मोहम्मद अली से बहुत कुछ सीख सकते हैं भारत के खेल सितारे

मोहम्मद अली से बहुत कुछ सीख सकते हैं भारत के खेल सितारे

मोहम्मद अली (फाइल फोटो)

90 के दशक में अगर आपका भारत में बचपन गुजरा हो तो सचिन तेंदुलकर के आगे सोच पाना मुश्किल था। दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में तो फिर भी कुछ अन्य खेल सितारों की चर्चा होती होगी लेकिन छोटे शहरों में बढ़ता हुआ क्रिकेट और घटती हुई हॉकी की ही बातें होती। लेकिन इसी बीच रंगीन टीवी घर पर आया और केबल टीवी की वजह से बास्केटबॉल से प्यार गहरा हुआ। माइकल जॉर्डन का खेल कुछ ऐसा छाने लगा कि सचिन भी उनके आगे उन्नीस नज़र आते। स्कूल और कॉलेज की टीम में बास्केटबॉल खेला भी और जॉर्डन के खेल का अनुसरण करने की कोशिश भी की। लेकिन किसी भी खेल की किताब उठाकर देखते तो पढ़ने को यही मिलता कि मोहम्मद अली से बढ़कर दुनिया में कोई और नहीं हो सकता। फिर जब अमेरिका जाना हुआ और वहां पर रंगभेद के बारे में लोगों से सुना तो मोहम्मद अली के प्रति एक अजीब सा लगाव होने लगा। फिर उनके बारे में पढ़ा, उनकी फाइट्स को देखा, उनके हावभाव को देखा तो इस महान शख्सियत से प्रभावित हुआ।

बचपन में सिर्फ 12 साल की उम्र में मोहम्मद अली ने मुक्केबाजी की और 18 साल की उम्र तक तो वे अपने मुक्कों के दम पर दुनिया भर में छा गए। हलांकि सब कुछ इतना आसान नहीं था। लुईविल (Louisville) वह जगह थी जहां अली का बचपन गुज़रा। चालीस और पचास के दशक के दौरान पूरे अमेरिका में रंग-भेद और नस्लभेद एक बड़ी समस्या थी। सिनेमाघर हों, अस्पताल हों, दुकाने हों या सार्वजनिक जगहें... हर जगह गोरों का वर्चस्व था और काले लोगों का दमन। अली के पिता एक साइन पेंटर थे। वे खूब शराब पीते थे और मानते थे कि अलग रंग के आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं होता तो शायद वे एक बड़े कलाकार बन सकते थे। एक बार अली की मां को प्याऊ से बिना पानी के ही भगा दिया गया। यह नज़ारा अली ने अपनी आंखों से देखा और उनमें सिस्टम के खिलाफ नफरत बढ़ने लगी।

बॉक्सिंग से प्यार
गरीबी और ज़िल्लत से बचने का एक ही तरीका था कि खेल या पढ़ाई के रास्ते नए आयाम खोजे जाएं। लेकिन अली पढ़ने में बिलकुल अच्छे नहीं थे और बास्केटबॉल औ बेसबॉल में वे अपने आपको फिट नहीं समझते। सिर्फ मुक्केबाजी ही ऐसा खेल रह गया था जहां उनका मन लगता था। जो विल्सन नाम के एक पुलिस अफसर की जिम में वे अभ्यास करने लगे। शुरुआत से ही वे अपनी तकनीक और अपनी गति से अभ्यास के दौरान ही बड़े-बड़े मुक्केबाजों को परेशान करने लगे।

1960 में हुए रोम ओलिंपिक्स में उन्होंने पोलेंड के मुक्केबाज़ को हराया और गोल्ड मेडेल जीता, लेकिन वे बॉक्सिंग के जानकारों को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाए। मो अली किसी और मुक्केबाज जैसे नहीं थे। वे हमेशा अपने पैरों का इस्तेमाल ऐसे करते मानो नाच रहे हों। वे अपने प्रतिद्वंद्वी के आसपास ऐसे घूमते जैसे मानो उसे अपने जाल में फंसा रहे हों। अली जैसी मुक्केबाज़ी स्टाइल किसी ने नहीं देखी थी।

बडबोले अली
एक चीज़ जो अली को सबसे अलग बनाती, वह थी किसी भी फ़ाइट से पहले उनकी बयानबाजी। उन्हें कैसियस क्ले से अब गैसियस क्ले कहा जाने लगा. "This guy must be done / I'll stop him in one." जैसे बयानों की वजह से कहा जाने लगा कि वे एक बड़बोले मुक्केबाज़ हैं और उनके हाथ से ज़्यादा उनका मुंह चलता है।

मोहम्मद अली ने कैसियस क्ले का नाम त्यागकर इस्लाम धर्म अपनाया तो अमेरिका में कई लोगों को ठीक नहीं लगा। फिर जब उन्होंने वियतनाम की जंग में अपनी सेवाएं देने से इनकार किया तो उन्हें गद्दार कहा जाने लगा। कई लोग अगर अली के मुरीद थे तो उतने ही लोग उनसे नफ़रत भी करने लगे थे। मगर अली का कहना था कि वे रिंग में अपने प्रतिद्वंद्वी पर सामने से वार करते हैं लेकिन युद्द में सिर्फ निर्दोष लोगों की मौत होती है। उनसे विश्व चैंपियनशिप का ताज छीन लिया गया और अपने करियर के सबसे अहम और प्रभावशाली चार साल तक मोहम्मद अली को मुक्केबाजी से दूर रहना पड़ा।

हालांकि मोहम्मद अली ने वही किया जो उन्हें सही लगा और शायद इसीलिए वे इतने बड़े हीरो भी साबित हुए। उनका मकसद सिर्फ पैसा या पुरस्कार कमाना नहीं था, बल्कि वे समाज की उन बुराइयों के खिलाफ खड़े हुए जिन्हें वे बचपन से झेल रहे थे। काश, हमारे खेल सितारे मोहम्मद अली से कुछ सीख पाएं। पर यह करना इतना आसान होता तो दुनिया में सिर्फ एक ही मो अली नहीं होता। वाकई में, He is the Greatest. RIP (Rest in Power).

(महावीर रावत एनडीटीवी इंडिया में विशेष संवाददाता हैं)

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