पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 'किंतु-परंतु' और जनाक्रोश से जीत चुके हैं PM नरेंद्र मोदी

 उत्तर प्रदेश में प्रतिद्वंद्वी दोस्त बन गए हैं, ताकि 'साझा दुश्मन' BJP से मुकाबिल हो सकें. बहुजन समाज पार्टी (BSP), समाजवादी पार्टी (SP) तथा राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के अलावा भी कई दल महागठबंधन बनाकर एक साथ आ रहे हैं, और उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी मिली-जुली ताकत प्रतिद्वंद्वी को बुरी तरह हरा देगी.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 'किंतु-परंतु' और जनाक्रोश से जीत चुके हैं PM नरेंद्र मोदी

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की BJP ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 71 सीटें जीती थीं...

नई दिल्ली:

अब हम चुनाव 2019 के बेहद करीब पहुंच गए हैं, और उसके बारे में बात करने के लिए उत्तर प्रदेश से बेहतर क्या हो सकता है...? यह वही राज्य है, जिसने वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को स्पष्ट बहुमत दिया, और चुनाव के बाद बनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार में BJP का प्रभुत्व सुनिश्चित किया था. पार्टी ने राज्य की 80 सीटों में से 71 पर (सहयोगी दलों के साथ 73) जीत हासिल की थी, और फिर 2014 वाला विपक्ष को पटखनी देने का करिश्मा वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी दोहराया. अगर BJP यहां अपनी पकड़ बनाए रखती है, तो वह शानदार तरीके से सत्ता में वापसी करेगी, थोड़ा-बहुत ऊंच-नीच वाला परिणाम आने पर भी NDA को बाहर से समर्थन हासिल हो सकता है, और गठबंधन सरकार बनाई जा सकेगी, लेकिन अगर यहां BJP के वोटों में बड़ी गिरावट आई, तो BJP का मुस्तकबिल अंधेरे में होगा.

 उत्तर प्रदेश में प्रतिद्वंद्वी दोस्त बन गए हैं, ताकि 'साझा दुश्मन' BJP से मुकाबिल हो सकें. बहुजन समाज पार्टी (BSP), समाजवादी पार्टी (SP) तथा राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के अलावा भी कई दल महागठबंधन बनाकर एक साथ आ रहे हैं, और उम्मीद कर रहे हैं कि उनकी मिली-जुली ताकत प्रतिद्वंद्वी को बुरी तरह हरा देगी. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वे 60 सीटों पर दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे थे. अगर उनके वोट जुड़ गए, वे मौजूदा समय में BJP की आधी सीटों (36) पर जीत को पलट सकते हैं. आधा दर्ज सीटें ऐसी भी हैं, जिनमें BJP के खिलाफ सिर्फ 2.5 प्रतिशत बदलाव भी जीत को हार में तब्दील कर देगा. दूसरे शब्दों में कहें, तो इस तरह होने वाली हार समूचे बिहार या पश्चिम बंगाल के बराबर होगी.

 इस तरह के आंकड़े यह मानकर सामने आते हैं कि वोट एक पार्टी से दूसरी पार्टी को ट्रांसफर होते हैं. BSP आमतौर पर दलित वोटों को खींचने में कामयाब रही है, लेकिन SP अपनी ताकतों का ऐसा इस्तेमाल करने के लिए नहीं जानी जाती. वे यह भी मानते हैं कि सीटों का बंटवारा कर लेने और साझा उम्मीदवार खड़े करने से मतदाताओं की चुनाव के प्रति रुचि बढ़ जाती है. इसके अलावा, इस बात की आलोचना भी हो रही है कि महागठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया गया, जिसने वर्ष 2014 में आठ फीसदी वोट हासिल किए थे, और जिनके साथ आ जाने से 14 अन्य सीटों पर भी महागठबंधन की जीत लगभग तय हो जाती.

 चलिए, हम अपना सफर शुरू करते हैं जाटों के प्रभुत्व वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश, विशेष रूप से मथुरा, हाथरस और आगरा से. वर्ष 2014 में BJP ने यहां बेहद शानदार प्रदर्शन किया था, और 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा वोट हासिल किए थे. लेकिन ये वे सीटें हैं, जिनका इतिहास बताता है कि वे किसी भी पार्टी के साथ लम्बे समय तक नहीं रहतीं, और यहां आने वाला कोई भी बड़ा बदलाव BJP के लिए दिक्कतें पैदा कर सकता है.

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 (उत्तर प्रदेश में छोटे किसान भारी ब्याज दरों पर मिलने वाले कर्ज़ में डूबे हुए हैं...)

 जैसे-जैसे हम उन इलाकों की तरफ बढ़ते हैं, जिनमें वर्ष 2014 में BJP ने अच्छा प्रदर्शन किया था, मोटे तौर पर वह क्षेत्र मिलता है, जहां भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का खासा प्रभाव रहा है. सो, अब देखने वाली बात यह है कि क्या चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह की पार्टी RLD अपने महागठबंधन की इस इलाके में कोई मदद कर पाएगी...?

हम सबसे पहले रुके आगरा एक्सप्रेसवे पर बने एक बिल्कुल मिडिल-क्लास रेस्तरां पर. 'जॉली गो फूडकोर्ट' नामक इस स्थान पर सब कुछ सिर्फ 'मोदी जी' के पक्ष में दिखा. यहां बसे-पहुंचे भारतीय मज़बूती के साथ प्रधानमंत्री के साथ खड़े दिखाई दिए, चाहे वे युवक हों, बुज़ुर्ग हों, अन्य स्थानीय लोग हों, या पुणे से घूमने आए पर्यटक. उनके पास BJP, और विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में बोलने के लिए सिर्फ 'अच्छा-अच्छा' है.

 इस रेस्तरां का मैनेजर हालांकि काफी चौकन्ना और जागरूक शख्स निकला. वह खुद भले ही मज़बूती से BJP का समर्थन करता है, लेकिन उशका मानना है कि जेवर में, जहां दिल्ली के लिए एक एयरपोर्ट बनने वाला है, लोगों का BJP के प्रति समर्थन वैसा नहीं है, जैसा पिछली बार था. उसके मुताबिक, लोग कभी संतुष्ट नहीं होते.

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(वर्ष 2012 में अजित सिंह की RLD ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी नौ सीटें जीती थीं...)

 जेवर कस्बे में लोग आज भी एयरपोर्ट का काम शुरू होने की राह देख रहे हैं, क्योंकि अब तक किसी से भी ज़मीन नहीं ली या मांगी गई है, लेकिन इन सभी का मानना है कि एयरपोर्ट बन जाने से क्षेत्र की कायापलट हो जाएगी. पिछली बार 50 फीसदी से कुछ ज़्यादा वोट पाकर जीती गौतम बुद्ध नगर सीट पर BJP को इस बार भी कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि नोएडा में पार्टी का परम्परागत मिडिल-क्लास वोट बैंक बड़ी तादाद में रहता है.

 अब हम मथुरा की उपजाऊ कृषि बेल्ट पर बढ़ते हैं, जहां आलू और सरसों की फसल काटी जा रही है, जबकि गेहूं में अब भी एक महीना शेष है. सभी पैमानों से फसल शानदार हुई है, हालांकि कीमतें कुछ कम लग रही हैं. ज़्यादातर किसानों ने माना कि वे अब सरकार द्वारा सरसों खरीदे जाने का इंतज़ार नहीं कर सकते, और इसीलिए वे उसे स्थानीय व्यापारियों को बेच दे रहे हैं.

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(वृंदावन के निकट आलू की शानदार फसल काटते किसान...)

जरालिया में जाट किसान योगेंद्र सिंह ने कहा कि उसे 2,500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव आज चाहिए, छह हफ्ते बाद नहीं. सो, अगर उसे सरकारी समर्थन मूल्य की वजह से नुकसान हो रहा है, तो बहुत बुरी बात है, क्योंकि उसे भी कर्ज़ा चुकाना है. लेकिन इसके बावजूद उसके मन में BJP के लिए मौजूद समर्थन में कोई कमी नहीं आई है. उसका कहना है, किसानों के लिए भले ही न हो, देश के लिए BJP ही सर्वश्रेष्ठ है.

इन्हें किससे फायदा है, और देश के लिए क्या बेहतर है, इसका विवेचन और इसमें मौजूद अंतर को समझना इस इलाके में आम दिखा. ऐसा लगता है, लोग राज्य की BJP सरकार के भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन को नज़रअंदाज़ कर नरेंद्र मोदी को समर्थन देने के लिए तैयार हैं.

 हाथरस संसदीय क्षेत्र के बाजना में रहने वाले जाटव सब्ज़ी विक्रेता देवी सिंह ने हर घर में शौचालय बनाने की योजना का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, "वे लोग थोड़ा-सा खोदते हैं, दो ईंट लगाते हैं, और हो गया..." इसके बाद पैसे जेब में डाल लेते हैं. लेकिन इसके बावजूद उसका मानना है कि PM नरेंद्र मोदी ही देश के लिए सही हैं. यही विचार है पीछे मौजूद ढाबे में रसोइये के रूप में काम करने वाले चंद्रपाल का. जाट समुदाय से आने वाले चंद्रपाल का कहना है कि हो सकता है, RLD इस बार बेहतर प्रदर्शन करे, लेकिन "मोदी जी अब भी जीतेंगे, और 2024 में भी..."

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 (छोटे व मझोले किसानों की मदद के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने वर्ष 2017 में 32,000 करोड़ रुपये की कर्ज़माफी योजना की घोषणा की थी...)

इसी तरह, गायों द्वारा गेहूं की फसल को खा जाने या खुरों से कुचल डालने को लेकर लोगों में बहुत गुस्सा है, और कई लोगों का मानना है कि सरकार को इस दिशा में ज़्यादा काम करना चाहिए, लेकिन बाकी लोग इस मामले में योगेंद्र सिंह की तरह ज़्यादा उत्साही दिखे, जिनका कहना है, "गाय हमारी संस्कृति का हिस्सा है, और हमें खुद इन दिक्कतों से निपटना होगा..."

 योगेंद्र को ज़्यादा चिंता अपने खेत में बिजली की ज़्यादा कीमत (1,850 रुपये प्रतिमाह) तथा सरसों की फसल से कम कमाई को लेकर है.किसानों के लिए कुछ नहीं किया गया, यह भावना भी व्यापक रूप से मौजूद है. कुछ लोग अपनी बात कहने से हिचकते रहे, वृंदावन के बाहर के जाट किसान रघुबीर सिंह ने अपना गुस्सा कतई नहीं छिपाया. उसने पशुधन के खेतों में घुस आने से लेकर कर्ज़ माफी तक सभी मुद्दों पर आलोचना के स्वर उठाए. रघुबीर सिंह ने तो आलोचना करते वक्त सशस्त्र बलों को भी नहीं बख्शा.

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 (हालांकि आवारा गायें हमेशा से ग्रामीण जीवन का हिस्सा रही हैं, लेकिन किसानों का कहना है कि उनकी तादाद में हालिया सालों में खासी बढ़ोतरी हुई है...)

उसका सवाल था, जो लोग देश के लिए जान कुर्बान करते हैं, अगर उन्हें 40 लाख रुपये और पेट्रोल पंप दिया जा सकता है, तो क्या पूरे देश को रोटी खिलाने की कोशिश में मर जाने वाले किसानों को कुछ नहीं मिलना चाहिए...?उसके हिसाब से, राज्य की BJP सरकार द्वारा प्रयागराज में कुंभ पर किया गया खर्च ज़रूरत से ज़्यादा था. उसका कहना था, "कर्ज़ और फसल उगाने की लागत किसानों की जान ले रही है, इसीलिए खुदकुशी हो रही हैं..." रघुबीर सिंह ने यह बात सिर्फ कही नहीं, नाटकीय तरीके से अपनी गर्दन के पास अपने हाथों से फंदा बनाकर दिखाया भी.

एक और किसान ने खेत में काटकर रखी गई फसल के ढेर की तरफ इशारा कर कहा कि वह रात को वहीं सोता है, ताकि फसल पर हमला कर खा जाने वाले जानवरों से उसे बचा सके. वह सवाल करता है, किसानों को इतना बेआराम होकर क्यों सोना पड़ता है, जबकि बाकी सारा देश आराम से अपने बेडरूम में गद्दों पर सोता है...?

VIDEO: क्या कहते हैं पश्चिमी यूपी के किसान?

और लो... इतनी शिकायतों के बावजूद कई लोग ऐसे भी मिले, जो इसके लिए नरेंद्र मोदी सरकार को दोष देने को तैयार नहीं. गोविंदपुर में एक चाय की टपरी (टी स्टॉल) पर किसानों ने कहा, "हां, पशुओं ने कुछ फसल बर्बाद कर दी, और यह दिक्कत है, लेकिन फसल अच्छी हुई है, पिछले साल से बेहतर, सो, चिंता किसलिए...?" उन्होंने साथ ही यह भी कहा, "आलू की फसल शानदार है, सो, ज़ाहिर है, कीमत छह रुपये प्रति किलो के आसपास रहेगी... बस, जमा कर रखें, और इंतज़ार करें..."

इसी बीच एक बुज़ुर्ग सामने आकर ज़ोर से कहता है, "सिर्फ मोदी ही है..."

यह देखना दिलचस्प रहा कि हर बाज़ार या बड़े समूह में शुरू की गई चर्चा में कोई न कोई ऐसा हमेशा मिला, जिसका BJP से गहरा ताल्लुक था, और वह बातचीत को किसी खास दिशा में ले जाने की कोशिश करता था. इस तरह 'ढके-छिपे' तरीके से की गई चर्चा की 'हाईजैकिंग' का नतीजा यह रहा कि बहुत-से लोग अपनी बात कहने के प्रति कतई निरुत्साहित हो गए. इसी वजह से, भले ही सभी ने किसानों में मौजूद गुस्से और बेरोज़गारी की बात कबूल की, लेकिन नौकरियों का संकट या अभाव ऐसा बड़ा मुद्दा रहा, जिस पर चर्चा हो ही नहीं पाई.

 आगरा के एक समाचारपत्र ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि इलाके में BJP की पकड़ मज़बूत बनी हुई है. अख़बार के मुताबिक, आगरा से सटे फतेहपुर सीकरी (मुगल बादशाह अकबर की राजधानी) की संसदीय सीट से BSP की पिछली बार की प्रत्याशी (और पूर्व सांसद) सीमा उपाध्याय चुनाव लड़ने से इंकार कर रही हैं, क्योंकि शायद उन्हें लग रहा है कि वह BJP को पिछली बार मिली 2.5 लाख वोटों की बढ़त को पलटने में कामयाब नहीं हो पाएंगी.पुलवामा की वारदात ने भी इस इलाके में मोदी फैक्टर को कहीं ज़्यादा मज़बूत कर दिया है... आखिरकार, यह वह इलाका है, जहां से फौज में जाने वालों की तादाद बेहद ज़्यादा रहती है...

ईश्वरी बाजपेयी NDTV में वरिष्ठ सलाहकार हैं...

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