जेएनयू की जंग पार्ट-2 : मामले में बेहतर तरीके से निपट सकती थी सरकार

जेएनयू की जंग पार्ट-2 : मामले में बेहतर तरीके से निपट सकती थी सरकार

नई दिल्‍ली:

जेएनयू की जंग का असर आज पटियाला हाउस कोर्ट में देखने को मिला। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के मामले में सुनवाई के दौरान छात्रों, शिक्षकों और पत्रकारों के साथ मारपीट हुई, उनको धमकाया गया, उनको देश विरोधी बताया गया। पिटाई करने वाले वकील बताए गए और पुलिस जो वहां बड़ी तादाद में मौजूद थी, मूक दर्शक बनी मौजूद रही। 10-15 का दल इन वकीलों में था जो पिटाई कर रहा था। ये पत्रकारों के साथ पिटाई और धक्का-मुक्की कर रहे थे, बार-बार पूछ रहे थे क्या तुम जेएनयू से हो। वे नहीं चाहते थे कि कोर्ट के अन्दर पत्रकार या फिर कन्हैया के समर्थक घुसें। पुलिस मदद करने की बजाय कहने लगी आप बाहर जाएं। तो कौन थे ये लोग? क्यों हावी होना चाह रहे थे? क्या किसी राजनीतिक दल से जुड़े थे?

खैर, जो भी हुआ हो, एनडीटीवी से बातचीत करते हुए दिल्ली के पुलिस कमिशनर ने कहा, 'ये छोटा सा मसला था। ज्यादतियां सभी तरफ से हुईं, मुझे पता चला है कि किसी को गम्भीर चोटें नहीं आईं, एक हल्की सी हाथापाई हुई। कानून के दायरे में जो होगा हम करेंगे।' पुलिस कमिश्नर बस्सी ने गृहमंत्री द्वारा हाफिज सईद का नाम लेने पर कहा, 'पूरे मामले को पूर्ण रूप में देखना होगा, वो किसी विवेकहीन व्यक्ति के असली ट्विटर ॲकाउन्ट से है या नकली से। हमें सुनिश्चित करना है कि उससे समाज में अशांति न फैले।'

बस्सी जी ने सही कहा, लेकिन एक आतंकवादी के बयान पर इतना यकीन क्यों। क्यों हमारे गृहमंत्री को उसका जिक्र करना पड़ा। एक आतंकी जिसका काम ही भारत के खिलाफ आग उगलना है क्योंकि राजनीतिक दलों को मौका मिल गया। सीपीएम नेता प्रकाश करात ने कहा, 'हमारे गृहमंत्री नकली ट्विटर हैंडल पर भरोसा करते हैं। बीजेपी और आरएसएस अपना हिन्दुत्व का ऐजेन्डा विश्वविद्यालयों पर थोपना चाहते हैं।

तो क्या वाकई जेएनयू की जंग किसी विश्वविद्यालय में सरकार द्वारा अपनी विचारधारा मढ़ने की है? मोहनदास पाई ने एनडीटीवी की वेबसाईट पर एक लेख में लिखा है कि एक समय जब प्रोफेसर नुरुल हसन मानव संसाधन विकास मंत्री थे तब उन्होंने जेएनयू को लेफ्ट के गढ़ में तब्दील कर दिया था। तब अलग विचारधारा वाले पढ़ाने वाले नहीं लिए जाते थे या फिर परेशान किए जाते थे। उन्होंने पश्चिम बंगाल में भी विश्वविद्यालों के खस्ताहाल के लिए लेफ्ट को जिम्मेदार ठहराया। तो एक अरसे से सत्ता के हर दौर में ये कोशिशें होती रही हैं। पाई का कहना है कि सत्ता में कोई भी हो, शिक्षण संस्थानों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। लेकिन जेएनयू में 14 साल बाद एबीवीपी छात्र संघ के किसी पद पर जीत कर आई है। केन्द्र में उसकी सरकार है। तो वो क्या अब अपनी विचारधारा मढ़ना चाह रही है?

जब जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने की हर कोशिश हो रही हो, वो जो अफजल गुरु को हीरो से कम दर्जा नहीं देती रही हो। अब जब पंजाब में चुनाव आने वाले हों और अकाली दल से गठबंधन को बार-बार तय किया जाता रहा हो, क्या बीजेपी भूल जाती है संविधान की प्रति को किसने जलाया था। राजनीतिक फायदे के लिए विचारधारा बेमानी हो जाती है।

ये अराजकता का दायरा क्यों बढ़ रहा है? क्यों विश्वविद्यालयों में पुलिस बल का खौफ है? वो भी उस दौर में जब अभिव्यक्ति के अनेकों प्लेटफॉर्म हैं। हर एक हाथ में मोबाईल फोन है, वीडियो की हकीकत देर सबेर सामने आ ही जाएगी। शायद सरकार को बेहतर तरीके से सम्भालना चाहिए था।

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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