क्‍या दिखावे के लिए है आदर्श आचार संहिता?

अंतिम चरण का मतदान करने के बाद लौटते हुए प्रधानमंत्री कार से बाहर लटके थे और अपनी उंगली दिखाकर इशारा कर रहे थे कि वोट किया है. आमतौर पर नेता ऐसा करते हैं लेकिन इस बार प्रधानमंत्री रोड शो की तरह उंगली दिखाते हुए चले जा रहे थे.

क्‍या दिखावे के लिए है आदर्श आचार संहिता?

वोट डालने के बाद रोड शो करते पीएम नरेंद्र मोदी

कुछ तो बात है एग्ज़िट पोल में. वरना टीवी स्टुडियो में वक्ता दो-दो घंटे नहीं बैठते, वो भी सिर्फ दो या पांच मिनट बोलने के लिए. एंकर लोग ऐसे बोल रहे हैं जैसे आंधी में अशोक का पेड़ झुक रहा हो. वो उठते हैं झुकते हैं गिरते हैं और कई बार लगता है कि गिरा ही देंगे करीब वाले वक्ता को. एग्जिट पोल चुनावी त्योहार का आख़िरी मेला है. इस मेले में लोग खूब झूला झूल रहे हैं. मज़ा आ रहा है तभी तो लोग लिफ्ट में चढ़ते उतरते वक्त पूछ रहे हैं कि बताइये कौन जीतेगा. व्हाट्सऐप खोलिए तो वहां लोग पर्सनल और कांफिडेंशियल होकर पूछ रहे हैं कि वहां नहीं तो यहां बता तो कौन जीतेगा. एग्ज़िट पोल 18 को गोल हो जाएंगे, कुछ सही होंगे कुछ गलत हो जाएंगे, फिर लोग एग्ज़िट पोल को गरियाएंगें, लेकिन अगले चुनाव में फिर से एग्जिट पोल देखने बैठ जाएंगे. यही एग्जिट पोल का जलवा है. ये वो बीमारी है जिसका इलाज कोई नहीं चाहता. चुनाव हो गए, इस चुनाव में चुनाव आयोग को लेकर क्या क्या विवाद हुए, क्या हम ऐसे दौर में फिर से आ गए हैं जहां चुनाव आयोग की ज़रा सी चूक बड़ा आशंका पैदा कर देती है. टी एन शेषण ने चुनाव आयोग को आशंकाओं से बाहर निकाला था. क्या हम चुनाव आयोग को लेकर फिर से आशंकित होने लगे हैं? पहले ईवीएम को लेकर सवाल खड़े हुए और अब सवाल इस बात पर पहुंच गया है कि चुनाव आयोग अपने फैसलों में भी बराबरी नहीं कर रहा है. क्या ऐसा है, इसका सही और संतुलित जवाब तो तभी आएगा जब चुनाव आयोग अपना पक्ष रखेगा, शायद 18 को नतीजे आने के बाद आयोग अपना पक्ष रखे.

अंतिम चरण का मतदान करने के बाद लौटते हुए प्रधानमंत्री कार से बाहर लटके थे और अपनी उंगली दिखाकर इशारा कर रहे थे कि वोट किया है. आमतौर पर नेता ऐसा करते हैं लेकिन इस बार प्रधानमंत्री रोड शो की तरह उंगली दिखाते हुए चले जा रहे थे. न भी चलते तो भी वोट देने की उनकी तस्वीर टीवी पर कई बार चलती ही मगर क्या उनका ऐसा करना रोड शो था, क्या उन्होंने मर्यादा तोड़ी है क्योंकि वे प्रधानमंत्री हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी मतदान के बाद जब उन्होंने चुनाव चिन्ह का प्रदर्शन किया था तब विवाद हुआ था. क्या प्रधानमंत्री को मतदान के लिए कुछ ऐसा करना चाहिए था जिससे लगे कि वे प्रचार कर रहे हों. फिर प्रचार बंद करने का क्या मतलब हो जाता है. यह सवाल उठे हैं. एक सवाल प्रधानमंत्री को लेकर उठे हैं और दूसरा सवाल चुनाव आयोग को लेकर उठा है कि आयोग क्या कर रहा है. प्रधानमंत्री ज़रूर नई नई चीज़ें करते हैं, सी प्लेन से उड़ जाते हैं लेकिन वोट डालने के बाद इस तरह से करना क्या आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन है, इस सवाल का जवाब तो चुनाव आयोग से ही मिलेगा. विवाद हो सकता है और विवाद हो रहा है.

क्या प्रधानमंत्री ने रोड शो किया, आचार संहिता तोड़ी, चुनाव आयोग के फैसले का इंतज़ार रहेगा लेकिन जिस वक्त यह घटना टीवी पर घट रही थी उस वक्त कई वरिष्ठ पत्रकार इसे लेकर उत्तेजित हो रहे थे.

@sagarikaghose ने लिखा कि चुनाव आयोग झुंझलाया हुआ दिख रहा है, एक तरफ एफआईआर की धमकी दे रहा है तो दूसरी तरफ मतदान के लिए रोड शो होने दे रहा है. गुजरात चुनाव का दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम यह भी रहा कि चुनाव आयोग को किस तरह से देखा गया है.

@mkvenu1 ने ट्विट किया कि वोट देने के बाद प्रधानमंत्री का रोड शो चालाकी से वोट मांगने का प्रचार लगता है. चुनाव आयोग बेबस लगता है.

@shammybaweja ने ट्विट किया कि राहुल गांधी का इंटरव्यू दिखाने के लिए चैनलों को नोटिस भेजने के एक दिन बाद चुनाव आयोग सत्तारूढ़ दल के लिए कितना सम्मान ज़ाहिर कर रहा है.

@abhishar_sharma ने ट्विट किया है कि प्रधानमंत्री रोड शो कैसे कर सकते हैं, ये तो चुनाव आयोग और उसके नियमों का खुलेआम उल्लंघन और मज़ाक उड़ रहा है.

इस बहस में राजनेता भी कूदे लेकिन उनके साथ-साथ स्तंभकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी चुनाव आयुक्तों को लेकर बहस में कूद गए.

@tavleen_singh ने ट्विट किया कि नवीन चावला मुख्य चुनाव आयुक्त बनने से पहले डायनेस्टि के निष्ठावान सेवक थे. मुख्य चुनाव आयुक्त एम एस गिल को राज्यसभा का सदस्य बनाया गया और मंत्री भी. कांग्रेस ने कभी इस पर बात नहीं किया.

@pbhushan1 ने मौजूदा चुनाव आयुक्त पर चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को नष्ट करने का आरोप लगा दिया. कहा कि उन्हें मोदी ने पहले चीफ सेक्रेट्री बनाया, फिर जीएसपीसी का चेयरमैन बना दिया जिस संस्था के बारे में सीएजी ने 20,000 करोड़ की लूट का आरोप लगाया है.

हमारे सहयोगी अखिलेश शर्मा ने कहा कि इसी चुनाव आयोग ने जब अहमद पटेल के चुनाव के समय दो मतों को अवैध घोषित किया था तब चुनाव आयोग की तारीफ हुई थी. एक बात का ध्यान रखिए. हर फैसले की समीक्षा उसी फैसले से होगी. अगर रोड शो गलत है तो इसलिए सही नहीं हो सकता कि चावला क्या थे और ए के ज्योति क्या हैं. मुमकिन है चुनाव आयोग के और फैसले सही हों, आज भी और अतीत में भी लेकिन क्या राहुल गांधी का इंटरव्यू देना और प्रधानमंत्री का रोड शो करना आचार संहिता का उल्लंघन है? इन दोनों पर कार्रवाई न कर क्या चुनाव आयोग एक संस्था के रूप में अपनी साख दांव पर लगा रहा है? कांग्रेस पार्टी के नेता ने भी प्रधानमंत्री के मतदान के बाद कार से भीड़ में हाथ हिलाते हुए जाने की आलोचना की. रणदीप सुरजेवाला और अशोक गहलोत, पी चिदंबरम ने कड़ी प्रतिक्रिया ज़ाहिर की.

चुनाव आयोग को भी तुरंत साफ करना चाहिए. राहुल गांधी के इंटरव्यू पर नोटिस लिया तो बताना चाहिए कि गलती थी या नहीं. यह भी बताना चाहिए कि उसी दिन जब राहुल का इंटरव्यू चला तब फिक्की के कार्यक्रम में शामिल हो रहे प्रधानमंत्री का लंबा भाषण पर सभी चैनलों पर प्रसारित किया गया. लोग चुनाव आयोग से ही संतुष्ट होंगे कि दोनों में क्या कोई अंतर है या फिर आयोग एक पर कार्रवाई कर रहा है और दूसरे पर नहीं कर रहा है, फिर किसी ने उदाहरण दिया कि मतदान के दिन गुजरात के अखबारों में प्रधानमंत्री का विज्ञापन छपा और जिसमें चुनाव चिन्ह भी था. गुजरात के मुख्यमंत्री का बयान सुनते हैं.

विजय रुपाणी ने कहा कि पीएम ने उंगली का निशान दिखाया, कमल का निशान नहीं दिखाया. कमल का निशान तो प्रधानमंत्री ने 2014 के चुनाव में मतदान के बाद दिखाया था. तो क्या रुपाणी जी के अनुसार वो ग़लत था. चलिए अगर यही पैमाना है तो क्या रुपाणी जी के अनुसार उनकी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने आचार संहिता का उल्लघंन किया है. संबित पात्रा ने बाकायदा हैशटैग गुजरात विद नमो के साथ हिन्दी में ट्विट किया कि 'चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण के मतदान में गुजरात की जनता से अपील कि वे कमल के निशान पर अपना मत दें एवं विकास को विजयी बनायें. पहले मतदान फिर जलपान.'

संबित के ट्वीट पर राजदीप ने ट्वीट किया कि चुनाव आयोग हाज़िर हो. बीजेपी नेता भूपेंद्र यादव ने कहा कांग्रेस की रस्सी जल गई मगर बल नहीं गया.

आचार संहिता को कौन गंभीरता से लेता है, इसका उल्लंघन चुनाव के समय ही ठन ठन करता है, फिर कुछ पता भी नहीं चलता कि जो उल्लंघन था उसका क्या हुआ.

लेकिन क्या कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने चुनाव आयोग मुख्यालय पर प्रदर्शन कर ठीक किया? कांग्रेस कार्यकर्ताओं का आरोप था कि चुनाव आयोग दोहरा रवैया अपना रहा है. निष्पक्ष तरीके से चुनाव नहीं करवा रहा है. कांग्रेस की महिला मोर्चा ने नारे भी लगाए और आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले प्रधानमंत्री और अन्य बीजेपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. महिला कांग्रेस की प्रमुख सुष्मिता देव इस प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही थीं जो एक सांसद भी हैं. उनका कहना है कि चुनाव आयोग कांग्रेस नेताओं के खिलाफ कार्रवाई तो करता है मगर बीजेपी नेताओं की बारी आती है तो नरम पड़ जाता है.

नाराज़गी और आरोप लगाने से आगे जाकर चुनाव आयोग के बाहर प्रदर्शन करना क्या कांग्रेस ने भी सीमा नहीं तोड़ी. 14 दिसंबर को बीजेपी के नेताओं ने भी चुनाव आयोग के मुख्यालय जातकर मुख्य चुनाव आयुक्त से मुलाकात की. रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी समेत कई मंत्री और नेता चुनाव आयोग के मुख्यालय गए. बैठक के बाद मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने रोड शो कर किसी आचार संहिता का उल्लंघन नहीं किया. उन्होंने कोई बयान नहीं दिया. हमने कभी भी संवैधानिक संस्थाओं की धज्जियां नहीं उड़ाईं.

यह रोड शो गलत था या नहीं इसका जवाब क्या इससे मिलेगा कि एम एस गिल को मंत्री बनाया गया या नहीं. इसलिए ज़रूरी है कि चुनाव आयोग जवाब दे. आउटलुक और बीबीसी हिन्दी ने गुजरात के मुख्य निवार्चक पदाधिकारी बी बी स्वेन से बात की है. स्वेन ने कहा है कि प्रधानमंत्री का काफिला जांच के दायरे में है. जब प्रधानमंत्री मोदी वोट देकर बूथ से निकले थे तो आचार संहिता की कमेटी वहां मौजूद थी, जो हर गितिविधि की वीडियोग्राफी करती है. हमने अहमदाबाद के ज़िला निर्वाचन पदाधिकारी से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है. यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि वो काफ़िला आचार संहिता का उल्लंघन था.

दिल्ली में चुनाव आयोग में वरिष्ठ उप चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा ने मीडिया को सारी जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि गुजरात के मुख्य चुनाव पदाधिकारी ने कांग्रेस के लगाए तमाम आरोपों पर रिपोर्ट भेजी है. उस रिपोर्ट की जांच की जा रही है. हम जल्दी ही इस पर विचार कर जानकारी देंगे. प्रधानमंत्री के रोड शो के विवाद की भी जांच की जाएगी.

गुजरात चुनावों की तारीख को लेकर ही चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठने लगे थे. 12 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के साथ गुजरात चुनावों की घोषणा नहीं हुई थी. बताया गया कि पहले भी ऐसा हो चुका है और बाढ़ के कारण प्रशासन के ज़रिए कुछ हफ्ते का समय मांगा गया था. तब पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा था कि एक साथ चुनावों का ऐलान न करना दुर्भाग्यपूर्ण है. 7 दिसंबर को गुजरात हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है कि वीवीपैट की पर्ची की भी साथ-साथ गिनती की जाए. राजकोट के एक व्यक्ति ने याचिका दायर की थी कि ईवीएम को लेकर गंभीर आरोप लगे हैं इसलिए ईवीएम के साथ साथ वीवीपैट की पर्ची की गिनती होनी चाहिए. इस बारे में अंतिम जानकारी हमारे पास नहीं है.

हमने कई पूर्व चुनाव आयुक्तों से गुजरात चुनाव के संदर्भ में हुए विवाद को लेकर बात करने का प्रयास किया. सबने मना कर दिया. के जे राव ने ज़रूर बात की. चुनाव आयोग के प्रति भरोसा रखने और सम्मान ज़ाहिर करने की परंपरा का निर्वाह करते हुए के जे राव ने इशारे में जो बात कही है वो महत्वपूर्ण है. वो कह रहे हैं कि कभी-कभी चूक हो जाती है जिसे ठीक कर लिया जाता है और वो यह भी कह रहे हैं कि मीडिया को नहीं दिखाना चाहिए. क्या मीडिया को प्रधानमंत्री को रोड शो के बारे में नहीं दिखाना चाहिए था. क्या आयोग ने चुनाव से पहले या चुनाव के दौरान मीडिया को इस तरह के दिशानिर्देश दिए थे या सब अंधेरे में तीर चला रहे हैं.


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