सपा में चाचा-भतीजे के बीच घमासान

सपा में चाचा-भतीजे के बीच घमासान

शिवपाल यादव और अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश की सियासत गर्माई हुई है। दोनों बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों- समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में राजनीतिक पारा गर्म है। सतारूढ़ सपा की राजनीति के शीर्ष यादव परिवार में खुलकर द्वंद्व मचा हुआ है। वहीं मायावती के सिपहसालार स्वामी प्रसाद मौर्य ने उन पर दलित नहीं दौलत की बेटी का आरोप लगाते हुए पार्टी से नाता तोड़ लिया।

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने उत्तराधिकारी बेटे अखिलेश यादव और सबसे छोटे चेहेते भाई शिवपाल के बीच जारी खींचतान को संभालने में लगे हुए हैं। लेकिन इस बार मुख्यमंत्री बेटा खासा नाराज हो गया है। उन्होंने मुलायम के करीबी मंत्री बलराम यादव को मंत्रिमंडल से हटा दिया। अखिलेश अपने मंत्रिमंडल में 27 जून को फेरबदल भी करने जा रहे हैं। बलराम ने मंगलवार को ही कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय कराया था, जिसके नेता मुख्तार अंसारी जेल में बंद हैं। अखिलेश इससे नाखुश थे। वे नहीं चाहते थे कि आपराधिक छवि के लोग विधानसभा चुनावों से पहले सपा में शामिल हों।

बहरहाल 'बेबस' मुख्यमंत्री से पूछा तक नहीं गया। विलय कराने के लिए अखिलेश के चाचा और मंत्री शिवपाल यादव भी स्टेज पर मौजूद थे। अखिलेश इतना नाखुश थे कि उन्होंने तमाम तय मुलाकातों को रद्द कर दिया। कहा जा रहा है कि शिवपाल अपने नाराज मुख्यमंत्री भतीजे से मिलने भी पंहुचे। शिवपाल ने बाद में ये साफ भी किया कि ये विलय मुलायम सिंह यादव की रजामंदी से हुआ और मुलायम ही पार्टी के सर्वेसर्वा हैं।

अखिलेश और शिवपाल के बीच तनातनी का सिलसिला काफी समय से चला आ रहा है। पहले तो शिवपाल खुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन गद्दी मिली अखिलेश को। हाल के मथुरा के जवाहर बाग मामले में भी अखिलेश अवैध रूप से कब्जा किए गए जमीन को खाली कराना चाह रहे थे, लेकिन शिवपाल यादव नहीं चाहते थे कि जमीन खाली करने में कोई कानूनी कार्रवाई की जाए। अखिलेश यादव अमर सिंह की वापसी के भी खिलाफ थे, जिसके पीछे शिवपाल यादव थे। राज्यसभा की सूची से भी वे नाखुश थे। मुलायम ने शिवपाल यादव को विधानसभा चुनावों को  देखते हुए राज्य का प्रभारी नियुक्त किया है। शिवपाल को खुश करने के लिए ये पद बनाया गया। 2012 में अखिलेश चुनाव प्रभारी थे।

शिवपाल, अखिलेश के करीबियों को बिना बताए भी पार्टी से निलंबित कर दिया था। इस नाराजगी की वजह से अखिलेश सफैई के उद्घाटन समारोह में नहीं गए थे। तब जाकर मुलायम सिंह ने अखिलेश के दोनों करीबियों का निलंबन वापस लिया। शिवपाल के करीबी तोतराम को बूथ कैप्चरिग के मामले में गिरफ्तार कराया गया। हालांकि एक तरफ शिवपाल को रणनीतिक गणित की छूट मिल मिली हुई है, क्योंकि पार्टी को खड़ा करने में उनकी अहम भूमिका रही। दूसरी तरफ अखिलेश एक प्रगतिशील युवा मुख्यमंत्री की छवि बनाने की कोशिश में जुटे रहे। लेकिन अखिलेश का मंत्रियों को हटाने के जरिये बार-बार अपना ऐतराज जताते रहना यह साफ करता है कि उत्तर प्रदेश को एक मुख्यमंत्री नहीं एक परिवार चला रहा है।

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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