क्या कॉर्पोरेट जगत सरकार से डरा हुआ है?

81 साल के राहुल बजाज ने सिर्फ डर के माहौल की बात नहीं कही बल्कि अपनी उस विरासत की रेखा भी खींच दी जहां से वे आते हैं. राहुल बजाज ने सिर्फ भय के माहौल की बात नहीं की बल्कि वो सवाल कर दिया जो आज के पत्रकार अमित शाह से शायद ही कर पाते.

एक प्रश्न है. 20 अंकों का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न है. भय का माहौल है यह बोलने से साबित होता है या नहीं बोलने से साबित होता है. क्योंकि राहुल बजाज के बोलने के बाद कहा जाने लगा कि भय का माहौल होता तो आप बोल नहीं पाते. चूंकि आप बोल सके इसलिए भय का माहौल नहीं है. आप बोल पा रहे हैं इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि अमित शाह विस्तार से जवाब दे रहे हैं. इससे साबित होता है कि भय का माहौल नहीं है. 81 साल के राहुल बजाज ने सिर्फ डर के माहौल की बात नहीं कही बल्कि अपनी उस विरासत की रेखा भी खींच दी जहां से वे आते हैं. राहुल बजाज ने सिर्फ भय के माहौल की बात नहीं की बल्कि वो सवाल कर दिया जो आज के पत्रकार अमित शाह से शायद ही कर पाते. गांधी के हत्यारे को देशभक्त कहने को लेकर, साध्वी प्रज्ञा को टिकट देने को लेकर सवाल कर दिया. सामने अमित शाह बैठे थे जिन्होंने कहा था कि साध्वी प्रज्ञा को टिकट देना सत्याग्रह है. सवाल कर रहे थे राहुल बजाज जिनके दादा जमना लाल बजाज ने वर्धा में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की थी.

इस बयान को लेकर यह भी रिपोर्टिंग हो रही है कि किस किस ने इसे नहीं छापा, छापा तो भीतर के पन्नों में छापा या गोल ही कर दिया. राहुल बजाज ने जो बात उद्योग जगत के लिए कही वो मीडिया के लिए भी इम्तहान बन जाता है. राहुल बजाज की बात इसलिए भी और बड़ी हो गई कि वे गृहमंत्री अमित शाह के सामने बात कर रहे थे. इससे अमित शाह भी रिलैक्स हो गए और उन्होंने विस्तार से जवाब दिया और कहा कि 'अगर डर का माहौल है तो इस डर के माहौल को दूर करने की कोशिश करेंगे. आपके सवाल के बाद मुझे नहीं लगता कि किसी को डर है. बजाज साहब एक हवा बनाई गई है. साध्वी प्रज्ञा का बयान आते ही बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने आलोचना की. उन्होंने संसद में माफी मांगी. उनकी बात को लेकर कंफ्यूजन है तो उधम सिंह और गोड्से की बात कर रही थीं मगर बीजेपी ऐसे बयान को सपोर्ट नहीं करती. मगर फिर भी ऐसे किसी भी बयान का बीजेपी या सरकार समर्थन नहीं कर सकती है. हम घोर निंदा करते हैं. यह कहने में ज़रा भी झिझक नहीं है. जहां तक लिचिंग का सवाल है, मैं इतना ही कह सकता हूं कि लिचिंग पहले भी होता था, आज भी होता है. शायद पहले से आज कम होता है. यह भी ठीक नहीं है कि किसी का कंविक्शन नहीं हुआ है. लिचिंग वाले बहुत सारे केस समाप्त भी हो गए. सज़ा भी हुई है मगर मीडिया में छपती नहीं है.'

यह अच्छी बात है कि अमित शाह ने ठीक से जवाब दिया लेकिन उनके जवाब से अलग ही सवाल पैदा हो गए. जैसे राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो ने लिचिंग का डेटा ही नहीं छापा, तो फिर अमित शाह कहां से कह रहे हैं कि लिंचिंग कम हो गई है. जबकि प्राइवेट वेबसाइट और संस्थाओं की गिनती कहती है कि लिचिंग बढ़ी है. क्विंट वेबसाइट पर लिचिंग की घटना ट्रैक की जाती है. 2015 से अभी तक 113 मौतें हुई हैं.

वैसे क्या अमित शाह पूरी तरह से ग़लत बोल रहे थे कि लिचिंग के मामले में सज़ा हुई है. द प्रिंट ने 9 अक्तूबर की अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि झारखंड में लिंचिंग मामले में 89 लोगों को सज़ा हुई है. यह भी तो है कि लिचिंग के आरोपी जब ज़मानत पर बाहर आए तो उनकी ही पहली सरकार के मंत्री जयंत सिन्हा माला पहना रहे थे. झारखंड में ही स्वामी अग्निवेश को सरेआम मारा गया मगर इस मामले में कुछ नहीं हुआ. वे किसी तरह बच गए. लिचिंग को लेकर मीडिया रिपोर्ट अलग अलग तरह के हैं. कहीं कमज़ोर धारा लगाकर आरोपी को बचाया जा रहा है तो कहीं आरोपी के ज़मानत पर बाहर आने पर भारत माता की जय ले कितने हुए है और कितने मामलों में सज़ा हुई है.

बुंदेलखंड के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की भीड़ ने हत्या की. अभी तक सज़ा नहीं हुई है. पहलू खान के मामले में अभी तक कुछ नहीं हुआ है. सरकार ही ठीक से बता दे कि लिचिंग के कितने मामलों में सज़ा हुई है और राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो ने लिंचिंग की गिनती क्यों नहीं की है.

राहुल बजाज ने बोलने के बाद जिस माहौल की बात की वो माहौल बनाने वालों ने साबित भी कर दिया. जल्दी ही उन्हें ट्रोल किया जाने लगा. उनके इस दावे की छानबीन होने लगी कि उन्होंने कांग्रेस की कभी तारीफ की थी या नहीं. मंत्री भी दूसरी तरह से हमला करने लगे. उनकी बात को देश को खतरा बताया जाने लगा. बीजेपी समर्थकों ने 2013 का एक वीडियो निकाल लिया जिसमें राहुल बजाज राहुल गांधी की तारीफ कर रहे हैं कि राहुल गांधी समय पर आए. सीआईआई के अलावा और भी जगह जाएं. उनकी पार्टी और देश का फायदा होगा. तब भी वे कह रहे हैं कि मंज़ूर ही नहीं किसी की बड़ाई करना, लेकिन मैं प्रभावित हुआ. उस लिहाज़ से तो राहुल बजाज ने अमित शाह से भी कहा कि आप लोग अच्छा काम कर रहे हैं. यही नहीं 2016 में राहुल बजाज ने जमना लाल बजाज फाउंडेशन के कार्यक्रम में मोदी सरकार के कुछ फैसलों की तारीफ भी की थी. बीजेपी समर्थक ये भी बता सकते थे. बीजेपी समर्थक यह भी बता सकते थे कि वाजपेयी सरकार ने भी अच्छा किया था जब मार्च 2001 में राहुल बजाज को पद्म भूषण दिया था. पत्रकार राशिद किदवई ने लिखा है कि आपातकाल के समय राहुल बजाज के चाचा के यहां छापे पड़े थे. उन्हें तंग किया गया था. बहरहाल कोई एक बयान दीजिए, हज़ार बयानों को लेकर निकाल उस बयान के मूल को गायब कर देना, इस दौर की प्रवृत्ति हो गई है. इधर उधर से इतना सारा कह दिया गया है कि मूल सवाल गायब हो गया है. राहुल बजाज पर मंत्रियों की तरफ से हमला हुआ. वित्त मंत्री ने कह दिया कि धारणाओं के आधार पर दिए गए ऐसे बयान राष्ट्रहित को नुकसान पहुंचाते हैं. निर्मला सीतारमन ने संसद में भी इस पर बयान दिया.

बाद में संसद में निर्मला सीतारमण ने कहा कि वे आलोचनाएं सुन रही हैं. कदम भी उठा रही हैं. उन्हें तो सबसे खराब वित्त मंत्री कहा गया. आज उम्मीद थी कि उद्योग जगत से बड़े बड़े लोग सामने आ जाएंगे और सरकार की साइड लेंगे. न तो कोई उल्लेखनीय व्यक्ति राहुल बजाज के खिलाफ आया और न ही सरकार के समर्थन में आया. उद्योग जगत के संगठन सीआईआई या फिक्की ने न तो राहुल बजाज के समर्थन में बयान दिया और न ही आलोचना की. बल्कि कुछ कहा ही नहीं.

राहुल बजाज ने अपनी बात में कहा था कि कोई उद्योगपति यह बात नहीं बोलेगा कि डर है. मेरे साथी हंस रहे हैं कि जाओ जाकर सूली पर चढ़ जाओ. राहुल बजाज के बेटे राजीव बजाज ने कहा कि उनके पिता साहसिक हैं. भले सामने से कोई सपोर्ट न करे बल्कि बहुत से लोग किनारे खड़े होकर ताली बजा रहे हैं. उनका यह इंटरव्यू इकोनमिक टाइम्स में छपा है. बायोकॉन की किरण मजूमदार शॉ ने श्रीनिवासन जैन से इस बारे में बात की. किरण मजूमदार शॉ इस बात को लेकर पहले से बोलती रही हैं. उन्होंने बताया था कि जब कैफे कॉफी डे के संस्थापक की आत्महत्या के बारे में टैक्स आतंकवाद के बारे में काफी कुछ कहा था तब सरकार के अफसर ने फोन कर कहा था कि मैं दोस्त के तौर पर बता रहा हूं प्लीज़ ऐसे बयान मत दीजिए. इस बार किरण मजूमदार शॉ ने कहा है कि राहुल बजाज ने ठीक किया लेकिन अमित शाह का जवाब भी ठीक था. लेकिन वे निर्मला सीतारमण की बात से सहमत नहीं हैं कि राहुल बजाज का बोलना राष्ट्रहित को नुकसान पहुंचाता है. हम सभी राष्ट्रवादी हैं.

एक डेटा है. उस डेटा को देखें तो दो बातें लगेंगी. या तो इस मंदी में उद्योग जगत डर के मारे चंदा दे रहा है या फिर खुशी खुशी चंदा दे रहा है. मार्च 2018 से अक्तूबर 2019 के बीच उद्योग जगत ने 6218 करोड़ के इलेक्टोरल बान्ड ख़रीदें हैं. अब 6000 करोड़ का सबसे अधिक हिस्सा किस पार्टी के खाते में गया. यह तो ऑडिट के बाद ही पता चलेगा. राहुल बजाज ने भी ढंग से ही बात कही थी कि एक माहौल होना चाहिए ताकि हम आलोचना कर सकें. उसके बाद तो राहुल बजाज की पूरी कुंडली निकाल ली गई और उसे पब्लिक में बांचा जाने लगा. सुविधा हो तो आज़ादी की लड़ाई के नायक राष्ट्र के नायक और असुविधा हो तो आज़ादी की लड़ाई के नायक कांग्रेस के नायक. बात उनके कमलनयन बजाज तक पहुंच गई. फिर स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज तक पहुंच गई जिनका पूरा जीवन आज़ादी के संग्राम में सक्रिय भागीदारी में बीता. जेल भी गए और ज़मीन भी दान दी और धन भी दिया. गांधी कहते थे कि ऐसा कोई काम नहीं है जो जमना लाल बजाज से कहा हो और उन्होंने तन मन धन से मदद न की हो. गांधी जी उन्हें अपनी पांचवीं संतान मानते थे. बीएचयू की लाइब्रेरी के लिए 50000 रुपया चंदा दिया. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के ट्रस्टी डॉ. ज़ाकिर हुसैन ने बोर्ड के सदस्यों को लिखा कि अगर पैसे की व्यवस्था नहीं होगी तो अगले सत्र से जामिया बंद हो जाएगी. 1928 की बात है. कई लोगों ने जवाब नहीं दिया और जिन्होंने दिया उन्होंने कहा कि हम कुछ नहीं कर सकते, बेहतर है कि आप जामिया बंद कर दें. जमना लाल बजाज मदद के लिए सामने आए. रुपये दे दिए. जामिया बच गई. बाद में उन्हें जामिया का कोषाध्यक्ष बनाया गया. यह जानकारी जमना लाल बजाज के जीवन का बहुत छोटा सा हिस्सा है. 1921 में उन्होंने वर्धा में सत्याग्रह आश्रम शुरू किया था. बीस एकड़ ज़मीन दी थी. विनोबा भावे को लेकर आए थे. अपने घर में पर्दा प्रथा बंद की थी. परिवार के मंदिर में दलितों के प्रवेश पर पाबंदी हटा दी. जमना लाल बजाज फाउंडेशन के नाम से एक वेबसाइट है. वहां से पूरी जानकारी मिल जाएगी. शानदार किरदार थे.

वैसे फोकस अर्थव्यवस्था पर भी रहना चाहिए. क्रिसिल नाम की रेटिंग एजेंसी ने मौजूदा वित्त वर्ष की जीडीपी दर के अनुमान में एक प्रतिशत से ज्यादा की कटौती कर दी है. पहले कहा था कि 6.3 प्रतिशत जीडीपी होगी लेकिन अब इसके 5.1 प्रतिशत रहने के अनुमान हैं. यही नहीं सीएजी की रिपोर्ट आई है. रेलवे पर. संसद में पेश हुई है.

2017-18 में रेलवे की कमाई दस साल में सबसे खराब स्तर पर चली गई. 100 रुपये कमाने के लिए रेलवे ने 98.44 रुपये लगाए. 2014-15 में 100 रुपये कमाने के लिए 91.3 रुपये लगाने पड़े थे. इसे ऑपरेटिंग रेश्यो कहते हैं. 2014-15 में 9 रुपये की कमाई थी जो घट कर 2 रुपये हो गई है. अगर रेलवे को एनटीपीसी और इरकॉन से एडवांस न मिला होता तो रेलवे के पास 5676 करोड़ का निगेटिव बैलेंस होता. यही नहीं पूंजीगत खर्च के लिए बजट सहायता और क़र्ज़ पर रेलवे की निर्भरता बढ़ी है. 2016-17 के मुक़ाबले 2017-18 में रेलवे के नेट रेवेन्यू सरप्लस में 66.10% की कमी आई है. 2016-17 में नेट रेवेन्यू सरप्लस 4913 करोड़ रुपेये था जो 2017-18 में घटकर 1665.61 करोड़ रुपये रह गया. कुल पूंजीगत खर्च में आंतरिक स्रोतों का हिस्सा भी 2017-18 में घटकर 3.01% रह गया.

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ये रिपोर्ट बेहद गंभीर है. कमाल ख़ान की रिपोर्ट बताती कि उत्तर प्रदेश में 4000 फर्जी टीचर हैं और वे मिलकर शिक्षा बजट का 10 से 15 हज़ार करोड़ रुपये चट कर जा रहे हैं. इतनी बड़ी राशि अगर फर्जी शिक्षक पर खर्च होगी तो सोचिए कि प्रतिभाशाली छात्रों के साथ कितना अन्याय हुआ होगा. कितनों के सपने बर्बाद हो गए होंगे. सिस्टम के भीतर के ये गिरोह कैसे काम करते हैं. जाने कहां कहां सफल हैं अंदाज़ा नहीं. कमाल खान की रिपोर्ट बताती है कि फर्जी शिक्षकों की संख्या 4000 से भी अधिक हो सकती है. एक शिक्षक यूपी के तीन तीन ज़िलों में एक साथ पढ़ा रहा है और तीनों के नाम, पिता के नाम और आधार कार्ड, पैन कार्ड सब एक ही हों. STF ने अब तक 4000 से ज्यादा फर्जी टीचर की पहचान की है.