क्या IIT-JEE सचमुच दुनिया की सबसे कठिन परीक्षा है?

वास्तव में बड़ा सवाल यह है कि क्यों IIT प्रवेश परीक्षा या JEE के लिए अब तक बहुविकल्पी प्रश्नों वाले फॉरमैट का इस्तेमाल करते हैं.

क्या IIT-JEE सचमुच दुनिया की सबसे कठिन परीक्षा है?

प्रतीकात्मक तस्वीर.

मैं कोटा की कोचिंग क्लासों द्वारा बहुविकल्पी प्रश्नों, यानी मल्टीपल च्वॉयस क्वेश्चन्स (Multiple Choice Questions या MCQ) पर ज़रूरत से ज़्यादा उत्साह के साथ फोकस किए जाने को विद्यार्थियों, और अंततः IIT के लिए भी हानिकारक तथा विध्वंसकारी बताता रहा हूं.

वास्तव में बड़ा सवाल यह है कि क्यों IIT प्रवेश परीक्षा या JEE के लिए अब तक बहुविकल्पी प्रश्नों वाले फॉरमैट का इस्तेमाल करते हैं. यह फॉरमैट मशीन द्वारा ग्रेडिंग को संभव बनाने के लिए अपनाया गया था, और फिर लगातार बढ़ती आवेदकों की संख्या की वजह से ज़रूरत बन गया. उन पेपरों का मूल्यांकन, जिनमें हर 'लम्बे' जवाब को पढ़ा जाना होता था, असंभव होता जा रहा था, क्योंकि IIT के पास मानवीय रूप से पेपर जांचे जाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे. इस समस्या का एक संभव हल यह था कि इस काम को आउटसोर्स कर दिया जाए, लेकिन IIT अपनी परीक्षा की निष्पक्षता की जी-जान से हिफाज़त करती रही हैं, और कभी किसी बाहरी एजेंसी को शामिल नहीं किया. यह भी हो सकता है कि लगभग 12 साल पहले जिस वक्त MCQ फॉरमैट को अपनाया गया था, उस वक्त किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि यह इतनी गंभीर समस्याएं पैदा कर देगा.

अब जो अहम काम किया जाना है, वह है परीक्षा के पैटर्न में बदलाव, ताकि MCQ में मशीन से जांचे जा सकने वाले किसी सही जवाब को जायज़ ठहराने के लिए जवाब तक पहुंचने की प्रक्रिया भी विस्तार से दिखानी होगी. जो भी अभ्यर्थी सही जवाब देंगे, जवाब तक पहुंचने की उनकी प्रक्रिया को मानवीय रूप से भी जांचा जाएगा, जिसका अर्थ होगा - संसाधन सिर्फ उन विद्यार्थियों के लिए आवश्यक होंगे, जिनके जवाब सही होंगे, और इस प्रक्रिया से तुक्के लगाने वाले अपने आप गलत साबित हो जाएंगे. जवाब गलत होने के बावजूद जवाब तक पहुंचने का सही तरीका अपनाने के लिए भी कुछ अंक दिए जा सकते हैं. संभवतः कुछ सवाल इस तरह भी तैयार किए जा सकते हैं, जिनमें जवाब संख्या में आए, जिन्हें बॉक्स में लिखना होगा (ऑनलाइन सिस्टम में इसे अपनाना बेहद आसान होगा), और उन सभी जवाबों के अंक दिए जाएंगे, जो एक हद तक सही हों, बशर्ते जवाब तक पहुंचने का तरीका सही पाया जाए. जवाब तक पहुंचने के तरीके को तभी जांचा जाए, जब जवाब स्वीकार्य हो.

इस तरह की परीक्षा, जो विद्यार्थियों के जवाब तक पहुंचने के तरीके की भी परीक्षा ले, के लिए पढ़ाया जाना (कोचिंग दिया जाना) कहीं ज़्यादा कठिन होगा, और हर ऐरे-गैरे को IIT का सपना बेच देने की कोचिंग उद्योग की प्रवृत्ति पर रोक लगा सकती है. जहां तक अभ्यर्थियों का सवाल है, बदले हुए परीक्षा पैटर्न के हिसाब से अध्ययन करना (जिनमें विस्तृत जवाब भी शामिल होंगे) उन्हें खुद की वास्तविक क्षमताओं और योग्यताओं को जांचने का मौका देगा. MCQ वाले सवालों को हल कर हासिल की गई 'कामयाबी' से विद्यार्थियों में अपनी क्षमताओं को लेकर गलत स्व-आकलन पैदा हो सकता है, जो गलत उम्मीदें जगा देगा. खुद के प्रति ऐसी गलतफहमी होना उस स्थिति में आसान नहीं होगा, जब विस्तृत जवाब लिखने होंगे, जिनके लिए विषय की मूलभूत जानकारी की ज़रूरत होती है.

सुधारों के लिए एक अन्य सुझाव भी दिया जाता रहा है, लेकिन उस पर गंभीरता से कभी चर्चा या बहस नहीं की गई. इस सुझाव के केंद्र में है JEE रैंक की अहमियत को घटा देना, और प्रवेश के समय शाखाएं आवंटित करते हुए JEE रैंक का इस्तेमाल नहीं किया जाना. JEE रैंक के स्थान पर पहले साल में विद्यार्थियों द्वारा हासिल किए गए अंकों को शाखा आवंटित करने का आधार बनाया जाए. इससे न केवल IIT-JEE में शीर्ष रैंक हासिल करने की मारामारी खत्म होगी - साथ ही कुछ हद तक कोचिंग टॉपर बनने का दबाव भी - बल्कि इससे IIT में पहुंचने के बाद विद्यार्थी पहले साल में पढ़ाई पर पूरी तरह फोकस करने के लिए 'मजबूर' होंगे. इससे एक और फायदा यह होगा कि हो सकता है कि कुछ विद्यार्थी पिछले सालों के घिसे-पिटे ट्रेंड की नकल करने के स्थान पर ऐसी शाखाएं चुन लें, जिनमें वास्तव में उनकी रुचि है. बेशक, इस विचार पर भी आगे विस्तार से विचार किए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि इसमें बहुत-सी संभावनाएं होंगी, जैसे शीर्ष 10,000 विद्यार्थियों को अलग-अलग IIT में भेज दिया जाएगा, या विद्यार्थियों को (JEE रैंक के मुताबिक) अपनी पसंद का संस्थान चुनने का विकल्प दिया जाए, शाखा नहीं. इन विचारों का विरोध किया जा सकता है, क्योंकि इससे मौजूदा संतुलन बिगड़ जाएगा, खासतौर पर बेहद मांग में रहने वाले 'संस्थान-शाखा-JEE रैंक' कॉम्बिनेशन (उदाहरण के लिए IIT बॉम्बे - कम्प्यूटर साइंस - शीर्ष 100 रैंक) खत्म हो जाएंगे.

एक और चिंता जो अक्सर सामने आती है, वह है कि क्यों IIT-JEE को इतना कठिन होना चाहिए. सबसे पहले, IIT-JEE मोटे तौर पर उसी पाठ्यक्रम पर आधारित रहता है, जो CBSE 12वीं कक्षा तक पढ़ाती है, सो, यह कहना तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है कि यह बहुत ही व्यापक तरीके से विषयों को कवर करता है. दूसरे, IIT-JEE के 'कठिन' होने का आरोप बोर्ड परीक्षाओं से तुलना कर लगाया जाता है. यह तुलना ही गलत है, क्योंकि दोनों परीक्षाएं कई मायनों में कतई अलग हैं - किसी भी प्रतियोगी परीक्षा का उद्देश्य मेरिट लिस्ट में अभ्यर्थियों को चुनना होता है, सो, इसे जानबूझकर बोर्ड परीक्षा की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण बनाना ही होगा, क्योंकि बोर्ड परीक्षा का उद्देश्य सिर्फ इतना जानना होता है कि विद्यार्थी मोटे तौर पर अपने विषय को कितना जानता है. इसके अलावा, बोर्ड परीक्षा आमतौर पर पर्याप्त रूप से विश्लेषणात्मक नहीं होतीं, और वे 'सख्त' और 'रट्टा लगाने' (रटने) वाले तरीके पर आधारित होती हैं. लिहाज़ा, इसके विपरीत, कोई भी ऐसा प्रश्नपत्र, जिसमें सोचने, गहराई से विषय को समझने की ज़रूरत हो, दिक्कत ही पैदा करेगा.

आदर्श रूप से किसी भी पर्याप्त रूप से सक्षम विद्यार्थी - जिसे बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंक हासिल हुए हों - को किसी प्रतियोगी परीक्षा में भी अच्छा नतीजा हासिल करने में सक्षम होना चाहिए. लेकिन जिन पर सीमाओं का ज़िक्र हमने ऊपर किया, उनकी वजह से ज़रूरी नहीं है कि हर बोर्ड टॉपर के दिमाग में विषय बिल्कुल स्पष्ट हों, और उसमें विश्लेषणात्मक गुण मौजूद हों. सो, IIT-JEE में पूछे जाने वाले सवाल मुश्किल होते हैं. इसी वजह से संस्थानों से अपनी प्रवेश परीक्षा को बोर्ड परीक्षा के हिसाब से 'एडजस्ट' करने के लिए कहा जाना जायज़ प्रस्ताव नहीं है.

तीसरे, मेरिट लिस्ट तैयार करने के उद्देश्य से ली जाने वाली किसी भी परीक्षा की मूलभूत खासियत उसका 'कठिन' होना ही होता है. अगर हम इसे बहुत 'सरल' बना देंगे, तो ऊंचे अंक पाने वालों की तादाद बहुत ज़्यादा हो जाएगी, और अगर इसे 'बहुत कठिन' बना दिया गया, तो विद्यार्थियों का जमघट कम अंक पाने वालों की तरफ हो जाएगा. दोनों ही नतीजे विद्यार्थियों की रैंक सूची बनाने में सहायक सिद्ध नहीं हो सकते, सो, सही तरीके से तैयार की गई प्रतियोगी परीक्षा को कहीं बीच का रास्ता ही अपनाना होगा, और हमेशा 'कठिन' होना होगा. MCQ से पहले के युग में भी IIT-JEE परीक्षा अब से ज़्यादा कठिन हुआ करती थी, और इसकी वजह यह थी कि उस वक्त के लम्बे सवालों के लिए गहराई से अध्ययन करना होता था, जबकि मौजूदा फॉरमैट में हर सवाल के लिए कुछ ही मिनट दिए जाते हैं, जिसका अर्थ हुआ कि पूछे गए सवाल कम जटिल हैं.

इन कदमों से कोचिंग खत्म नहीं हो जाएगी. जब तक अपर्याप्त और खराब स्कूली शिक्षा मौजूद रहेगी, और अभ्यर्थियों व उपलब्ध सीटों की संख्या में भारी अंतर बना रहेगा, कोटा वाले प्रकार समेत सभी तरह की कोचिंग फलती-फूलती रहेगी. याद रखें, सिर्फ अच्छी स्कूली शिक्षा ही उन्हें अप्रासंगिक बना सकती है.

अनुराग मेहरा कैमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर तथा IIT बॉम्बे में सेंटर फॉर पॉलिसी स्टडीज़ में एसोसिएट फैकल्टी हैं.

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