क्या मीडिया 5 प्रतिशत जीडीपी की सच्चाई छिपा रहा है?

भारत की अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है. इसे छिपाने की तमाम कोशिशों के बीच आज जीडीपी के आंकड़े ने ज़ख्मों को बाहर ला दिया है.

क्या मीडिया 5 प्रतिशत जीडीपी की सच्चाई छिपा रहा है?

नई दिल्ली:

भारत की अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है. इसे छिपाने की तमाम कोशिशों के बीच आज जीडीपी के आंकड़े ने ज़ख्मों को बाहर ला दिया है. सड़क पर बेरोज़गारों की फौज पुकार रही है कि काम नहीं है, दुकानदारों की फौज कह रही है कि मांग रही है और उद्योग जगत की फौज पुकार रही है कि न पूंजी है, न मांग है और न काम है. नेशनल स्टैस्टिकल ऑफिस के आंकड़ों ने बता दिया कि स्थिति बेहद ख़राब है. छह साल में भारत की जीडीपी इतना नीचे नहीं आई थी. तिमाही के हिसाब से 25 तिमाही में यह सबसे ख़राब रिपोर्ट है. 2013 की पहली तिमाही की जीडीपी 4.3 प्रतिशत थी, उसके बाद इस साल की पहली तिमाही की जीडीपी सबसे कम है.

2019-20 की पहली तिमाही की जीडीपी 5 प्रतिशत आंकी गई है. भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 35.85 लाख करोड़ है. जानकार कह रहे थे कि पहली तिमाही की जीडीपी 5.8 प्रतिशत रहेगी. लेकिन इससे भी काफी कम जीडीपी दर्ज हुई है. 5 प्रतिशत की जीडीपी इस बात की पुष्टि करती है कि भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ चुकी है. यह गिरावट अचानक नहीं आई है. 2018-19 की पहली तिमाही के बाद से ही इसकी शुरुआत हो चुकी थी. डेढ़ साल हो गए मगर हालात में सुधार नहीं हो सका है. अप्रैल-जून की तिमाही - 8.0%, जुलाई-सितंबर की तिमाही- 7.0%, अक्तूबर-दिसंबर की तिमाही-6.6%, जनवरी-मार्च की तिमाही 5.8%. और अब मार्च से जून की जीडीपी 5.8 से घट कर 5 प्रतिशत पर आ गई है. कृषि, मत्स्य पालन, खनन, मैन्यूफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, रीयल इस्टेट की हालत ख़राब है. कृषि क्षेत्र में विकास दर 2 प्रतिशत है. 2018-19 की पहली तिमाही में 5.1 प्रतिशत थी जो अब 2 प्रतिशत आ गई है. हमें पता भी नहीं है कि गांवों में क्या हालत है लेकिन बिजनेस अखबारों में ग्रामीण क्षेत्रों से मांग में भारी कमी की खबरें दबी ज़ुबान में आ रही थीं.

मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है. इसी सेक्टर के लिए मेक इन इंडिया लाया गया था. मार्च की तिमाही में 3.1 प्रतिशत ग्रोथ रेट था जो अब 1 प्रतिशत से भी नीचे आ गया है. मैन्यूफैक्चरिंग में मात्र 0.6 प्रतिशत की विकास दर रही है. 2018-19 की पहली तिमाही में 12.1 प्रतिशत विकास दर थी. डेढ़ साल में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में 11.5 प्रतिशत की गिरावट हुई है.

यह वो सेक्टर हैं जहां संगठित और असगंठित रोज़गार अधिक होता है. अगर यहां डेढ़ साल से गिरावट आ रही है तो आप समझ सकते हैं क्यों न्यूज़ चैनलों पर छापों और नेशनल सिलेबस की खबरें बढ़ गई हैं. न्यूज़ चैनलों की रिकॉर्डिंग निकाल कर देखिए, भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट की आहट तक सुनाई नहीं देगी. तरह तरह के मुद्दों पर डिबेट पैदा किए जा रहे हैं जैसे दि‍वाली के समय नकली मावे की मिठाई बनती है उसी तरह चैनलों पर नकली मुद्दों पर डिबेट हो रहा होता है. ऐसा कोई सेक्टर नहीं है जो गहरे संकट से नहीं गुज़र रहा है. हम नहीं जानते हैं कि बेरोज़गारों पर क्या गुज़र रही है, जिनकी नौकरियां जा रही हैं उन पर क्या गुज़र रही है, जो व्यापारी कर्ज़ के बोझ से बर्बाद हो रहे हैं उनकी कहानी कहीं नहीं है. कोई भी बड़ा सेक्टर नहीं है जो डबल डिजिट में ग्रोथ कर रहा हो. ट्रेड, होटल, संचार के सेक्टर में ही 7 प्रतिशत की दर से विकास हुआ है. इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर में सबसे अधिक विकास दर्ज हुआ है, 8.6 प्रतिशत. उसके बाद कंस्ट्रक्शन सेक्टर में भी गिरावट है. सीमेंट, स्टील में गिरावट है. माइनिंग सेक्टर का भी बुरा हाल है.

नवंबर 2016 में नोटबंदी हुई थी. तब कहा गया था कि आने वाले समय में अच्छा होगा. फिर 1 जुलाई 2017 को जीएसटी लागू हुई, कहा गया कि आने वाले समय में अच्छा होगा. लेकिन अभी तक वो समय नहीं आया है. सारे बड़े सेक्टर रेंगते नज़र आ रहे थे. हाल ही में पूजा मेहरा ने द हिन्दू में विश्लेषण किया था कि नोटबंदी के बाद से कंपनियों का कुल निवेश 60 प्रतिशत घट गया. पहले 10 लाख करोड़ से अधिक निवेश हो रहा था जो 2017-18 में 4 लाख 25 हज़ार करोड़ पर आ गया. इतनी कमी आ गई. फिर भी नोटबंदी के फायदे गिनाए जाते रहे. रिज़र्व बैंक की अभी अभी रिपोर्ट आई है. दावा किया जाता है कि कैशलेश इकोनमी की तरफ बढ़ रहे हैं मगर डेटा आता है कि कैश का चलन बढ़ गया है. नगदी हस्तातंरण में 17 प्रतिशत की वृद्धि‍ हो गई है.

71 हज़ार करोड़ से अधिक के बैंक फ्रॉड दर्ज हुए हैं जो पिछले साल की तुलना मे 74 प्रतिशत अधिक है.

हर दिन लोग हमें नौकरियां जाने को लेकर लिख रहे हैं. कैजुअल वर्कर से लेकर मध्यम श्रेणी के मैनजरों का हाल बुरा है. यहीं दिल्ली में कई जगह काम आधा हो गया है वहीं पर जहां पर चैनलों के मुख्यालय हैं लेकिन आपको यह हकीकत नज़र नहीं आएगी.

फरीदाबाद में एक फैक्ट्री में कई मशीनों पर धूल जम गई है. ओल्ड फरीदाबाद की इस फैक्ट्री में कमीज़ के कालर में लगने वाले टेप्स जैसी सामग्री बनती है. पिछले छह सात महीने से ये मशीनें धूल खा रही हैं और मालिक ब्याज़ गिन रहा है. सिर्फ दो मशीनों का दाम 48 लाख है लेकिन काम कुछ नहीं है. यहां पर मशीन बेचने वाले शख्स से भी मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि आज कल मशीन भी कोई नहीं ख़रीद रहा है. लगभग 60 से 70 प्रतिशत मशीन की बिक्री कम हो गई है. इस फैक्ट्री में जितने लोग काम करते हैं पहले 24 घंटे काम करते थे, काम बंद नहीं होता था, लेकिन आज कल हफ्ते में दो या तीन दिन छुट्टी होती है. इसका असर सैलरी पर भी पड़ रहा है. 6 से 8 करोड़ का बिजनेस घट कर 2 से 3 करोड़ पर आ गया है. इसके मालिक ने बताया कि पास में एक और फैक्ट्री है जो बंद हो गई है.

उसके बाद सुशील महापात्र दिल्ली के कबीरनगर गए. इस जगह पर जीन्स पैंट या शर्ट की स्टीचिंग का काम होता है. शुक्रवार के कारण यहां मार्केट बंद था लेकिन फैक्ट्री वालों ने बताया कि दूसरे दिन भी आते तो यही हाल होता.

यह सब खुदरा काम है. दिहाड़ी मज़दूरों की इन कामों से कमाई होती है. यहां पर पहले छह से आठ हज़ार जिन्स स्टीचिंग के लिए आती थी जो अब चार हज़ार से भी कम हो गया है. पिछले दो महीने से मज़दूर खाली बैठे हैं. कुछ गांव लौट गए हैं और कुछ उधार मांग कर जी रहे हैं. यही हाल इस इलाके की दूसरी छोटी फैक्ट्रियों का भी है. आम तौर पर यहां घरों में लोग काम करते हैं. हर घर की यही कहानी हो गई है. कबीरनगर के ही इस रेडिमेड दुकान पर पांच दिनों से सेल का बोर्ड लगा है. लेकिन दुकान के अंदर ख़रीदार नहीं है. दुकानदार ने कहा कि माल लेने कोई नहीं आ रहा है. कई लोग आते हैं और देख कर चले जाते हैं.

शुक्रवार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के नाम होता जा रहा है. आज थोक में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय किया गया है. 2017 में 27 सरकारी बैंक हुआ करते थे, अब मात्र 12 रह गए हैं. बैंकों की क्षमता और कमज़ोरी को देखते हुए विलय किया गया है ताकि नए बैंक की बैलेंसशीट में सुधार हो. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वित्त वर्ष 18 में मात्र 2 बैंक फायदे में थे लेकिन अब 14 बैंक फायदे में चल रहे हैं. वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि कर्मचारियों की छंटनी नहीं होगी. बैंकों में रिस्क अफसर बाहर से भी लिया जा सकेगा. विलय से कर्ज़ देने की लागत कम होगी, बैंकों का संसाधन बढ़ेगा. उनका घाटा कम होगा.

पंजाब नेशनल बैंक के साथ ऑरियंटल बैंक एंड कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक का विलय किया गया है. कैनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक का विलय हो गया है. यूनियन बैंक, आंध्र और कारपोरेशन बैंक का विलय किया गया है. इंडियन बैंक और इलाहाबाद बैंक का विलय हुआ है.

इसी अप्रैल से बैंक आफ बड़ौदा के साथ देना बैंक और विजया बैंक का विलय हुआ है. विलय के साथ ही बैंक ऑफ बड़ौदा देश का तीसरा सबसे बड़ा बैंक बन गया था. उसका कुल कारोबार 15 लाख करोड़ का हो गया था. भारत में पहली बार तीन बैंकों के विलय की यह पहली घटना थी. विलय के समय सरकार ने नए 5000 करोड़ रुपये भी दिए थे. वित्त मंत्री ने कहा कि 10 बैंकों को 55,250 करोड़ दिए जाएंगे. इसमें से पंजाब नेशनल बैंक को 16000 करोड़, यूनियन बैंक आफ इंडिया को 11,700 करोड़, बैंक और बड़ौदा को मिलेगा 7000 करोड़. कनरा बैंक को 6500 करोड़, इंडियन बैंक को 2500 करोड़ दिया, इंडियन ओवरसीज़ बैंक को 3,800 करोड़ दिया जाएगा. सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को 3,300 करोड़ दिए जाएंगे.

ये पैसे इसलिए दिए गए हैं ताकि बैंक कंपनियों को कर्ज़ दे सकें. व्यापार और उद्योग को कर्ज़ की कमी न हो. बैंकों का प्रबंधन बोर्ड के प्रति जवाबदेह होगा. बैंक चीफ रिस्क अफसर बाहर से नियुक्त कर सकेंगे. उनकी सैलरी सरकार तय नहीं करेगी. बैंकों में कार्यकारी निदेशकों की संख्या 4 कर दी गई. कई आर्थिक जानकार वित्त मंत्री के कदम की तारीफ कर रहे हैं. उनका मानना है कि यह सही फैसला है और आगे चल कर अर्थव्यवस्था को ठोस आधार देगा. मगर बैंकिंग यूनियन के नेता विरोध कर रहे हैं. 3 लाख की सदस्यता वाली ऑल इंडिया बैंकिंग ऑफिसर्स कांफेडरेशन ने कहा है कि स्टेट बैंक के मर्जर के बाद भी वित्तीय संकट से नहीं उबरा है. बैंक ऑफ बड़ौदा के मर्जर के कुछ खास नतीजे नहीं आए हैं. 10 बैंकों के विलय से चार बैंक बनाकर कुछ हासिल नहीं होगा. सिर्फ बैलेंसशीट में नॉन प्रॉफिट एसेट नहीं दिखेगा. असलीयत नहीं बदलेगी. कई लोगों को यह भी लगता है कि बैंकों में अब नई भर्ती नहीं आएगी. सरकार बैंकरों की सैलरी को लेकर बात नहीं करती और न ही नोटबंदी के समय उनके योगदान को याद करती है.

इसी बहाने अब आते हैं ग़म ए रोज़गार के सवाल पर. ठीक है कि नौजवान रोज़गार के नाम पर वोट नहीं करते हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे रोज़गार के लिए तैयारी नहीं करते हैं. बेरोज़गारी का एक असर शिक्षा लोन पर पड़ा है. जिन लोगों ने लाखों लोन लेकर इंजीनियरिंग की है, उनकी नींद उड़ी हुई है. नौकरी है नहीं और सर पर लोन का बोझ हो गया है. अब चुनाव भी नहीं है कि कोई शिक्षा लोन माफ करने का अभियान चलाए. सरकारी परीक्षाओं का हाल बुरा है. कोई सरकार इस पर बात नहीं कर रही है.

स्टाफ सलेक्शन कमीशन की CGL17 की परीक्षा का रिज़ल्ट अगस्त 2019 के बीत जाने पर भी नहीं आया है. हताश नौजवान 29 अगस्त को ट्रेंड कराने लगे. उसके पहले स्टाफ सलेक्शन कमीशन ने बयान जारी किया था कि नंवबर तक रिज़ल्ट आ जाएगा लेकिन छात्रों को भरोसा नहीं हो रहा है. एसएससी का कहना है कि 2017 की परीक्षा अदालत में फंसी थी तब तक 2018 की परीक्षा शुरू हो गई, इस वजह से देरी हुई. नौजवानों को यह जवाब नहीं जंच रहा है. उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट 9 मई 2019 के अपने फैसले से रोक हटा दी थी. अब तक रिज़ल्ट आ जाना चाहिए था. छात्रों ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और जितेंद्र सिंह को भी टैग किया है.

यही हाल रेलवे की भर्ती परीक्षा का भी है. बड़ी संख्या में छात्रों के फार्म फोटो या अन्य तकीनीकी कारणों से फार्म रिजेक्ट हो गया है. ये काफी परेशान हैं. दूर दराज़ के बेहद गरीब छात्र हमें मेसेज करते हैं कि 500 रुपये लगे हैं फार्म भरने के, हमें मौका क्यों नहीं मिल रहा है.

30 अगस्त को रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड ने एक जवाब चस्पा किया है. इसमें लिखा है कि 17 अगस्त से 23 अगस्त के बीच एक लिंक खोला गया था जिसमें छात्रों से शिकायत मांगी गई थी. इन शिकायतों की स्क्रूटनी हो रही है. बहुत छात्रों ने शिकायत की थी कि उन्हे लिंक नहीं मिला. रेलवे बोर्ड ने कहा है कि इसलिए फिर से तारीख बढ़ा दी गई है. अब 31 अगस्त से 6 सितंबर के बीच छात्र अपनी शिकायत दर्ज करा सकेंगे. जो फैसला होगा उसे उम्मीदवार को मानना ही होगा. सभी से कहा गया है कि वे रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड की वेबसाइट देखते रहें.

इस बीच रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड जूनियर इंजीनियर की परीक्षा चल रही है. छात्रों के पास प्रश्नों के स्क्रीन शॉट घूमने लगे हैं. इससे आशंका हो रही है कि कहीं प्रश्न पत्र लीक तो नहीं हुआ. बोर्ड के अफसरों ने इंडियन इक्सप्रेस से कहा कि हो सकता है कि कोई मोबाइल फोन लेकर अंदर चला गया हो. इसकी जांच हो रही है. मुंबई डिविजन ने इस मामले में एफआईआर दर्ज किया है.

प्रयागराज में छात्र रिज़ल्ट के लिए आंदोलन कर रहे हैं. दावा तो करते हैं कि चार लाख परीक्षार्थी रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहे हैं मगर इस प्रदर्शन में चार हज़ार भी नहीं गए हैं. इंटरकॉलेज के शिक्षकों के लिए 10,768 पदों के लिए 29 जुलाई 2018 को परीक्षा हुई थी मगर आज एक साल बीत जाने के बाद भी 8 विषयों के रिज़ल्ट नहीं आए हैं और अभी तक किसी की ज्वाइनिंग नहीं हुई है. जिनके रिज़ल्ट आ गए हैं उनकी भी नहीं. परीक्षार्थियों का दावा है कि उप मुख्यमंत्री ने विधानसभा में आश्वासन दिया था कि सितंबर तक ज्वाइनिंग हो जाएगी मगर आज तक पूरी नहीं हुई. जांच और कोर्ट केस के कारण आठ विषयों का रिज़ल्ट रोक दिया गया. इसी परीक्षा के रिज़ल्ट को लेकर परीक्षार्थियों ने आंदोलन किया और पुलिस की लाठी का भी अनुभव किया. छात्रों का कहना है कि बीस बार आयोग का रिजल्ट के लिए घेराव कर चुके हैं.

कोई भी परीक्षा बिना चोरी के, बिना लीक के और बिना कोर्ट के पूरी नहीं होती है. अगर आप सरकारी नौकरियों के परीक्षाथी हैं तो आप किसके भरोसे हैं बताने की ज़रूरत नहीं है. यूपी में 69,000 शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया इम्तहान के आठ महीने बाद तक पूरी नहीं हो सकी है. रिज़ल्ट को लेकर धरना प्रदर्शन होता रहता है. पहले चरण की 68,500 शिक्षकों की बहाली भी पूरी नहीं हुई है. मध्यप्रदेश में 19000 शिक्षकों की बहाली के रिजल्ट आ गए हैं. उम्मीद है जल्दी ही नियुक्ति पत्र मिल जाएगा लेकिन 11,000 संवर्ग 2 यानी माध्यमिक शिक्षकों का परिणाम अभी नहीं आया है. बिहार से एक छात्रा ने लिखा है कि दारोगा की बहाली के लिए लड़कियों की ऊंचाई 160 सेंटीमीटर रखा गया है. इस कारण बहुत सी लड़कियां दारोगा बहाली की परीक्षा में नहीं बैठ पाएंगी। नरकटियागंज की अनामिका ने लिखा है कि बिहार में लड़कियों के लिए डीएसपी बनने के लिए 155 सेंटीमीटर ऊंचाई चाहिए और दारोगा बनने के लिए 160 सेंटीमटर. हरियाणा में 158 सेंटीमीटर है तो पंजाब में 160 सेंटीमीटर, यूपी में 152 सेंटीमीटर है. अलग अलग राज्यों में ऊंचाई को देखते हुए लगता है कि सेंटीमीटर की शर्तें हास्यास्पद हैं. पुलिस का काम अब ऊंचाई पर निर्भर नहीं करता. आप सोच सकते हैं कि परीक्षार्थियों को किस किस स्तर पर लड़ना पड़ता है. बगैर प्रदर्शन धरना के कुछ नहीं होता.

उम्मीद है जल्दी एलान हो जाएगा कि बिहार की लड़कियां बगैर हाईट की चिन्ता किए पुलिस इंस्पेक्टर बन सकेंगी. जिस तादाद में मुझे मेसेज मिलते हैं मुझे अलग ही हिन्दुस्तान दिखता है. जहां सिस्टम काम नहीं करता है. इनका कोई कसूर नहीं है फिर भी परीक्षा के नाम पर इन्हें मानसिक यातना दी जा रही है. काश कोई मंत्री जाग जाता और सिस्ट्म को ठीक कर देता. एक परीक्षा का नाम लूं तो पंजाब से मेसेज आ जाते हैं, राजस्थान से आ जाते हैं, बंगाल बिहार और यूपी से तो पूछिए मत. जितना दिखाता हूं उससे ज्यादा नहीं दिखा पाता.

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पटना हमारे दफ्तर में डेंटिंस्ट पहुंच गएं. मनीष कुमार को व्यथा बताने लगे कि प्राइम टाइम में दिखवा दें वर्ना सरकार ध्यान नहीं देगी. 2015 में 558 डाक्टरों का चयन हो गया था लेकिन अभी तक इनकी नियुक्ति नहीं हुई है. चार साल से ये पोस्टिंग का इंतज़ार कर रहे हैं. फरवरी 2019 में काउंसलिंग हो गई थी तब भी नियुक्ति नहीं हो पाई है. आप सोच सकते हैं कि सिस्टम ने नागरिक की क्या हालत कर दी है. यह भी सोचिए कि जब ये सिस्टम में जाएंगे तो क्या कुछ बेहतर करेंगे. आप यकीन करेंगे कि बिहार में 36 साल बाद दंत चिकित्सकों की नियुक्ति हो रही है. अगर इनकी बात सही है तो क्या गलत है आप समझ सकते हैं.