है. हमने इंडिया मार्ट डॉट कॉम पर जाकर देखा तो फॉगिंग मशीन बेचने वाली कई दुकानों का पता मिला. इनमें से हमने एक दो से बात की तो नांगलोई इलाके के एक मशीन विक्रेता ने बताया कि उनके ज्यादातर ख़रीदार स्कूल वाले हैं. उनके यहां जो मशीनें हैं वो चार हज़ार से लेकर 30 हज़ार तक की हैं. इस एक दुकान से इस सीज़न में करीब 100 मशीनें बिकी हैं. पुरानी सब्ज़ी मंडी के एक और दुकानदार ने बताया कि इस साल पिछले साल की तुलना में ज़्यादा बिक्री हो रही है. रेज़िडेंट वेलफेयर सोसायटी, हाउसिंग सोसायटी और स्कूल वाले खरीद रहे हैं. उनके यहां भी इस सीज़न में 100 के करीब फॉगिंग मशीनें बिकी हैं. इस दुकानदार के यहां 3500 से लेकर 8000 की मशीनें हैं. बड़ी मशीनें 20,000 से लेकर 35,000 की आती है. ज्यादातर खरीद प्राइवेट एजेंसियां करती हैं. दवाओं के दाम 600 रुपये लीटर से लेकर 1500 रुपये लीटर तक के होते हैं. अब हमने पूर्वी दिल्ली के शाहदरा के एक और दुकानदार से बात की है तो उन्होंने कहा कि काफी बिक रही हैं. उनके यहां भी 12,000 से 20,000 की मशीनें हैं. पेट्रोल से चलने वाली मशीनें 17 हज़ार से 70 हज़ार की हैं.

इसका मतलब है कि दिल्ली में प्राइवेट लोगों ने भी बड़ी संख्या में करोड़ों की फॉगिंग मशीनें खरीदी हैं. क्या सरकार को पता है कि जनता अपने दम पर एम सी डी का काम कर रही है. दिल्ली में चिकनगुनिया से मरने वालों की संख्या दस हो गई है. नौ मौतें अपोलो और सर गंगाराम अस्पताल में हुई हैं और एक मौत एम सी डी के अस्पताल बाड़ा हिन्दू राव में हुई है. केंद्र और दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री नहीं मानते कि चिकनगुनिया से मौत होती है.

सर गंगाराम अस्पताल में चिकनगुनिया से चार मौतें हुई हैं, उनके क्रिटिकल केयर के वाइस चेयरमैन सुमित रे ने कहा कि सभी चार मौतों में एक समानता नज़र आई है. दिल्ली के आसपास के गाज़ियाबाद और नोएडा मे भी मरीज़ों की संख्या बढ़ती जा रही है. नोएडा के सरकारी अस्पतालों में मरीज़ों के लिए जगह नहीं है. डीएम अस्पतालों का दौरा कर रहे हैं. चिकनगुनिया को लेकर हंगामा दिल्ली में है लेकिन केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली से भी सात गुना ज़्यादा चिकनगुनिया के मरीज़ कर्नाटक - 8941 (75% से ज़्यादा मामले), महाराष्ट्र - 839, आंध्र प्रदेश - 492, तेलंगाना - 404,  प. बंगाल - 389. पूरे देश में 12,225 मामले सामने आए हैं. दिल्ली में 31 अगस्त तक चिकनगुनिया के मरीज़ों की संख्या 432 थी. लेकिन अब 1400 से अधिक बताई जा रही है. आपने प्राइम टाइम के पहले के एपिसोड में देखा होगा कि हमारे देश में मच्छरों से होने वाली बीमारी का रिकार्ड रखने की व्यवस्था पूरी तरह दुरुस्त नहीं है.


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