कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पत्रकार के सवाल के जवाब में साफ कहा कि जनसमर्थन मिलने की स्थिति में वह PM बनने के लिए तैयार हैं...
एक पत्रकार के सवाल पर राहुल गांधी ने कहा कि 2019 में कांग्रेस की पर्याप्त सीटें आईं, तो वह प्रधानमंत्री बनेंगे. इतनी सीधी-सरल बात पर सत्तारूढ़ BJP में हायतौबा मच गई है. इसमें कोई शक नहीं कि किसी भी सरकार को यह सुनना बिल्कुल नहीं भाता कि उसके विकल्प की चर्चा होने लगे. खासतौर पर कर्नाटक चुनाव प्रचार जब चरम पर हो, ऐसे मौके पर तो केंद्र में सत्तारूढ़ दल को यह सुनना कतई बर्दाश्त नहीं हो सकता था. गौरतलब है कि निकट भविष्य में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की यह बात कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान पत्रकारों के सवाल के जवाब में ही कही गई है. यानी इस बारे में अगर किसी पत्रकार को टीका-टिप्पणी करनी हो, तो उसे कर्नाटक चुनाव को भी सामने रख लेना चाहिए. गौरतलब है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने 2013 में जीता था, और उस समय केंद्र में UPA की सरकार थी. खैर, अभी चर्चा 2019 में राहुल गाधी के प्रधानमंत्री बनने की है. लिहाज़ा यहां सिर्फ उसी बात का विश्लेषण करते हैं.
फौरन ही उठवाया गया पात्रता का सवाल...
राहुल गांधी के जवाब को आए चंद घंटे ही गुज़रे थे कि मीडिया चैनलों पर यह सवाल उठवाया जाने लगा कि क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए पात्र हो गए हैं. हालांकि ऐसा सवाल उठाने के औचित्य पर ही सवाल होने लगे. जल्द ही निष्कर्ष आ गया कि संवैधानिक रूप से प्रधानमंत्री पद की पात्रता में कहीं कोई अड़चन नहीं है. वैसे भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी दल या व्यक्ति की सरकार या सरकार का मुखिया बनने के लिए एक ही पात्रता है कि जनता उसे प्रधानमंत्री बनाना चाहे. और अगर राहुल गांधी के जवाब को देखें, तो उन्होंने बस इतनी ही तो बात कही है कि अगर जनता उनकी पार्टी को सबसे ज़्यादा सीटों पर जिताएगी, तो वह प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनेंगे...?
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इतनी-सी बात पर इतनी बड़ी हलचल...
वैसे बात इतनी-सी है नहीं. मौजूदा सरकार अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में है. अगले साल ही फिर आम चुनाव हैं. अपनी सरकार को बचाने या मौजूदा सरकार की जगह दूसरी सरकार बनाने की कवायद शुरू करने का यही वक्त है. संयोग से राहुल गांधी को पत्रकार का पूछा सवाल मिल गया और उन्होंने अगले चुनाव के बाद की संभावना पर सरल-सा जवाब दे दिया. लेकिन क्या यह जवाब इतना बड़ा था कि फौरन ही राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की योग्यता या पात्रता पर बहस शुरू करवानी पड़े...? बहरहाल, सत्तारूढ़ दल के नेताओं को यह जवाब ज़रूर बड़ा लगा. स्वाभाविक है, क्योंकि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं की बात उठने का मतलब है कि जनमानस में मौजूदा सरकार के विकल्प का एक औपचारिक ऐलान.
स्वाभाविक बात का यूं बड़ा बन जाना...
स्वाभाविक इस तरह कि इस समय राजनीतिक विपक्ष में कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी है. आजादी के बाद हुए चुनावों में जनता ने बार-बार उसी पर भरोसा किया और हर पांच साल में होने वाले चुनावों में कांग्रेस को ही सबसे ज़्यादा बार सत्ता सौंपी है. यह प्राचीन काल की भी बात नहीं है, बल्कि एकदम निकट भूतकाल में यानी 2014 तक देश में उसकी अगुआई में ही UPA सरकार चल रही थी. वह सरकार लगातार दो बार चुनाव जीतकर देश की सत्ता में थी. उस राजनीतिक दल के अध्यक्ष इस समय राहुल गांधी ही हैं, सो, अगर उन्होंने 2019 में देश का प्रधानमंत्री बनने की सशर्त संभावना जताई है, तो इससे ज़्यादा स्वाभाविक बात और क्या हो सकती है, लेकिन इतनी सरल-सी बात का असर अगर इतना ज़बर्दस्त हुआ है, तो ज़रा बारीकी से गौर करना पड़ेगा.
सत्तारूढ़ BJP का सारा ज़ोर अब तक किस बात पर...
पिछले चार साल देखें, तो BJP का सारा ज़ोर 'कांग्रेसमुक्त भारत' के प्रचार पर रहा, मुसलसल रहा. कारण जो भी रहे हों, प्रदेशों में भी कांग्रेस के खिलाफ मुहिम चली. चार साल पहले केंद्र की सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के खिलाफ BJP की मुहिम कारगर भी दिखती रही, लेकिन वक़्त गुज़रने के साथ कमज़ोर भी पड़ती चली गई. इस तथ्य को कौन नकार सकता है कि इन चार सालों में मौजूदा सरकार के वादों, नारों, सैकड़ों योजनाओं के ऐलानों के पूरा होने में आई दिक्कतों ने खुद सरकार को भी मुश्किल में डाले रखा. बेशक अपने प्रबंधन के बूते सरकार को मीडिया की आलोचना नहीं झेलनी पड़ी, लेकिन विपक्ष को चुप रखने में उसे सफलता नहीं मिली. पिछले चार साल का इतिहास देखें, तो मौजूदा सरकार की आंखों में सबसे ज्यादा खटकने वाला कोई रहा, तो वह कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी थे.
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अपने खिलाफ इस मुहिम से निपटने में कांग्रेस और राहुल गांधी में अगर कहीं कोई कमी रही भी होगी, तो उसकी भरपाई खुद सत्तारूढ़ BJP ने कर दी. शुरू से आखिर तक '70 साल, देश बदहाल', 'एक परिवार' जैसे नारों का रोज़-रोज़ जिक्र होने के आधार पर कहा जा सकता है कि खुद BJP ही 'कांग्रेसमुक्त' नहीं हो पाई. इसी बीच, राहुल गांधी की खिल्ली उड़ाने की रणनीति भी धीरे-धीरे बेअसर होने लगी. आखिर आज अगर यह दिन आ गया कि जनता उन्हें सुनने के लिए उमड़ने लगी हो, तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. और न इस बात पर आश्चर्य होना चाहिए कि वही मीडिया, जो 2014 से पहले और उसके बाद राहुल गांधी की उपेक्षा में लग गया था, वह आज उनसे संजीदगी के साथ सवाल पूछने के लिए आतुर दिख रहा है. इसे राजनीतिक बदलाव का लक्षण क्यों न माना जाए.
राहुल के नेतृत्व विकास की भूमिका...
जब अगले प्रधानमंत्री के रूप में राहुल गांधी का नाम उठ ही गया है, तो अब उनके व्यक्तित्व और उनके नेतृत्व विकास के विश्लेषण भी शुरू हो जाएंगे. वैसे यह काम प्रबंधन प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञों का है. वही सही विश्लेषण कर सकते हैं, लेकिन इतनी टिप्पणी तो कोई भी कर सकता है कि उनके व्यक्तित्व का विकास राजनीतिक पर्यावरण में हुआ है. विद्यार्थी के रूप में उनके पास प्रबंधन प्रौद्योगिकी का औपचारिक ज्ञान है. 15 साल का प्रत्यक्ष अनुभव उनके पास एक राजनेता के रूप में है. और अगर उन पर लगाए गए इन आरोपों को सही मान लें कि पिछली UPA सरकार में उनकी अप्रत्यक्ष भागीदारी थी, तो वे आरोप आज उनकी राजनीतिक योग्यता में और बढ़ोतरी करते दिखने लगे हैं. यानी, प्रधानमंत्री बनने की योग्यता या पात्रता पर अगर कोई सवाल उठाएगा, तो उसे जवाब तो बहुत सारे मिल जाएंगे.
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यह नई जिम्मेदारी ले ली उन्होंने...
कर्नाटक चुनाव के प्रचार के दौरान पत्रकार के सवाल का जवाब देते हुए राहुल गांधी ने एक नई जिम्मेदारी भी ले ली है. अब वह कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका तक सीमित नहीं बचे. ज़ाहिर है, अब वह देश में जहां-जहां जाएंगे और बोलेंगे, जनता उनसे यही उम्मीद लगाएगी कि वह देश के लिए भविष्य की योजनाएं भी बताएं. हालांकि किसानों और बेरोज़गारों की चिंताओं को वह पहले से उठा रहे हैं, लेकिन अब किसानों और बेरोज़गारों के लिए मांग उठाने का वक्त नहीं बचा. उन्हें अब वैसी योजनाओं का खाका लेकर आना पड़ेगा, जिनमें इन दोनों वर्गों की समस्याओं का समाधान हो. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि चुनावी नारों और वादों से जनता का यकीन उठ चुका है. लिहाज़ा, जनता अब यह सुनना पसंद नहीं करेगी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद आप क्या करेंगे, बल्कि भुक्तभोगी जनता इतनी जागरूक हो गई है कि वह अपने नेता से जानना चाहेगी कि आप वह काम करेंगे कैसे...? बेशक, योजनाओं की व्यवस्थित रूपरेखा बनाना और उसे जनता को समझाना ज़रा कठिन काम है, लेकिन राहुल गांधी की अपनी शैक्षिक उपलब्धियां यहां काम आ सकती हैं, और फिर अभी चार साल पहले तक सत्तारूढ़ UPA में शामिल रहे विभिन्न नेता और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ आज भी उन्हें उपलब्ध हैं. खुद पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह तक, जिन्हें लोगों ने भले उस समय ठीक से न समझा हो, लेकिन आज वही लोग उन्हें शौक से सुन-समझ रहे हैं. भविष्य की संभावनाओं में ये सभी बातें बड़ी भूमिका निभा सकती हैं.
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...
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