गिरते रुपया का आम आदमी पर क्या होगा असर?

जब भी रुपया कमज़ोर होता है ट्‌विटर पर रविशंकर का ट्वीट चलने लगता है कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनते ही एक डॉलर की कीमत 40 रुपये हो जाएगी यानी रुपया मज़बूत हो जाएगा. वे किस आधार पर कह रहे थे, वही बता सकते हैं अगर वे इस पर कुछ कहें.

गिरते रुपया का आम आदमी पर क्या होगा असर?

डॉलर के मुक़ाबले रुपये की राजनीति घूम फिर कर 2013-14 आ जाती है जब यूपीए के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को नकारा साबित करने के लिए रुपये की कीमत का ज़िक्र होता था. आप मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी के उस समय के ट्वीट को देखें या भाषण सुने तो रुपये के गिरते दाम को भारत के गिरते स्वाभिमान से जोड़ा करते थे. विपक्ष के नेताओं से लेकर रविशंकर और रामदेव भी कहा करते थे कि मोदी जी प्रधानमंत्री बनेंगे तो डॉलर के मुकाबले रुपया मज़बूत हो जाएगा. जब भी रुपया कमज़ोर होता है ट्‌विटर पर रविशंकर का ट्वीट चलने लगता है कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनते ही एक डॉलर की कीमत 40 रुपये हो जाएगी यानी रुपया मज़बूत हो जाएगा. वे किस आधार पर कह रहे थे, वही बता सकते हैं अगर वे इस पर कुछ कहें. आज भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले इतना कमज़ोर हो गया जितना कभी नहीं हुआ था. पहली बार एक डॉलर की कीमत 70 रुपये हो गई है.

तब प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर मोदी कहते थे कि दिल्ली की सरकार जवाब नहीं दे रही है. अब विपक्ष कह रहा है कि दिल्ली की सरकार जवाब नहीं दे रही है. प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष के नेता के तौर पर गंभीरता से आरोप लगाए और कहा कि देश जानना चाहता है. क्या देश अब नहीं जानना चाहता है कि 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर भारत का रुपया डॉलर के सामने क्यों लड़खड़ा गया. क्या इसके सिर्फ आर्थिक कारण नही हैं, क्या इसके राजनीतिक कारण भी हैं. प्रधानमंत्री का पुराना बयान जिसे उन्होंने गंभीरता से दिया था सुनते हुए अजीब लगता है. जून 2013 से प्रधानमंत्री बनने तक रुपये को लेकर कितनी बार उन्होंने गंभीरता से आरोप लगाए होंगे, कम से कम एक बार तो बनता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए इस पर बोलें खास कर तब 14 अगस्त के दिन भारत का रुपया डॉलर के मुकाबले इतना गिर गया जितना कभी इतिहास में नहीं गिरा था.

रुपये की राजनीति शुरू होती है 2013 से. इस तरह के बयान आने लगे कि जब देश आज़ाद हुआ था तब एक डॉलर के बराबर एक रुपया था. फिर रुपया कमज़ोर होने लगा. लोगों को भी लगा कि यह कोई बहुत बड़ा धोखा है. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी और बीजेपी के बड़े नेता इसे मुद्दा बनाना शुरू करते हैं. 

इसी बीच रुपया 28 अगस्त 2013 को रिकॉर्ड स्तर पर कमज़ोर हो जाता है. उस दिन एक डॉलर की कीमत हो गई थी 68 रुपये. नवंबर 2014 में एक डॉलर की कीमत 62 रुपये हो जाती है. 27 जनवरी 2016 को एक डॉलर 68 रुपये का हो जाता है. जो भाव 28 अगस्त 2013 को था, वही 27 जनवरी 2016 को हो जाता है. इस साल जून-जुलाई में जब कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे थे तभी कहा जाने लगा था कि इस साल के अंत तक भारत का रुपया कमज़ोर होकर डॉलर के मुकाबले 70 के भाव को छू लेगा. 15 अगस्त की पूर्व संध्या पर रुपये की यह ऐतिहासिक गिरावट का संबंध देश के स्वाभामिन से है या नहीं, ये तो वही बेहतर बता सकते हैं जो इसे लेकर राजनीति करते रहे हैं. वैसे सरकार को बताना चाहिए ताकि जनता में यह बात साफ हो कि रुपये के गिरने के पीछे कारण कुछ और भी हो सकते हैं.

हमने प्रभारी वित्त मंत्री पीयूष गोयल के ट्विटर हैंडल चेक किया. दोपहर तीन बजे ट्वीट करते हैं कि हमें गर्व है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दुनिया में हमारा सम्मान बढ़ रहा है. नतीजे ही खुद बता रहे हैं क्योंकि हम तेज़ी से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था की तरफ बढ़ रहे हैं. स्वच्छ रेल स्वच्छ भारत अभियान पर उनका ट्वीट है. हम स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान भारत योजना लाते हैं, किसानों के लिए समर्थन मूल्य डेढ़ गुना करते हैं. सोचिए पीयूष गोयल विपक्ष में होते तो क्या ट्वीट कर रहे होते, कैसे 15 अगस्त से जोड़ रहे होते. भारत की राजनीति में अब यही बचा है कि कब कौन क्या करेगा या कहेगा यह पैटर्न फिक्स हो गया है. अच्छा होता प्रभारी वित्त मंत्री एक ट्वीट रुपये की कमज़ोरी को लेकर भी होता ताकि लोग समझते कि यह सब क्यों होता है. खासकर तब जब चार साल पहले रुपये का कमज़ोर होना उनका प्रिय मुद्दा था.

क्या रुपये के कमज़ोर होने में सरकार का रोल होता है? नहीं. फिर यही बात सरकार खुद से क्यों नहीं कहती है. इस उत्तर सरकार ही दे सकती है मगर आप गेस कर सकते हैं कि सरकार क्यों नहीं कहती है कि रुपया उसके कारण कमज़ोर नहीं हुआ है. क्योंकि जैसे ही वह यह बात कहेगी लोग पूछेंगे कि फिर वह कैसे कहा करती थी कि रुपया यूपीए सरकार की नीतियों के कारण कमज़ोर हो रहा था. हमने प्रांजय गुहा ठाकुर्ता से पूछा है कि क्या वे उन कारणों को बता सकते हैं जिसके कारण रुपया कमज़ोर होता है.

सरकार का रोल नहीं होता है. भारतीय रिज़र्व बैंक का होता है. वो चाहे तो डॉलर बेच कर बाज़ार में इसकी सप्लाई बढ़ा दे और रुपये को गिरने से रोक ले. डॉलर के मुकाबले रुपया कमज़ोर होने से सबसे अधिक असर पेट्रोल डीज़ल के दाम पर पड़ता है. पेट्रोल के दाम बढ़ने लगते हैं. साथ ही बाहर से चीज़ों का आयात महंगा होने लगता है. रुपया कमज़ोर होगा तो विदेशी निवेशक को रिटर्न कम मिलेगा. बहरहाल रुपये की राजनीति से सरकार ने किनारा कर लिया है. विपक्ष ने उसे गले लगा लिया है. वैसे बीजेपी के प्रवक्ता नलिन कोहली ने जो कहा है वो काम की बात कही है. उन्होंने कहा है कि जो लोग अखबार पढ़ते हैं उन्हें पता है कि क्यों हो रहा है ये सब.

भारत के आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंदर गर्ग ने रायटर से कहा है कि इसे लेकर चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योकि रुपये में यह गिरावट बाहरी फैक्टर के कारण आ रही है. दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी भी कमज़ोर हो रही है. इस स्तर पर रिज़र्व बैंक के डॉलर बेच कर गिरावट को रोकने की कोशिश का खास फायदा नहीं होगा. अगर रुपया गिर कर 80 पर भी आ जाए तो भी यह चिंता की बात नहीं होगी. बर्शते दूसरी करेंसी भी कमज़ोर होती रही. 

कहां वो भारत था जहां 68 रुपये हो जाने पर देश का स्वाभामिन खतरे में था, आज आर्थिक मामलों के सचिव कहते हैं कि एक डॉलर 80 रुपये का भी हो जाएगा तो भी चिंता की बात नहीं बस अन्य देशों की करेंसी का भाव भी कमज़ोर होता रहे. या तो तर्क बदल गया है या वाकई ज़माना बदल गया है. तो क्या 80 रुपया हो जाएगा. क्या 2013 के पहले सिर्फ भारतीय रुपया गिर रहा था, अन्य देशों की करेंसी में गिरावट नहीं आ रही थी. बिल्कुल उस वक्त भी यही हो रहा था. लाइव मिंट के एक लेख के अनुसार इस वक्त भारतीय रुपये के अलावा तुर्की के लीरा में सबसे अधिक गिरावट दर्ज हुई है. इस साल लीरा का मूल्य 45 प्रतिशत कम हो गया है. इस कारण यूरो का भाव भी डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हुए है. न्यूज़ीलैंड का डॉलर भी दो साल में सबसे अधिक टूटा है. दक्षिण अफ्रीका डॉलर का भाव भी 8 प्रतिशत गिर गया है. अर्जेंटीना का पेसो इतना गिरा कि बैंकों ने 5 प्रतिशत ब्याज़ दरें बढ़ा दी हैं.

क्या जब अन्य देशों की मुद्राएं कमज़ोर होती हैं तो भारत का रुपया भी कमज़ोर होता है. क्या ऐसा कोई संबंध है. 2013 में भी जब भारतीय रुपया कमज़ोर हो रहा था तब टर्की का लीरा भी कमज़ोर हो रहा था. इसका मतलब यह नहीं कि दोनों का आपस में कोई संबंध है. बीच में भी कई अन्य कारण होते हैं. अन्य देशों की मुद्राओं का असर पड़ता है लेकिन कई बार भारतीय रुपया तब भी कमज़ोर होता है जब अन्य देशों की मुद्राएं मज़बूत हो रही होती हैं. लाइव मिंट पर 17 दिसंबर 2014 का एक लेख देख रहा था. तब भारतीय रुपया 13 महीने के सबसे न्यूनतम स्तर पर था. डॉलर के मुकाबले. उस वक्त दक्षिण कोरिया की करेंसी won मज़बूत हो रही थी. जापाना का येन भी 1.17 प्रतिशत भी मज़बूत हुआ था. सिंगापुर का डॉलर, मलेशिया का रिंगेट भी मज़बूत हुआ था.

2011 में यूरोपीय यूनियन के संकट के कारण करेंसी के भाव बिखर रहे थे तो 2012 में ग्रीस में आए वित्तीय संकट के कारण दुनिया भर की मुद्राओं पर असर पड़ा था. 28 अगस्त 2013 को जब भारत का रुपया एक डॉलर के मुकाबले 68 पर पहुंचा था तब एक प्रमुख कारण टेंपर टैंटरम भी था. अमरीका की अर्थव्यवस्था में जान डालने के लिए वहां की फेडरल रिज़र्व ने डॉलर की मात्रा बढ़ा दी और कह दिया कि अब फेडरेल रिज़र्व बांड नहीं खरीदेगा. इसका असर दुनिया भर की बाज़ारों और करेंसी पर पड़ा था. इसी को टेंपर टैंटरम कहते हैं. कभी दुनिया के बाज़ार में कच्चे तेल का दाम बढ़ता है तो करेंसी कमज़ोर होने लगती है. इस बार टर्की के कारण ये गिरावट आई है. बस राजनीति को चुनना होता है कि उसे कब इन तर्कों को किनारे कर अपनी दुकान चलानी होती है. झूठ बोलना होता है. आप जानते हैं कि इस वक्त अमरीका और चीन के बीच व्यापारिक युद्ध चल रहा है. आए दिन दोनों मुल्क एक दूसरे के आयात पर टैक्स बढ़ा देते हैं.

इस वक्त अमरीका की अर्थव्यवस्था मज़बूत स्थिति में है इस कारण भी दुनिया भर डॉलर का प्रवाह अमरीका की तरफ हो रहा है. अमेरिकी निवेशक दूसरे बाज़ारों से पैसा निकालकर अपने मार्केट में लगा रहे हैं. इस मज़बूती का लाभ उठाकर ट्रंप ने चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. चीन भी अमरीका से आयातित चीज़ों पर आयात शुल्क बढ़ाते जा रहा है. इसका असर दूसरे मुल्कों पर भी पड़ रहा है. अमरीका एक साथ चीन, ईरान, टर्की, भारत सहित कई देशों के खिलाफ भिड़ा हुआ है. भारत ने भी कई अमरीकी चीज़ों पर आयात शुल्क बढ़ा दिया है. एक एंगल अमरीका और टर्की आपस में भिड़े हुए हैं. अमरीका ने टर्की से स्टील और अल्युमूनियम का आयात शुल्क 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है. इससे होगा यह कि टर्की के स्टील की मांग कम हो जाएगी. इससे गुस्सा होकर टर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने कहा है कि उनका देश अमरीकी इलेक्ट्रॉनिक्स का बहिष्कार करेगा. उनके स्टैंड को देखकर कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या वाकई ऐसा करेंगे या सिर्फ धमकी के लेवल पर कहा है. एर्दोगन ने कहा है कि हम जो भी अमरीका से मंगाते हैं उससे बेहतर अपने देश में बना लेंगे. अगर उनके पास आई फोन है तो सैमसंग भी है. हमारे देश में वीनस है. ये सभी फोन के ब्रांड हैं. यह अभी साफ नही है कि एर्गोदन इसे औपचारिक रूप देंगे या अभी मामला धमकी तक ही सीमित है. इस व्यापारिक जंग में टर्की लीरा पिछले महीने 25 फीसदी कमज़ोर हो गया.

2016 में साइबर हैकरों ने बांग्लादेश के सेंट्रल बैंक को हैक कर लिया और 101 मिलयन डॉलर निकाल लिए. इसमें से 20 मिलयन डॉलर श्रीलंका के हैकरों के पास गया था, जिसे वापस हासिल कर लिया गया. 81 मिलियन डॉलर फिलिपिन्स चला गया था जिसमें से 18 मिलियन डॉलर वापस मिल गया था. इसके आगे की जानकारी नहीं है मगर ये इसलिए बता रहा हूं कि भारत में भी इस तरह का प्रयास हुआ है. पुणे के एक कॉपरेटिव बैंक से हैकरों ने 94 करोड़ उड़ा लिए हैं.

हमारे सहयोगी सुनील सिंह ने रिपोर्ट भेजी है कि भारत सहित 29 देशों में डेबिट कार्ड के ज़रिए पैसे निकाले गए हैं. भारत में इससे पहले इतनी बड़ी साइबर डकैती नहीं हुई थी. 11 अगस्त को बैंक के स्वीचिंग सिस्टम को हैक कर 7 घंटे के भीतर 28 देशों में 12 हज़ार बार ट्रांजेक्शन हुआ और 78 करोड़ निकाल लिए गए. भारत के भीतर 2849 बार ट्रांजेक्शन हुआ और ढाई करोड़ निकाल लिए गए. फिर 13 अगस्त को 14 करोड़ और उड़ा लिए. कासमास बैंक ने दो दिनों के लिए अपना पेमेंट सिस्टम बंद कर दिया है मगर ग्राहकों को दिलासा दिया है कि उनका पैसा सुरक्षित है. चिन्ता न करें. बैंक ने एफ आई आर दर्ज करा दिया है.


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