यह ख़बर 27 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

महावीर रावत की कलम से : बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले!

नई दिल्ली:

मेलबर्न टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलियाई पारी के दौरान स्टीवन स्मिथ का शतक सबने सराहा, लेकिन भारत की ओर से चार-चार शतक लगे, ये लगाए हमारे मुख्य चार गेंदबाज़ों ने। ईशांत शर्मा, उमेश यादव, मोहम्मद शमी और आर अश्विन की गेंदबाज़ी का क्या स्तर है ये सबने देखा। टॉप ऑर्डर को आउट करने के बाद हमारे गेंदबाज़ों की अच्छी खासी धुनाई ऑस्ट्रेलिया के पुछल्ले बल्लेबाज़ों ने की। वैसे ये कोई हैरानी की बात तो है नहीं, न ही ये कोई नई बात है।
 
साल 2011 से कई बार ऐसे मौके आए जब भारत ने विरोधी टीम के टॉप ऑर्डर को तो पवैलियन पहुंचा दिया, लेकिन नीचे के बल्लेबाज़ों ने आकर इस कदर धुनाई की कि टीम में ये गेंदबाज़ क्यों हैं, इस पर सवाल उठने लगे। इन सवालों का जवाब किसी के पास है?

जो भी भारतीय क्रिकेट को जानता है, वह इतना तो कह ही सकता है कि मौजूदा गेंदबाज़ी ब्रिगेड में ऐसा कोई भी गेंदबाज़ नहीं, जो कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी की बात न मानता हो, तो फ़िर जब हमारे गेंदबाज़ लगातार शॉर्ट-पिच गेंद डालकर विरोधी टीम को डराने या आउट करने की कोशिश करते हैं तो क्या यह उनकी रणनीति होती है या कप्तान धोनी की प्लानिंग?

अगर ये गेंदबाज़ लगातार अपनी दिशा भटक रहे हैं तो गेंदबाज़ी कोच भरत अरुण क्या कर रहे हैं? क्या कोई गेंदबाज़ किसी की सलाह मानता भी है या सब को ठेंगा दिखाकर वही करता है, जो उसके मन में आता है और इस तमाम उठा-पटक के बीच टीम डायरेक्टर रवि शास्त्री वहां बैठे क्या कर रहे हैं?

आंकड़े अगर पूरी कहानी बयां नहीं करते तो झूठ भी नहीं बोलते। 60 टेस्ट मैचों में 29 पारियां ऐसी रही हैं, जिसमें वे एक भी विकेट नहीं ले पाए हैं। ईशांत शर्मा के जितने ही टेस्ट द.अफ्रीका के मॉर्नी मॉर्कल ने खेले हैं, लेकिन दोनों के बीच कितना फर्क है, यह भारत के बल्लेबाज़ ही बेहतर बता पाऐंगे।

अश्विन का गेंदबाज़ी औसत भारत के बाहर 50 का है और ये परेशानी भारत के हर गेंदबाज़ के साथ है। जैसे ही वह इंग्लैंड, द.अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जाते हैं, जहां गेंदबाज़ी के अनुकूल हालात होते हैं, उनकी गेंदबाजी और ज़्यादा खराब हो जाती है।

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सच बात तो यह है कि भारत के गेंदबाज टेस्ट मैच में गेंदबाज़ी करना जानते ही नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने कई सालों से घरेलू क्रिकेट खेला नहीं है। टीम इंडिया में इनकी जगह पक्की ही है, क्योंकि ये कप्तान धोनी के चुने हुए हैं। यानी इनके खराब प्रदर्शन से न तो ये खुद ही परेशान हैं, न ही कप्तान। अगर कोई परेशान है तो वे क्रिकेट फैन हैं, जो अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं और अब तो इनकी बेशर्मी और मायूस कर देने वाले खेल की आदत सी पड़ने लगी है।