जोश मजुका : ये हैं दुनिया के सबसे गरीब राष्ट्रपति

अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के साथ जोश मजुका

उन्हें गरीब राष्ट्रपति के बजाए साधारण कहलाना ज्यादा पसंद है। उनके पास दरम्याना कद, बेढोल शरीर, चेहरे पर साधारण, लेकिन सरल मुस्कान है। वो तेरह साल जेल में बिता चुके हैं। और अपनी तनख्वाह की 90 फीसदी रकम दान दे देते हैं।

ये दुनिया के सबसे गरीब और विनम्र उराग्वे के राष्ट्रपति जोश मजुका है। उनके बारे में किसी अखबार में पढ़ रहा था। जितना पढ़ता गया मेरी दिलचस्पी उतनी उनके व्यक्तित्व को जानने की बढ़ती गई। उनके पास 90 के दशक की एक छोटी फोक्सवैगन बीटल कार है। जिससे वो राष्ट्रपति कार्यालय जाते हैं। मेरे मन में कभी उनकी छवि के आसपास अरविंद केजरीवाल या ममता बनर्जी की कार घूमती। तो कभी अमेरीका में नरेंद्र मोदी का नींबू पानी पीना घूमता है।

मैं सोच रहा था क्या इस तरह की सादगी और गरीबी के आसपास भी हमारे कोई नेता फटकते हैं। जवाब गांधी जी के आसपास घूम रहा था, हमारी पीढ़ी ने जब होश संभाला तो मुझे याद है, वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री पद संभाला, तो वीआईपी कारों के काफिले को कम किया। जो अखबार की सुर्खियां बनी। यही खबर दिल्ली से करीब 600 किमी दूर जब मेरे शहर बहराईच के घर में पहुंची तो मैंने अपने पिता के चेहरे पर एक संतोष का भाव देखा था। जो शायद ये अहसास दिलाता था कि हमारा देश एक जिम्मेदार हाथों में है।
पता नहीं क्यों सादगी में मुझे सकारात्मकता दिखती है।

वक्त बीतता गया अब मीडिया में हमारे नेताओं की वीआईपी कारों और बड़े घर की चर्चा होती है या आलोचना। खैर उराग्वे के राष्ट्रपति जोश मजुका के बारे में आपको जानकारी देने के बजाए हम अपने देश के नेताओं की चर्चा करने लगे जो इन सुविधाओं को जरूरत बताकर लेते हैं फिर सादगी का ढोल पीटते हैं।

जोश मजुका जब पांच साल के थे तो उनके गरीब किसान पिता दिवालिया होकर मर गए।  
बचपन संघर्ष में बीता और बाद में क्यूबा की क्रांति से प्रभावित होकर ब्राड फ्रंट नाम का एक संगठन खड़ा किया।

सरकार से गोरिल्ला युद्ध शुरू करने वाले जोश मजुका को 1970 में गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन गिरफ्तारी से पहले सेना से उनका संघर्ष हुआ और उन्हें छह गोली लगी।
एक साधारण से डॉक्टर ने उऩकी जान बचाई। इसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया।
जेल से भी भागने की उन्होंने कोशिश की। 90 के दशक में जब उराग्वे में लोकतंत्र आया तो
उन्हें आजाद किया गया।

जोश मजुका ने लुशिया नाम की एक महिला से शादी की। जो गोरिल्ला युद्ध के दौरान उनके साथ लड़ी थी। आजकल लुशिया भी सिनेटर है। उनके कोई बच्चे नहीं है। 12000 डॉलर की सैलरी का 90 फीसदी दान कर देते हैं। अपने छोटे से फार्म हाउस में अपनी पत्नी और तीन पैरों वाले एक कुत्ते के साथ रहते हैं। फूल उगाकर बेचते हैं, यही उनकी आमदनी का जरिया है। हालांकि जोश मजुका खुशकिस्मत हैं कि केवल साढ़े तीन मिलियन लोगों के एक छोटे से देश के राष्ट्रपति हैं। लेकिन उनकी परांपरा से व्यावहारिक नीति बनाने की सोच का मैं कायल हूं।

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ऐसे नेताओं और उद्योगपतियों के बारे में मेरा नजरिया सकारात्मक हो गया है, जिनमें सादगी और दान देने का इतना बड़ा दिल है। जोश मजुका की जिंदगी से सीख लेने की जरूरत शायद उस समय ज्यादा पड़े जब चंद पैसों में ईमान खरीदने की कोशिश बहुत सारे लोग करने लगते हैं।